RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
फट गईई ई ई ई ई
दर्द कम तो नहीं हुआ लेकिन उस दर्द की मैं अब थोड़ी थोड़ी आदी हो गयी थी। चन्दा भी मेरी पीठ सहला रही थी , लेकिन अचानक ,
असली कष्ट तो अभी बाकी था ,गांड का छल्ला।
…. आह , उई ई ओह्ह फट गई , मर गई ओह , मेरी चीखें निकल कर धान के खेत तो छोडिए आधे गाँव में पहुँच रही थीं और चन्दा मेरे जख्मों पे मिर्च छिड़क रही थी ,
" मेरी बिन्नो, इस गन्ने के खेत में जो आती है न , उसकी फटती ही है। बिना फटे वो नहीं जाती " और साथ ही दिनेश से बोली ,
" अरे पेलो साली की गांड में हचक हचक के , फट जाने दो साली की। अरे बहुत हुआ तो कल्लू मोची के पास ले जाके इसकी सिलवा दूंगीं न। बहुत हुआ तो फ़ीस में वो भी इसकी एक दो बार मार लेगा। "
ऐसा दर्द आज तक नहीं हुआ था। सुनील ने मेरी गांड मारी थी , वो भी पहली बार। कामिनी भाभी के मर्द ने तो दो बार ,एक बार रात में फिर सुबह सबेरे
और तब मेरे दिमाग की बत्ती जली।
चन्दा ने उस दिन खूब देर तक ऊँगली की थी पहले और एक जेली की ट्यूब मेरे पिछवाड़े डाल के पूरी पिचका दी थी। पूरी पूरी ट्यूब की क्रीम अंदर ,चपर चपर करती और उस लुब्रिकेशन का कुछ तो फायदा मिला था ,
फिर रात में कामिनी भाभी ने मेरी टाँगे उठा के आधी बोतल से ज्यादा कडुवा तेल मेरी गांड के अंदर पिला दिया था और तब तक टाँगे उठा के रखी थीं ,जब तक एक एक बूँद अंदर नहीं चली गयी थी। और उसके बाद बाकी का बचा तेल सीधे भैया के लण्ड पे अच्छी तरह चुपड़ दिया।
सुबह तो मेरी गांड में रात की भइया की कटोरी भर की मलाई भरी थी , और अब मैं भी समझ गयी थी की मर्द की रबड़ी मलाई से बढ़कर चिकनाई कोई नहीं होती। लेकिन आज तो बस खाली थूक लगा के ,...
अब मेरा ये भरम दूर हो गया था की मैंने सुनील से और कामिनी भाभी के मरद से गांड मरवा ली तो मैं किसी से भी आसानी से गांड मरवा सकती हूँ।
उयी ई ओह्ह्ह , प्लीज दिनेश थोड़ी देर के लिए गांड से निकाल लो न ओह्ह ,जान गयी उहहह , दिनेश ने एक और जोरदार धक्का मारा और मेरी चीख फिर गूँज गयी।
" बोल , अब दुबारा तो छिनरपना नहीं करेगी जैसे अभी नखडा चोद रही थी की लण्ड पे नहीं चढ़ेगी। " चन्दा बोली।
" नहीं नहीं बस इसको बोलो एक बार निकाल ले ,... " मैं दर्द से गिड़गिड़ा रही थी।
" निकाल तो लेगा ही लेकिन हचक के तेरी गांड मारने के बाद ,तू क्या सोच रही है तेरी गांड में लण्ड छोड़ के चला जाएगा। "
मुझे चिढ़ाने में उसे बहुत मजा आ रहा था , फिर उसने अपनी शर्त भी सुना दी , आगे से इस गाँव के क्या कही भी किसी भी लौंडे को किसी चीज के लिए मना मत करना समझी। "
फट गईई ई ई ई ई
दर्द कम तो नहीं हुआ लेकिन उस दर्द की मैं अब थोड़ी थोड़ी आदी हो गयी थी। चन्दा भी मेरी पीठ सहला रही थी , लेकिन अचानक ,
असली कष्ट तो अभी बाकी था ,गांड का छल्ला।
…. आह , उई ई ओह्ह फट गई , मर गई ओह , मेरी चीखें निकल कर धान के खेत तो छोडिए आधे गाँव में पहुँच रही थीं और चन्दा मेरे जख्मों पे मिर्च छिड़क रही थी ,
" मेरी बिन्नो, इस गन्ने के खेत में जो आती है न , उसकी फटती ही है। बिना फटे वो नहीं जाती " और साथ ही दिनेश से बोली ,
" अरे पेलो साली की गांड में हचक हचक के , फट जाने दो साली की। अरे बहुत हुआ तो कल्लू मोची के पास ले जाके इसकी सिलवा दूंगीं न। बहुत हुआ तो फ़ीस में वो भी इसकी एक दो बार मार लेगा। "
ऐसा दर्द आज तक नहीं हुआ था। सुनील ने मेरी गांड मारी थी , वो भी पहली बार। कामिनी भाभी के मर्द ने तो दो बार ,एक बार रात में फिर सुबह सबेरे
और तब मेरे दिमाग की बत्ती जली।
चन्दा ने उस दिन खूब देर तक ऊँगली की थी पहले और एक जेली की ट्यूब मेरे पिछवाड़े डाल के पूरी पिचका दी थी। पूरी पूरी ट्यूब की क्रीम अंदर ,चपर चपर करती और उस लुब्रिकेशन का कुछ तो फायदा मिला था ,
फिर रात में कामिनी भाभी ने मेरी टाँगे उठा के आधी बोतल से ज्यादा कडुवा तेल मेरी गांड के अंदर पिला दिया था और तब तक टाँगे उठा के रखी थीं ,जब तक एक एक बूँद अंदर नहीं चली गयी थी। और उसके बाद बाकी का बचा तेल सीधे भैया के लण्ड पे अच्छी तरह चुपड़ दिया।
सुबह तो मेरी गांड में रात की भइया की कटोरी भर की मलाई भरी थी , और अब मैं भी समझ गयी थी की मर्द की रबड़ी मलाई से बढ़कर चिकनाई कोई नहीं होती। लेकिन आज तो बस खाली थूक लगा के ,...
अब मेरा ये भरम दूर हो गया था की मैंने सुनील से और कामिनी भाभी के मरद से गांड मरवा ली तो मैं किसी से भी आसानी से गांड मरवा सकती हूँ।
उयी ई ओह्ह्ह , प्लीज दिनेश थोड़ी देर के लिए गांड से निकाल लो न ओह्ह ,जान गयी उहहह , दिनेश ने एक और जोरदार धक्का मारा और मेरी चीख फिर गूँज गयी।
" बोल , अब दुबारा तो छिनरपना नहीं करेगी जैसे अभी नखडा चोद रही थी की लण्ड पे नहीं चढ़ेगी। " चन्दा बोली।
" नहीं नहीं बस इसको बोलो एक बार निकाल ले ,... " मैं दर्द से गिड़गिड़ा रही थी।
" निकाल तो लेगा ही लेकिन हचक के तेरी गांड मारने के बाद ,तू क्या सोच रही है तेरी गांड में लण्ड छोड़ के चला जाएगा। "
मुझे चिढ़ाने में उसे बहुत मजा आ रहा था , फिर उसने अपनी शर्त भी सुना दी , आगे से इस गाँव के क्या कही भी किसी भी लौंडे को किसी चीज के लिए मना मत करना समझी। "
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और जोर से दिनेश को आँख मार दी , दिनेश ने हलके हलके लण्ड बाहर निकालना शुरू कर दिया , और जब पूरा सुपाड़ा आलमोस्ट बाहर हो गया तो जान में जान आई।
चन्दा मेरी पीठ सहला रही थी , दिनेश ने मेरी कमर पकड़ रखी थी ,और फिर अचानक ,उसने एक ही धक्के में पहले से दस गुनी के ताकत के साथ ,
गांड का छल्ला पार हो गया , आधे से ज्यादा लण्ड करीब ५ इंच अंदर धंस गया और उस के बाद तो एक से एक करारे धक्के ,
धकाधक धकाधक , सटासट सटासट , वो मेरी गांड के परखचे उड़ा रहा तो ,न उसे मेरे रोने की परवाह थी न चीखने की।
दस मिनट तक इसी तरह ,आलमोस्ट पूरा लण्ड करीब ८ इंच अंदर डालकर मेरी गांड वो कूटता रहा /
इस पूरे दौरान सुनील चुपचाप मेरे नीचे लेटा रहा ,अपना बालिश्त भर का लण्ड मेरी चूत में घुसेड़े। और जब दिनेश सांस लेने को रुका तो नीचे से सुनील चालू ,
पन्दरह बीस धक्के उसने वो ऐसे करारे मारे की मैं गांड का दर्द उसमें जड़ तक घुसा दिनेश का मोटा लण्ड सब भूल गयी।
और जब वो रुक गया तो दिनेश ने गांड मारनी चालु कर दी फिर से , एकदम बाहर तक निकाल के चीरते फाड़ते दरेरते वो घुसेड़ देता। बारी बारी से दोनों , ऐसे जुगलबंदी दोनों की थी की न मेरी बुर को चैन न गांड को आराम।
फिर दोनों एक साथ , एकसाथ दोनों बाहर निकालते , एक साथ अंदर ठेलते ,दोनों के बीच मैं पिस रही थी , एक एक चूंची भी दोनों ने बाँट ली थी। और चन्दा भी खाली नहीं बैठी थी कभी वो मेरी क्लिट नोच लेती तो कभी निपल्स और दर्द और मजे की एक नयी लहर दौड़ जाती।
मुझे बार बार कामिनी भाभी की बात याद आ रही थी , गुड्डी ,गांड मराने का मजा तुम उस दिन लेना सीख जाओगी , जिस दिन तुम दर्द का मजा लेना जान जाओगी। गांड मरवाने में तो जितना दर्द उतना मजा , मारने वाले को भी , मरवाने वाली को भी।
बात उन की एकदम सही थी और मैं अब दिनेश और सुनील दोनों के धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी साथ में कभी गांड में लण्ड निचोड़ लेती तो कभी अपनी बुर को सुनील कमाते लण्ड केऊपर भींच लेती।
मजे से उन दोनों की भी हालत खराब थी।
मैं दो बार झड़ी लेकिन न सुनील ने चुदाई स्लो की न दिनेश ने।
जब तीसरी बार झड़ी तो जाके पहले दिनेश और फिर सुनील , ... खूब देर तक बुर गांड दोनों में बारिश होती रही। मैं एकदम लथपथ , थकी ,गन्ने के खेत में जमीं पर लेटी, बस मजे से मेरी आँखे बंद ,...आँखे खोलने का मन भी नहीं कर रहा था , एक ओर सुनील तो दूसरी ओर दिनेश।
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