07-06-2018, 02:39 PM,
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sexstories
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
चंदा ,सुनील और ,...
"यार तुझे चोदना हो तो चोद ,वरना,... "
अब मेरा ये बोलना था की चन्दा की झांटे जैसे सुलग गईं , चूसना छोड़ के तपाक से मेरे पास वो खड़ी हो गयी। गुस्से में मुझसे बोली ,
" वरना , वरना क्या , ...मेरी पक्की सहेली भी मेरे यार को ऐसे जवाब नहीं देती। अरे क्या करेगी तू छिनार की जनी ,चली जायेगी न ,जा अभी जा , तुरंत। "
और मेरी निगाह चन्दा के हाथों पे पड़ी , जिसमें मेरे कपडे वो जोर से पकडे थी।
" जा न ऐसे ही , बहुत जाने वाली बनी है ,अरे सुनील बिचारा नहीं चाहता है की इस गन्ने के खेत के बड़े बड़े ढेलों पे तेरे गोरे गोरे कोमल मुलायम शहर के चूतड़ रगड़े जाएं इसलिए बिचारा खुद नीचे लेटकर ,...और तू है की नखडा चोद रही है। "
मुझे भी लगा की मैं गलत थी।
बिचारा सुनील कल भी मैंने उसे मना कर दिया था , आज का प्रॉमिस किया था। आज भी वो बिचारा कब से मेरी बाट रहा था , भी तो ,... फिर बिना कपडे लिए एकदम नंगी कैसे जा सकती हूँ मैं। यहाँ से तो रास्ता भी नहीं जानती हूँ मैं।
" जा जा न देख क्या रही है , रास्ते में इत्ते लौंडे मिलेंगे न तुझे की चार दिन तक घर नहीं पहुँच पाएगी। गांड का भोसड़ा बन जाएगा। जा मत चढ़ सुनील के लण्ड के ऊपर ,.... " चन्दा का गुस्सा कम होने को नहीं आ रहा था।
मैं बिना कपडे के जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन बिचारा सुनील ही बोला ,
" चन्दा दे दे कपडे न उसके ,... "
" देख कितना भला है ये तेरा कैसा ख्याल करता है। लण्ड खड़ा है तब भी तुझे बिन चोदे छोड़ रहा है , चल मैं दे देती हूँ तेरे कपडे लेकिन आज के बाद गाँव के लौंडे क्या कुत्ते भी नहीं पूछेंगे तुझे। याद रखना। ले ले कपडे अपने। "
चन्दा ने मेरे कपड़ों को गोल गोल किया और पूरी ताकत से ऊपर उठा लिया बोली ,
" ले इसे मैं फेंक दे रही उस धान के खेत में काम करने वालियों के पास जा के उनसे निहोरा करना , देंगी तो देंगी। जा न रुकी क्या है माँ चुदवानी है क्या अपनी , गधाचोदी। "
मुझे लग रहा था की कितनी बड़ी गलती मैंने की , सुनील का इतना मस्त लण्ड खड़ा था और बिना चुदे ,... फिर वो धान के खेत वाली तो कभी मेरे कपडे वापस नहीं करतीं।
मैंने सुनील से ही गुहार की ,
" गलती हो गयी मुझसे , कोशिश करती हूँ " , आखिर कामिनी भाभी के मर्द के ऊपर तो चढ़ी ही थी।
हेल्प भी चन्दा ने ही की ऊपर चढाने में , बांस के।
मैं अपनी दोनों लम्बी लम्बी गोरी छरहरी टाँगे सुनील की कमर के दोनों ओर कर के बैठ गयी। मेरी प्यासी गीली चूत सुनील के मोटे सुपाड़े से रगड़ खा रही थी , मन तो मेरी गुलाबो का भी यही कर रहा था की उसे कैसे जल्द से गप्प कर ले। लेकिन कैसे ,पर मेरी प्यारी सहेली चन्दा ने पूरा साथ दिया।
आगे सब काम चन्दा ने किया ,मेरी चूत के पपोटे खोल के चूत में सुनील का मोटा सुपाड़ा सेट करने का , मेरे कंधे पकड़ के जोर से पुश करने का ,सुनील भी मेरी पतली कमर पकड़ के जोर से खींच रहा था।
मैने भी पूरी ताकत लगाई और दो चार मिनट में जब पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा मेरी बुर ने लील लिया तब चन्दा ने प्रेशर कम किया। और चिढ़ाते हुए बोली ,
पैदायशी छिनार हो तुम , कितने नखड़े कर रही थी अब कैसे गप्प से मेरे यार का सुपाड़ा घोंट गयी। "
" यार रहा होगा तेरा अब तो मेरा यार है , यार भी मेरा उसका औजार भी मेरा , तू दिनेश के साथ मजे ले "
मैं कौन उन्नीस थी , आँख नचा के मैं बोली और सुनील के कंधे पकड़ के एक बार फिर खूब जोर से प्रेस किया , अपनी चूत को।
सुनील ने भी मुझे अपनी ओर झुका लिया और जैसे मेरी बात में हामी भरते , कस के पहले मेरे होंठों को फिर उभारों को चूम लिया।
मैं अपनी ओर से पूरी ताकत लगा रही थी , लेकिन सुनील का था भी बहुत मोटा।
मेरी चूत परपरा रही थी , दर्द से फटी जा रही थी ,आँख में आंसू तैर रहे थे , लेकिन मैंने तय कर लिया था कुछ भी हो जाए उसका मोटा खूंटा घोंट के रहूंगी। कामिनी भाभी की सारी सीख मैं आँखे बंद के याद कर रही थी ,कैसे घुटनो के बल , किन मसलस को ढीला छोड़ना है ,कहाँ प्रेस करना है , और साथ साथ चूत को कभी ढीला छोड़ के कभी कस के लण्ड पे भींच भींच के ,
मेरी सहेली चन्दा भी पूरा साथ दे रही थी। ताकत भी बहुत थी उसके हाथों में और उसे सब मालुम भी था की कैसे कब कहाँ कितना दबाना है।
उसके दोनों हाथ मेरे कंधे पे थे , सुनील भी दोनों हाथ से एक बार फिर मेरी पतली कमर को पकड़ के अपनी ओर खींच रहा था। मैं भी आँखे बंद कर के ,..
सूत सूत कर के उसका बालिश्त भर का लण्ड सरक सरक के ,
इतना मजा आ रहा था की बता नहीं सकती।
लेकिन कुछ देर बाद चन्दा की खिलखिलाहट सुन के मैंने अपनी आँखे खोली ,
" ज़रा नीचे देख , ... " वो हंस के बोली।
वो एक बार फिर से दिनेश के पास बैठी उसका लण्ड चूस रही थी।
चन्दा ने तो मुझे छोड़ ही दिया था ,सुनील के भी दोनों हाथ कब के मेरी कमर को छोड़ चुके थे , और मैं खुद अपने जोर से ऊपर नीचे , आठ इंच से ज्यादा लण्ड घोंट चुकी थी और जैसे कोई नटनी की लड़की बांस के ऊपर नीचे चढ़े , मैं भी सुनील के बांस के ऊपर नीचे हो रही थी।
वह चुद रहा था ,मैं चोद रही थी।
एक पल के लिए मैं शरमाई , फिर चन्दा को उकसाया ,
" हे तू भी चढ़ जा न उसके ऊपर , फिर बद के चोदते हैं दोनों न। "
लेकिन चन्दा ने कोई जवाब नहीं दिया , वह अपने मुंह से बड़े बड़े थूक के गोले बना के दिनेश के लण्ड पे बार बार डाल रही थी। दिनेश का लम्बा लण्ड खूब गीला हो रहा था।
"अरे छिनार तेरे सारे खानदान की गांड मारुं , मुझे तो चढ़वा दिया इस मीठी शूली पर , अब खुद चढ़ते हुए क्यों गांड फट रही है। अगर अपने बाप की जनी है न तो चढ़ जा नहीं तो समझूंगी तू छिनार की ,रंडी की जनी अपने मामा की , ... "
गालियों का मजा सुनील को बहुत आता है , ये मुझे मालूम था।
और अब वो खूब जोर जोर नीचे से धक्के मार रहा था। मुझे भी चुदने में एक नया मजा आ रहा था। चूत दर्द के मारे फटी जा रही थी , जाँघे एक दम दर्द से चूर हो रही थीं लेकिन फिर भी मैं सुनील के कंधो को पकड़ के सटासट अपनी चूत अंदर बाहर कर रही थी।
साथ में जैसे कामिनी भाभी ने सिखाया था , चुदाई का काम सिर्फ चूत का नहीं , पूरी देह का है ,...
तो कभी मेरे होंठ सुनील के होंठों पर तितली की तरह जा के बैठ जाते और उन के रस ले के कभी गालों पे तो कभी सुनील के निप्स पे , भाभी ने ये भी सिखाया था की मर्द के निप्स किसी लौंडिया से कम सेंसिटिव नहीं होते तो , कभी उसे मैं चूसती चुभलाती तो कभी जोर से स्क्रैच कर लेती।
मस्ती से सुनील की हालत खराब थी।
पर सुनील को जो सबसे ज्यादा पसंद थे , जिसपे वो मरता था वो थीं मेरी कड़ी कड़ी गोरी गोरी नयी आती चूचियाँ।
मेरी कच्ची अमिया।
और आज मैंने जाना था की मरद की हालत कैसे खराब की जाती है उपर से , अपने कच्चे टिकोरों को कभी चखाकर तो कभी ललचा कर।
कभी मैं अपने निपल उसे चुसा देती तो कभी उसे ललचाती , दूर कर लेती
और बस हचक हचक के चोदती , और चोदते समय भी मेरी चूत जब आलमोस्ट ऊपर आ जाती तो उसके सुपाड़े को सिर्फ भींच भींच के निचोड़ के सुनील की हालत खराब कर देती।
उधर दिनेश की ललचाई आँखे मेरे मस्त कसे नितम्बों पर गड़ी थीं। बस वहीँ वो देखे जा रहा था एकटक , और मैं भी उसे उकसाने के लिए कभी उसे दिखा के अपने चूतड़ मटका देती तो कभी फ्लाईंग किस उछाल देती।
बिचारा उसका मोटा लम्बा बांस एकदम टनटनाया , कड़ा ,पगलाया था।
लेकिन चन्दा बस कभी उसे चूसती जोर जोर से तो कभी बस अपनी लार से नहला देती।
" अरे रंडी की औलाद काहें बिचारे को तड़पा रही है , चुदवा ले न ,उसे बिचारे को भी तो नीचे वाले छेद का मजा दे दे। अगर लण्ड के ऊपर चढ़ने में गांड फट रही है , तो मैं बोल देती हूँ न तुझे कुतिया बना के चोद देगा। "
अब मेरी बारी थी चन्दा को हड़काने की ,
मेरी गालियों का असर सुनील पे इतना पड़ा की उसने मुझे बांहों में भर के जोर से अपनी ओर नीचे पूरी ताकत से खींचा , अपने दोनों पैर भी अब उठा के उसने मेरी पीठ पर कैंची की तरह फंसा दिये थे।
पूरा लण्ड ऑलमोस्ट मेरी चूत में पैबस्त था और अगला धक्का मैंने जो मारा सुनील के साथ साथ ताल में ताल मिला के तो उसका मोटा सुपाड़ा सीधा मेरी बच्चेदानी पे लगा और लण्ड का बेस क्लिट पे रगड़ खा रहा था।
मस्ती से मेरी आँखे बंद हो रही थी।
चन्दा मेरे बगल में आ गयी थी और मेरे कान में फुसफुसा रही थी ,
" जानू , मेरी पांच दिन वाली सहेली कल से ही आगयी है , इसलिए पांच दिन की मेरी छुट्टी , समझी चूतमरानो। बिचारा सुनील इसीलिए कल से भूखा है और दिनेश को भी मिलेगा नीचे वाले छेद का मजा , घबड़ा मत। "
मुझे कुछ समझ में नहीं आया।
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Re: सोलहवां सावन,
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komaalraniGold MemberPosts: 1031Joined: 15 May 2015 07:37Contact:
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Re: सोलहवां सावन,
Post by komaalrani » 11 Aug 2016 20:26
ट्रिपलिंग : गन्ने के खेत में
मुझे कुछ समझ में नहीं आया।
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तब भी समझ में नहीं आया , जब सुनील ने कस के मुझे अपनी बांहों और पैरों के बीच इस तरह बाँध लिया था की मैं कितनी भी कोशिश करूँ इंच बराबर भी नहीं हिल सकती थी।
पीछे से चन्दा ने जबरदस्त थप्पड़ कस कस के मेरे चूतड़ पर लगाए और मेरी गांड का छेद दोनों अंगूठों से फैला के , उसमें एक जबरदस्त थूक का गोला , पूरी ताकत से एकदम अंदर तक ,...
मैं कुछ बोल भी नहीं सकती थी , सुनील ने जोर से अपने होंठों के बीच मेरे होंठ को भींच लिया ,था उसकी जीभ मेरे मुंह में हलक तक घुसी हुयी थी।
और जब समझ में आया तो बहुत देर हो चुकी थी।
चन्दा ने घचाक से अपनी मंझली ऊँगली , थूक में सनी मेरी गांड में ठेल दी। और गोल गोल घुमाने लगी।
मुश्किल से ऊँगली घुस पायी थी लेकिन चन्दा तो चन्दा थी। कुछ देर बाद उसने उंगली निकाल के एक बार दूनी ताकत से मेरी गांड के छेद को फैला दिया और दिनेश का मोटा सुपाड़ा मैं वहां महसूस कर रही थी ,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मैं कुछ नहीं कर सकती थी।
दिनेश की ताकत मैं जानती थी , और अबकी उसने और चन्दा ने मिलके मेरी गांड के संकरे मुहाने को फैलाया और दिनेश ने अपना मोटा सुपाड़ा ठोंक दिया। पूरी ताकत से , और सुपाड़े का अगला हिस्सा मेरी गांड में धंस गया।
दर्द के मारे ऐसी चिलहक उठी की मेरा सर फट गया। लेकिन सुनील के होंठों ने इतनी कस के मेरे होंठों को भींच रखा था की चीख निकलने का सवाल ही नहीं था। चीख घुट के रह गयी।
ऊपर से चन्दा मेरी दुश्मन , उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ के सुनील की पीठ के नीचे दबा दिए ,सुनील ने वैसे ही अपने हाथों और पैरों से मुझे जकड़ रखा था , लण्ड उसका जड़ तक धंसा था , हिलने का सवाल ही नहीं था।
चन्दा ने इतने पर भी पीछा नहीं छोड़ा। आके उसने कस के मेरी कमर पकड़ ली और दिनेश को चढ़ाते बोली ,
" अरे इतने हलके हलके धक्के से इसका कुछ नहीं होगा। कोई इसकी छिनार माँ का भोंसडा नहीं मार रहे हो , जिसमें गदहे घोड़े घुस जाते हैं। हचक के पेल न साल्ली रंडी की जनी की गांड में , दिखा दो अपनी ताकत।"
और दिनेश ने दिखा दी अपनी ताकत।
मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। बस मैं बेहोश नहीं हुयी। गांड से सर तक दर्द की वो लहर दौड़ रही थी की बस ,...
गाँड़ फटी जा रही थी। बस मन कर रहा था एक पल के लिए दिनेश अपना मोटा भाला बाहर निकाल ले। लेकिन बोल तो सकती नहीं थी , और दिनेश भी जबरदस्त गाँड़ मरवैया था। उसे मालुम था बिना बेरहमी के तो गांड़ मारी ही ना जा सकती ख़ास तौर से मेरी ऐसी कसी किशोरी की गांड़।
और उसे ये भी मालूम था की जैसे बुर में धक्के लगाते हैं ,वैसे धक्के लगाने की जगह गांड में ठेलना पड़ता है , पूरी ताकत से धकेलना पड़ता है , चाहे लौंडिया लाख चिल्लाए , लाख टेसुए बहाए।
चन्दा ने फिर उसे ललकारा और अबकी दुगुनी जोर से उसने पेला और पूरा का पूरा मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा
गप्पाक।
मेरी गांड ने सुपाड़ा घोंट लिया था।
एकाध मिनट दिनेश ने कुछ नहीं किया लेकिन उसका एक हाथ कस के मेरी कमर को दबोचे हुआ था और दूसरा मेरे नितम्बों पे,
चन्दा ने अब अपना हमला सुनील की ओर कर दिया और उसे हड़काया ,
' बहाने दो टसुए साली को ,कितना नखडा पेल रही थी तेरे लण्ड पे चढ़ने पे ,अब देख रंडी को कैसे मजे से एक साथ दो दो लण्ड घोंट रही है। खोल दो मुंह इसका ,चिल्लाएगी तो सारे गाँव को मालुम तो हो जाएगा , कैसे लौंडो को ललचाती पूरे गाँव को अपने मोटे मोटे चूतड़ दिखाती जो चल रही थी ,कैसे हचक हचक के उसकी गांड मारी जा रही है। "
सुनील ने मेरे होंठ अपने होंठों से आजाद कर दिए , और हलके हलके मेरे गाल चूमने लगा।
दर्द कम तो नहीं हुआ लेकिन उस दर्द की मैं अब थोड़ी थोड़ी आदी हो गयी थी। चन्दा भी मेरी पीठ सहला रही थी , लेकिन अचानक ,
असली कष्ट तो अभी बाकी था ,गांड का छल्ला।
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