Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 02:37 PM,
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
भाभी की माँ 

अब तक 












और मेरी भाभी ने मुझे देखा , मैं सब समझ गयी और जोर से ब्लश किया। 


तब तक भाभी की माँ आ गईं , और बात उन्होंने भले न सुनी हो लेकिन जोर से ब्लश करते हुए मुझे उन्होंने देख लिया। फिर दो भौजाइयों के बीच में कुँवारी कच्ची उमर की ननद , जैसे शेरनियों के बीच कोई हिरनी , समझ वो सब गयी की मेरी कैसी रगड़ाई हो रही होगी। 

उन्होंने मुझे बांहों में भींच लिया और एकदम से अपनी शरण में ले लिया।
कस के उन्होंने अपनी बांहों में भींच लिया। लेकिन अब तक मैं समझ गयी थी की उनकी पकड़ ,जकड में वात्सल्य कम , काम रस ज्यादा है और आज तो रोज से भी ज्यादा , जिस तरह से उनकी उँगलियाँ मेरे कच्चे नए आये उभारों को दबा सहला रही थीं और उँगलियों की टिप , मेरे कंचे की तरह गोल कड़े निपल को जाने अनजाने छू रही थी ये एकदम साफ़ लग रहा था। और सिर्फ मैं ही नहीं चंपा भाभी , मेरी भाभी भी सब समझ रही थीं और मुझे देख देख के मंद मंद मुस्करा रही थी। 

मैं लेकिन और जोर से उनसे चिपक गयी। 

और उन्होंने मेरी भाभी और चंपा भाभी दोनों को हड़काया , 

" तुम दोनों न सुबह सुबह से मेरी बेटी के पीछे पड़ जाती हो। कुछ खिलाया पिलाया है न बिचारी भूखे पेट और , बस उसके पीछे। "

तबतक बसंती भी आगयी . 

भाभी की माँ को देख के जोर से मुस्कराई और हँसते हुए उनकी बात बीच में काट के बोली, 

" अरे एकदम पिलाया है , भोर भिनसारे ,मुंह अँधेरे ,न बिसवास हो तो अपनी लाड़ली बिटिया से पूछ लीजिये न , "

हलके से उन्होंने पूछ लिया , " क्यों। "

बिना जवाब दिए मैं जोर से लजा गयी। सौ गुलाब मेरे किशोर गालों पे खिल गए। 

और उन्हें उनकी बात का जवाब मिल गया। 

खुश होके उन्होंने न सिर्फ कस के मुझे और जोर से भींच लिया बल्कि , मेरे गुलाबों पे कचकचा के चूम लिया और फिर उनके होंठ सीधे मेरे होंठों पे और होंठों के बीच उनकी जीभ घुसी हुयी जैसे बसंती की बात की ताकीद करती ,

कुछ देर बाद जब उनके होंठ हटे तो उन्होंने खुश होके बसंती की ओर देखा लेकिन उसको हड़का भी लिया ,

" एक बार थोड़ा बहुत कुछ पिला दिया तो हो गया क्या , नयी नयी जवानी आई है उसकी , तुम सबके भाइयों देवरों की प्यास बुझाती रहती है बिचारी मेरी बेटी , एक बार में प्यास बुझेगी क्या , उसकी तुम तीनो उसके पीछे पड़ी रहती हो। 

आज मेरी भाभी भी कुछ ज्यादा मूड में थी और अब वो मोर्चे पे आगयी। बोलीं 

" आप हम लोगो को बोलती रहती हैं। अरे हम नहीं पूरा गाँव आपके इस बेटी के पिछवाड़े के पीछे पड़ा है और उसका गाँव के लौंडों की क्या गलती है , ये चलती ही है इस तरह अपना पिछवाड़ा कसर मसर करती , लौंडो को ललचाती। गलती इसके कसे कसे पिछवाड़े की है। "













आगे 




[attachment=1]teen hot.jpg[/attachment]



लेकिन माँ हार मानने वाली नहीं थी और जब तक वो थीं , मुझे कुछ बोलने की जरूरत भी नहीं थी। उन्होंने जवाबी बाण छोड़े मेरी भाभी के ऊपर 


" तुम सब भी न मेरी बिचारी बेटी पर ही सब इल्जाम धरोगी। अभी तो जवानी उसकी बस आ रही है अरे अपनी सास को बोलो , अपनी ससुराल वालों को बोलों , तेरे देवर सब बचपन के गांडू, गांड मराने में नंबर ,और उनको छोडो , मेरी समधन , तेरी सास सब की सब खानदानी गांड मराने की शौक़ीन ,किसीको नहीं मना करतीं तो वो असर तो इस बिचारी के खून में आ ही गया होगा न। बचपन में जो चीज घर में खुलेआम देख रही होगी तो सीखेगी ही , फिर इसमें मेरी बेटी का क्या कसूर ,अपनी सास के बारे में बोलो न ,... "

और उसके बाद उन्होंने बाणों का रुख चंपा भाभी की ओर कर दिया ,

" और इसका पिछवाड़ा कसा कसा है तो दोस किसका है , तेरे देवरों का न। काहे नहीं ढीली कर देते , मेरी बेटी ने तो किसी को मना नहीं किया , क्यों बेटी है न। तूने कभी नहीं मना किया न ? ये बिचारि तो गन्ने का खेत हो आम का बाग़ हो कहीं भी निहुरने के लिए तैयार रहती है अपने देवरों को बोलों। "

मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मुस्कराउं या गुस्सा होऊं।
जहाँ तक मेरा सवाल था, चंपा भाभी बिना जवाब दिए कैसे रहतीं। बोल पड़ीं 

" अच्छा अच्छा , चलिए हम भौजाई आपकी प्यारी बिटिया की प्यास नहीं बुझाते , तो आपको इतना प्यार उमड़ रहा है तो एक बार आप भी क्यों नहीं इसकी प्यास बुझा देतीं। "

चंपा भाभी की बात ने आग में घी डालने का काम किया। 

भाभी की माँ का एक हाथ मेरे कच्चे टिकोरों पर था और दूसरे से वो मेरा सर प्यार से सहला रही थीं। 

चंपा भाभी की बात का कुछ देर तक तो उन्होंने जवाब नहीं दिया फिर हलके से पुश करके मेरा सर अपनी गोद में कर लिया , दोनों जांघों के ठीक बीचोबीच और कुछ अपनी भरी भरी मांसल जाँघों से उन्होंने मेरे सर को कस के दबोच लिया था और जो हाथ सर सहला रहा था उसने सर को जैसे दुलार से कस के पुश कर रखा था , जाँघों के बीच में ठीक 'प्रेम द्वार ' के ऊपर , साडी वहां उनकी सिकुड़ गयी थी और मैं वो मांसल पपोटे महसूस कर रही थी। 

कुछ देर तक वो चुप रहीं फिर उन्होंने जो बोलना शुरू किया तो , 

" अरे काहें नहीं पिलाऊँगी , मेरी पियारी दुलारी बिटिया है। तुम लोगों की तरह नहीं की एक बार जरा सा दो बूँद ओस की तरह चटा के पूरे गाँव में गाती हो। अरे मैं तो मन भर पेट भर , और एक बार नहीं बार बार , ...मेरी बिटिया एकदम नंबर वन है हर चीज में। तुम्ही लोग जब ये आई थी तो पूछ रही थीं न की बिन्नो किससे किससे चुदवाओगी ,अजय से की सुनील से की दिनेश से , मैंने कहा था न की अरे सोलहवां सावन है ये सबका मन रखेगी। और वही हुआ न , आज तक जो किसी को मना किया हो इसने , ...है न बेटी। "
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