Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 02:34 PM,
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
शरबत सुनहला 




[attachment=2]lez+4.jpg[/attachment]
मेरा टॉप अगले पल चटाई के दूसरी ओर पड़ा था। 

लेकिन उस समय मस्ती में मुझे भी परवाह भी नहीं थी और परवाह कर के कर भी क्या सकती थी ,चंपा भाभी और बसंती की जुगलबंदी के आगे। उनमे से एक ही काफी थी मुझसे क्या खेली खायी ननदों से निबटने के लिए और जब बसंती और चंपा भाभी मिल जाएँ तो हर ननद जानती थी सरेंडर के अलावा कोई चारा भी नहीं होता था। सरेंडर करो और जम के मजे लो। 


मैंने भी वही किया। 


बंसती अपने मुंह से हलवा खिलाती,हंसती खिलखिलाती ,मुझे छेड़ती , बोली , 

" अरे ननद रानी ,आज कुचा कुचाया खाय ला , बेहने ( कल ) पचा पचाया खाए क मिली। "

मेरे मन में कामिनी भाभी की बात याद आ गयी जो गुलबिया को वो चढ़ा रही थीं और गुलबिया भी हंस के कह रही थी , " अरे अभी तो ई सात आठ दिन रहेंगी न , रोज बिना नागा खिलाऊंगी , और सीधे से न मनहिएं तो जबरदस्ती। "

पूरा नहीं तो कुछ कुछ मैं भी समझ रही थी उस की बातें , इधर चंपा भाभी आँख के इशारे से बसंती को बरज रही थी की वो ऐसी बातें न करें की कहीं मैं बिचक न जाऊं। 

पर बसंती इस समय पूरे मूड में थी। वो कहाँ मानने वाली , 

एक हाथ से उसने जोर से मेरे निपल को उमेठा, पूरी ताकत से और फिर अपने मुंह से सीधे मेरे मुंह में , 

मेरा मुंह हलवे से भरा था और वो बोली ,

" अरे रानी थोड़ बहुत जबरदस्त तो करनी ही पड़ेगी, बुरा मत मानना , और बुरा मान भी जाओगी तो कौन हम छोड़ने वाले हैं। "

अब चंपा भाभी भी बसंती के रंग में रंग गयी थीं , मुझे देख के नज़रों से सहलाती ,ललचाती बोलीं ,

" अरे अइसन कम उमर क लौंडियन क साथ तो , जबरदस्ती में ही , थोड़ा बहुत हाथ गोड़ पटकिहैं , चीखीये चिल्लाइयें, तबै तो असली मजा आता है। "


और देखते देखते हम तीनो मिल के हलवा चट कर गए। वास्तव में बहुत स्वादिष्ट था और मुझे भूख भी लगी थी। 

मैं सच में अपने होंठ चाट रही थी.

कड़ाही में कुछ हलवा अभी बचा था , तलछट में लगा। 

चंपा भाभी ने बसंती को इशारा किया और मुझे हलके से धक्का देकर चटाई पे गिरा दिया , मेरी कोमल कलाइयां चंपा भाभी की मजबूत गिरफत में। 


बंसती ने करो के हलवा निकाला ,चम्पा भाभी ने दबा के मेरा मुंह खोलवा दिया , और सीधे बंसती ने सारा का सारा मेरे मुंह के अंदर ,

इतना गरम था , की,... लग रहा था मुंह जल गया , मैं चिल्लाई पानी , पानी। 

बसंती तो सिर्फ कड़ाही में रसोई से हलवा लायी थी , न ग्लास न पानी। 

चम्पा भाभी ने बसंती की देख के मजे से मुस्कराया ,

" पानी ,... जल गया ,... पानी ,... " मुश्किल से मैं बोल पा रही थी , दोनों को बारी बारी से देखते मैंने गुहार लगायी। 

" अरे बसंती , पियासे को पानी पिलाने से बहुत पुन्न मिलता है , बेचारी चिल्ला रही है , पिला दे न। " मुस्करा के चंपा भाभी ने बसंती से बोला। 

" और क्या ननद की पियास भौजाई नहीं बुझाएगी तो कौन बुझाएगा। और ये खुदे मांग रही है। "

और बसंती मेरे ऊपर , उसकी दोनों टांगों ने मेरे कंधो बाहों को कस के दबा लिया था ,मेरे सर को चम्पा भाभी ने दोनों हाथों से पकड़ लिया था , मैं एक सूत नहीं हिल सकती थी। 



बसंती ने अपनी साडी सरका के कमर तक कर ली , मेरे मुंह से बस कुछ ही दूर , ... 
मेरे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। 


" बोलो, ननद रानी ,पिला दूँ पानी बहुत पियास लगी है न " मेरी आँखों में आँखे डॉल के पूछा। 

मुंह जल रहा था मुश्किल से मेरे मुंह से निकला , पानी,... 


सांझ ढल रही थी। 

सुनहली धूप नीम के पेड़ की फुनगियों से टंगी छन छन कर नीचे उतर रही थी। 

" पिला दूँ ,एक बूँद भी लेकिन इधर उधर हुआ न तो बहुत पीटूंगी। " वो बोली , पूरी ताकत से उसने मेरे गालों को दबा रखा था और मेरा मुंह खुला हुआ था चिड़िया की तरह। 


पिघलती सुनहली धूप मेरे ऊपर गिर गिर रही थी थी जैसे पिघलते सोने की एक एक बूँद हो , 


मेरे खुले मुंह में एक सुनहली बूँद बंसती की छलक कर , फिर दूसरी , फिर तीसरी , ... सीधे 


मैंने दीये की तरह की अपनी बड़ी बड़ी आँखे बंद कर लीं। 

जाँघों के बीच बंसती ने मेरे सर को दबोच रखा था , 

पहले पिघलता सोना बूँद बूँद फिर , ... 


छरर छरर , सुनहली शराब। 


" ऐ छिनरो आँख खोल देख खोल के , " बसंती जोर से बोली और कस के मेरे निपल नोच लिए। 

दर्द से मैं बिलबिला उठी और चट से मेरी आँखे खुल गयी , 

बूँद बूँद बसंती की ,... से,... सीधे मेरे मुंह में ,... 

और अब बसंती ने मेरा मुंह सील कर दिया , और फिर तो ,

जैसे कोई शैम्पेन की बोतल मुंह में लगा के उड़ेल दे , पूरी की पूरी , एक बार में ,


घल घल 


मैंने कुछ देर मुंह में रोकने की कोशिश की पर बंसती के आगे चलती कया , एक तो उसने एक हाथ से मेरे निपल को पूरी ताकत से उमेठ दिया , और फिर मेरे नथुनो को दूसरे हाथ से भींच दिया। मुंह उसकी बुर ने सील कर रखा था , पहले ही। 


" घोंट , रंडी क जनी , हरामजादी , भड़वे की , घोंट पूरा , वरना एक बूँद साँस को तड़पा दूंगी। "

अपने आप मेरा गला खुल गया , और सब धीमे धीमे अंदर ,... 

चार पांच मिनट तक , ... 
बसंती अभी उठी भी नहीं थी की बाहर से सांकल खटकाने की आवाज आई। 



साडी का यही फायदा है , बसंती सिर्फ खड़ी हो गयी और साडी ने सब कुछ ढँक लिया।
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन - by sexstories - 07-06-2018, 02:34 PM

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