RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
धान के खेत में
[attachment=1]paddy fields 2.jpg[/attachment]धरती ने धानी चूनर जैसे ओढ़ ली हो , चारो ओर हरियाली के इतने शेड्स , धुली धुली भोर की बारिश के बाद ,टटकी अमराई , जैसे रात भर पिया के संग जगने जगाने के बाद , दुल्हन नहा धो के एक दम ताज़ी ताज़ी , बालों से पानी की बूंदे टपकती हुयी , बस उसी तरह अमराई के पत्तो से अभी भी बूंदे रह रह कर चू रही थीं।
पानी तेज बरसा था , जगह जगह कीचड़ हो गया था। दूर दूर तक हरे गलीचे की तरह दिखते धान के खेतों में अभी भी बित्ते भर से ज्यादा ही पानी लगा था। मेंडो पर कतार से ध्यान में लींन साधुओं की तरह , सारसों की पांते , और आसमान जो कुछ देर तक एकदम साफ़ था ,अब फिर गाँव के आवारा लौंडो की तरह धूम मचाते कुछ बादल के टुकड़े , जैसे धानी चुनरी पहने जमीन को ललचाई निगाहों से देख रहे हों ,
हलकी हलकी पुरवाई भी चल रही थीं , नमी से भरी।
मैं इसी में खोयी थी की मुझे पता ही नहीं चला की मुझे आगे के रास्ते के बजाय , गुलबिया ,पिछवाड़े के रास्ते ले आई , जिस कमरे में कल मैं सोई थी और सुबह भी भैय्या के साथ , ... उस के पीछे , जहाँ खुली खिड़की से धान के खेत दिख रहे थे और रोपनी करने वालों के मीठे गाने सुनाई पड़ रहे थे , उसी ओर ,
मैंने उसकी ओर देखा तो मुस्करा के वो बोली , " अरे एहर से ननद रानी जल्दी पहुँच जाबू। लेकिन हमार हाथ पकडले रहा , वर्ना बहुत कीचड़ हौ। '
रास्ता तो कुछ दिख नहीं रहा था , धान के दूर तक फैले खेत, बगल में घनी अमराई और उसके पास ही गन्ने के खेत।
लेकिन मैंने गुलबिया का हाथ पकड़ लिया , गनीमत था की कामिनी भाभी ने जो पिछवाड़े अंदर तक उंगली डाल डाल के जो अपनी स्पेशल क्रीम लगाई थी , उससे दर्द करीब करीब खत्म हो गया था। बस एक थोड़ी सी फटन सी बाकी थी और ऊंच नीच पैर पड़ने पर हलकी सी चिलखन हो जाती थी।
गुलबिया लगभग मुझे खींचते हुए धान के खेत की ओर के गयी, जिधर रोपनी वाली औरतें अभी भी रोपनी कर रही थी ,और उनके गाने की आवाजें अब एकदम साफ़ साफ़ सुनाई थी।
मैं किसी तरह बचती बचाती चल रही थी ,मुझे इस बात का कोई ध्यान भी नहीं था की सुबह सुबह भैया ने जो मेरी पिछवाड़े वाली ओखली में अपना मोटा मूसल चलाया था , खुली खिड़की से उनमें से कुछ ने देखा भी होगा और मेरी चीखने की आवाजें तो शर्तिया सब ने सुनी होंगी। ऊपर से भौजी ने उस समय मुझसे क्या क्या नहीं कबुलवाया था वो भी खूब जोर जोर से ,
" भइया मेरी गांड मारो हचक हचक के , पूरे गाँव से मरवाऊँगी ,सबको अपनी गांड दूंगी , पता नहीं क्या क्या। ' वो कान बंद रखने पर भी सुनाई पड़ता।
लेकिन मैं बस उस समय किसी तरह कीचड़ से बचाते अपने को ,सम्हल सम्हल के चल रही थी। गुलबिया की ऊँगली जोर से थामे , ... कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।
तभी एक मेंड़ दिखी , दो तिहाई सूखी थी , दोनो ओर वो रोपनी वालियां , और गुलबिया मुझे उधर ही खींच के ले गयी , मैं पीछे पीछे , बस बस नीचे देखते , एक पैर के ठीक पीछे दूसरा पैर ,,...
और एक रोपनी वाली गुलबिया से बोली , पहचानती मैं भी उसको थी , गाँव के रिश्ते से मेरी भाभी ही लगती थी , रतजगा" कहाँ ले जा रही हो ई मस्त माल फांस के , पिछवाड़ा तो बहुते मस्त है ,क्या चूतड़ मटका रही है। "
तब तक एक दूसरी जो गाँव की लड़की यानि गाँव के रिश्ते से गुलबिया की छुटकी ननद लगती थी , चुलबुली , तीखी मिर्ची की तरह , मुझे छेड़ती बोली ,
" तभी सबेरे सबेरे , कामिनी भौजी के मरद तभी सटासट गपागप पिछवाड़े , और इहो चूतड़ उठाय उठाय के , ... "
" अरे हमार भईय्या क कौन गलती है , ऐंकर गांडिये अइसन मस्त है , ... भैय्या क छोड़ा ,गाँव क कुल लौंडन बौरा गए हैं। " दूसरी लड़की बोली।
मैं शर्म से लाल हो रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था की कैसे उनसे आँखे मिलाउ इसका मतलब सुबह की बात , ...सबको मालूम हो गयी थी।
ऑंखें जमींन से गड़ी हुयी थीं , अचानक पता नहीं , पैर में कुछ कांटा सा गड़ा या पता नहीं कीचड़ लगा या , किसी ने हलके से धक्का दिया।
मैं थोड़ा सा झुक गयी , और , फिर तो , स्कर्ट मेरी वैसे भी मुश्किल से दो बित्ते की भी नहीं रही होगी , पैंटी पहनना तो गाँव पहुँचते ही छूट गया था , बस चुनमुनिया और गोलकुंडा दोनों की झलक ,
लेकिन गुलबिया भी उसने पीछे से दबा के मुझे निहुरा दिया , अच्छी तरह , बस ज़रा सा इधर उधर उठने की कोशिश करती तो पक्का चपाक से कीचड़ में गिरती।
और गुलबिया ने स्कर्ट उठा के सीधे मेरी कमर पे और सबको दावत दे दी ,
" अरे तानी नजदीक से देख ला न। "
एक रोपनी कर रही लड़की जो मेरी उम्र की ही रही होगी और खूब बढ़ चढ़ के बोल रही थी , पास आई और खनकती आवाज में बोली ,
" एतना मस्त , पूरे गाँव जवार में आग लगावे वाली हौ , हमरे भैय्या क कौन दोष जो सबेरे भिनसारे चांप दिहलें इसको। "
जो औरत गुलबिया को टोक रही थी , और रतजगे में आई थी उसने थोड़ी देर तक मेरे पिछवाड़े हाथ फिराया , और अपने दोनों हाथों से पूरी ताकत से मेरे कटे गोल तरबूजों ऐसे चूतड़ों को फ़ैलाने की पूरी कोशिश की , लेकिन गोलकुंडा का दर्रा ज़रा भी न खुला। एक हाथ प्यार से मारती बोली,
" अभी अभी मरवाई है , एतना मोट मूसल होती है साल्ली , तबहियों , एतना कसा ,.. "
गुलबिया ने और आग लगाई , " तबै तो पूरे गाँव क लौंडन और मरदन क लिए चैलेन्ज है ये , ई केहू क मना नहीं करेगी ,"
एक लड़की बोली, " अरे ई तो हम अपने कान से सुने थे , अभी थोड़ी देर पहिले। "
दूसरी औरत बोली , " अरे एक गाँव क लौंडन सब नंबरी गांड मारने वाले हैं जब ई लौटेंगी न अपने मायके तो ई गांड का भोसड़ा हो जाएगा , पूरा पांच रुपैया वाली रंडी के भोसड़ा की तरह। पोखरा की तरह छपर छपर करीहें सब , एस चाकर होय जाई। "
पहले तो मुझे बड़ा ऐसा वैसा लग रहा था लेकिन अब उनकी बातें सुनने में मजा आ रहा था। सोचा की बोलूं इतनों को देख लिया ,उनका भी देख लुंगी। कामिनी भाभी की कृमउर मंतर पे मुझे पूरा भरोसा था , उन्होंने असीसा था की मैं चाहे दिन रात मरवाऊं , आगे पीछे , न गाभिन होउंगी , न कोई रोग दोष और अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों ऐसे ही कसा रहेगा , जैसा तब जब मैं गाँव में छुई मुई बन के आई थी।
लेकिन चुप ही रही , तबतक गुलबिया ने मुझे पकड़ के सीधा कर दिया और हम लोग फिर मेंड़ मेड चल पड़े।
पीछे से कोई बोली भी की कहाँ ले जा रही हो इसे तो गुलबिया ने भद्दी सी गाली देके बात टाल दी।
जहाँ धान के खेत खत्म होते थे उसके पहले ही गन्ने के खेत शुरू होगये थे और गुलबिया मुझे ले के उसमें धंस गयी।
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