RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
मिठाई : कामिनी भाभी की
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" अरे तुझे खाने के बाद कुछ मीठा तो खिलाया नहीं , भाभी बोलीं ,और खिंच के मुझे पलंग पे।
हाँ इस बार धान के खेत और अमराई वाली खिड़की अच्छी तरह बंद थी।
' मिठाई' भाभियाँ मुझे पहले भी चखा चुकी थीं , गांव में आने के बाद , चंपा भाभी ,बंसती भौजी। और मुझको भी शहद से भरी उस 'मिठाई 'को खाने की लत लग गयी थी।
पल भर में हम दोनों बिस्तर पर थे , आज खिड़की दरवाजे सब बंद थे , इसलिए एक मखमली अँधेरा छाया था।
भाभी ने मुझे एक साथ अपनी ओर खींचा ,टाँगे फैलाई और साडी ऊपर।
( गाँव में आके साडी का यही फायदा मैंने सीखा भी और उठाया भी , बस मौका पाते ही , जैसे टांग उठाओ , साडी अपने आप खुल के प्रेम गली का रास्ता दिखा देती है। और जब शटर डाउन करना हो तो बस ,उठ जाइये , साडी अपने आप सब कुछ ढक लेती है। )
और मेरे होंठ सीधे भौजी के शहद के छत्ते पे।
पहले थोड़ा खेल तमाशा , इधर उधर चुम्मी और फिर सीधे ,थोड़ा लिकिंग , फिर किसिंग और अंत में सकिंग ,
कामिनी भाभी मान गईं ,उनकी छुटकी ननदिया उतनी नौसिखिया नहीं है। मेरा सर पकड़ के कस कस के उन्होंने अपने बुर पे दबाया ,मैंने जीभ बुर की दोनों फाँको को फैला के अंदर घुसेड़ा , और अपने दोनों होंठो के बीच भौजी की गद्देदार , मांसल बुर की पत्तियों को भर के जोर जोर से चूसना शुरू किया , और भौजी कुछ ही देर में चूतड़ पटकने लगीं।
बुर उनकी पनिया गयी।
लेकिन ऐसा नहीं है इस खेल में कामिनी भाभी ने मुझे कुछ नहीं सिखाया ,कभी हाथों के इशारे से कभी पैरों के सहारे से ,... तो कभी बुदबुदाकर कभी बोल कर , कभी उकसाकर , कभी रोक कर , कभी पेंग लगाके तो कभी ब्रेक लगा के ,...
और मैं समझ गयी , चाहे चुदाई हो या चुसाई एम जीतना नहीं मजा लेना होना चाहिए। टारगेट अगले को जल्दी झाड़ना नहीं ,बल्कि साथ साथ कितनी देर तक ,कितने अलग ढंग से ,कितने तरह से मजा दे सकते हैं ,ले सकते है ,होना चाहिए।
और ट्रिक भी सीखी नयी नयी , कैसे सिर्फ जीभ के टिप से सुरसुरी कर के , टीज कर के आग लगा सकते हैं किसी मर्द से भी बेहतर सिर्फ जीभ से बुर को कैसे चोद सकते है, ...
दो चार बार भाभी को मैं झड़ने के करीब ले गयी ,फिर रुक गयी। यही तो वो चाहती थीं , उन्होंने इशारे से मुझे बुर और पिछवाड़े की बीच की जगह को लिक करने को कहा ,
दोनों हाथ से उनके बड़े बड़े चूतड़ उठा के मैंने कस कस के लिक करना शुरू कर दिया।
' वहां 'से इंच दो इंच ही तो दूर थी मैं , मेरा मतलब ,मेरी लालची ,नदीदी ,शरारती जीभ।
आज कितना हचक हचक के मेरे पिछवाड़े मूसल चला था , रात में भी और आज सुबह सुबह भी। मान मूसल मेरे भैय्या का था , लेकिन उन्हें उकसाने वाली तो मेरी ये प्यारी प्यारी भाभी ही थीं। और फिर मेरे हाथ बांधने से लेकर , कुशन तकिए लगा के चूतड़ उठाने , उसमे आधी बोतल कडुवा तेल डालने से लेकर मेरे मुंह को अपनी मोटी मोटी चूंची से बंद करने तक का सारा काम तो कामिनी भाभी ने ही किया था।
बस।
मेरी जीभ उधर की ओर मुड़ चली , लिक करते हुए मैंने अब पीछे की ओर जीभ , ... लेकिन पिछवाड़े के छेद से , दो चार मिलीमीटर दूर ही मैं रुक जा रही थी।
साथ में मेरी ऊँगली गोल दरवाजे के चारो ओर ,हलके हलके गोल गोल घूम रही थी।
भौजी पे असर जो हो रहा था मैं महसूस कर रही थी , फिर अचानक लिक करते करते मेरी जीभ ने जैसे गलती से पिछवाड़े का छेद छू लिया , वहां टच कर दिया।
कुछ देर में ये गलती बार बार हो रही थी। पिछवाड़े के छेद के आर पार , मेरी जीभ महसूस कर रही थी , भौजी की गांड कैसे दुबदुबा रही थी।
मुझे बहुत मजा आ रहां था उन्हें छेड़ने में , और जो काम मेरी ऊँगली कर रही थी वह अब जीभ की टिप ने शुरू कर दिया। पहले हलके हलके फिर जोर से ,...
लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था , और अब बहुत हो गई थी छेड़छाड़ ,
मुझसे नहीं रहा गया , मैंने दोनों हाथ से कस के भाभी के कटे तरबूज ऐसे चूतड़ों को पूरी ताकत से फैलाया ,
और अब उनका भूरा भूरा छेद साफ़ दिख रहा था , थोड़ा खुला ,
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