RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
अब तक
मैं जवाब देने के हालत में नहीं थी क्यों की एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी।
तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगो को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।
भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलिया कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं।
मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी ,
एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास , मेरी चूत की दरार के बीच ,
जब तक मैं सम्हलूँ , दो तीन धक्के पूरी ताकत से , आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में।
मैं दर्द से कहर रही थी , लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था ,
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
आगे
भैय्या
फँस गया ,धंस गया , अंडस गया
मैं दर्द से कहर रही थी , लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था ,
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
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दर्द के मारे जान निकली जा रही थी। बस चीख नहीं पा रही थी क्योंकि कामिनी भाभी ने अपनी गीली बुर से मेरे मुंह को कस के दबोच रखा था। मैं छटपटा रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी की तगड़ी मोटी जाँघों की पकड़ के से हिलना भी मुश्किल था ,ऊपर से अपनी देह से उन्होंने मुझे पूरी ताकत से दबा रखा था। उनके होंठ मेरी चूत से हट जरूर गए थे , लेकिन उनकी दोनों हाथ की उँगलियों ने चूत को फैला रखा था।
अभी तक मैं लंड के लिए तड़प रही थी लेकिन बस अब मन कर रहा था की बस किसी तरह ये मोटा बांस निकल जाय। चूत फटी पड़ रही थी।
भाभी के होंठो ने एक बार फिर चूत के किनारे चाटना शुरू कर दिया।
और कुछ देर में ही मेरी फूली पगलाई बौराई क्लिट भौजी के दुष्ट होंठों के बीच ,... चूसते चूसते उन्होंने हलके से एक बाइट ली और फिर बाँध टूट गया।
साथ में जोरदार धक्को के साथ सुपाड़ा पूरा अंदर ,...
पता नहीं मैं चूत में सुपाड़े के धक्के से झड़ी या भौजी ने जो जम के क्लिट चूसी ,काटी थी।
लेकिन अब सब दर्द भूल के मैं सिसक रही थी , चूतड़ हलके हलके ऊपर उचका रही थी और मौके का फायदा उठा के कभी गोल गोल घुमा के , तो कभी पूरी ताकत से , सुपाड़े के साथ साथ अब लंड भी थोड़ा सा अंदर पैबस्त हो गया था ,करीब १/३ , दो तीन इंच।
और झड़ना रुकने के साथ ही एक बार उस चूत फाडू दर्द का अहसास फिर से शुरू हो गया।
लेकिन अब कामिनी भाभी मेरे ऊपर से उठ गयी ,लेकिन उठने के पहले मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं ,
" छिनरो अब चाहे जितना चूतड़ पटको , सुपाड़ा तो गटक ली हो , अब बिना चोदे ई लंड निकलने वाला नहीं है। भाई चोद तो बन ही गयी , अब आराम से चूतड़ उठा उठा के अपने भैय्या का लंड घोंटों , मस्ती से चुदवाओ। चलो देख लो अपने भैय्या को। "
भौजी उनको क्यों छोड़तीं , उनको भी लपेटा कामिनी भाभी ने ,
" क्यों मजा आ रहा है न बहिन चोदने में। अरे हचक्क के चोदो छिनार को ,दोनों चूंची पकड़ के कस कस के , उहू के याद रहे भैया से चोदवाये क मजा। "
मैंने हलके हलके आँखे खोलीं।
मस्त हवा चल रही थी। बादलों और चांदनी की लुका छिपी में इस समय चाँद ने अपना घूँघट हटा दिया था और बेशरम कीतरह खुली खिड़की से उतर कर सीधे कमरे में बैठा था।
खिड़की से एक ओर आम का घना बाग और दूसरी ओर दूर तक गन्ने का खेत दिख रहा था। बारिश कब की थम चुकी थी , लेकिन कभी कभी घर की खपड़ैल से और आम के पेड़ों से पानी की टपटप बूंदे गिर रही थीं।
और मैंने उनको देखा , कामिनी भाभी के 'उनको '
ऊप्स ' भैय्या ' को
( कामिनी भाभी ने मुझे कसम धरा दी थी की 'उनको ' मैं भैया ही बोलूं , और मैं मान भी गयी थी। )
खूब गठा बदन , चौड़ा सीना ,हाथों की मछलियाँ साफ़ दिख रही थी। ताकत छलक रही थी , और कैसी ललचाई निगाह से मुझे देख रहे थे , मेरे ऊपर झुके हुए ,...
कामिनी भौजी भी दूर नहीं गयी थीं , मेरे सिरहाने ही बैठी थीं। मेरा सर अपनी गोद में लेकर , हलके हलके दुलराते मेरा माथा सहला रही थीं।
चिढ़ाते हुए कामिनी भौजी बोलीं ,
" अरे ले लो न अब काहें ललचा रहे हो , अब तो तोहार बहिनिया तोहरे नीचे है। "
वो झुके , मुझे लगा मेरे होंठ , ..मेरी पलकें काँपकर अपने आप बंद हो गयीं , लेकिन उनके होंठ सीधे मेरे जुबना पर , एक निपल उनके होंठ में और दूसरा उनके हाथों के बीच।
लेकिन बिना किसी जल्दी बाजी के , होंठ चुभलाते चूसते और हाथ धीरे धीरे मेरे मस्त उभार रगड़ते मसलते।
मुझे चम्पा भाभी की बात याद आई , उन्होंने मुझे मेले में देखा था और तबसे मेरे जोबन ने उनकी नींद चुरा ली थी और बसंती ने भी यही बात कही थी की सिर्फ वोही नही गाँव के सारे मरद मेरी मस्त चूचियों पे मरते हैं।
मैंने निगाहे खोल दी और नीचे ले गयी चोरी चोरी ,और सिहर गयी ,
उफ्फ्फ कितना मोटा था , मैंने अब तक कितनों का घोंटा था , सुनील ,अजय ,दिनेश , ... लेकिन किसी का भी, तो इतना नहीं ,... ये तो एकदम मोटा बांस , ... लेकिन मेरी चोरी पकड़ी गयी , पकड़ने वाली और कौन , मेरी भौजी , कामिनी भौजी।
चोरी चोरी मुझे देखते उन्होंने पकड़ लिया और कान में फुसफुसा के बोली ,
" अरे ननद रानी तोहरे भैया का है , काहें छुप के देख रही हो। पसंद आया न। अब घोंटो गपागप्प। "
दर्द के मारे चूत फटी जा रही थी , फिर भी मैं मुस्करा पड़ी ,भौजी भी न ,..
मुझे बसंती की बात याद आ रही थी , मरद की चुदाई की बात और होती है। एकदम सही बोली थी वो। दर्द भी मज़ा भी।
कोई और लड़का होता तो सिर्फ सुपाड़ा घुसा के छोड़ता थोड़े ही , उसे तो जल्द से जल्द पूरा घुसाने की जल्दी रहती। जैसे कोई दौड़ जीतनी हो , कुछ साबित करना हो , लेकिन जैसा बसंती ने बोला था मरद सब मज़ा लेना भी जानते हैं और देना भी।
कुछ ही देर में मेरी चूत दर्द का अहसास कम होने लगा , एक मीठी टीस थी अभी भी लेकिन इसके साथ जिस तरह वह चूत के ऊपरी नर्व्स को रगड़ रही थी , एक नए तरह का मजा भी मिल रहा था , सिसक भी रही थी , उफ़ उफ़ भी कर रही थी।
और चूंची की रगड़ाई मसलाई भी बहुत तेज हो गयी थी। जैसे कोई आटा गूंथे वैसे,…
पर कामिनी भौजी कहाँ चुप बैठने वाली थीं , उन्होंने उकसाया ,
" अरे हचक हचक के पेल दो पूरा लंड न । इस छिनार को आधे तीहे में मजा नहीं आता। चोद चोद के एह्की बुरिया को आज भोंसड़ा बना दो। तोहरी बहिन के इहाँ से रंडी बना के भेजूंगी। "
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