07-06-2018, 02:22 PM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
भौजी के हाथ में बखीर थी। और वो भी मुझे तब चला जब एक कौर मेरे मुंह में चला गया।
………………………………….
बखीर - मुझे अच्छी तरह मालूम था ये क्या चीज है और उससे भी ज्यादा ये भी मालूम था इसका असर क्या होता है। गुड चावल की खीर , लेकिन अक्सर इसे ताजे गन्ने के रस में बनाते हैं और जितना ताजा गन्ने का रस हो और जितना ही पुराना चावल हो उसका मजा और असर उतना ही ज्यादा होता है।
गौने की रात दुल्हन को उसकी छोटी ननदें , जिठानियां गाँव में दुलहन को कमरे में भेजने के पहले इसे जरूर खिलाते हैं। दुलहन को उसके मायके में उसकी भौजाइयां , सहेलियां सब सीखा पढ़ा के भेजती हैं की किसी भी हालत में बखीर खाने से बचना और अगर बहुत मज़बूरी हो तो बस रसम के नाम पे एक दो कौर , बस। लेकिन यहां उसकी ननदें तैयार रहती हों , चाहे बहला फुसला के , चाहे जोर जबरदस्ती वो बिना पूरा खिलाये नहीं छोड़तीं। फायदा उनके भाई को होता है। अगर गौने की दुल्हन ने बखीर खा लिया तो वो , ... उसकी तासीर इतनी गरम होती है कि थोड़ी देर में ही खुद उसका मन करने लगता है , और मना करना या बहाने बनाना तो दूर , खुद उनका मन करता है की कितनी जल्दी भरतपुर का ,... और बाहर खड़ी ,दरवाजे खिड़की से ननदियां कान चिपकाए इन्तजार करती रहती है की कब भाभी की जोर से कमरे के अंदर से जोर की चीख आये , ...
और फिर तो बाहर खड़ी ननदों ,जिठानियों की खिलखिलाहटें , मुंह बंद करके , खिस खिस , ...
और थोड़ी दूर जग रही सास , चचिया ,ममेरी ,फुफेरी सब , एक दूसरे को देख के मुस्कराती
और अगले दिन जो ननदें भाभी को कमरे से लाने जाती हैं तभी से छेड़खानी ,
मुझे इसलिए भी मालूम है की किस तरह अपनी भाभी को मैंने बहाने बना के ,फुसला के बखीर खिलाई थी ,एकलौती ननद होने के रिश्ते से ये काम भी मेरा था।
लेकिन कामिनी भाभी जितना बखीर खिला रही थीं वो उसके दुगुने से भी ज्यादा रहा होगा।
मैंने लाख नखड़े बनाये ,ना नुकुर किया , लेकिन कामिनी भाभी के आगे किसी ननद की आज तक चली है की मेरी चलती।
वो अपने हाथ से बखीर खिला रही थीं की कही जोर से कुछ गिरने की या दरवाजा खुलने ऐसी आवाज हुयी।
भाभी ने बखीर मुझे पकड़ा दी और बोलीं की उनके लौटने से पहले बखीर खत्म हो जानी चाहिए। उन्हें लगा की कोई चूहा है या कोई दरवाजा ठीक से नहीं बंद था।
वो चली गयीं और उनके आने में पांच दस मिनट लग गए।
मेरा ध्यान बस इसी में था की कौन सा चूहा है जिसे भगाने में भाभी को इतना टाइम लग गया।
वो लौटीं तो मैंने छेड़ा भी ,
" भौजी कौन सा चूहा था ,कितना मोटा था ,आपका कोई पुराना यार तो नहीं था की मौका देख के आपके बिल के चक्कर में ,... "
मेरी बात काट के मुस्कराती बोलीं वो ,
" सही कह रही हो बहुत मोटा था ( अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के उन्होंने इशारा भी किया ,ढाई तीन इंच मोटा होने का ), और तुम्हारी बिलिया में घुसेगा घबड़ाओ मत। लेकिन बखीर खतम हुयी की नहीं ."
और फिर उनके तगड़े हाथ ने जबरन मेरा गाल दबाया और दूसरे हाथ से बखीर लेके सीधे उन्होंने ,... पूरा खत्म करवा के मानी।
वो बरतन किचेन में रखने गयीं और मैं बिस्तर पे लेट गयी , साडी से मैंने अपने उभार ढक लिए।
दिल मेरा धक धक कर रहा था , अब क्या होगा।
हुआ वही जो होना था।
komaalraniGold MemberPosts: 1031Joined: 15 May 2015 07:37Contact:
Contact komaalrani
Re: सोलहवां सावन,
Post by komaalrani » 22 Feb 2016 13:53
दिल मेरा धक धक कर रहा था , अब क्या होगा।
हुआ वही जो होना था।
कामिनी भाभी के साथ चीजें इतने सहज ढंग से होती थीं की पता ही नहीं चला कब हम दोनों के कपडे हमसे दूर हुए , कब बातें चुम्बनों में और चुम्बन सिसकियों में बदल गए।
पहल उन्होंने ही की लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने खुद मुझे ऊपर कर लिया , जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन उत्सुकतावश विपरीत रति करने की कोशिश में , खुद अपने पति के ऊपर चढ़ जाती है।
मैंने कन्या रस सुख पहले भी लिया था , लेकिन आज की बात अलग ही थी। आज तो जैसे १०० मीटर की दौड़ दौड़ने वाला ,मैराथन में उतर जाय। कुछ देर तक मेरे होंठ उनके होंठों का अधर रस लेते रहे , उँगलियाँ उनके दीर्घ स्तनों की गोलाइयों नापने का जतन करती रहीं , लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों को लग गया की कौन ऊपर होना चाहिए और कौन नीचे।
कामिनी भाभी ,हर तरह के खेल की खिलाड़िन , काम शास्त्र प्रवीणा मेरे ऊपर थीं लेकिन आज उन्हें भी कुछ जल्दी नहीं थी। उनके होंठ मेरे होंठ को सहला रहे थे , दुलरा रहे थे। कभी वो हलके से चूम लेतीं तो कभी उनकी जीभ चुपके से मुंह से निकल के उसे छेड़ जाती और मेरे होंठ लरज के रह जाते।
मेरे होंठों ने सरेंडर कर दिया था। बस, अब जो कुछ करना है ,वो करें।
और उनके होंठों ने खेल तमासा छोड़ ,मेरे होंठों को गपुच लिया अधिकार के साथ ,कभी वो चुभलातीं ,चूसतीं अधिकार के साथ तो कभी हलके से अपने दांतों के निशान छोड़ देती। और इसी के साथ अब कामिनी भाभी के खेले खाए हाथ भी मैदान में आ गए। मेरे उभार अब उन हाथों में थे ,कभी रगड़तीं कभी दबाती तो कभी जोर जोर से मिजतीं। मैं गिनगिना रही थी , सिसक रही थी अपने छोटे छोटे चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी भी न , तड़पाने में जैसे उन्हें अलग मजा मिल रहा था। मेरी जांघे अपने आप फैल गयी थीं , चुनमुनिया गीली हो रही थी। लेकिन वो भी न ,
लेकिन जब उन्होंने रगड़ाई शुरू की तो फिर ,...मेरी दोनों खुली जाँघों के बीच उनकी जांघे , मेरी प्यासी गीली चुनमुनिया के उपर उनकी भूखी चिरैया , फिर क्या रगड़ाई उन्होंने की , क्या कोई मरद चोदेगा जैसे कामिनी भाभी चोद रही थीं। और कुछ ही देर में वो अपने पूरे रूप में आ गयीं , दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन का रस ले रहे थे , दबा रहे थे कुचल रहे थे ,कभी निपल्स को फ्लिक करते तो कभी जोर से पिंच कर देते ,और होंठ किसी मदमाती पगलाई तितली की तरह कभी मेरे गुलाल से गालों पे तो कभी जुबना पे , और साथ में गालियों की बौछार ,.. जिसके बिना ननद भाभी का रिश्ता अधूरा रहता है।
किसी लता की तरह मैं उनसे चिपकी थी, धीरे धीरे अपने नवल बांके उभार भाभी के बड़े बड़े मस्त जोबन से हलके हलके रगड़ने की कोशिश कर रही थी। मेरी चुनमुनिया जोर जोर से फुदक रही थी , पंखे फैलाके उड़ने को बेताब थी। मैं पनिया रही थी।
८-१० मिनट , हालांकि टाइम का अहसास न मुझे था न मेरी भौजी को। मैं किनारे पर पहुँच गयी , पहली बार नहीं , दूसरी तीसरी बार , लेकिन अबकी भाभी ने बजाय मुझे पार लगाने के , एकदम मझधार ,में छोड़ दिया।
शाम से ही यही हो रहा था , बंसती ,गुलबिया और कामिनी भौजी ,...
लेकिन अगले पल पता चला की हमला बंद नहीं हुआ ,सिर्फ और घातक हो गया था।
हम दोनों 69 की पोज में हो गए थे , भौजाई ऊपर और मैं नीचे।
और वहां भी वो शोले भड़का रही थीं. बजाय सीधे 'वहां 'पहुँचने के उनके रसीले होंठों ने मेरी फैली खुली रेशमी जाँघों को टारगेट बनाया और कभी हलके से लम्बे लम्बे लिंक्स और कभी हलके से किस, और बहुत बहुत धीमे धीमे उनके होंठ मेरे आनद द्वार की ओर पहुँच गए , लेकिन कामिनी भाभी की गीली जीभ मेरे निचले होंठों के बाहरी दरवाजे के बाहर , बस हलके हलके एक लाइन सी खींचती रही।
मैंने मस्ती से आँखे बंद कर ली थी ,हलके हलके सिसक रही थी। जोर से मेरी मुट्ठियों ने चादर दबोच रखी थी।
और जैसे कोई बाज झपट्टा मार के किसी नन्ही गौरैया को दबोच ले , बस वही हालत मेरी चुनमुनिया की हुयी। भाभी ने तो अपनी जीभ की नोक मेरी कसी कसी रसीली गुलाबी चूत की फांकों के बीच डाल कर दोनों होंठों को अलग कर दिया। उनकी जीभ प्रेम गली के अंदर थी ,कभी सहलाती कभी हलके से प्रेस करती,... मैं पनिया रही थी ,गीली हो रही थी। फिर भाभी के दोनों होंठ उन्होंने एक झपट्टे में दोनों फांको को दबोच लिया।
मैं सोच रही थी की वो अब चूस चूस कर , ... लेकिन नहीं। उन्हके होंठ बस मेरे निचले होंठों को हलके हलके दबाते रहे। रगड़ते रहे। लेकिन मेरी चूत में घुसी उनकी जीभ ने शैतानी शुरू कर दी। चूत के अंदर , कभी आगे पीछे ,कभी अंदर बाहर , तो कभी गोल ,...
जवाब मेरे होंठों ने उनकी बुर पे देना शुरू किया लेकिन वहां भी वही हावी थीं। जोर जोर से रगड़ना , मेरे होंठों को बंद कर देना ,...
हाँ कभी कभी जब वो चाहती थीं की उनकी छुटकी ननदिया उनके छेड़ने का जवाब दे , तो पल भर के लिए मेरे होंठ आजाद हो जाते थे। कामिनी भाभी की जाँघों की पकड़ का अहसास मुझे अच्छी तरह हो गया था ,किसी मजबूत लोहे की सँडसी की पकड़ से भी तेज ,मेरा सर उनकी जाँघों के बीच दबा था ,और मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती थी।
और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघो को कस के फैला रखा था।
|
|
|