RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
गुलबिया
" अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न। " ये आवाज गुलबिया की थी।
मुझे क्या मालूम ये बात वो क्सिके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी . ब्लाउज तो पहले ही फट चूका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।
गुलबिया ने बस वहीँ से कीचड़ उठा उठा के मेरे जोबन पे लगाना शुरू कर दिया।
मैं क्यों छोड़ती आखिर,… मैं भी तो अपनी भौजी की ननद थी , और इतने दिनों में चंपा भाभी और बसंती संगत में काफी खेल तमाशे सीख चुकी थी। फिर दिनेश ने भी मेरेसाथ आँगन में कीचड़ की होली खेली थी।
मैंने दोनों हाथों में कीचड़ लेकर सीधे गुलबिया की दोनों चूंचियों पे ,३६ + रही होंगी लेकिन एकदम कड़ी ,गोल गोल।
लेकिन गुलबिया ने खूब खुश हो के मुझे गले लगा लिया और बोली " मान गए हो तुम हमार लहुरी ननदिया। बहुत मजा आई तोहरे साथ। "
" एकदम भौजी , आखिर मजा लेवे आई हूँ तोहरे गाँव , न देबू ता जबरन लेब " मुस्करा के मैं बोली और उसकी चूंची पे लगे कीचड़ को जोर जोर से रगड़ने लगी।
मेरी साडी तो सरक के छल्ला बन गयी थी कमर पे और ब्लाउज कामिनी भाभी और बसंती ने फाड़ के बराबर कर दिया था , मैंने भी गुलबिया की चोली कुछ फाड़ी कुछ खोल दी थी।
लेकिन गुलबिया ,मैंने कहा था न बसंती के टक्कर की थी , तो बस नीचे से पैर फंसा के उसने ऐसी पलटी दी की मैं नीचे वो ऊपर।
और अब मैं समझी की गाँव सारी लड़कियां गुलबिया के नाम से डरती क्यों थी।
मुझे अजय की याद आ गयी , जिस तरह बँसवाड़ी में उसने मेरी चूंचियां रगड़ीं थी ,उसी तरह। पहले दोनों हाथो की हथेलियों से ,फिर पकड़ के कुचलते हुए ,
और साथ में उसकी चूत मेरी चूत पे घिस्से लगा रहा थी , पूरी ताकत से।
गुलबिया के जोर से मेरे चूतड़ नीचे कीचड़ में रगड़े जा रहे थे।
मैं सिसक रही थी लेकिन मैं धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी , चूत मेरी भी घिस्सों पर घिस्से मार रही थी।
पानी करीब करीब बंद हो गया था , बस हलकी हलकी बूंदे पड़ रही थीं।
मैं बस ,लग रहा था की पहले बसंती और फिर कामिनी भाभी चूत में आग लगा के छोड़ दी तो अब गुलबिया ही बारिश करा के ,... "
उधर उस कच्ची कली ,सुनील की बहन को भी दो भौजाइयों ने दबोच रखा था, और खुल के उस की रगड़ाई मसलाई हो रही थी।
और इधर मेरी भी ,गुलबिया ने गचाक से एक ऊँगली मेरी चूत में पेल दी और मेरी कच्ची कसी चूत ने उसे जोर से दबोच लिया।
" बहुत कसी है , एकदम टाइट , लेकिन अब हमरे हाथ में पड़ गयी हो न , देखना भोंसड़ीवाली बना के भेजूंगी। "
" पक्का भौजी तोहरे मुंह में घी शक्कर " खिलखिलाते हुए मैंने कहा और जोर से अपनी चूत सिकोड़ ली।
तब तक नीरू ने दोनों भौजाइयों से बचने की कोशिश करते हुए बोला ,
" भाभी अरे बरसात बंद हो गयी है अब चलूँ , "
जवाब बसंती ने दिया , जो तब तक वहां शामिल हो गयी थी ,
" अरी ननद रानी , अबही कहाँ , असली बरसात तो बाकी है ,तानी उसका भी तो स्वाद चख लो " और वहीँ से गुलबिया को गुहार लगाई।
गुलबिया की मंझली ऊँगली ,मेरी कसी गीली गुलाबी चूत के अंदर करोच रही थी। मुझे छोड़ते हुए वो बोली ,
" बिन्नो ,हमार तोहार उधार , .... " और बंसती की ओर चली गयी।
मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी तो कामिनी भाभी ने हाथ मेरा पकड़ के सहारा देके उठाया। चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ।
ब्लाउज तो फट ही गया था ,किसी तरह साडी को लपेटा मैंने ,और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली।
बारिश बंद हो गयी थी और अब हवा एक बार फिर तेज चलने लगी थी। आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था।
पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा ,
सुनील की बहन छटपटा रही थी , लेकिन उसके दोनों हाथ ,एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था ,और दूसरे हाथ से उसके फूले फूले गाल जोर से दबा रखे थे।
उसने गौरेया की तरह मुंह चियार रखा था , और उसके मुंह के ठीक ऊपर ,गुलबिया ,दोनों घुटने मोडे ,साडी उसकी कमर तक,
बारिश शुरू हो गयी , पहले तो बूँद बूँद , फिर घल घल , गुलबिया की ... जाँघों के बीच से ,
सुनहली पीली बारिश ,
" अरे बिना भौजाइन क खारा शरबत पिए , हमारे ननदन क जवानी ठीक से नहीं आती। " बंसती बोल रही थी।
कामिनी भाभी का घर पास में ही था , थोड़ी देर में मैं और चंपा भाभी , उनके साथ ,उनके घर पहुँच गए।
.....
|