RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
गुलबिया क मरद
और हम दोनों एक साथ हंस पड़े।
मेरी उंगली भी भौजी की बुर में बुरी तरह अंदर बाहर हो रही थी।
बसंती ने बात बदली और उस का जिक्र छेड़ दिया ,जो हम लोगों के लिए बाहर से पानी भरती थी, गुलबिया और उस का मर्द , बाहर कुंवे से पानी निकालता था। उसको तो मैं अच्छी तरह जानती थी , बसंती की उम्र की ही होगी , एकदो साल छोटी और मजाक में छेड़ने में भी एकदम वैसी।
" कभी कुंवे के पानी से नहायी हो यहाँ। " बसंती ने पूछा।
" हां दो तीन बार , जब नल नहीं आ रहा था ,खूब ठंडा और फ्रेश। " मैने बोला।
" और जो कुंए का पानी निकालता था , उसके पानी से " घच्च से दूसरी ऊँगली भी मेरी पनीली चूत में ठेलते ,आँख नचा के उसने पूछा।
" धत्त " खिस्स से हंस दी मैं।
" अरे उ , कामनी के मर्द से भी दो चार आगे है। "
ये तो मुझे पूरा यकीन था की कामिनी भाभी के पति का बंसती कई बार घोंट चुकी है , लेकिन ये भी ,... "
और जैसे मेरे सवाल को भांपते बसंती खिलखिला के हंसी , बोली अरे मेरा देवर लगता है। और फिर पूरा हाल खुलासा बताया।
"सिर्फ लम्बाई या मोटाई में ही नहीं वो चुदाई में भी कामिनी के मरद से २२ है। चूत चोदने में तो बस इस सोचो अच्छी अच्छी चुदी चुदाई ,कई कई बच्चों की महतारी , भोंसड़ी वालियां पसीना छोड़ देती हैं उस की चुदाई में। ऐसा रगड़ चोदता है न की बस , लेकिन अगर उ गांड मारने पे आ गया न तो बस ,चाहे जितना रोओ ,चिल्लाओ , गांड फाड़ के रख देगा। अगर तुम दो चार बार मरवा लो न उससे फिर सटासट गपागप गांड में लंड घोंटोगी , खुदै गांड फैला के लंड पे बैठ जाओगी। "
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था , डर भी लग रहा था , मन भी कर रहा था।
कुछ बसंती की बातें कुछ उसकी उँगलियों का असर जो मेरी चूत में तूफ़ान मचा रही थीं।
बसंती मुस्करा के शरारत से बोली , " अरे ई मतलब नहीं की गांड मरावे में दरद नहीं होगा। अरे जब गाण्ड के छल्ले में दरेरता ,रगड़ता , घिसटता , फाड़ता घुसेगा न , जो दरद होगा वही तो असली मजा है , मारने वाले के लिए भी और मरवाने वाली के लिये भी। "
बात बसंती भौजी की एकदम सही थी ,जब सुनील का मोटा सुपाड़ा दरेरता हुआ घुसा था , एकदम जैसे किसी ने गांड में मुट्ठी भर लाल मिर्च झोंक दी हो , आँख से पानी निकल आया था। लेकिन याद करकेफिर से गांड सिकुड़ने फूलने लगती थी।
बसंती भौजी ने मेरे चूत के पानी से दुबई अपनीउंगली निकाली और मेरी दुबदुबाती गांड के छेद पे मसल दी और हंस के मसल के बोलीं ,
" क्यों मन कर रहा है उसका लेने का ,लेकिन भरौटी में जाना पड़ेगा उसके घर। अरे तोहार भौजी हूँ ,दिलवा दूंगी खुद ले चलूंगी। हाँ जाने के पहले गांड में पाव भर कड़वा तेल डाल के जाना। "
मैं कुछ बोलती ,जवाब देती उसके पहले ही भौजी ने एक वार्निंग भी दे दी ,
" लेकिन भरौटी के लौंडन से बच के रहना। "
" काहें भौजी " अपनी बड़ी बड़ी गोल आँखे नचाते मैंने पूछा।
" अरे हमार छीनार ननद रानी , एक तो उन साल्लो का , मनई क ना , गदहन क लंड होला। बित्ता भर से कम तो कौनो क ना होई। फिर अगर कही तोहार एक माल उनके पकड़ में आ गया तो बस , .... उ इहां तक की गन्ना और अरहर क खेत भी नहीं खोजते , उन्ही सीधे मेड़ के नीचे , सरपत के पीछे ,कहीं भी चढ़ जाएंगे। और फिर एस रगड़ रगड़ के चोदिहें न , मिटटी का ढेला ,गांड से रगड़ रगड़ के टूट न जाय तब तक , और ऐसी गंदी गन्दी गाली देते हैं और चोदवाने वाली से दिलवाते हैं की बस कान में ऊँगली डाल लो। और फिर खाली चोद के छोड़ने वाली नहीं , उन्ही निहुरा के कुतिया बना के गांड भी मारेंगे। कम से कम दो तीन बार। और अकेले नहीं दो तीन लौंडे मिल जाते है , और एक गांड में तो दूसरा बुर में , कौनो दो तीन बार से कम नहीं चोदता। जितना रोओ ,चीखो चिल्लाओ , कौनो बचाने वाला नहीं। और अगर कहीं भरोटी क मेहरारून देख लिहिन तो बजाय बचावे के उ और लौंडन क ललकरइहें। "
और उस के साथ जीतनी जोर जोर से बंसती भौजी की दो उँगलियाँ मेरी चूत चोद रही थी की जैसे कोई लंड ही चूत मंथन कर रहा हो।
मैं सोच रही थी की बंसती मना कर रही है या मुझे उकसा रही है उन लौंडो के साथ , ....
मेरी ऊँगली भी बसंती की बुर में गोल गोल घूम रही थी। अच्छी तरह पनिया गयी थी। मीठा शीरा निकलना शुरू हो गया था , खूब गाढ़ा लसलसा।
मैं तो पहले अजय ,सुनील ,रवि और दिनेश के साथ ही , ... लेकिन यहाँ तो बसंती ने पूरी लाइन लगा दी और वो भी एक से एक।
जोर से मेरी क्लिट रगड़ते बसंती बोली ,
" अरे देखना बिन्नो , लंड की लाइन लगा दूंगी। आखिर तोहार भौजी हूँ, एक जाइ त दू गो घुसे बदे तैयार रहिएँ ,एक से एक मोटे लम्बे। जब घर लौटुबी न रोज त हम चेक करब , आगे पीछे दूनो ओर से सड़का टप टप टपकत रही। "
" भौजी आप के मुंह में घी शक्कर " मारे ख़ुशी के भौजी के सीधे होंठो पे चूमती और जोर से उनकी बड़ी बड़ी चूंची मिजती मैं बोली।
खाना तो कब का ख़तम हो गया था अब तो बस चुम्मा चाटी रगड़न मसलन चल रही थी।
हम दोनों झड़ने के कगार पर ही थीं। तब तक बंसती बोलीं ,
" अरे चला , तोहार मुंह हम अबहियें मीठ करा देती हूँ। "
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