RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
बसंती की मस्ती
(ये तो मुझे बहुत बाद में पता चला की कामिनी भाभी की वो क्रीम,दर्द तो एकदम गायब कर देती थी ,अंदर कुछ चोट खरोंच हो तो उसके लिए भी एंटी सेप्टिक का कामकरती थी ,लेकिन साथ में दो काम और करती थी। एक तो वो गांड को फिर से पहले जैसा ही टाइट कर देती थी , जैसे उसके अंदर कुछ गया ही न हो। इकदम कसी कच्ची कली की तरह। लेकिन दूसरी चीज और खतरनाक थी , उसमें कुछ ऐसा पड़ा था की कुछ देर बात ही गांड में बड़े बड़े चींटे काटने लगते थे , और बस मन करता था कोई हचक के मोटा , लम्बा पूरा अंदर तक पेल दे।
और मेरे बगल में बैठ गयीं।
धम्म से।
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शरारत में मैं कौन बसंती भौजी से कम थी।
उसके दोनों गरमागरम जलेबी की तरह रसभरे उभार , साडी से झलक रहे थे , और मैंने एक झटके में उनकी साडी खीच दी।
" काहे भौजी का छिपायी हो , उहौ आपन ननदी से। "
और दोनों उभार छलक कर बाहर ,
जितने बड़े बड़े उतने ही कड़े कड़े और ऊपर से दोनों घुन्डियाँ ,एकदम खड़ी।
मेरा एक हाथ झटाक से सीधे वहीँ।
लेकिन बजाय बुरा मानने के बसंती भौजी ने एक लाइफ टाइम ऑफर दिया ,अपनी बुर दिखाने का।
" अरे तोहार चुनमुनिया तो हवा खिलाने के लिए खोलदिए हैं , तुम कहोगी की भौजी आपन ना दिखायीन। "
लेकिन जैसे कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई , बस वही बात ,बसंती भौजी ने मेरी आँखे बंद करा दीं और बोला मैं ऊँगली से देखूं ,
मैं मान गयी। धीरे धीरे उनका हाथ मुझे उनकी जांघ की सीढ़ी से चढ़ाते हुए ,मेरे हाथ की उँगलियाँ ,
खूब चिकनी एकदम मक्खन , मांसल लेकिन गठी , ...धीमे धीमे मेरी उँगलियाँ चढ़ती गयीं , और फिर झांटो का झुरमुट और वहीँ बसंती भाभी की ऊँगली ने मेरा हाथ छोड़ दिया।
एक कौर खाना सीधे मेरे मुंह में।
उनके हाथ से दाल रोटी भी इतनी मीठी लग रही थी की जैसे पूड़ी हलवा हो ,
और मेरी ऊँगली , अब इतनी भोली भी नहीं थी। झांटो के बगीचे में उसने रास्ते ढूंढ लिया , और फिर तो , बसंती भौजी की बुर की पुत्तियाँ ,खूब उभरीं उभरीं कुछ देर तक तो अंगूठा और तर्जनी दबा दबा के उनका स्वाद ले रहा था , और फिर
गचाक्क , गप से मेरी ऊँगली उनके नीचे वाले मुंह में घुस गयी और उनके निचले होंठों ने जोर से उसे दबोच लिया।
जैसे मैंने बंसती भाभी की मेरे मुंह में कौर खिलाते ऊँगली को शरारत से दांत से दबोच लिया और हलके से काट कर पूछा ,
" भौजी ,आपने खाया। "
" तूहूँ न , अरे हमार प्यारी प्यारी ननदिया भूखी रहे और हम खाय लेब " बसंती ने बहुत प्यार से जवाब दिया।
और मैं सब कुछ हार गयी ,
गच्च से पूरी ऊँगली मैंने बसंती भौजी के निचले मुंह में जड़ तक ठेल दी और शरारत से बोली।
" झूठ भौजी ,मुझे मालूम है भौजी तु का का गपागप खात हो , घोंटत हो और आपन छोटकी ननदिया क ना पूछी हो। "
" अरे अब आगे आगे देखना , अबहीं त तू घोंटब शुरू कयलु हौ , एक से एक लम्बा ,मोट ,मोट घोंटाउब न ,एक साथ दो दो , तीन तीन। "
बंसती भौजी ने अपनी बात की ताकीद करते साथ में अपनी ऊँगली मेरी कच्ची सहेली के मुंह में ठेल दी।और फिर तो घचाघच , घचाघच , सटासट सटासट ,
और जवाब मेरे ऊपर वाले मुंह ने दिया , एक हाथ से मैंने भौजी का सर पकड़ा और फिर मेरे होंठ उनके होंठों के ऊपर और मेरा आधा खाया ,कुचला सीधे मेरी जीभ के साथ उनके मुंह में , और कुछ देर तक उनकी जीभ ने मेरी जीभ के साथ चल कबड्डी खेला ,फिर क्या कोई लड़की लंड चूसेगी जैसे वो मेरी जीभ चूस रही थीं।
उसके बाद तो सब कौर कभी उनके मुंह से मेरे मुंह में , और कभी मेरे मुंह में और साथ में हम दोनों खुल के एक दूसरे के होंठ का मुंह का रस ले रहे थे।
नीचे बसंती भौजी की बुर उसी स्वाद के साथ मेरी ऊँगली भींच रही थी।
और अब वो खुल कर बखान कर रही थीं गाँव के मर्दों का किसका कित्ता बड़ा और कित्ता मोटा है कौन कित्ती देर तक चोद सकता है। हाँ एक बात सब में थी की सब के सब मेरे जुबना के दीवाने हैं ,
बात बदलने के लिए मैंने कमान अपने हाथ में ले ली और शिकायत की ," भौजी हमारे पिछवाड़े तो , हमार तो जान निकल गयी और आप कह रही थीं की ठीक से नहीं मारा। "
" एकदम सही कह रह थी मैं , अरे असली पहचान ई है की अगर हचक हचक के गांड मारी जायेगी न तुहार , तो बस खाली कलाई के जोर से एक बार में दो उँगरी सटाक से घोंट लेबु। और घबड़ा जिन , ई कामिनी भाभी के मर्द , जउने दिन उनके नीचे आओगी न त बस , तब पता चलेगा गांड मरवाई क असली मजा। " बसंती ने हाल खुलासा बयान किया.
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