RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
बसंती
तब तक दूध उबलने लगा था और भाभी उधर चली गयीं।
बसंती मुझे घूरते हुये बोली- “अरे ननद रानी तुम्हें अगर सच में नमकीन बनना है ना तो सबसे सही है की तुम… खारा नमकीन शरबत पी लो, इतना नमक हो जायेगा ना कि फिर…”
मैंने देखा कि चम्पा भाभी उसे आँखों सें चुप रहने का इशारा कर रही हैं
।
पर मैं बोल पड़ी- “बसंती भाभी, कहां मिलेगा वह शरबत…”
बसंती ने मेरे मस्त गालों को सहलाते हुये कहा- “अरे मैं पिलाऊँगी अपनी प्यारी ननद को, दोनों टाइम सुबह शाम। सबसे नमकीन माल हो जाओगी…”
मैंने देखा कि चम्पा भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थीं- “पियोगी ना… और अगर तुमने एक बार हां कह दिया और फिर मना किया ना तो हाथ पैर बांध कर जबरन पिलाऊँगी…”
बिना समझे मैंने हामी भरते हुए धीरे से सर हिला दिया।
तब तक मेरी भाभी आ आयीं और पूछने लगीं- “ये आप दोनों लोग मिलकर मेरी ननद के साथ क्या कर रही हैं…”
“हम लोग इसे अपने शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बनाने की बात कर रहे थे…” चम्पा भाभी हँसकर बोलीं।
“एकदम भाभी, मेरी ओर से पूरी छूट है, और अगर ये कुछ ना नुकुर करे ना तो आप दोनों जबर्दस्ती भी कर सकती हैं…”
“तो बसंती ठीक है, चालू हो जाओ, और जब ये लौट कर जायेगी ना तो फिर इसके शहर के जितने लड़के हैं सब मुट्ठ मारें तो गुड्डी का नाम लेकर और रात में झडें तो सपने में इसी छिनार को देखकर और तेरे देवर को तो ये बहनचोद बना ही देगी…” चम्पा भाभी अब पूरे मूड में थीं।
भाभी ने हामी भरी। बसंती भी आज मेरे साथ खुलकर रस ले रही थी, वह बोली- “अरे तुम्हारा देवर रवींद्र सिर्फ बहनचोद थोड़ी ही है…”
“फिर… और… क्या-क्या है…” मजा लेते हुए भाभी ने बसंती से पूछा।
“अरे गंडुआ तो शकल से ही और बचपन से ही है, जब शादी में आया था तभी लगा रहा था और अब अपनी इस ननद रानी के चक्कर में… भंड़ुआ भी हो जायेगा… जब ये रंडी बनकर कालीनगंज में पेठे पे बैठेगी तो… मोल भाव तो वही करेगा…” और सब लोग खुलकर हँसने लगी।
आज कहीं जाना नहीं था इसलिये मैं सलवार सूट पहनकर बैठी थी। बसंती ने खूब रच-रच कर मुझे मेंहदी लगायी थी और महावर भी, आज सुबह से वह ज्यादा मेहरबान थी और चम्पा भाभी के साथ मिलकर खूब गंदे मजाक कर रही थी। चन्दा के इंतेजार में दोपहर हो गयी थी। कामिनी भाभी भी आयीं थी। मेहंदी सूख गयी थी और बसंती उसे छुड़ा रही थी।
कामिनी भाभी ने बसंती से कहा- “मेहंदी तो खूब रच रही है, ननद रानी के हाथ में, बहुत अच्छी लगायी है तुमने…”
वो हँसकर बोली- “इसलिये कि जब ये गांव के लड़कों का पकड़ें तो उन्हें अच्छा लगे…”
“हे अच्छा बताओ, तुमने अब तक किसका-किसका पकड़ा है…” चम्पा भाभी चालू हो गयीं।
मैं चुप थी।
“अच्छा चलो, नाम न सही नंबर ही बता दो, 4, 5, 6 मेरे कितने देवरों का पकड़ा है, अबतक…”
“अरे भाभी यहां आपके देवरों का पकड़ रही है और घर चलकर मेरे देवर का पकड़ेगी…” मेरी भाभी क्यों मौका चूकतीं।
“धत्त भाभी, आप भी…” शर्म से मेरे गाल गुलाबी हो रहे थे।
कामिनी भाभी हँसकर बोलीं।- “अरे इसमें धत्त की क्या बात, तुम्हारी भाभी पकड़ने का ही तो कह रहीं हैं लेने का तो नहीं… पकड़कर देख लेना, कितना लंबा है, कितना मोटा है, दबाकर देख लेना कित्ता कड़ा है, और न हो तो टोपी हटाकर सुपाड़ा भी देख लेना, पसंद हो तो ले-लेना…”
“अरे भाभी, ये सिर्फ यहीं नखड़ा दिखा रही है, वहां पहुँचकर तो ये सोचेगी कि जब मैंने भाभी के सारे भाईयों का पकड़ा, किसी को भी नहीं मना किया तो बेचारे अपने भाई का क्यों ना पकड़ूं और फिर अपने मेंहदी रचे हाथों में गप्प से पकड़ लेगी…” भाभी ने मुझे छेड़ा।
पर मेरे मन में तो रवीन्द्र की… जो चन्दा ने कहा था कि उसका इत्ता मोटा है, कि मेरे हाथ में नहीं आयेगा। घूम रही थी।
“और क्या पहले हाथ में, फिर अपने इन दोनों कबूतरों के बीच पकड़ेगी…” कामिनी भाभी ने मेरे उभारों पर चिकोटी काटते हुये कहा।
“और फिर ऊपर वाले होंठों के बीच…” चम्पा भाभी बोलीं।
“और फिर नीचे वाले होंठों के बीच…” अब मेरी भाभी का नंबर था।
“अरे, जब रवीन्द्र बोलेगा, बहन एक बार पकड़ लो मेरा तो ये कैसे मना करेगी, बोलेगी लाओ भैया…” भाभी आज चालू थीं। उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए गाना शुरू किया और सब भाभियां उनका साथ दे रहीं थीं-
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।
ना ये आधा, ना ये पौना, पूरा फुट है, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।
ना ये छोटा, ना ये पतला, पूरा अंदर है, पकड़कर देख लो।
हो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो।
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।
काहे का रुकना, क्या झिझकना, तुम्हारा धन है, पकड़कर देख लो, हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो।
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो।
नीचे लकड़ी ऊपर छतरी, रूप ग़जब का, पकड़कर देख लो। हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो।
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।
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