Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 01:58 PM,
#47
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
भाभी का घर 







चम्पा भाभी ने चाय के लिए आवाज दी और कपडे और बड़ी समेटे मैं और भाभी छत से नीचे उतर पड़े। 
……………………………………………………………….

मैं और भाभी दोनों किचेन में पहुँच गए , जहाँ भाभी की मम्मी , चंपा भाभी कुछ हंस बतला रही थीं। 

लेकिन आगे का हवाल बताने से पहले जरूरी है ,की भाभी के घर की जियोग्राफी जरा डिटेल में बता दी जाय। 



भाभी का परिवार गाँव के सबसे पुराने और समृद्ध परिवारों में था , घर भी खूब पुराना और बड़ा।


चलिए आगे से शुरू करते हैं। घर दो भागों में बंटा था जिसे कोई मरदाना ,जनाना भी कह सकता है लेकिन वहां सब उसे पक्की कच्ची खंद के नाम से कहते थे। 

अगला हिस्सा पक्का था। सामने खूब बड़ा सा खुला सहन था , वहां एक छप्पर के नीचे गाय और भैंस रहती थी। इस समय दो जर्सी गाय और एक मुर्रा भैसं थी। एक गाय और भैंस दूध देती थीं। एक जमाने में हीरा मोती बैलों की जोड़ी भी थी वो भी दो दो ,लेकिन अब एक ट्रैकटर है , जिसे गाहे बगाहे ,भाभी के भैया चलाते है ,वरना उनके पुराने हरवाहे श्यामू का लड़का , चंदू चलाता है। 

इसके अलावा दो पक्के कुंवे हैं , जिनमे डोल पड़ी रहती है। घर के लिए पहले कहारिने पानी भर के लाती थीं और मर्द कुँए पे ही नहाते थे। लेकिन ट्यूबवेल लगने के बाद नल अब सीधा घर में हैं लेकिन तब भी अगर कहीं बिजली रानी दो तीन दिन तक लगातार गायब हो गयीं ,या भाभी को मन किया कुंए के पानी से नहाने का तो कहारिन भर के ले आती थी। 

इसके अलावा एक बूढ़ा , बड़ा पीपल का पेड़ था ,जो हर आने वाले की झुक कर अगवानी करता था। भाभी की मम्मी कहती थीं की जब उनकी सास गौने में आई थीं तो उनकी पालकी उसी पेड़ के नीचे उतरी थी। और बसंती नाउन की दादी ने उनका परछन किया था। बगल में एक बैल चक्की भी थी , दो बड़े पत्थर के चक्के एक दूसरे के ऊपर , लेकिन वो ज़माने से नहीं चली थी। हाँ उस के बगल में कोल्हू था , जो अभी भी जाड़े में कुछ दिन चलता था। भाभी के यहाँ ७-८ एकड़ गन्ने का खेत था , और पास की एक चीनी मिल वाले एडवांस में खेत बुक कर लेते थे, लेकिन भाभी की माँ को शौक था ,ताजे और घर में बने गुड का और जैसे ही गणना कटना शुरू होता था , कई कई रात कोल्हू चलता था। सरसों के तेल की भी यही हालत थी। उनके अपने खेत के सरसों को एक तेली कोल्हू पेरता था। 

घर में सामने के हिस्से में एक खूब चौड़ा बरामदा था और उस में ज्यादातर चारपाइयां पड़ी रहती थीं और आने जाने वाले उसी पर बैठते थे। उसी के साथ लगी बैठक थी जिसमें कुर्सियां , एक पुरानी पलंग ,मोढ़े पड़े थे लेकिन उसका इस्तेमाल कोई फंक्शन हो ,कुछ सरकारी लोग आएं या ख़ास मेहमान तभी उसका इस्तेमाल होता था। 

अंदर की ओर फिर एक पक्का बरामदा था , और उसी के साथ जुड़े दो तीन पक्के कमरे , एक में भाभी की माँ रहती थीं और बगल के कमरे में भाभी के भैया और चंपा भाभी। फिर बड़ा सा पक्का आँगन , घर की शादियां वही होती थी , इसलिए मंडप के लिए बांस लगाने के लिए उसमे जगह बनी थी। यहीं से सीढ़ी थी ऊपर जाने के लिए और इसी आँगन में बाथरूम ऐसा भी था जहाँ कहारिन पानी भर के बाल्टी रख देती थी। 

किचेन दोनों हिस्से के संधिस्थल पर था। 

लेकिन असली जगह जहाँ दिन भर की सब हलचल होती थी , वो कच्ची खंद ही थी जहाँ हम लड़कियों ,महिलाओं का पूरा राज्य था। ये आँगन उतना बड़ा नहीं था पर छोटा भी नहीं था। दो तिहाई से ज्यादा कच्चा ,लेकिन सुबह सुबह रोज गोबर से पोता जाता। इस आँगन में एक नीम का पेड़ था। और दो ओर बरामदे , वो कच्चे। इस खंद में भी तीन चार कमरे थे , दीवारे सबकी पक्की थीं लेकिन फर्श कच्ची और छत खपड़ैल की थी। इस में कच्चे बरामदे से एक छोटा सा दरवाजा था , जो पीछे की ओर था और सारी लड़कियां , औरते इसी दरवाजे से आती थीं। गाँव में सारे घरों में ये पिछला दरवाजा होता था , और औरतों के लिए ही बना होता था। इसके अलावा , चुड़िहारिन ,नाउन ,कहारिने सब इसी दरवाजे से आती थी। 

और इन्ही कमरों में से एक में भाभी रहती थीं , और एक भाभी के कमरे से सटे कमरे में मैंने अड्डा जमाया था। और उसमें भी एक छोटी खिड़की नुमा दरवाजा था जिससे जब चाहे तब चंदा और मेरी बाकी सब नयी सहेलियां , कजरी , पूरबी , गीता आ धमकती थीं। हम लोगों के आने पर जो सोहर और गाने हुए थे वो इसी इलाके में बरामदे में हुए थे। 

एक फायदा ये भी था की इस इलाके में मर्दों का प्रवेश लगभग वर्जित था , उसी तरह औरते ,लड़कियां आगे वाले दरवाजे से नहीं आती थीं। हाँ उन लड़कों की बात और थी जो रिश्ते में भाभी के भाई लगते थे , लेकिन वो भी अकेले कम ही इस इलाके में आते थे , जैसे अजय आया तो भाभी को छोड़ने। 

तो चलिए वापस चलते हैं किचेन में जहाँ चंपा भाभी गरम गरम चाय के साथ गरम गरम बातें परोस रही थीं।
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन - by sexstories - 07-06-2018, 01:58 PM

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