RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
भाभी
पीछे एक घबड़ाई हिरणी की तरह मुड़ के मैंने देखा , भाभी अभी आँगन में ही थीं।
और आते ही उन्होंने चिढ़ाते हुए मुझसे अपने अंदाज में पूछा,
' क्यों मेरे भाई को कुछ पिलाया या ऐसे ही भूखा खड़ा रखा है। "
" कहाँ दी , आपकी ये ननद भी , कुछ नहीं , .... " अजय ने तुरंत शिकायत लगायी।
" झूठे , मैंने कहा नहीं था , भाभी मैंने आपके इस झूठ सम्राट भाई से बोला था लेकिन उसने मना कर दिया। " अब मैं एकदम छुटकी ननदिया वाले रूप में आ गयी थी। और आँख नचाते हुए भाभी से कहा ,
" भाभी मैंने साफ साफ बोला था की भाभी मुन्ने को दुद्धू पिलाने गयी हैं तो तू भी लग जाओ,एक ओर से मुन्ना ,एक ओर मुन्ने के मामा। "
भाभी इत्ती आसानी से हार नहीं मानने वाली थीं।
वो मेरे पीछे खड़ी थीं ,झट से पीछे से ही उन्होंने मेरे दोनों कबूतरों को दबोच लिया और उस ताकत से ,की क्या कोई मर्द दबोचेगा। उन्होंने अजय को मेरे जोबन दिखाते और ललचाते बोला ,
" अरे सही तो कह रही थे ये , इसके दुद्धू भी तो अब पीने चूसने लायक हो गए हैं। मुन्ने की बुआ का दुद्धू पी लेते , ये तो आयी ही इसीलिए मेरे साथ है। फिर मुन्ने की बुआ पे मुन्ने के मामा का पूरा हक़ होता है , सीधे से न माने तो जबरदस्ती। बोलो पीना है तो पी लो , मैं हूँ न एकदम चूं चपड़ नहीं करेगी।"
बिचारा अजय , भाभी के सांमने उसकी , .... लाज से गुलाल हो गया।
और भाभी के साथ मेरी हिम्मत दूनी हो गयी।
अजय की आँखों में आँखे गाडती मैंने चिढ़ाया ,
" भाभी , आपके भैय्या में हिम्मत ही नहीं है , मैं सामने ही खड़ी हूँ और पूछ लीजिये जो मैंने मना किया हो। "
" अजय सुन अब तो ये चैलेन्ज दे रही है , अभी यहीं मेरे सामने , दुद्धू तो पियो ही , इसकी पोखरिया में डुबकी भी मार लो। मुझसे शरमाने घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है , मेरी ओर से पूरा ग्रीन सिग्नल है। " भाभी ने उसे ललकारा।
जहाँ अजय के दांत कस के लगे थे मेरी चूंची में ,जोर की टीस उठी।
बिचारा अजय , एकदम गौने की दुलहन हो रहा था ,जिसका मन भी करे और शर्माए भी। आँखे नीचे ,पलकें झुकी।
आज भाभी भी खुद बहुत मूड में लग रही थी। जिस तरह से उनकी उँगलियाँ मेरे उभारों पे डोल पे रही थीं और उसे पकड़ के वो खुल के अजय को दिखा रही थी, उससे साफ झलक रहा रहा था।
अजय के मुंह से बोल नहीं फूटे लेकिन मैं कौन चुप रहने वाले थी।
अजय को उकसाने चिढ़ाने में मुझे बहुत मजा आ रहा था। आँख नचा के , भाभी से मैं बोली,
" अरे भाभी आपके बिचारे भाई में हिम्मत ही नहीं है , बस पोखर के किनारे ललचाता रहता है , वरना डुबकी लगाने वाले पूछते हैं क्या , सामने लबालब तालाब हो तो बस, सीधे एक डुबकी में अंदर। "
मैं जान रही थी की आज रात मेरी बुर की बुरी हालत होने वाली है , मेरी हर बात का ये जालिम सूद सहित बदला लेगा। लेगा तो लेगा लेकिन अभी अपनी दी और मेरी भाभी के सामने उसके बोल नहीं फूटने वाले थे , ये मुझे मालूम था।
भाभी ने उसे और उकसाया , " अरे यार अब तो इज्जत की बात है , मेरा लिहाज मत कर , ये तो मेरे साथ आई ही इसलिए है की गाँव का , गन्ने और अरहर के खेत का मजा लूटे , बहुत चींटे काट रहे हैं न इसके , तेरी हिम्मत के बारे में बोल रही है तो बस अभी , यही , मेरे सामने , …जरा मेरे ननदिया को भी मालूम हो जाय ,....
अजय के सामने सिर्फ एक रास्ता था , स्ट्रेटेजिक रिट्रीट और उसने वही किया ,
खुले दरवाजे के बाहर झाँका और बोला ,
" दी ,काले बादल घिर रहे हैं लगता है तेज तूफान और बारिश आएगी , चलता हूँ। "
और बाहर की ओर मुड़ गया।
अजय की बात एकदम सही लग रही थी , मैं और भाभी भी पूरब की ओर आसमान पे देख रहे थे। एक छोटा सा मुट्ठी भर का काला बादल का टुकड़ा ,…
लेकिन अब दो चार दिन तक गाँव में रहकर भी आसमान और हवा से मौसम का अंदाजा लगाना सीख गयी थी। तेज बारिश के आसार लग रहे थे।
" गुड्डी ,चल जल्दी छत पर से कपडे हटाने होंगे और बड़ी भी सूखने को रखी थी." भाभी बोलीं , और जल्दी से घर के अंदर की ओर मुड़ीं।
' बस भाभी , बाहर का दरवाजा बंद करके अभी ऊपर आती हूँ। ' मैं बोली , और अजय को छोड़ने बाहर चली गयी।
थोड़ा बतरस का लालच , एक बार और नैन मटक्का और सबसे बढ़के रात का प्रोग्राम पक्का जो करना था।
बाहर निकलते ही मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और खुद बोली,
पक्का , साढ़े ८ बजे न मैं इन्तजार करुँगी , और जोर से मुस्कराई।
अजय रुक गया , मैंने फिर ,
कुण्डी मत खड़काना राजा,
सीधे अंदर आना राजा।
जवाब उस चोर ने दिया , मेरे प्यासे होंठों से एक किस्सी चुराके।
जल्दी से हाथ छुड़ाके , मैं अंदर आई और दरवाजा बंद कर दिया।
मन चैन तो सब बाहर छोड़ आई थी।
काहें बंसुरिया बजावैले , हो सुधि बिसरैले ,गइल चित चैन हमार ,
कंटवा कंकरिया कुछ नाही देखलिन हो कुछ नाहीं देखलिन,
काहें के मतिया फिरोलें ,
गाँव गिराव में मारेलें बोलियाँ , संग की सहेलियां करेल ठिठोलियाँ , करेल ठिठोलियां
काहें के नाम धरौले ,दगवा लगवले , गईल सुख चैन हमार ,
काहें बंसुरिया बजावैले , हो सुधि बिसरैले ,गइल चित चैन हमार ,
मैं अपना के फेवरिट गाना गुनगुनाते धड़धडाते सीढ़ी पे चढ़ रही थी।
ये तो बिना बांसुरी बजाये ही मुझसे मुझीको चुरा ले गया।
लेकिन कुछ चोर बहुत प्यारे लगते हैं , किता ख्याल करता है मेरा , जिंदगी के सबसे बड़े सुख से , और कैसे प्यार से , और मैं भी न , उस दिन उसको प्रामिस किया था जब चाहो तब लेकिन करीब करीब दो दिन हो गया उसे भूखे प्यासे,
और तबतक मैं छत पे पहुँच ग, उसे यी।
भाभी अाधे कपडे डारे पर से उतार चुकी थीं।
वो मुट्ठी भर का काला बादल अब हाथ भर का हो चुका था।
|