RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
अगली फुहार
‘अजय,....
और मैं गीली हो गयी।
उसकी एक निगाह काफी थी।
हाफ शर्ट से बाहर छलकती मछलियाँ , एक एक मसल्स जैसे साँचे में ढली , चौड़ा चकला सीना ,पतली कमर लेकिन जानमारु थी उसकी आँखे एकदम गहरी ,और कितनी कुछ कहती बोलती।
वो बस एक बार देख ले , फिर तो मना करने की ताकत ही खत्म हो जाती थी ,
और उसकी मुस्कान।
बस मन करता था उसे देखती ही रहूँ ,
और वो भी कम दुष्ट नहीं था ,नदीदों की तरह मेरे टेनिस बाल साइज के कड़े कड़े उभार देख रहा था ,और गलती उसकी भी नहीं थी , इन कबूतरों पर तो गाँव के सारे लौंडे दीवाने थे। और इस समय तो वो भी मेरी कसे छोटे से टॉप से बाहर निकलने को बेताब हो रहे थे।
बड़ी मुश्किल से मैंने सूना भाभी क्या कह रही थीं ,
मेरे कान में वो फुसफुसा रही थीं , यार मुन्ना तंग कर रहा है , उसके फीड का टाइम हो गया है , बस उससे दुद्धू पिला के वो ,
और फिर जोर से अजय को सुना के मुझसे बोलीं , " देख तेरे लिए किसे ले आई हूँ ,ज़रा मेरे भैया को कुछ पिलाओ विलाओ , मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ। "
और एक मुस्कान मार के , वो सीधे घर के अंदर।
लेकिन मेरी निगाहें अभी भी अजय को सहला दुलरा रही थीं।
उस जादूगर ने मुझे पत्थर बना दिया था।
तब तक अजय की छेड़ती आवाज गूंजी ,"अरे दी बोल गयी हैं , मेहमान को कुछ पिलाओ विलाओ , और तुम ,… "
बस मैं अपने असलियत में वापस आ गयी। आँख नचाती , उसे चिढ़ाती बोली
" अरे भाभी मुन्ने को दुद्दू पिलाने गयी हैं , तुम भी लग जाओ न ,एक से मुन्ना ,दूसरे से मुन्ना के मामा। खूब चुसुर चुसुर कर के पीना , मन भर ,सब प्यास बुझ जायेगी। ''
लेकिन अजय से कौन पार पा सकता है , जहाँ बात से हारता है वहां सीधे हाथ ,
बस उसके हाथों ने झट से मुझे दबोच लिया जैसे कोई बाज ,गौरेया दबोचे।
और अगले ही पल , एक टॉप के ऊपर से मेरे जुबना को दबोच रहा था और दूसरा टॉप के अंदर जवानी के फूल पे सीधे ,
' मुझे तो मुन्ने की बुआ का दुद्धू पीना है ' वो बोला , और उसके डाकू होंठों ने जवाब देने लायक भी नहीं छोड़ा ,
मेरे दोनों टटके गुलाब ऐसे होंठ अजय के होंठों के कब्जे में , और वो जम के चूम चूस रहा था।
और थोड़ा सा मुझे खीच के अजय ने मेरे कमरे के बगल में ओट में खड़ा कर दिया जहाँ हम लोगों को तो कोई नहीं देख सकता था लेकिन वहां से अगर कोई आनगन में आया तो पहले से दिख जाता।
होंठ तो बस नसेनी थे , नीचे उतरने के लिए।
टॉप उठा , मेरे दोनों टेनिस बाल सरीखे कड़े कड़े उभार खुल गए और अजय कस कस के , और कुछ देर बाद उसने न सिर्फ मुह लगाया , बल्कि कचकचा के काट भी लिया।
रोकते रोकते भी मैं सिसक उठी।
लेकिन उस बेरहम को कुछ फर्क पड़ता था क्या , थोड़ी देर वहीँ पे अपने होंठों का मलहम लगाया ,
फिर पहली बार से भी भी ज्यादा जोर से ,
कचाक।
अबकी मेरी हलकी चीख निकल ही गयी।
दांत के अच्छे निशान पड़ गए होंगे वहां।
और हाथ कौन कम थे उसके , जोर जोर से निपल पिंच कर रहे थे। मरोड़ रहे थे।
ऊपर की मंजिल पे तो दर्द हो रहा था , लेकिन निचली मंजिल पे ,प्रेम गली में फिसलन चालू हो गयी थी। मेरी सहेली खूब गीली हो गयी थी।
' हे भाभी ,। " मैंने झूठमूठ बोला , और उसने टॉप छोड़ दिया , मेरे उभार ढक गए लेकिन मुझे नहीं छोड़ा।
" हे जानती हो मेरा क्या मन कर रहा है। "
मेरी उठी हुयी आँखों ने उसके चेहरे की ओर देखते हुए गुहार लगायी ,बिन बोले ,' बोल दो न मेरे रसिया बालम '
" बस यहीं तुम्हे पटक पटक कर चोद दूँ '
और मेरे भी बोल फूटे ,
' मेरा भी यही मन करता है की , पूरी रात तुमसे , .... हचक हचक कर ,… चुदवाऊँ ,…. लेकिन कैसे ?"
उसने मुझे और जोर से भींच लिया , उसका चौड़ा सीना अब बड़े अधिकार से मेरे उभरते उभारों को दबा रहा था।
उसकी निगाहें इधर उधर मेरे सवाल का जवाब ढूंढ रही थी , .... लेकिन कैसे ?
मेरी कोठरी जहाँ हम खड़े थे , एकदम उसी के बगल में थी। उसी की ओर देखते हुए उसने बहुत हलके से पूछा ,
' इसी में सोती हो न '
मैंने हलके से सर हिला के हामी भरी।
उसका एक हाथ अब स्कर्ट के अंदर घुस के मेरे गोरे गोरे कड़े कड़े नितम्बों को दबोच रहा था और दूसरा टॉप के ऊपर से कबूतरों को सहला रहा था , लेकिन उसकी तेज आँखे अब मेरे कमरे का मौका मुआयना कर रही थीं।
और फिर उस की निगाह मेरे कमरे की खिड़की पर टिक गयी , खिड़की क्या एक छोटा सा दरवाजा था ,जो मेरे कमरे से सीधे बाहर की ओर खुलता था।
बस उसकी निगाहें वहीँ टिक गयीं ,और उसके तगड़े बाजुओं का दबाव जोर से मेरे देह पर बढ़ गया , मैं पिघलती चली गयी।
साढ़े आठ , पौने नौ बजे के करीब , जैसे वो अपने आप से बोला रहा हो ,वो बुदबुदाया।
मेरे बाहों ने भी उसे अब कस के भींच लिया , और उस से बढ़कर मेरी जांघे अपने आप फैल गयीं , मेरी चुन्मुनिया ने उसके कड़े ,खड़े खूंटे पे रगड़ के हामी भर दी।
गाँव में वैसे भी सब लोग जल्दी सो जाते हैं।
और मेरी हामी पर उसके होंठों ने मुझे चूम के झुक के मुहर लगा दी।
लेकिन उस जालिम के होंठ सिर्फ लालची ही नहीं कातिल भी थे। होंठो का तो बहाना था , फिर टॉप के ऊपर से ही मेरी गुदाज गोलाई और ठीक उसी जगह उसने कककचा के काट लिए , जहाँ उस के दांत के निशाँ अभी टीस रहे थे।
लेकिन इस बार उस दर्द को मस्ती बना के मैं पी गयी।
मेरी आँखे बंद थी ,
जिस नैन में पी बसे , उन नैनन में दूजा कौन समाय।
लेकिन उसकी आँखे खुली थीं चाक चौबस्त ,
मुझे छोड़ते हुए उसने इशारा किया ,भाभी।
और झटके से हम दोनों ऐसे अलग हुए जैसे कभी साथ रहे ही न हों। एकदम दूर दूर खड़े ,मैंने झट से अपनी स्कर्ट टॉप ठीक किया।
पीछे एक घबड़ाई हिरणी की तरह मुड़ के मैंने देखा , भाभी अभी आँगन में ही थीं।
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