RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
बरस रहा सावन
मैं भी मस्ती में गरम हो रही थी। उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था।
जोश में मेरे चूचुक पूरे खड़े हो गये थे। उसने साड़ी भी नीचे कर दी और अब मैं पूरी तरह टापलेश हो गयी थी।
जब वह मेरे कड़े-कड़े निपल मसलता तो… मेरी भी सिसकी निकल रही थी। तभी मुझे लगा की मैं क्या कर रही हूं… मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था पर मैं बोलने लगी- “नहीं अजय प्लीज मुझे छोड़ दो… नहीं रहने दो घर चलते हैं… फिर कभी… आज नहीं…”
पर अजय कहां सुनने वाला था, उसके हाथ अब मेरी चूचियां खूब कस के रगड़ मसल रहे थे। मन तो मेरा भी यही कर रहा था कि बस वह इसी तरह रगड़ता रहे, मसलता रहे… मेरे मम्मे। पर मैं बोले जा रही थी- “अजय, प्लीज छोड़ दो आज नहीं… हटो मैं गुस्सा हो जाऊँगी… सीधे से घर चलो… वरना…”
और अजय मुझे झूले पर ही छोड़कर हट गया। उसकी आवाज जाती हुई सुनाई दी- “ठीक है, मैं चलता हूं… तुम घर आ जाना…”
मैं थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही पर अचानक ही बिजली कड़की और मैं डर से सिहर गयी। हवा और तेज हो गयी थी। पास में ही किसी पेड़ के गिरने की आवाज सुनाई दी और मैं डर से चीख उठी- “अजय… अजय… प्लीज अजय… लौट आओ… अजय…”
पूरा सन्नाटा था, फिर किसी जानवर की आवाज तेजी से सुनाई पड़ी और मैं एकदम से रुआंसी हो गयी। मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, मन तो मेरा भी कर रहा था, आखिर चन्दा, गीता सब तो चुदवा रही थीं और सुबह से तो मैं भी अजय को सिगनल दे रही थी-
“अजय… अजय… अजय्य्य्यय्य्य्य्य…” मैंने फिर पुकारा, पर कोई जवाब नहीं था, लगाता है, गुस्सा होकर चला गया, लेकिन वह भी कितना… मुझे मना सकता था… कुछ ना हो तो जबर्दस्ती कर सकता था।
आखिर इतना हक तो उसका है ही। थोड़ा वक्त और गुजर गया। मैं बहुत जोर से डर रही थी। मैं पुकारने लगी- “अजय प्लीज आ जाओ, मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं… तुम मुझे किस करो, जो भी चाहे करो, प्लीज आ जाओ… मैं सारी बोलती हूं… मैं तुम्हारी हूं… जो भी चाहे…”
तब तक उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया, और बोला- “क्यों, मैं घर जाऊँ…”
“नहीं मैं बहुत सारी हूं…” मैं भी उसे और कस के जकड़ के बोली।
“अच्छा, सच सच बताओ, मेरी कसम, तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं…” अजय ने मेरे होंठों को चूमते हुए पूछा।
“हां कर रहा था… बहुत कर रहा था…” मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी। अजय के होंठ अब मेरे रसीले गलों का रस ले रहे थे।
“क्या करवाने को कर रहा था…” मेरे गालों को काटते हुए उसने पूछा।
“वही करवाने को… जो तुम्हारा करने को कर रहा था…” हँसते हुए मैंने कबूला।
“नहीं तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा… वरना बोलो तो मैं चला जाऊँ तुम्हें यहीं छोड़कर…” और ये कहते हुये उसने कस के मेरे कड़े निपल को खीचा।
“मेरा मन कर रहा था॰ चुदवाने का तुमसे आज अपनी कसी कुंवारी चूत… चुदवाने का…” और ये कह के मैंने भी उसके गालों पर कस के चुम्मी ले ली।
“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…” और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।
थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी। मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था। कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे। मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया। देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।
उसकी उंगलियां, मेरे 16 सावन के प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी। अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं। अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी। उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी। बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।
और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-
“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”
अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।
बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड, उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं। जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।
उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा। दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।
ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है- “उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…” मेरी बुरी हालत थी।
अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था। थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न, उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी। अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।
एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था। अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।
मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा। मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका। जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।
मेरी चूत फटी जा रही थी। अजय ने मेरी पलकों पर, फिर गालों पर धीरे-धीरे चूमा। उसका एक हाथ अब बड़े प्यार से मेरे सर के बालों को सहला रहा था। धीरे-धीरे, अब वह कसकर मेरे होंठों को चूसने, चूमने लगा था और एक हाथ से मेरे जोबन को प्यार से सहला रहा था। उसके इस प्यार भरे स्पर्श ने मेरे दर्द को आधा कर दिया।
अचानक जोबन सहला रहे उसके हाथ ने मेरे कड़े चूचुक को सहलाना, फ्लिक करना शुरू कर दिया, उसके होंठ भी मेरे दूसरे निपलस को जुबान से उसके बेस से ऊपर तक चाट रहे थे और थोड़ी देर बाद उसने मेरे कड़े गुलाबी निपल को कस-कस के चूसना शुरू कर दिया। अब एक बार फिर मस्ती की नयी लहर मेरे अंदर दौड़नी शुरू हो गयी।
पर अजय भी… थोड़ी देर में ही, उसका एक हाथ मेरे निपल मसल, खींच रहा था और दूसरा क्लिट को छेड़ रहा था। मेरा दूसरा निपल उसके होंठों के बीच चूसा जा रहा था। मेरी चूत अभी भी दर्द से फटी जा रही थी पर मेरी देह में एक अजीब नशा दौड़ रहा था और अब अजय को भी इसका अहसास हो गया था। उसने अब एक बार फिर मेरी कमर को पकड़ के धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू कर दिये। थोड़ी देर में ही उसने धक्के की रफ्तार तेज कर दी।
पर मैं मस्ती में बोले जा रही थी-
“ओह अजय प्लीज हां ऐसे ही… नहीं बस जरा देर रुक जाओ… ओह हां… रुको नहीं बस ऐसे करते रहो बड़ा अच्छा… ओह… दर्द हो रहा है… प्लीज…”
कभी उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलते, कभी क्लिट को छेड़ते, मेरी दोनों टांगें उसके कंधों पर थी और वह कभी मेरी दोनों चूचियों को पकड़कर, कभी कमर को पकड़कर और कभी मेरे चूतड़ों को पकड़कर कस-कस के धक्के लगाये जा रहा था।
बारिश फिर तेजी से चालू हो गयी थी, और पानी उसके शरीर से होकर मेरे ऊपर गिर रहा था, तेज धार मेरे कड़े जोबनों पर सीधे पड़ रही थी।
मस्ती से मैं अपने चूतड़ों को उठा-उठाकर मजे ले रही थी और थोड़ी देर में, मैं झड़ गयी। पर अजय की चुदाई की रफ्तार में कोई कमी नहीं आयी। मैं झड़ती रही और वह दुगुने जोश से चोदता रहा। मेरे झड़ चुकने के बाद वह रुका पर उसके होंठों और उंगलियों ने मेरे निपल को चूस-चूसकर, मेरी चूचियों को रगड़-रगड़कर और मेरे क्लिट को छेड़-छेड़ कर मेरी देह में ऐसी आग लगायी की थोड़ी ही देर में मैं फिर अपने चूतड़ उचकाने लगी।
और अब अजय ने जो चोदना शुरू किया तो फिर उसने रुकने का नाम नहीं लिया। मेरी कमर को पकड़कर वह लण्ड लगभग पूरा बाहर निकालता और फिर अंदर ढकेल देता, जब उसका लण्ड मेरी चूत को फैलाता, कसकर रगड़ता, अंदर घुसता, मैं बता नहीं सकती कैसा मजा मिल रहा था।
मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और- “हां अजय… अजय… हां रुको नहीं… बस चोदते रहो… और बहुत अच्छा लगा रहा है… ओह…”
थोड़ी देर के बाद जब मैं झड़ी तो उसके थोड़ी देर बाद अजय भी झड़ गया, लेकिन वह झड़ता रहा… झड़ता रहा देर तक…
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