Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 01:41 PM,
#11
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
ठीक है, बाद में ही सही पर ये चिड़िया अब बहुत देर तक चारा खाये बिना नहीं रहेगी…” साड़ी के ऊपर से मेरी चूत को कसके रगड़ती हुई वो बोली, और मुझे हाथ पकड़के मेले की ओर खींचकर, लेकर चल दी। 

मेले में गीता के साथ पूरबी, कजरी और बाकी लड़कीयां फिर मिल गयीं। चन्दा ने आँखों के इशारे से पूछा तो गीता ने उंगली से दो का इशारा किया। 

मैं समझ गयी कि रवी से ये दो बार चुदा के आ रही है। 

पूरे मेले में खिलखिलाती तितलियों की तरह हम लोग उड़ते फिर रहे थे। हम लोगों ने गोलगप्पे खाये, झूले पर झूले, हम लोगों का झुंड जिधर जाता, पूरे मेले का ध्यान उधर मुड़ जाता और फिर जैसे मिठाई के साथ-साथ मक्खियां आ जाती हैं, हमारे पीछे-पीछे, लड़कों की टोली भी पहुँच जाती। और दुकानदार भी कम शरारती नहीं थे, कोई चूड़ी पहनाने के बहाने जोबन छू लेता तो कोई कलाई पकड़ लेता। और लड़कीयों को भी इसमें मजा मिल रहा था, क्योंकी इसी बहाने उन्हें खूब छूट जो मिल रही थी।

थोड़ी देर में मैं भी एक्सपर्ट हो गई। दुकानदार के सामने मैं ऐसे झुक जाती कि उसे न सिर्फ चोली के अंदर मेरे जोबन का नजारा मिल जाता बल्की वह मेरे चूचुक तक साफ-साफ देख लेता। उसका ध्यान जब उधर होता तो मेरी सहेलियां उसका कुछ सामान तो पार ही कर लेतीं, और मुझे जो वो छूट देता वो अलग। हम ऐसे ही मस्ती में घूम रहे थे। 
पूरबी ने गाया- 

अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, 
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, 
अरे जब वो बनिया चवन्नी मांगे, मैं तो जोबना खोल दिखा दूंगी। 
अरे मैं तो बनिया यार फँसा लूंगी, दूध जलेबी खा लूंगी
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, 
अरे जब वो बनिया रुपैया मांगे, मैं तो लहंगा खोल दिखा दूंगी। 


गुदने वाली के पास भी हम लोग गये और मैंने भी अपनी ठुड्डी पे तिल गुदवाया। तभी मैंने देखा कि बगल की दुकान पे दो बड़े खूबसूरत लड़के बैठें हैं, खूब गोरे, लंबे, ताकतवर, कसरती, गठे बदन के, उनकी बातों में मेरा नाम सुन के मेरा ध्यान ओर उनकी ओर लग गया। 

“अरे तुमने देखा है, उस शहरी माल को, क्या मस्त चीज है…” एक ने कहा। 

“अरे मैं, आज तो सारा मेला उसी को देख रहा है, उसकी लम्बी मोटी चूतड़ तक लटकती चोटी, जब चलती है तो कैसे मस्त, कड़े कड़े, मोटे कसमसाते चूतड़, मेरा तो मन करता है, कि उसके दोनों चूतड़ों को पकड़कर उसकी गाण्ड मार लूं… एक बार में अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पेल दूं…” दूसरा बोला। 

“अरे मुझे तो बस… क्या, गुलाबी गाल हैं उसके भरे-भरे, बस एक चुम्मा दे दे यार, मन तो करता है कि कचाक से उसके गाल काट लूं…” पहला बोला। 

दूसरा बोला- “और चूची… ऐसी मस्त रसीली कड़ी-कड़ी चूचियां तो यार पहली बार देखीं, जब चोली के अंदर से इत्ती रसीली लगती हैं तो… बस एक बार चोदने को मिल जाय…” 

शायद किसी और दिन मैं किसी को अपने बारे में ऐसी बातें बोलती सुनती तो बहुत गुस्सा लगता, पर आज ये सबसे बड़ी तारीफ लग रही थी… और ये सुनके मैं एकदम मस्त हो गयी। 

जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था। अजय अकेला खड़ा था। 


गीता ने अजय को छेड़ा- “अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…” 

मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली- “मैं हूँ ना…” 

सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा- “मेरा माल तो है ही…” 
थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली- “और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…” 

चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली- “अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…” 

“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…” छेड़ते हुए गीता चहकी। 

“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…” चन्दा मुश्कुरा के बोली। 

एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये। 

सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी। 

एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया- “लो ना…” और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा- “ले लो ना…” 

अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया। 

“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…” चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये। 
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन - by sexstories - 07-06-2018, 01:41 PM

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