kamukta kahani अय्याशी का अंजाम
06-27-2018, 12:05 PM,
#46
RE: kamukta kahani अय्याशी का अंजाम
काम्या ने ‘रात’ पर कुछ ज़्यादा ज़ोर देकर कहा था.. क्योंकि वो जानती थी अक्सर ये रात को देर से आते हैं और आज घर में कोई नहीं रहेगा.. तो इनको घूमने का मौका मिल जाएगा.. इसलिए उसने ‘रात’ पर इतना ज़ोर दिया।
विजय- अरे आप बेफिक्र रहो.. हम बाहर जाएँगे ही नहीं.. तो ऐसा कुछ होगा भी नहीं.. वैसे जय और गुड्डी कहाँ हैं। अब तक उठे नहीं क्या?
काम्या- अरे कहाँ उठे हैं.. गुड्डी के कमरे का एसी कल वो ले गया था.. वापस लाया नहीं.. तो बेचारी को जय के कमरे में सोना पड़ा। अब देखो कितना वक्त हो गया.. दोनों घोड़े बेच कर सोए हुए हैं।
विजय- आपने जगाया नहीं क्या उनको?
काम्या- अब जा ही रही थी कि तुम आ गए और मैं तुमसे बातें करने यहाँ रुक गई।
विजय- अच्छा मैं उठा देता हूँ.. आप रहने दो।
काम्या- हाँ.. ये सही रहेगा। तब तक मैं दूसरे काम देख लेती हूँ।
विजय सीधा ऊपर गया और कमरे पर ज़ोर से दो बार नॉक की।
अन्दर का नजारा तो आपको पता ही है, दोनों रात को लंबी चुदाई करके नंगे ही चिपक कर सो गए थे। विजय के दरवाजा पीटने से रश्मि की आँख खुल गई..
उस वक़्त जय लगभग पूरा उसके चिपका हुआ था, उसका हाथ रश्मि के मम्मों पर और टाँगें उसकी जाँघों से लिपटी हुई थीं।

रश्मि- भाई.. भाई.. उठो.. सुबह हो गई देखो बाहर विजय आवाज़ दे रहा है।
जय- उनहह.. सोने दो ना यार.. कितनी अच्छी नींद आ रही है.. जाओ तुम जाकर दरवाजा खोल दो..
रश्मि- ओ भाई.. हम किस हालत में हैं ये तो देखो पहले..
रश्मि की बात सुनकर जय को जैसे झटका सा लगा.. वो फ़ौरन उठ बैठा- ओह्ह शिट.. हम ऐसे ही सो गए.. त..त..तुम ऐसा करो.. ये चादर अपने ऊपर डाल कर सो जाओ.. मैं विजय को देखता हूँ.. ओके..!
रश्मि- ओके.. मगर आप कपड़े पहन कर जाना.. कहीं ऐसे ही दरवाजा मत खोल देना।
जय थोड़ा अजीब सी नजरों से रश्मि को देखता है। फिर जल्दी से अपने कपड़े पहनने लगता है। साथ ही साथ वो विजय को आवाज़ भी देता हैं दो मिनट सबर तो कर.. सारी नींद खराब कर दी.. आ रहा हूँ ना..
रश्मि को जय की इस हरकत पर बहुत प्यार आया.. वो मुस्कुराती हुई चादर लेकर सो गई। जय ने रश्मि की नाईटी को देखा.. तो जल्दी से चादर उठा कर अन्दर ही छुपा दिया। उसके बाद दरवाजा खोला तो विजय सीधा अन्दर आ गया।
जय- अरे अरे रुक तो.. कहाँ घुसा आ रहा है.. सुबह-सुबह सारी नींद की ऐसी तैसी कर दी।
विजय- अरे भाई सुबह कहाँ.. वक्त देखो पहले.. और ये गुड्डी भी देखो.. कैसे घोड़े बेच कर सो रही है। मैंने कितनी ज़ोर से दरवाजा पीटा.. तब भी नहीं उठी। अब मुझे ही इसे उठाना पड़ेगा।
विजय जब रश्मि की तरफ़ जाने लगा जय के पैरों तले ज़मीन निकल गई। उधर रश्मि भी डर गई.. उसको पता था विजय चादर को पकड़ कर खींचने वाला है।
जय- अरे विजय क्यों उसकी नींद खराब कर रहा है। रात को बेचारी की तबियत खराब थी। बड़ी मुश्किल से सोई थी। अब उसको उठा मत.. सोने दे..
विजय- अरे क्या हुआ हमारी रश्मि को, यार डॉक्टर के पास ले जाएँ?
जय- अरे अब सोने दे.. जब उठ जाएगी तब दिखा आएँगे.. चल अब तू यहाँ से निकल.. मैं रेडी होकर नीचे आता हूँ। यहाँ बातें करेंगे तो रश्मि की नींद खराब होगी।
विजय- हाँ.. ये ठीक कहा आपने.. अच्छा मैं नीचे जाता हूँ.. जल्दी रेडी होकर आप भी आ जाओ।
विजय के जाने के बाद दोनों की जान में जान आई, रश्मि ने चादर से मुँह बाहर निकाला और मुस्कुराती हुई जय को देखने लगी।
जय- ऐसे क्या देख रही हो.. अब उठो जल्दी से फ्रेश हो जाओ, उसका कुछ पता नहीं.. दोबारा भी आ सकता है।
रश्मि- मैंने कुछ नहीं पहना है.. आपके सामने कैसे उठ जाऊँ.. पहले आप फ्रेश हो जाओ, उसके बाद मेरे कमरे से मेरे कपड़े लाकर दो.. तब मैं उठूँगी.. समझे..
जय- ओ हो.. अब कैसी शर्म.. रात को तो जलवे दिखा रही थी.. अब क्या हो गया.. जो मेरे सामने नंगी आने में शर्म आ रही है।
रश्मि- चुप करो भाई… आप कुछ भी बोल देते हो! रात की बात और थी.. वो एक नशा था.. अब उतर गया..
जय- तुमने कौन सी ब्राण्डी पी हुई थी जो नशे में थी.. अब वो नशा उतर गया?
रश्मि- ओह.. अब ज़िद मत करो.. जाओ आप पहले फ्रेश हो जाओ और वैसे भी आपने विजय को कहा है कि मेरी तबियत ठीक नहीं है… तो मैं आराम से बाद में फ्रेश हो जाऊँगी। वैसे भी सच में मेरा सारा जिस्म दर्द कर रहा है.. मुझे हल्का सा बुखार भी है..
जय- अरे ऐसा होता है.. पहली बार चुदी हो ना.. अब नास्ता करने के बाद में दवा दिलवा दूँगा.. सब ठीक हो जाएगा। ओके… मैं फ्रेश हो जाता हूँ।
जय के जाने के बाद रश्मि ने नाईटी को देखा तो मुस्कुराते हुए उसे चूम लिया। उसके बाद नाईटी पहन कर वो वापस सो गई।
जय जब बाहर आया तो उसने रश्मि को कहा- अब जाओ.. फ्रेश हो जाओ..
रश्मि- भाई मेरे कपड़े यहाँ नहीं हैं.. आप ऐसा करो.. नीचे देखो कोई ऊपर तो नहीं आ रहा ना… मैं जल्दी से अपने कमरे में चली जाऊँगी।
जय को यह बात ठीक लगी.. तो उसने कमरे से निकल कर देखा कि नीचे कोई नहीं था। उसने रश्मि को इशारा किया कि जल्दी से निकल जाए।
रश्मि बिस्तर से उतरी और स्पीड से जाने लगी.. तो उसकी चूत में दर्द की लहर दौड़ गई.. उसके मुँह से ‘आहह..’ निकल गई।
जय- आराम से मेरी जान.. अब तुम कुँवारी कली नहीं हो.. जो फुदकती हुई चलो.. रात को तुम्हारी सील टूटी है.. चूत में सूजन भी है.. आज का दिन तो आराम से चलो.. कल से भागती फिरना पहले की तरह हा हा हा हा..
रश्मि- आप बहुत बदमाश हो गए हो भाई.. जाओ मैं आपसे बात नहीं करती।
रश्मि मुँह फुला कर वहाँ से निकल गई और सीधे अपने कमरे में चली गई।
जय सीधा नीचे गया.. जहाँ विजय पहले से बैठा हुआ चाय की चुस्कियाँ ले रहा था।
जय- हाय विजय.. आज बड़ी जल्दी रेडी हो गए.. कहीं जाना है क्या?
विजय- जाना तो है.. मगर अब सोच रहा हूँ.. ना जाऊँ..
जय- अरे कहाँ जाना था.. जो अब नहीं जा रहा.. ठीक से बता ना..
विजय- अरे वो हमारे शर्मा जी हैं ना.. उनके यहाँ जाना था। रात को उनका फ़ोन आया था.. बड़े पापा के कुछ पेपर हैं उनके पास.. वही लेकर आना था, मगर अब मूड नहीं कर रहा जाने का.. सोच रहा हूँ.. लंच के बाद ही जाऊँगा।
जय- जैसी तेरी मर्ज़ी.. मगर पापा का कोई फ़ोन तो नहीं आया ना.. ऐसा ना हो कोई जरूरी काम के पेपर हों..
विजय- अरे नहीं नहीं.. ऐसा कुछ नहीं है.. उन्होंने कहा था सुबह 10 बजे तक ना आ पाओ.. तो लंच के बाद ही आना। वो निकल जाएँगे.. अब जाकर कोई फायदा भी नहीं है।
जय- अच्छा ठीक है.. मगर याद से ले आना.. नहीं तो पापा हम दोनों को सुना देंगे।
विजय- डोंट वरी भाई.. ले आऊँगा.. अच्छा रश्मि को उठाया क्या आपने.. देखो तो सही.. उसको क्या हुआ है.. कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो हमारी शामत आ जाएगी। आंटी को पता है रात को हम साथ थे और देर से आए थे.. समझे..
जय- अरे कुछ नहीं.. थोड़ा सा बुखार है.. मैंने उठा दिया, अभी आती होगी बस..
विजय- वैसे रात को भी रश्मि की तबियत ठीक नहीं थी.. कुछ अजीब सी घबराहट सी हो रही थी उसको..
जय- अरे कभी बाहर घूमती तो है नहीं.. तो कल थोड़ा अजीब लगा उसको.. अब रोज फ़िरेगी.. तो आदत हो जाएगी।
विजय- वो तो ठीक है.. मगर भाई बड़े पापा को अगर इन सब बातों का पता चल गया.. तो क्या होगा?
जय- तू डरा मत यार.. उनको कैसे पता चलेगा.. चल अब चुप बैठ.. कोई सुन लेगा तो गड़बड़ होगी।
विजय ने हँस कर बात ख़त्म कर दी। दोनों दूसरी बातें करने लगे।
उधर रश्मि बाथरूम में गर्म पानी से चूत की सिकाई के बाद नहाकर बाहर निकली.. उसकी चाल में थोड़ा फरक था.. यानि देखने वाला समझ सकता था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर है।
रश्मि- ओ माय गॉड.. मेरे पैर ठीक से ज़मीन पर नहीं टिक रहे.. कहीं किसी को पता ना लग जाए कि रात को क्या हुआ था.. अब क्या करूँ.. क्या करूँ?!
रश्मि सोच में डूबी थी.. तभी उसको आइडिया आया। उसने जल्दी से एक टी-शर्ट और बरमूडा पहना.. बाथरूम के पास जाकर ज़मीन पर पैर पकड़ कर बैठ गई और ज़ोर से चिल्लाई!
विजय- यह तो रश्मि की आवाज़ है.. क्या हुआ उसको.. चलो भाई?
दोनों लगभग भागते हुए उसके कमरे में पहुँचे.. तब तक रश्मि झूटमूट के आँसू निकाल चुकी थी।
विजय- क्या हुआ रश्मि.. ऐसे क्यों बैठी हो.. और चिल्लाई क्यों? सब ठीक तो है ना?
रश्मि- व्व..वो भाई.. मैं फिसल गई.. आह्ह.. मेरा पैर बहुत दर्द कर रहा है.. उफ मॉम.. लगता है.. मोच आ गई है आह्ह..
जय- अरे तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी तो बिस्तर पर आराम करती.. अब देखो डबल प्राब्लम हो गई ना..
विजय- भाई आप कैसी बातें कर रहे हो.. रश्मि तकलीफ़ में है और आप उसे डांट रहे हो। चलो इसे सहारा देकर बिस्तर तक ले जाने में मेरी हेल्प करो और जल्दी से डॉक्टर को फ़ोन लगाओ आप..
जय ने आगे कुछ नहीं कहा और रश्मि को बिस्तर पर लेटा दिया। उसके बाद वो विजय की ओर देख कर बोला- नीचे से डायरी लेकर आओ.. उसमें डॉक्टर का नंबर है।
विजय- ओके मैं अभी लाता हूँ.. तब तक आप रश्मि का ख्याल रखो।
विजय जल्दी से वहाँ से निकल गया।
जय- अरे क्या रश्मि.. ऐसे-कैसे फिसल गई.. हम तो तुम्हारे बीमार होने का नाटक कर रहे थे और तुम सच में बिस्तर पर आ गई?
रश्मि- अपने जैसा बुद्धू समझा है क्या आपने मुझे… ये भी एक नाटक ही है भाई.. हा हा हा..
जय- अरे लेकिन क्यों यार.. ये कोई तरीका है मजाक करने का?
रश्मि- धीरे बोलो भाई.. कोई सुन लेगा.. मेरे पैर रात को आपने घुमा दिए.. अब ऐसे चलती.. तो किसी को भी शक हो जाता.. इसलिए गिरने का नाटक किया। अब कैसे भी चलूँ.. कोई दिक्कत नहीं है..
जय- वाह.. रश्मि.. मान गया तुम वाकयी में मेरी बहन हो.. क्या दिमाग़ लगाया तुमने..
वो दोनों बातें कर रहे थे.. तभी वहाँ विजय आ गया।
विजय- ये लो भाई.. मैं यहाँ परेशान हूँ और आप दोनों गप्पें लड़ा रहे हो.. मैंने डॉक्टर को फ़ोन कर दिया है.. वो कुछ देर में आ जाएगा।
जय- तुमने बहुत अच्छा किया जो डॉक्टर को यहीं बुला लिया। इस हालत में रश्मि को ले जाते तो इसे चलने में ज़्यादा तकलीफ़ होती।
विजय- हाँ मुझे पता है.. पैर की मोच बड़ी तकलीफ़ देती है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हुआ था.. नहाकर निकल रहा था कि पाँव फिसल गया.. बहुत दर्द हुआ था।
जय- हाँ याद है.. कैसे बच्चों की तरह तू रोने लगा था..
विजय- तो क्या हँसता.. उस वक्त?
रश्मि- भाई जिसको लगती है दर्द का अहसास उसी को होता है..
विजय- बिल्कुल सही कहा तुमने रश्मि.. भाई तो उस वक्त बस मजाक बना रहे थे मेरा..
रश्मि- अब आप दोनों झगड़ा मत करो.. एक तो मेरे पैर में बहुत दर्द है.. ऊपर से आप बहस करने लगे।
विजय- अच्छा बाबा सॉरी.. अब नहीं करेंगे.. वैसे मुझे देखने तो दो ज़्यादा चोट तो नहीं आई ना..
रश्मि- अरे भाई क्या देखोगे.. कोई चोट नहीं आई है.. बस पैर मुड़ गया था मेरा.. अब डॉक्टर ही बताएगा कि असल में हुआ क्या है.. कोई मोच है या बस पैर मुड़ने से दर्द हुआ है।
विजय- ये भी सही बात है.. अच्छा ये बताओ मैं जब आया तो भाई आप रश्मि को क्या ‘दिमाग़ लगाया’ बोल रहे थे?
जय- कब कहा मैंने.. ऐसा नहीं.. मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा..
रश्मि- अरे कहा था ना.. इतनी जल्दी भूल गए.. वो दरअसल जब मैं फिसली तो मेरा सर दीवार से टकराने वाला था। मैंने जल्दी से दरवाजा पकड़ लिया.. इसी बात पर आपने कहा था कि अच्छा दिमाग़ लगाया और तभी विजय भाई आ गए तो शायद आप भूल गए।
विजय के अचानक हमले से जय घबरा गया.. मगर रश्मि ने बात को संभाल दिया।
विजय- ओह अच्छा ये बात थी.. थैंक गॉड.. तुम्हें ज़्यादा चोट नहीं आई.. नहीं तो बड़े पापा बहुत गुस्सा होते।
जय- भाई पापा तक ये बात जानी भी नहीं चाहिए।
विजय- टेंशन नॉट.. बड़े पापा को कुछ पता नहीं चलेगा.. इसी लिए मैंने अपने फैमिली डॉक्टर को नहीं बल्कि दूसरे डॉक्टर को बुलाया है।
जय- वाह.. यार तुम तो बड़े समझदार हो।
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RE: kamukta kahani अय्याशी का अंजाम - by sexstories - 06-27-2018, 12:05 PM

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