RE: non veg story वो जिसे प्यार कहते हैं
12 जून बारिश के भगवान ने आख़िर अपनी कृपा दिखा ही दी. कल रात से लगातार बारिश हो रही थी, कभी मुसलदार तो कभी रिंजीम. चारों तरफ एक ख़ुसी का महॉल था पर अंदर बसी निराशा को ख्तम ना कर पा रही थी. फ्राइडे का दिन वैसे तो थॅंक गॉड इट्स फ्राइडे की भावना को जगाता था, आनेवाले वीकेंड की खबर ले कर , लेकिन आज ये ब्लॅक फ्राइडे लग रहा था, सारे ही स्टाफ को, सबके चेहरे उतरे हुए थे.
आज आखरी दिन था राजेश के लिए अपना टारगेट पूरा करने के लिए. और अब तक मुस्किल से 20% ही पूरा हुआ था. बड़ा सा टला लगता हुआ दिख रहा था, शायद कोई मिराकल ही अब कंपनी को बचा पाए.
कुछ लोग तो आगे के बारे में सोचने लग गये, उन्हे गोलडेन हॅंडशेक के बारे में बताया गया था – कुछ महीनो की तन्खा के साथ छुट्टी.
लोगो ने नौकरीडॉटकॉम में नौकरी ढूंडना भी शुरू कर दिया था, अपनी वेबसाइट पे काम करने की जगह सभी नौकरीडॉटकॉम देख रहे थे.
राजेश के लिए आज टेस्ट था – तेज़ाब वाला टेस्ट.
उसने एक प्रेज़ेंटेशन देनी थी – एक बहुत ही खास क्लाइंट – शगुन को. शगुन – इंडिया का सबसे पहला और सबसे अद्वितिय वेड्डिंग माल, जहाँ एक छत के नीचे सब कुछ मोजूद था. वेड्डिंग ड्रेसस, गिफ्ट्स, और पता नही क्या क्या. पिछले कुछ सालों में मिली सक्सेस की वजह से एक चैन खोल दी गई थी इंडिया के बड़े बड़े सहरों में. जीने का एक नया लाइफ स्टाइल.
शगुन की प्रॉडक्ट लाइन ध्यान से देखो तो अपार्ट ही जिसमे शामिल थे – शेरवानी, कमरबंध,साफा,जूती,कंठा, और भी बहुत कुछ आदमियों के लिए और डेसिनेर घाघरा चोली, सॅंडल्ज़, नये नये पर्स, एमब्राय्डरी वाली साड़ी और भी बहुत कुछ था लड़कियों और औरतों के लिए. डाज और वरी का पूरा समान. सब एक ही ब्रांड के अंदर मार्केट किया जाता था – शगुन.
इनकी लेटेस्ट अडिशन थी – डिज़ाइनर फर्निचर. और सुना था कि हनिमून कपल्स के लिए बीचवीर भी इनकी प्रॉडक्ट लाइन में जुड़नेवाला था.
इतनी बड़ी प्रॉडक्ट लाइन की साले के लिए अड्वर्टाइज़िंग की इन्हे बहुत आवश्यकता थी. और इनकी टारगेट मार्केट, राजेश की वेबसाइट के कस्टमर्स के लग भाग करीब थी अगर एक ना हो तो.
पता नही क्यूँ राजेश की कंपनी ने अभी तक इस ब्रांड को टॅप नही किया था. राजेश से पहले जो था – विराट – उसकी रिपोर्ट के हिसाब से इनकी मॅनेजर – मिनी को कन्विन्स करना नामुमकिन था . मिनी को एक ईगोयिस्टिक और आधी इन्फर्मेशन रखने वाली अपने ही पुराने मार्केटिंग के दाव पेच से जुड़ी रहनेवाली बताया था – इंटरनेट मार्केटिंग में उसे कोई इंटेरेस्ट नही था. बहुत कोशिश करने के बाद राजेश को उसके साथ अपायंटमेंट मिली थी.
अचानक हुई बारिश से जो ताज़गी फैली थी, वो राजेश को इशारा कर रही थी, कुछ अच्छा होनेवाला है. पर राजेश इस बात पे ध्यान नही रखता. पॉज़िटिव सोचना तो उसके लिए एलीयन हो गया था.
सिर्फ़ 2 घंटे रहते थे राजेश की मीटिंग के लिए, ऑफीस का महॉल तनावपूर्ण था. कुछ औरते शिकायत कर रही थी, इस बारिस की वजह से पॉटहोल्स भर जाएँगे आना जाना कितना मुश्किल हो जाएगा.
राजेश सोच रहा था काश कंपनी की हालत खराब ना होती तो आज दिल खोल कर बारिश का मज़ा लेता.
कुछ दूर, समीर लड़कियों को घूर रहा था, और लड़कियाँ जान कर भी चुप थी.वुड बे ब्राइड्स जो थी, और अपना प्रोफाइल वेबसाइट पे अच्छा रखवाना चाहती थी.
साड़ी में सजी सँवरी एक लड़की को कम से कम एक मिनट. तक घूर्ने के बाद समीर बोला ‘ ये लड़की तो बिस्तर में आग लगा देगी’.आर्यन जो पास में ही डेली फोर्कास्ट देख रहा था मिड डे में सोचने पे मजबूर हो गया- ये समीर इतनी गॅरेंटी के साथ कैसे बोल देता है. आर्यन चुप रहा कुछ कहता तो समीर का लंबा भाषण शुरू हो जाता.
समीर ने राजेश की तरफ देखा जो बहुत ही चिंतित लग रहा था. उसे थोड़ा रिलॅक्स करने के लिए बोल पड़ा ‘अगर ये वेबसाइट बंद होनी है तो होने दे. बहुत सी जगह हैं जहाँ हमे अच्छी नौकरी और देखने के लिए अच्छी लड़कियाँ मिल जाएँगी – इधर आ इन खूबसूरत लड़कियों को देख शायद तुझे सिमरन से कोई अच्छी मिल जाए’
राजेश को कभी कभी समीर पे ताज्जुब होता था – किस तरहा वो ये सब कर जाता है. शायद कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका कोई जवाब नही होता – इन्हे छोड़ देना चाहिए’
राजेश को अजीब से बेचैनी हो रही थी ऑफीस में, उसने सीधा मीटिंग के लिए निकलना बेहतर समझा.
12.30 बज चुके थे, वॉरली जाने में आम तौर् पे एक घंटा लगता है , इस बेरिश की वजह से कम से कम आधा और लगेगा. उसने अपनी बाइक पे जाने की बजाय समीर से उसकी सैंट्रो माँगी जो समीर ने हँसते हुए दे दी.
गाड़ी चलाते वक़्त राजेश मीटिंग के बारे में और मिनी के बारे में ही सोच रहा था. किस टाइप की औरत है वो? नाम तो इतना सॉफ्ट है. कैसी होगी सुंदर ये भुतनी दिखेगी?
क्या उम्र होगी उसकी? क्या वो आराम से उसकी बात सुनेगी या टरका देगी?
बहुत से सवाल उसके दिमाग़ में घूम रहे थे, इसलिए गाड़ी भी आहिस्ता चला रहा था.
राजेश जानता था मीटिंग इतनी आसान नही होगी ख़ासकर एक तुच्छ औरत के साथ जिसकी ईगो बहुत ज़यादा है.
राजेश को अपनी एक पुरानी मीटिंग याद आ गई एक औरत के साथ, ढंग से इंग्लीश आती भी नही थी उसे. बस बहस करे जा रही थी – न्यूसपेपर से बढ़िया वेबसाइट अड्वर्टाइज़िंग कैसे? कितना लॉजिकली उसे समझाया पर धाक के तीन पात. कुछ सुनने को तयार ना थी और राजेश को उसपे बहुत गुस्सा चढ़ गया था.
राजेश इस बात को मानता था कि हर औरत में एक नज़ाकत और शोभा होती है. इनके बिना औरत औरत नही लगती. जिस औरत में नज़ाकत नही होती उसे देख अपनेआप ही राजेश के मन में गृहण के भाव आ जाते. वो सोचता था ऐसी औरत का पति क्या करता होगा, अगर उसकी बीवी ऐसी निकली तो उसे प्यार के लिए घर के बाहर झाँकना ही पड़ेगा.
अपने ख़यालों में घूमता हुआ राजेश उस वक़्त खोया हुआ लग रहा था. और उसका निन्दनिय व्यवहार अभी ख़तम नही हुआ था ‘ देखो सर, मुझे नही लगता कि आप पूरी तायारी के साथ आए हो, और आपका का ध्यान भी मीटिंग में नही है. तो अगली बार पूरी तायारी के साथ आना’ उसने संवेदनशून्यता के साथ टिप्पणी करी. जैसे ही वो गयी राजेश उसे चुन चुन के गलियाँ देने लगा, जो वो कभी नही करता था, जब तक की ऐसे लोगो से भिड़ना ना पड़े.
रुग्ण रूप से निराशावेद उसके दिमाग़ को ग्रस्त करने लगा जब उसने वो अनुभव याद किया. और विराट ने जो मिनी के बारे में बताया था – वो भी कुछ अलग नही होगी.
गड़गड़ाहट की एक तेज़ आवाज़ उसे यथार्थ में वापस ले आई, ऐसा लगा जैसे बदल फट गया हो, एक दम इतनी तेज़ बारिश होने लगी कि गाड़ी चलना नामुमकिन हो गया. शायद 20 मिनट का रास्ता और रह गया था. कुछ दिख नही रहा था और ऐसे में वो कोई रिस्क ना ले कर सड़क के किनारे गाड़ी रोक कर बैठा रहा.
तेज़ बारिश ने उसे आधे घंटे वहीं रोक के रक्खा. जब तक वो ट्रॅफिक के सॉफ होने की वेट कर रहा था कुछ बच्चे उसे इतनी बेरिश में फूटबाल खेलते हुए नज़र आए.
तेज़ होती हुई बारिश उन्हे शायद खेलने के लिए उर्जा दे रही थी.उनमे से एक जो सबसे छोटा था उसने दो गोल लगातार किए. जिस जोश के साथ वो खेल रहे थे उस ने राजेश को भी निराशावादी से बाहर निकाल लिया.
राजेश शगुन के ऑफीस आधे घंटे लेट पहुँचा. माल ग्राउंड फ्लोर पे था और ऑफीस फर्स्ट फ्लोर पे और पूरा फ्लोर ही इनका ऑफीस था. कोई छोटा मोटा नही.
राजेश फटाफट रिसेप्षनिस्ट के पास पहुँचा जो फोन पे बिज़ी थी, पर पीयान को इशारा कर के राजेश को कान्फरेन्स हॉल में भेज दिया.
जो संवेदनहीन व्यवहार रेसेपटिनिस्ट का था वो राजेश के दिमाग़ में बैठी हुई शगुन और मिनी की धारणा की और पुष्टि करता गया. शायद इनका काम करने का तरीका ही हँसमुख था.
कान्फरेन्स हॉल में बैठा राजेश इंतेज़ार कर रहा था मिनी के आने का और एक अजीब सी धँसती हुई भावना का बोध होने लगा. अपने 5 साल के करियर में उसने ऐसा कभी महसूस नही किया था. खुद को संभालने के लिए वो दीवारों पे लगे पोस्टर्स पे ध्यान देने लगा. बिल्कुल किंग फिशर के कॅलंडर की तरहा लग रहे थे जो मॉडेल्स को ज़रूरत से ज़यादा वस्त्रहीन दिखाता था. शायद ये नये बीचवीयर के पोस्टर्स थे जो नया ब्रांड शगुन लॉंच करने वाला था. और जो अफ्वाएँ फैली हुई थी उनकी पुष्टि हो रही थी.
अपने ख़यालों में शगुन के सारे स्टाफ को बीचबीयर में देखने लगा जैसे इन पोस्टर्स में मॉडेल्स को. उसने सर झटकते हुए अपना ध्यान फिर मिनी पे लगा दिया, कैसा व्यक्तित्व होगा उसका , क्या बिकिनी पहन के आएगी.!!!
उसने अपने दिमाग़ में उमड़ते हुए इन वाहियात खलों का कारण कंपनी को ही दिया, खराब कंपनी है तभी ऐसे ख़याल दिमाग़ में आ रहे हैं.
तभी दरवाजा खुलता है और एक 30 साल की औरत बहुत ही खूबसूरत अंदर आती है.
“हाई, आइ’एम मिनी, मिनी पडगाओंकार”
राजेश मंत्रमुग्ध हो कर उसे देखता ही रहा, ऐसा लग रहा था जैसे पहले कभी मिला हो. कब और कहाँ मिला होगा?
मिनी ने तो उसकी सारी अपेक्षाओं की धज़ियाँ उड़ा दी थी. ऑफ वाइट सलवार कुर्ते में वो सोम्य और सुंदर दिख रही थी.
उसकी आँखें भूरे रंग की थी और लग रहा था कि उसने कॉंटॅक्ट लेंस लगा रखे हैं.लम्बे रेशमी बाल. उसकी मधुर वाणी कानो में मिशरी सा रस घोल रही थी.
‘माफ़ कीजिए गा , मुझे देर हो गयी’ राजेश ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, वो इतना मंत्रमुग्ध हो गया था कि बात शुरू करने में देर लगा दी.
‘कोई बात नही. आप को मुश्किल हुई होगी इतनी बारिश में अंधेरी से यहाँ तक आने में. अगर आप चाहते तो ये मीटिंग हम कल के लिए भी पोस्टपोन कर सकते थे’
मिनी ने जो मानवता दिखाई वो राजेश ने कभी उसके द्वारा अपेक्षित नही किया था.
राजेश उसके मधुर व्यवहार से बहुत अचांबित हुआ. उसने जब अंधेरी का ज़िकरा किया और साथ में जो लंबा रास्ता राजेश ने बारिश में तय किया, वो बता रहा था कि मिनी एक केरिंग औरत है – राजेश ने सोचा. उसने एक बार ही तो फोन पे बताया था कि उसका ऑफीस कहाँ है जब उसने अपायंटमेंट ली थी.
एक दूसरे का अभिवादन करने के बाद , इस से पहले वो अपनी मीटिंग शुरू करते, राजेश यही सोच रहा था कि मिनी इतनी जानी पहचानी क्यूँ लग रही है? क्यूँ उसे ऐसा लग रहा था कि वो मिनी से पहले भी मिल चुका है? क्या ये पिछले जनम का कोई चक्कर है? शायद नही.
मिनी ने वक़्त ना बर्बाद करते हुए – ‘हां तो मिस्टर. राजेश बताइए आपका क्या प्रपोज़ल है’
राजेश अपनी प्रेज़ेंटेशन शुरू करने ही जा रहा था कि उसे ये समझ में आया कि क्यूँ मिनी उसे जानी पहचानी लग रही थी. वो बिल्कुल सॉनॅक्षी की तरहा है – वोही आत्मीयता,वोही भोलापन,वोही नज़ाकत,वोही देखभाल करना. उसे ऐसे लग रहा था कि सॉनॅक्षी से सालों बाद मिल रहा है.
राजेश ने अपनी बार बार अच्छी तरहा सोची समझी प्रेज़ेंटेशन मिनी को दी, किस तरहा उसकी वेबसाइट शगुन के टारगेट कस्टमर्स को पहुँचती है,और क्या उसकी वेबसाइट की पहुँच है. जब उसने ख़तम किया तो उसे महसूस हुआ कि उसे एक बार भी बीच में टोका नही गया, जबकि बीच बीच में उसका ध्यान हट रहा था.
एक बार वो कुछ बोल कर फिर, उसे ठीक कर के बोला, अपनी ही बात को नकारते हुए. जिसपे मिनी ने कोई ध्यान नही दिया.
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