RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.
थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.
"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"
"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"
इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया
कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.
"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"
"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"
"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया
"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा
"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया
"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा
"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली
इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा
कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.
इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.
उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.
उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया
"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.
कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा
"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी
"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"
"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"
"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा
"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी
"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी
"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था
"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई
"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.
"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा
"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला
"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे
"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा
"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा
"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया
इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.
"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"
दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया
"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.
कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा
"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."
"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला
फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही
"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा
इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो
"किससे?" उसने पुचछा
"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी
"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था
"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा
"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."
वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"
"कामिनी बेटा"
और कामिनी ने फोन काट दिया.
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