RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
अपने कमरे में पहुँच कर वो बिस्तर पर गिर पड़ी. ये दूसरी बार था के तेज ने उसे इस तरह से पकड़ा था. एक बार नशे में और दूसरी बार अंजाने में. उस्नी रूपाली की छाती को पकड़कर इतनी ज़ोर से दबाया था के रूपाली को अब तक दर्द हो रहा था. उसने अपनी छाती को सहलाया और तभी उसे तेज का वो चेहरा याद आया जब वो उसे खड़ा देख रहा था. और फिर जिस तरह से वो ये नही कह पाया था के उसने बिंदिया का सोचकर रूपाली को पकड़ा था वो सोचकर रूपाली की हल्की सी हसी छूट पड़ी. उसे क्या पता था के बिंदिया उससे चुदवा सिर्फ़ इसलिए रही है क्यूंकी रूपाली ने ऐसा कहा था.
आज की रात भी कोई अलग रात ना थी. आज की रात भी रूपाली बिस्तर पर पड़ी अपने जिस्म की आग में जल रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के क्या करे. उसका जिस्म वासना से तप रहा था जैसे बुखार हो गया हो. थोड़ी देर के लिए उसने अपने हाथ का सहारा लेना चाहा पर बात बनी नही. उसका गला सूखने लगा था. उसने उठकर अपने कमरे में रखे जग की तरफ देखा पर उसमें पानी नही था. बिस्तर से उठकर उसने अपने कपड़े ठीक किए और नीचे उतरकर किचन की तरफ बढ़ी.
किचन में खड़ी वो पानी पी ही रही थी के उसे किसी के कदमो की आवाज़ सुनाई दी. रात का सन्नाटा हर तरफ फेल चुका था और उस खामोशी में किसी के चलने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. कोई सीढ़ियाँ चढ़ रहा था. रूपाली को हैरत हुई के इस वक़्त कौन हो सकता है. उसने किचन से बाहर निकालकर देखा तो इंदर सीढ़ियाँ चढ़कर कामिनी के कमरे की तरफ जा रहा था. उसके चलने का अंदाज़ ही चोरों जैसा था जैस वो घर में चुपके से चोरी करने के लिए घुसा हो. कामिनी के कमरे तक पहुँचकर उसने इधर उधर देखा और फिर धीरे से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. दरवाज़ा लॉक्ड था. रूपाली को सबसे ज़्यादा हैरत उस वक़्त हुई जब इंदर ने अपनी जेब से एक चाभी निकाली और कामिनी के कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो गया.
रूपाली एक पल के लिए वही खड़ी रही. वो इंदर से अभी कामिनी के बारे में बात नही करना चाहती थी. उसका ख्याल था के सही वक़्त देखकर इंदर के सामने ये बात उठाएगी पर इंदर को कामिनी के कमरे में यूँ घुसता देख रूपाली से रहा नही गया.
वो हल्के कदमों से सीढ़ियाँ चढ़कर पहले अपने कमरे में पहुँची. उसने अलमारी से कामिनी की डाइयरी निकाली और फिर कामिनी के कमरे के सामने आई इंदर ने अपने पीछे कामिनी का कमरा बंद अंदर से कर लिया था पर रूपाली के पास हवेली के हर कमरे की चाबी थी. उसने अपनी चाबी से रूम का लॉक खोला, हॅंडल घुमाया और एक झटके में पूरा दरवाज़ा खोल दिया.
सामने इनडर कामिनी की अलमारी के सामने खड़ा उसके कपड़ो में कुच्छ ढूँढ रहा था. दरवाज़ा यूँ खोल दिए जाने से वो पलटा और सामने रूपाली को देखकर उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. चेहरा यूँ सफेद हो गया जैसे काटो तो खून नही. हाथ में पकड़े कामिनी के कुच्छ कपड़े उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर पड़े.
"क्या ढूँढ रहे हो इंदर?" कामिनी ने पुचछा
इंदर से जवाब देते ना बना
"क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने अपने पिछे दरवाज़ा बंद कर लिया और थोड़ी ऊँची आवाज़ में पुचछा
"जी दीदी ... वो .... मैं..... "इंदर की ज़ुबान लड़खड़ा गयी
रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ी कामिनी की डाइयरी आगे की
"ये तो नही ढूँढ रहे थे?"
रूपाली के हाथ में डाइयरी देखकर इंदर समझ गया के उसका राज़ खुल चुका है. वो नज़रें नीची करके ज़मीन की और देखने लगा
"काब्से चल रहा था ये सब?" रूपाली ने वहीं खड़े खड़े पुचछा
जब इंदर ने जवाब ना दिया तो उसने अपना सवाल फिर दोहराया.
"जी आपकी शादी होने से तकरीबन एक साल पहले से....." इंदर को इस बार जवाब देना पड़ा.
इस बार हैरान होने की बारी रूपाली की थी
"तुम मेरी शादी होने से पहले से कामिनी को जानते थे?"
थोड़ी देर बाद वो दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे. रूपाली को लगा के यूँ कामिनी के कमरे में खड़े होकर बात करना ठीक नही होगा. कोई भी जाग सकता है. वो इंदर को अपने आठ अपने कमरे में ले आई.
"मुझे सब कुच्छ मालूम करना है, सब कुच्छ " रूपाली ने पहले कामिनी की डाइयरी बिस्तर पर इंदर के सामने फेंकी और फिर वो काग़ज़ जिसपर इंदर ने एक शेर लिखा था "और तुम शायरी काब्से करने लगे? और वो भी इतनी अच्छी उर्दू में?"
"मेरी नही हैं" इंदर सर झुकाए बोला " कामिनी को शायरी बहुत पसंद थी इसलिए मैं कहीं से पढ़कर उसे ये सब भेजता था. आप जानती हैं शायरी करना मेरे बस की बात नही"
"कैसे शुरू हुआ ये सब?" रूपाली अपने भाई के सामने बैठते हुए बोली
"मेरे एक दोस्त की शादी में मिली थी मुझे कामिनी. वो लड़की वालों की तरफ से आई थी. वहाँ हमारी जान पहचान हो गयी. घर आकर हम अक्सर फोन पर बात किया करते थे और ये कब ये दोस्ती प्यार में बदली मुझे पता ही नही चला" इनडर किसी तोते की तरह कहानी सुना रहा था.
"इरादा क्या था?" रूपाली का गुस्सा अब थोड़ा ठंडा हो चला था
"शादी करना चाहता था मैं उससे." रूपाली को इंदर की ये बात सुनकर बड़ा अजीब लगा. इंदर शकल सूरत से ऐसा था के वो जिस लड़की की तरफ देख लेता वो लड़की उसे अपनी खुश नसीबी समझती जबकि कामिनी एक बेहद मामूली सी शकल सूरत वाली लड़की थी.
"फिर इसे किस्मत कहिए या कुच्छ और के आपकी शादी भी कामिनी के घर में ही हुई. उस वक़्त हम लोग बहुत खुश थे. कामिनी खुद बहुत खुश थी. मैने कई बार चाहा के वो आपसे बात करे और हमारे बारे में बताए पर वो हमेशा आपके सामने इस बारे में बात करने से शरमाती थी. कहती थी के भाभी पता नही क्या सोचेंगी." इंदर ने आगे कहा
उसकी ये बात सुनकर रूपाली को जैसे अपने एक सवाल का जवाब मिल गया. तो ये वजह थी के कामिनी उसके सामने आने से कतरा जाती थी. उस वक़्त रूपाली बहुत ज़्यादा पूजा पाठ में रहा करती थी तो कामिनी का ये सोचना के कहीं वो उसके और अपने भाई के रिश्ते के खिलाफ ना हो जाए जायज़ था. उसकी जगह कोई भी लड़की होती तो डरती. ख़ास तौर से जब बाप और भाई ठाकुर शौर्या सिंग और तेज जैसे हों.
"हम लोग शहेर में ही मिला करते थे. वो अपने ड्राइवर और बॉडीगार्ड को हवेली में ही छ्चोड़कर मुझसे मिलने शहेर आ जाया करती थी." इंदर अब बिना पुच्छे ही सब बता रहा था
उसकी इस बात ने रूपाली के दूसरे सवाल का जवाब दे दिया.तो वो इंदर ही था जिससे मिलने कामिनी जाया करती थी, अकेले. तभी उसे बिंदिया की कही वो बात याद आई जब उसके मर्द ने खेतों में बने ट्यूबिवेल वेल कमरे में कामिनी को चुड़वाते हुए देखा था.
"जब शहेर में मिलते थे तो यहाँ खेतों में मिलने की क्या ज़रूरत थी? डर नही लगा तुम दोनो को?" रूपाली ने पुचछा
"खेतों में?" इंदर ने हैरानी से पुचछा "आप मज़ाक कर रही हैं? यहाँ मिलना तो खुद मौत को दावत देने जैसा था"
"क्या?" रूपाली कुच्छ ऐसे बोली के उसकी हैरानी उसकी आवाज़ में छलक उठी "तुम उसे ट्यूबिवेल वाले कमरे में नही मिलते थे?"
"ट्यूबिवेल?" इंदर ने पुचछा "कौन सा ट्यूबिवेल?"
रूपाली समझ गयी के उसे इस बारे में कुच्छ पता नही था और वो उसकी आँखें देखकर बता सकती थी के वो सच बोल रहा है
"नही कुच्छ नही" रूपाली बात टालने के अंदाज़ में बोली "वो उसकी डाइयरी पढ़कर मुझे लगा के तुम लोग यहीं खेतों में मिला करते थे"
"नही यहाँ कहीं आस पास तो वो खुद ही नही मिलना चाहती थी. मैने उसे कई बार कहा के हम घर पर बात कर लेते हैं पर वो जाने क्यूँ हर बार मना कर देती थी. और फिर वो धीरे धीरे बदलने लगी. मुझसे उसकी बात भी काफ़ी कम हो गयी. मैने कई बार उससे पुच्छने की कोशिश की पर उसने हर बार टाल दिया. और फिर एक दिन उसका फोन आया के वो मुझसे शादी नही करना चाहती क्यूंकी वो मेरे लायक नही है. ये कहकर उसने फोन रख दिया"
"कबकि बात है ये?" रूपाली ने पुचछा
"ठीक उसी दिन जब जीजाजी का खून हुआ था. उसका फोन रखने के थोड़ी देर बाद ही हमें हवेली के नौकर का फोन आया था और उसने मुझे बताया के बड़े भाई साहब का खून हो गया था." इंदर ने कहा
रूपाली की धड़कन तेज़ होने लगी पर उसने अपने चेहरे पर कुच्छ ज़ाहिर ना होने दिया
"फिर कभी बात नही हुई?" उसने इंदर से पुचछा
"मैने कई बार उसे फोन करने की कोशिश की पर वो हर बार मेरी आवाज़ सुनकर फोन काट देती थी. और फिर एक दिन मुझे पता चला के वो विदेश चली गयी और बस हमारी कहानी ख़तम हो गयी" इंदर सर झुकाए बोला
कमरे में थोड़ी देर खामोशी रही
"तो तुम अब उसके कमरे में क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने खड़े होते हुए पुचछा
"ये" इंदर ने उस काग़ज़ की तरफ इशारा किया जो रूपाली को कामिनी की डाइयरी से मिला था "और ऐसे कई और पेपर्स. मुझे डर था के अगर ये आप के हाथ कभी लग गया तो आप मेरी हॅंडराइटिंग पहचान जाएँगी.
अगले दिन सुबह रूपाली रूपाली इंदर के साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर ने बताया के ठाकुर की हालत में अब भी कोई सुधार नही आया था. भूषण अब भी ठाकुर के साथ हॉस्पिटल में ही था.थोड़ी देर वहीं रुक कर रूपाली हवेली वापिस आ गयी. सुबह के 10 बस चुके थे. तेज रूपाली को बड़े कमरे में बैठा मिला.
"तेज हमें आपसे कुच्छ बात करनी है. आप हमारे कमरे में आ जाइए" रूपाली ने तेज से कहा और उसके जवाब का इंतेज़ार किए बिना ही अपने कमरे में चली आई
थोड़ी देर बाद ही तेज रूपाली के कमरे में दाखिल हुआ
"दरवाज़ा बंद कर दीजिए" रूपाली ने तेज से कहा
दरवाज़ा बंद कर देते ही तेज ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए
"हमें माफ़ कर दीजिए भाभी. बहुत बड़ा पाप हो गया हमसे कल रात. पर वो सब अंजाने में हुआ"
रूपाली ने इशारे से तेज को बैठने को कहा.
"कोई बात नही. हमने उस बारे में बात करने के लिए नही बुलाया है आपको. हमें कुच्छ और ज़रूरी बात करनी है" कहते हुए रूपाली अपनी टेबल तक गयी और ड्रॉयर से पुरुषोत्तम सिंग की वसीयत निकाली
तेज हैरानी से उसकी और देख रहा था. उसे उम्मीद थी के रूपाली उससे कल रात के बारे में सवाल जवाब करेगी पर वो तो उस बारे में कोई बात ही नही करना चाह रही थी. जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो
"आपने कामिनी से आखरी बार बात कब की थी?" रूपाली तेज की और देखते हुए बोली
"उसके विदेश जाने से पहले" तेज ने सोचते हुए कहा
रूपाली समझ गयी के तेज को कामिनी के बारे में कोई जानकारी नही है
"और कुलदीप से?" रूपाली ने पुचछा तो तेज सोच में पड़ गया
"शायद जब वो आखरी बार हवेली आया था तब."
"फोन पर बात नही हुई आपकी कभी?" रूपाली ने पुचछा तो तेज ने इनकार में सर हिला दिया. रूपाली को इसी जवाब की उम्मीद थी. तेज को अययाशी से टाइम मिलता तो अपने भाई और बहेन के बारे में सोचता
"ये कामिनी का पासपोर्ट है" रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ा पासपोर्ट तेज को थमा दिया "अगर ये यहाँ है तो कामिनी विदेश में कैसी हो सकती है?"
तेज हैरानी से पासपोर्ट की तरफ देखने लगा
"मतलब? तो कहाँ है कामिनी?" उसने रूपाली से पुचछा
"हमें लगा के आपको पता होगा" रूपाली ने जवाब दिया
"ये कहाँ मिला आपको?" तेज ने फिर सवाल किया
"वो ज़रूरी नही है" रूपाली ने उसे बेसमेंट में रखे बॉक्स के बारे में बताना ज़रूरी नही समझा "ज़रूरी ये है के ये यहाँ हवेली में मिला, जबकि हिन्दुस्तान में ही नही मिलना चाहिए था"
तेज खामोशी से बैठा अपनी सोच में खोया हुआ था
"एक बात और है" रूपाली ने कहा और पुरुषोत्तम की वसीयत तेज के हाथ में थमा दी और चुप रही. तेज खुद ही वसीयत खोलकर पढ़ने लगा.जैसे जैसे वो पेजस पलट रहा था, वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव भी बदल रहे थे. जब वो पूरी वसीयत पढ़ चुका तो वो थोड़ी देर तक ज़मीन की तरफ देखता रहा और फिर नज़र उठाकर रूपाली की तरफ देखा
"कुच्छ ग़लत मत सोचना तेज" इससे पहले के वो कुच्छ कहता रूपाल खुद बोल उठी "मैं ऐसा कुच्छ नही चाहती. मैं ये वसीयत खुद बदलने वाली हूँ"
तेज अब भी खामोशी से उसे देखता रहा
"मुझे ये दौलत नही चाहिए तेज. मैं सिर्फ़ अपने घर को, इस हवेली को एक घर की तरह देखना चाहती हूँ. तुम चाहो तो मैं अभी फोन करके वकील को बुला लेती हूँ. ये दौलत सारी मुझे मिल जाए, मैं नही चाहती के ऐसा हो"
"ऐसा मैं होने भी नही दूँगा" तेज ने कहा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कह पाती वो उठकर कमरे से बाहर चला गया
रूपाली जो करना चाहती थी वो हो गया. उसे देखना था के क्या तेज को दौलत को भूख है और वो उसने देख लिया था. अगर तेज खामोशी से बैठा रहता तो इस बात का सवाल ही नही होता था के इस दौलत के लिए उसने अपने भाई को मारा हो पर यहाँ तो उल्टा ही हुआ. रूपाली ने उसे अभी बताया था के उसकी बहेन 10 साल से गायब है और उसकी फिकर करने के बजाय वो हाथ से निकलती दौलत के पिछे चिल्लाता हुआ कमरे से चला गया था. जिसको अपनी बहेन की कोई फिकर नही, वो दौलत के लिए अपने भाई का खून क्यूँ नही कर सकता. बिल्कुल कर सकता है.
थोड़ी देर बाद रूपाली भी नीचे बड़े कमरे में आई. तेज का कहीं आता पता नही था. रूपाली ने खिड़की से बाहर देखा तो उसकी कार भी बाहर नही थी.
सामने रखे फोन को उठाकर रूपाली देवधर का नंबर मिलाने लगी.
"कहिए रूपाली जी" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
"मैं चाहती हूँ के कल आप हवेली आएँ" रूपाली ने देवधर से कहा. देवधर ने हां कर दी तो उसने फोन रख दिया और इंदर के कमरे में आई
इंदर अपने कमरे में नही था. रूपाली किचन में पहुँची तो वहाँ बिंदिया दोपहर का खाना बनाने में लगी हुई थी. चंदर उसके साथ खड़ा उसकी मदद कर रहा था
"इंदर को देखा कहीं?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा
"अभी थोड़ी देर पहले तो बड़े कमरे में ही थे" बिंदिया ने कहा
रूपाली ने हवेली के बाहर कॉंपाउंड में आकर देखा तो इंदर की कार वहीं खड़ी हुई थी. वो कॉंपाउंड में इधर उधर देखने लगी पर इंदर नज़र नही आया. उसे ढूँढती हुई वो हवेली के पीछे की तरफ आई तो देखा के बेसमेंट का दरवाज़ा खुला हुआ था
"ये किसने खुला छ्चोड़ दिया?" सोचते हुए रूपाली दरवाज़े के पास पहुँची. उसने दरवाज़ा बंद करने की सोची ही थी के बेसमेंट के अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी. गौर से सुना तो वो आवाज़ पायल की थी.
"ये यहाँ क्या कर रही है?" सोचते हुए रूपाली ने पहली सीधी पर कदम रखा ही था के उसके कदम फिर से रुक गये
"आआअहह क्यार कर रहे हैं आप" ये आवाज़ पायल की थी
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