RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --20
हेलो दोस्तो अब आयेज की कहानी आपके लिए .......
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
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