RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
रूपाली साँस रोके चुप खड़ी हो गयी. बेसमेंट में घुप अंधेरा हो गया था. हल्की सी रोशनी बेसमेंट के दरवाज़े से आ रही थी. उसी रोशनी में एक परच्छाई धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के ये कौन हो सकता था. उसने पहले भी एक बार किसी को हवेली के कॉंपाउंड में देखा था रात को पर तब उसे लगा था के ये उसका भ्रम है. क्या ये वही शक्श है? उसकी समझ नही आ रहा था के चुप रहे या शोर मचाए?
वो परच्छाई धीरे धीरे बड़ी होती चली गयी और एक साया सीढ़ियाँ उतारकर बेसमेंट के अंदर आ गया. हल्की सी रोशनी में रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के वो आदमी बेसमेंट में चारो तरफ देख रहा है. फिर उस शक्श ने धीरे से एक आवाज़ की
"आएययी"
और रूपाली समझ गयी के वो चंदर था. गूंगे की आवाज़ में साफ ये सवाल था के जैसे वो किसी से पुच्छ रहा हो के " हो क्या?"
रूपाली हैरत में पड़ गयी. वो इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा था और उसे कैसे पता के रूपाली यहाँ है. रूपाली ने धीरे से सरिया नीचे गिरा दिया और कोने से निकलकर आगे को बढ़ी.
सरिया गिरने की आवाज़ से चंदर ने भी उस तरफ देखा जहाँ रूपाली खड़ी थी. उस कोने में बिल्कुल अंधेरा पर रूपाली का साया फिर भी नज़र आ रहा था. रूपाली आगे बढ़ी ही थी के चंदर भी फ़ौरन उसकी तरफ बढ़ा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसने रूपाली को दोनो बाहों से पकड़ लिया. गिरफ़्त बहुत सख़्त थी. रूपाली कुच्छ कहना चाहती ही थी के चंदर ने उसे पलटके घुमा दिया और सामने रखी एक पुरानी टेबल पर ज़बरदस्ती झुका दिया.
टेबल पर कुच्छ रखा हुआ जो आंधरे में ना रूपाली को नज़र आया और ना ही चंदर को. जैसे ही रूपाली झुकी वो चीज़ सीधे उसके माथे पर लगी और उसकी आँखों के आगे तारे नाच गये. उसे लगा जैसे उसकी सर में बॉम्ब फॅट रहे हो और उसकी हाथ पावं ढीले पड़ गये. वो टेबल पर गिर सी पड़ी. वो अब भी होश में थी पर लग रहा था जैसे जिस्म से जान निकल चुकी हो. रूपाली ने आधी बेहोशी में उठकर सीधी खड़ी होने की कोशिश की पर चंदर का हाथ उसकी कमर पर था. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस छ्होटे से लड़के में इतनी ताक़त है. उसने दूसरे हाथ से रूपाली की नाइटी उपेर करनी शुरू कर दी और तब रूपाली को समझ आया के वो क्या करने जा रहा था. उसने फिर उठने को कोशिश की पर चंदर ने उसे काफ़ी ज़ोर से पकड़ रखा था. एक ही पल में रूपाली की नाइटी उठकर उसकी कमर तक आ गयी और कमर के नीचे वो बिल्कुल नंगी हो गयी. नाइटी के नीचे उसने पॅंटी नही पहेन रखी थी इसलिए चंदर का हाथ सीधा उसकी नंगी गान्ड पर पड़ा.
रूपाली की आँखें भारी हो रही थी. सर पर लगी चोट की वजह से उसका सर घूमता हुआ महसूस हो रहा था और वो चाहकर भी इतनी हिम्मत नही जोड़ पा रही थी के उठकर खड़ी हो जाए ये कुच्छ बोले. उसे चंदर का हाथ अपनी चूत पर महसूस हुआ और फिर कोई चीज़ उसकी चूत में घुसने लगी. रूपाली जानती थी के ये चंदर का लंड है और वो उसे चोदने की कोशिश कर रहा है पर वो टेबल पर वैसे ही पड़ी रही. आँखें और भी भारी हो रही थी.
"चंदर" रूपाली के मुँह से बस इतना ही निकला और पिछे से चंदर के धक्के शुरू हो गये. वो रूपाली की गान्ड पकड़े धक्के मारे जा रहा था और रूपाली आधी बेहोशी में चुप चाप चुदवा रही थी. पर इस हालत में भी उसे अपने जिस्म में फिर से वही वासना महसूस होने लगी जो वो पिच्छले कुच्छ दिन से महसूस कर रही थी. चंदर किसी जंगली जानवर की तरह धक्के मार रहा था. उसके हाथ रूपाली की गान्ड सहला रहे थे और उसके मुँह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.
धीरे धीरे सर पर लगी अचानक चोट का असर कम हुआ और रूपाली को अपने जिस्म में फिर से ताक़त आती महसूस हुई. उसका दिमाग़ कह रहा था के उठकर चंदर को रोके और एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगा दे पर दिल कुच्छ और ही कह रहा था. वो पिच्छली रातों में चुदी नही थी और उसका जिस्म टूट रहा था. पिच्चे से चूत पर पड़ते चंदर के धक्के जैसे उसके जिस्म में लहरें उठा रहे थे और रूपाली ना चाहते हुए भी वैसे ही झुकी रही. उसकी दोनो छातिया नीचे टेबल पर रगड़ रही थी और उसके जिस्म में वासना पूरे ज़ोर पर पहुँच चुकी थी. वो यूँ ही झुकी रही और चंदर उसे पिछे से चोद्ता रहा.
थोड़ी देर बाद चंदर के धक्के एक्दुम तेज़ हो गये और रूपाली समझ गयी के वो झड़ने वाला है. वो अब तक खुद भी 2 बार झाड़ चुकी और तीसरी बार झड़ने को तैय्यार थी. चंदर ने किसी पागल सांड़ की तरह धक्के मारने शुरू कर दिए. उसका पूरा लंड रूपाली की चूत से निकलता और फिर पूरा अंदर समा जाता. बेसमेंट में ठप ठप की आवाज़ें गूँज रही थी.
"आआआहह " की आवाज़ के साथ चंदर ने एक ज़ोर से धक्का मारा और रूपाली की चूत से तीसरी बार पानी बह निकला. ठीक उसी पल चंदर ने अपना लंड बाहर निकाला और झुकी हुई रूपाली की गान्ड पर अपना पानी गिरने लगा. रूपाली की आँखें बंद हो चली थी. उसे सिर्फ़ नीचे अपनी चूत से बहता पानी और उपेर गान्ड पर गिर रहा चंदर का पानी महसूस हो रहा था. उसे लगा जैसे कई दिन के बीमार को दवाई मिल गयी हो. उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ चुका था.
जब वासना का ज़ोर थमा और रूपाली का जिस्म शांत पड़ा तो वो टेबल से उठकर सीधी हुई और अपनी नाइटी को ठीक किया. बेसमेंट में नज़र घुमाई तो वहाँ कोई नही था. तभी उसे सीढ़ियाँ चढ़ता चंदर नज़र आया. वो उसे छोड़कर उसी खामोशी से चला गया जैसे आया था
रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची. सर पर लगी चोट के कारण अब भी उसके सर में दर्द हो रहा था. अभी अभी बस्मेंट में जो हुआ था उसके बारे में कुच्छ सोचने की हिम्मत उसमें नही थी. कमरे में पहुँचकर वो सीधा बिस्तर पर गिरी और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी.
सुबह आँख खुली तो सर अब भी भारी था. उसने उठकर शीशे में अपने आपको देखा तो सर पर जहाँ चोट लगी थी वहाँ एक नीला निशान पड़ गया था. अच्छी बात ये थी के निशान उसके माथे पर उपर की और पड़ा था. अगर रूपाली अपने बाल हल्के से आगे को कर लेती तो किसी को वो निशान नज़र ना आता. रूपाली ने ऐसा ही किया. बाल हल्के से आगे किए और अपने कमरे से उतरकर नीचे आई.
बिंदिया उसे बड़े कमरे में ही मिली.
"कैसा रहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मुश्किल नही था. हल्का सा इशारा किया मैने और वही हुआ जो आपने चाहा था" बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली
"बाद में बताना मुझे" रूपाली ने कहा "एक चाय लाकर दे और तेज कहाँ है?"
"वो तो सुबह सुबह ही कहीं निकल गये" बिंदिया ने कहा और किचन की तरफ चाय लेने निकल पड़ी.
रूपाली अभी सोच ही रही थी के क्या करे के तभी फोन की घंटी बजी. उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से ख़ान की आवाज़ आई.
"आपको पोलीस स्टेशन आना होगा मॅ'म" ख़ान कह रहा था "मैं जानता हूँ के आपके घर की औरतें पोलीस स्टेशन्स में नही जाया करती पर और कोई चारा नही है मेरे पास. कुच्छ ज़रूरी काम है"
"ठीक है" रूपाली उससे बहेस करने के मूड में बिल्कुल नही थी. उसने ख़ान से कहा के वो अभी पोलीस स्टेशन आ रही है और फोन रख दिया. वैसे भी उसके पास करने को कुच्छ ख़ास नही था.
तकरीबन 2 घंटे बाद रूपाली पोलीस स्टेशन में दाखिल हुई.
"कहिए" उसने ख़ान के सामने रखी हुई चेर पर बैठते हुए पुचछा
ख़ान उसे देखकर अपने उसे पोलिसेया अंदाज़ में मुस्कुराया
"कैसी हैं आप?" उसने ऐसे पुचछा जैसे रूपाली पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो
"ज़िंदा हू" रूपाली ने लंबी साँस लेते हुए कहा "काम क्या है ये कहिए"
"वो क्या है मॅ'म के आपकी हवेली से अगर कुच्छ मिले तो उसकी ज़िम्मेदारी भी तो आपकी ही हुई ना इसलिए याद किया था मैने" ख़ान ने कहा
"मतलब? ज़िम्मेदारी?" रूपाली को उसकी बात समझ नही आई
"आपकी हवेली से मिली लाश के बारे में बात कर रहा हूँ. लावारिस पड़ी है बाहर आंब्युलेन्स में. कोई नही है जलाने या दफ़नाने वाला तो मैने सोचा के लावारिस समझके आग देने से पहले मैं आपसे पुच्छ लूँ" ख़ान ने सामने रखे पेपरवेट को घूमते हुए कहा
"मुझसे पुच्छना क्यूँ ज़रूरी समझा?" रूपाली को गुस्सा आ रहा था के इस बात पर ख़ान ने उसे इतनी दूर बुलाया है
"अब आपकी हवेली से मिली है तो ये भी तो हो सकता है के आपके किसी रिश्तेदार की हो इसलिए" ख़ान ने कहा
रूपाली गुस्से में उठ खड़ी हुई
"आपको लाश के साथ जो करना है करिए और आइन्दा ऐसी फ़िज़ूल बात के लिए हमें तकलीफ़ ना दीजिएगा"
"लाश कहाँ बची मॅ'म. कुच्छ हड्डियाँ हैं बस" रूपाली जाने के लिए मूडी ही थी के ख़ान फिर बोला "मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा पर उसके लिए इस पेपर पर आपके साइन चाहिए क्यूंकी लाश आपकी प्रॉपर्टी से बरामद हुई है"
ख़ान ने एक पेपर रूपाली की और सरकाया. रूपाली ने पेन उठाकर ख़ान की बताई हुई जगह पर साइन कर दिए
"बैठिए" ख़ान ने उसे फिर बैठने को कहा "आपने कुच्छ पुच्छना भी है"
"क्या पुच्छना है?"रूपाली ने खड़े खड़े ही पुचछा
"बैठ तो जाइए" ख़ान ने ज़ोर देकर कहा तो रूपाली बैठ गयी
"कुच्छ रिपोर्ट्स वगेरह कराई थी मैने. डीयेने वगेरह मॅच कराया. आपको जानकार खुशी होगी के लाश कामिनी की नही है" ख़ान ने कहा
रूपाली को दिल ही दिल में एक आराम सा मिला. उसे ये डर अंदर अंदर ही खा रहा था के कहीं हवेली में मिली लाश कामिनी की तो नही.
"दो बातें" उसने ख़ान से कहा "पहली तो ये के मुझे पता है के वो कामिनी की नही है. और दूसरी ये के आपको ये क्यूँ लगा के वो लाश कामिनी की हो सकती है?
"अब कोई लापता हो जाए तो सारे पहलू सोचने पड़ते हैं ना" ख़ान भी अब काफ़ी सीरीयस अंदाज़ में बोल रहा था
"मेरी ननद लापता नही है" रूपाली ने बड़े आराम से कहा
"अच्छा तो कहाँ है वो?" ख़ान ने कहा "विदेश नही गयी ये मैं जानता हूँ"
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया. कुच्छ देर तक ना वो बोली और ना ख़ान
"अच्छा खेर ये बात छ्चोड़िए. जब आपके पति का खून हुआ था उस वक़्त आप कहाँ थी?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद दूसरा सवाल किया
"क्या मतलब?" रूपाली ने हैरत से पुचछा "हवेली में और कहाँ"
"इस बात का कोई गवाह है आपके पास?" ख़ान ने फिर पुचछा
"ठाकुर साहब" रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के ख़ान बीच में बोल पड़ा
"जो की ज़िंदा हैं या मर गये समझ नही आता. जबसे आक्सिडेंट हुआ है वो तो होश में ही नही आए" ख़ान ने ताना सा मारते हुए पुचछा
"मेरी सास" रूपाली ने अपनी सास का नाम लिया
"जो मर चुकी हैं" ख़ान ने फिर ताना सा मारा
"मेरी ननद" रूपाली ने तीसरा नाम लिया
"कामिनी जो कहाँ है ना आपको पता ना मुझे" ख़ान ने ये बात भी काट दी
"घर के नौकर" रूपाली के पास ये आखरी नाम था
"बात कर ली मैने उनसे भी. उनमें से किसी ने भी आपकी उस वक़्त हवेली में नही देखा था" ख़ान के पास जैसे इस बात का भी जवाब था
"क्यूंकी उस वक़्त मैं अपने कमरे में थी. मैं उन दीनो ज़्यादा वक़्त अपने कमरे के पूजा घर में ही बिताया करती थी" रूपाली जैसे लगभग चीख पड़ी
उसकी ये बात सुनकर ख़ान हस्ने लगा. जैसे रूपाली ने कोई जोक सुनाया हो
तभी पोलीस स्टेशन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और थाने में बैठे 3 कॉन्स्टेबल्स और एक हवलदार उठकर खड़े हो गये, जैसे किसी बहुत बड़े आदमी के आने पर नौकर उसकी इज़्ज़त में उठ खड़े होते हैं. रूपाली ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर तेज खड़ा था. उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था.
"आप बाहर जाइए भाभी" उसने रूपाली से कहा
"एक मिनिट" रूपाली जाने ही लगी थी के ख़ान बोल पड़ा "मुझे इनसे कुच्छ और सवाल पुच्छने हैं"
उसकी ये बात सुनकर तेज उसकी तरफ ऐसे बढ़ा जैसे शेर अपने शिकार पर लपकता है. ख़ान भी उसकी इस अचानक हरकत से एक कदम पिछे को हो गया
"तुझे जो बात करनी है मुझसे कर" तेज उसके बिल्कुल सामने आ खड़ा हुआ "साले 2 कौड़ी के पोलिसेवाले, तेरी हिम्मत कैसी हुई हमारे घर की औरत को पोलीस स्टेशन बुलाने की"
"यहाँ किससे क्या पूछना है और किसे बुलाना है ये फ़ैसला मैं करूँगा" ख़ान भी अब संभाल चुका था और उसकी आवाज़ भी ऊँची हो गयी थी "ये मेरा इलाक़ा है"
"अपने चारों तरफ देख ख़ान" तेज ने खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स की तरफ इशारा किया "मेरे कदम रखते ही ये सारे उठ खड़े हुए. ये रुतबा है हमारा. और जब तक मैं ना कह दूँ ये बैठेंगे नही. अब सोच के इलाक़ा किसका है"
रूपाली ने तेज को बहुत दिन बाद इस रूप में देखा था. आज उसे 10 साल पुराना वो तेज नज़र आ रहा था जिसके सामने बोलने की हिम्मत खुद उसने पिता ठाकुर शौर्या सिंग भी नही करते थे
"बैठ जाओ" ख़ान खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स और हवलदार पर चिल्लाया पर कोई नही बैठा. उसने दूसरी बार और फिर तीसरी बार हुकुम दिया पर सब ऐसे ही खड़े रहे.
तेज हस पड़ा
"चलिए भाभी जी" उसने रूपाली से कहा
रूपाली दरवाज़े से बाहर निकली. तेज उसके पिछे ही था.
"मैं जानता हूँ" पीछे खड़ा ख़ान फिर गुस्से में बोला "ये पोलिसेवाले जिन्हें तुमने हवेली का कुत्ता बना रखा था इनके दम पर ही तुमने अपने भाई के खून को ढका है ना? मैं जानता हूँ सालों के ये काम तुम्हारा ही है और तुम्हारी गर्दन दबाके रहूँगा मैं"
तब तक रूपाली और तेज पोलीस स्टेशन से बाहर आ चुके थे. ख़ान की ये बात सुन तेज एक बार फिर अंदर जाने को मुड़ा. वो जानती थी के इस बार वो अंदर गया तो ख़ान पर हाथ उठाएगा इसलिए उसने फ़ौरन तेज का हाथ पकड़कर रोका और उसे गर्दन हिलाकर मना किया. उसके मना करने पर तेज भी रुक गया और दोनो सामने खड़ी रूपाली की कार की तरफ बढ़े.
"आप आगे चलिए" रूपाली के कार में बैठने पर तेज ने कहा "मैं अपनी कार में पिछे आ रहा हूँ"
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