Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:15 PM,
#28
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१६ लेकर आपके लिए हाजिर हूँ

दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े

तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ

म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें

रूपाली कार लेकर हॉस्पिटल पहुँची. साथ में भूषण भी आया था. पायल को उसने वहीं हवेली में छ्चोड़ दिया था. हवेली से हॉस्पिटल तक तकरीबन एक घंटे की दूरी थी. जब रूपाली हॉस्पिटल पहुँची तो इनस्पेक्टर ख़ान वहाँ पहले से ही मौजूद था.

रूपाली ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे फिर किसी बात का इंतेज़ार कर रही हो. ख़ान जैसे पोलिसेवाले मौके हाथ से नही जाने देते इस बात को वो अच्छे से जानती थी. पर उसकी उम्मीद से बिल्कुल उल्टा हुआ. ख़ान ने कुच्छ नही कहा. बस इशारे से उस कमरे की तरफ सर हिलाया जहाँ पर ठाकुर अड्मिट थे.

रूपाली कमरे में पहुँची तो उसका रोना छूट पड़ा. पट्टियों में लिपटे ठाकुर बेहोश पड़े थे. उसने डॉक्टर की तरफ देखा.

"सर में चोट आई है" डॉक्टर ने रूपाली का इशारा समझते हुए कहा "बेहोश हैं. कह नही सकता के कब तक होश आएगा."

"कोई ख़तरे की बात तो नही है ना?" रूपाली ने उम्मीद भरी आवाज़ में पुचछा

"सिर्फ़ एक" डॉक्टर बेड के करीब आता हुआ बोला "जब तक इन्हें होश नही आ जाता तब तक इनके कोमा में जाने का ख़तरा है"

"इसलिए पिताजी को हमने शहेर भेजने का इंतज़ाम करवा दिया है" तेज की आवाज़ पिच्चे से आई तो सब दरवाज़े की तरफ पलते. दरवाज़े पर तेज खड़ा था.

"कल सुबह ही इन्हें शहेर ट्रान्स्फर कर दिया जाएगा" तेज ने कहा और आकर ठाकुर के बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया. उसने दो पल ठाकुर की तरफ देखा और कमरे से निकल गया.

रूपाली सारा दिन हॉस्पिटल में ही रुकी रही. शाम ढालने लगी तो उसने भूषण को हॉस्पिटल में ही रुकने को कहा और खुद हवेली वापिस जाने के लिए निकली. हॉस्पिटल से बाहर निकालकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ी ही थी के सामने से ख़ान की गाड़ी आकर रुकी.

"मुझे लगा ही था के आप यहीं मिलेंगी" पास आता ख़ान बोला

"कहिए" रूपाली ने कहा

"ठाकुर साहब आज आपकी गाड़ी में निकले थे ना?" ख़ान बोला

"जी हां" रूपाली ने कहा

"मतलब के उनकी जगह गाड़ी में आप होती तो हॉस्पिटल में बिस्तर पर भी आप ही होती" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "समझ नही आता के इसे आपकी खुश किस्मती कहीं या ठाकुर साहब की बदनसीबी"

"आप मुझे ये बताने के लिए यहाँ आए थे?" रूपाली हल्के गुस्से से बोली

"जी नही" ख़ान ने कहा "पुचछा तो कुच्छ और था आपसे पर इस वक़्त मुनासिब नही है शायद. क्या आप कल पोलीस स्टेशन आ सकती हैं?

"ठाकूरो के घर की औरतें पोलीस स्टेशन में कदम नही रखा करती. हमारी शान के खिलाफ है ये. पता होना चाहिए आपको" रूपाली को अब ख़ान से चिड सी होने लगी थी इसलिए ताना मारते हुए बोली

"चलिए कोई बात नही" ख़ान भी उसी अंदाज़ में बोला "हम आपकी शान में गुस्ताख़ी नही करेंगे. कल हम ही हवेली हाज़िर हो जाएँगे."

इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती ख़ान पलटकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया. जाते जाते वो फिर रूपाली की तरफ देखकर बोला

"मैने तो ये भी सुना था के ठाकूरो के घर की औरतें परदा करती हैं. आप तो बेझिझक बिना परदा किए ठाकुर साहब के कमरे में चली आई थी. आपकी कैसे पता के ठाकुर साहब बेहोश थे. होश में भी तो हो सकते थे" ख़ान ने कहा और रूपाली को हैरान छ्चोड़कर अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया

हवेली पहुँचते हल्का अंधेरा होने लगा था. रूपाली तेज़ी से कार चलती हवेली पहुन्नची. उसे लग रहा था के पायल हवेली में अकेली होगी पर वहाँ उसका बिल्कुल उल्टा था. हवेली में पायल के साथ बिंदिया और चंदर भी थे. बिंदिया को देखते ही रूपाली समझ गयी के उसने बात मान ली है और वो तेज के साथ सोने को तैय्यार है. पर तेज आज रात भी हवेली में नही था.

"नमस्ते मालकिन" बिंदिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "अब कैसे हैं ठाकुर साहब?"

"अभी भी सीरीयस हैं" रूपाली ने जवाब दिया "तू कब आई?"

"बस अभी थोड़ी देर पहले" बिंदिया ने कहा और वहीं नीचे बैठ गयी

रूपाली ने पायल को पानी लेने को कहा. वो उठकर गयी तो चंदर भी उसके पिछे पिछे किचन की तरफ चल पड़ा.

"मुझे आपकी बात मंज़ूर हैं मालकिन" अकेले होते ही बिंदिया बोली

"अभी नही" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा "बाद में बात करते हैं"

उस रात रूपाली ने अकेले ही खाना खाया. बिंदिया और चंदर को उसने हवेली के कॉंपाउंड में नौकरों के लिए बने कमरो में से 2 कमरे दे दिए. खाने के बाद वो चाय के कप लिए बड़े कमरे में बैठी थी. तभी बिंदिया सामने आकर बैठ गयी.

"आक्सिडेंट कैसे हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"पता नही" रूपाली ने जवाब दिया "ये तो कल ही पता चलेगा"

दोनो थोड़ी देर खामोश बैठी रही

"तो तुझे मेरी बात से कोई ऐतराज़ नही?" थोड़ी देर बाद रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने इनकार में सर हिला दिया

"तो फिर जितनी जल्दी हो सके तो शुरू हो जा. अब चूँकि ठाकुर साहब बीमार हैं तो मुझे घर के काम काज देखने के लिए तेज का सहारा लेना होगा जिसके लिए ज़रूरी है के वो घर पर ही रुके"

बिंदिया ने बात समझते हुए हाँ में सर हिलाया

"पर एक बात समझ नही आई. तू एक तो तरफ तो तेज को संभालेगी और दूसरी तरफ चंदर?" रूपाली ने चाय का कप बिंदिया को थमाते हुए पुचछा

"उसकी आप चिंता ना करें" बिंदिया ने मुस्कुराते हुए कहा

रात को सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में लेटी सोने की कोशिश कर रही थी. नींद उसकी आँखों से जैसे कोसो दूर थी. तभी बीच का दरवाज़ा खुला और पायल रूपाली के कमरे में दाखिल हुई. हल्की रोशनी में रूपाली देख सकती थी के वो अपने कमरे से ही पूरी तरह नंगी होकर आई थी.

"माँ की तरह बेटी भी उतनी ही गरम है. जिस्म की गर्मी संभाल नही रही" रूपाली ने दिल में सोचा

"आज नही पायल" उसने एक नज़र पायल की तरफ देखते हुए कहा

उसकी बात सुनकर पायल फिर दोबारा अपने कमरे की तरफ लौट गयी.

सुबह रूपाली उठी तो उसका पूरा जिस्म दुख रहा था. हर रात बिस्तर पर रगडे जाने के जैसे उसे आदत पड़ गयी थी. बिना चुदाई के नींद बड़ी मुश्किल से आई. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. वो बिस्तर से उठी. पायल के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. उसने कमरे में नज़र डाली तो देखा के पायल बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी पड़ी सो रही थी. शायद कल रात रूपाली के मना कर देने की वजह से ऐसे ही जाकर सो गयी थी.

वो उठकर नीचे आई. भूषण ठाकुर के पास हॉस्पिटल में ही था इसलिए उसने बिंदिया को नाश्ता बनाने के लिए कहने की सोची. वो हवेली से बाहर आकर बिंदिया के कमरे की तरफ चली. दरवाज़े पर पहुँचकर बिंदिया को आवाज़ देने की सोची तो कमरे में से बिंदिया के करहने की आवाज़ आई. गौर से सुना तो रूपाली समझ गयी के कमरे के अंदर बिंदिया और चंदर का खेल जारी था.

"सुबह सुबह 6 बजे" सोचकर रूपाली मुस्कुराइ और वापिस हवेली में आकर खुद किचन में चली गयी.

उसने सुबह सवेरे ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पूरी रात ठाकुर के बारे में सोचकर वो अपने आप को कोस्ती रही के क्यूँ उसने अपनी गाड़ी ठाकुर को दे दी थी. आख़िर प्यार करती थी वो ठाकुर से. अंदर ही अंदर उसका दिल चाह रहा था था के जो ठाकुर के साथ हुआ काश वो उसके साथ हो जाता.

सुबह के 10 बजे तक रूपाली तेज के आने का इंतेज़ार करती रही. उसने कहा था के वो ठाकुर को शहेर के हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का इंतज़ाम कर रहा है इसलिए रूपाली ने उसके साथ ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पर 10 बजे तक तेज नही आया बल्कि अपने कहे के मुताबिक इनस्पेक्टर ख़ान आ गया.

"सलाम अर्ज़ करता हूँ ठकुराइन जी" ख़ान ने अपनी उसी पोलीस वाले अंदाज़ में कहा. रूपाली ने सिर्फ़ हाँ में सर हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया. ख़ान की कही कल रात की बात उसे अब भी याद थी के वो बिना परदा किए हॉस्पिटल में ठाकुर के कमरे में आ पहुँची थी.

"कहिए" उसने ख़ान के बैठते ही पुचछा

"एक ग्लास पानी मिल सकता है?" ख़ान ने कमरे में नज़र दौड़ते हुए कहा. रूपाली ने पायल को आवाज़ दी और एक ग्लास पानी लाने को कहा.

"इस इलाक़े में मैं जबसे आया हूँ तबसे इस हवेली में मुझे सबसे ज़्यादा इंटेरेस्ट रहा है" ख़ान ने कहा. तभी पायल पानी ले आई. ख़ान ने पानी का ग्लास लिया और एक भरपूर नज़र से पायल को देखा. जैसे आँखों ही आँखों में उसका X-रे कर रहा हो. रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया

"जान सकती हूँ क्यूँ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान चौंका

"क्यूँ क्या?" उसने पुचछा

"हवेली में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ?"रूपाली ने पुचछा

"ओह्ह्ह्ह" ख़ान को जैसे अपनी ही कही बात याद आई "आपकी पति की वजह से"

"मतलब?"

"मतलब ये मॅ'म के आपके पति इस इलाक़े के एक प्रभाव शालि आदमी थी और आपके ससुर उसने भी ज़्यादा. इस गाओं के कई घरों में आपके खानदान की वजह से चूल्हा जलता था तो ऐसे कैसे हो गया के आपके पति को मार दिया गया?" ख़ान ने आगे को झुकते हुए कहा

"ये बात आपको पता लगानी चाहिए. पोलिसेवाले आप हैं. मैं नही" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया

"वही तो पता लगाने की कोशिश कर रहा हूँ. काफ़ी सोचा है मैने इस बारे में पर कोई हल नही निकल रहा. वो क्या है के आपके पति की हत्या की वजह है ही नही कोई सिवाय एक के" ख़ान ने कहा

"कहते रहिए" रूपाली ने जवाब दिया

"अब देखिए. आपके खानदान का कारोबार सब ज़मीन से लगा हुआ है. जो कुच्छ है सब इस इलाक़े में जो ज़मीन है उससे जुड़ा हुआ है. और दूसरे आपकी पति एक बहुत सीधे आदमी थे ऐसा हर कोई कहता है. कभी किसी से उनकी अनबन नही रही. तो किसी के पास भी उन्हें मारने की कोई वजह नही थी क्यूंकी ज़मीन तो सारी ठाकुर खानदान की है. झगड़ा उनका किसी से था नही" ख़ान बोलता रहा

"आप कहना क्या चाह रहे है हैं?" रूपाली को ख़ान की बात समझ नही आ रही थी

"आपको क्या लगता है ये पूरी जायदाद किसकी है?" ख़ान ने हवेली में फिर नज़र दौड़ाई

"हमारी" रूपाली ने उलझन भारी आवाज़ में कहा "मेरा मतलब ठाकुर साहब की"

"ग़लत" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "ये सब आपका है मॅ'म. इस पूरी जायदाद की मालकिन आप हैं"

"आप होश में है?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में कहा "सुबह सुबह पीकर आए हैं क्या?"

"मैं मुस्लिम हूँ मॅ'म और हमारे यहाँ शराब हराम है. पूरे होश में हूँ मैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला

"ये सब मेरा? आपका दिमाग़ ठीक है?" रूपाली ने उसी गुस्से से भरे अंदाज़ में पुचछा

"वो क्या है के हुआ यूँ के ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग की कभी हुई ही नही" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी "उनके बाप ने अपनी ये जायदाद पहले अपने दूसरे बेटे के नाम की थी. क्यूँ ये कोई नही जानता पर जब उनका दूसरा बेटा गुज़र गया तो उन्हें नयी वसीयत बनाई और जायदाद अपनी बहू यानी आपकी सास सरिता देवी के नाम कर दी. सरिता देवी ने जब देखा के आपके पति पुरुषोत्तम सब काम संभाल रहे हैं और एक भले आदमी हैं तो उन्हें सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया"

रूपाली आँखें खोल ख़ान को ऐसे देख रही थी जैसे वो कोई अजूबा हो

"अब आपके पति की सबसे करीबी रिश्तेदार हुई आप तो उनके मरने से सब कुच्छ आपका हो गया" ख़ान ने फिर आगे को झुकते हुए कहा

"ज़रूरी तो नही" रूपाली को समझ नही आ रहा था के वो क्या कहे

"हां ज़रूरी तो नही है पर क्या है के आपके पति के मरने से एक हफ्ते पहले उन्होने एक वसीयत बनाई थी के अगर उन्हें कुच्छ हो जाए तो सब कुच्छ आपको मिले. तो इस हिसाब से आप हुई इस पूरी जायदाद की मालकिन" ख़ान ये बात कहकर चुप हो गया

कमरे में काफ़ी देर तक खामोशी रही. ख़ान रूपाली को देखता रहा और रूपाली उसे. उसकी समझ नही आ रहा था के ख़ान क्या कह रहा है और वो उसके बदले में क्या कहे

"आपको ये सब कैसे पता?" आख़िर रूपाली ने ही बात शुरू की

"पोलिसेवला हूँ मैं ठकुराइन जी" ख़ान फिर मुस्कुराया "सरकार इसी बात के पैसे देती है मुझे"

"ऐसा नही हो सकता" रूपाली अब भी बात मानने को तैय्यार नही थी

"अब सरिता देवी नही रही, आपके पति की हत्या हो चुकी है, एक देवर आपका अय्याश है जिसे दुनिया से कोई मतलब नही और दूसरा विदेश में पढ़ रहा है और अभी खुद बच्चा है" ख़ान ने रूपाली की बात नज़र अंदाज़ करते हुए कहा

"तो?" रूपाली के सबर का बाँध अब टूट रहा था

"अच्छा एक बात बताइए" ख़ान ने फिर उसका सवाल नज़र अंदाज़ कर दिया "आपकी ननद कामिनी कहाँ है?

"विदेश" रूपाली ने जवाब दिया

"मैने पता लगाया है. उसके पासपोर्ट रेकॉर्ड के हिसाब से तो वो कभी हिन्दुस्तान के बाहर गयी ही नही" ख़ान ने जैसे एक और बॉम्ब फोड़ा

रूपाली को अब कुच्छ अब समझ नही आ रहा था. वो बस एकटूक ख़ान को देखे जा रही थी

"कब मिली थी आप आखरी बार उससे?" ख़ान ने पुचछा

"मेरे पति के मरने के बाद. कोई 10 साल पहले" रूपाली ने धीरे से कहा

"मैने लॅब से आई रिपोर्ट देखी है. जो लाश आपकी हवेली से मिली है वो किसी औरत की है और उसे कोई 10 साल पहले वहाँ दफ़नाया गया था" बोलकर ख़ान चुप हो गया

रूपाली की कुच्छ कुच्छ समझ आ रहा था के ख़ान क्या कहना चाह रहा है. हवेली में मिली लाश? कामिनी? नही, ऐसा नही हो सकता, उसने दिल ही दिल में सोचा.

"बकवास कर रहे हैं आप" रूपाली की अब भी समझ नही आ रहा था के क्या कहे

"बकवास नही सच कह रहा हूँ. और अब जबकि ठाकुर भी लगभग मरने वाली हालत में आ चुके हैं तो बस आपके 2 देवर ही रह गये और फिर हवेली आपकी" ख़ान बोला

रूपाली का दिल किया के उसे उठकर थप्पड़ लगा दे.

"कहना क्या चाहते हैं आप?" उसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठी

"यही के ठाकुर आपकी ही गाड़ी में मरते मरते बचे हैं. आपके पति की हत्या ये जायदाद आपके नाम हो जाने के ठीक एक हफ्ते बाद हो गयी. आपकी ननद का कहीं कुच्छ आता पता नही. आपका देवर सालों से हिन्दुस्तान नही आया. इतनी बड़ी जायदाद बहुत कुच्छ करवा सकती है" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे रूपाली को खून के इल्ज़ाम में सज़ा सुना रहा हो

"अभी इसी वक़्त हवेली से बाहर निकल जाइए" रूपाली चिल्ला उठी.

"मैं तो चला जाऊँगा मॅ'म" ख़ान ने उठने की कोई कोशिश नही की "पर सच तो आख़िर सच ही है ना"

"तो सच पता करने की कोशिश कीजिए" रूपाली उठ खड़ी हुई "और अब दफ़ा हो जाइए यहाँ से"

ख़ान ने जब देखा के अब उसे जाना ही पड़ेगा तो वो भी उठ गया और रूपाली की तरफ एक आखरी नज़र डालकर हवेली से निकल गया.

ख़ान चला तो गया पर अपने पिछे कई सवाल छ्चोड़ गया था. रूपाली के सामने इस वक़्त 2 सबसे बड़े सवाल थे के जायदाद के बारे में जो ख़ान ने बताया था वो आख़िर कभी ठाकुर ने क्यूँ नही कहा? और दूसरा सवाल था कामिनी के बारे में पर इस वक़्त उसने इस बारे में सोचने से बेहतर हॉस्पिटल में कॉल करना समझा क्यूंकी तेज अभी तक नही आया था.

उसने आगे बढ़कर फोन उठाया ही था के सामने से तेज आता हुआ दिखाई दिया

"कहाँ थे अब तक?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा

"हॉस्पिटल" तेज सोफे पर आकर बैठ गया "रात भर वहीं था"

रूपाली को तेज की बात पर काफ़ी हैरत हुई

"रात भर?" उसने तेज से पुचछा

"हाँ" तेज ने आँखें बंद कर ली

"मुझे बता तो देते" रूपाली ने उसके पास बैठते हुए कहा

"सोचा आपको बताऊं फिर सोचा के सुबह घर तो जाऊँगा ही इसलिए आकर ही बता दूँगा" तेज वैसे ही आँखें बंद किए बोला

"शहेर कब शिफ्ट करना है?" रूपाली ने पुचछा

"ज़रूरत नही होगी. डॉक्टर का कहना है के अब हालत स्टेबल है. वो अभी भी बेहोश हैं, बात नही कर सकते पर ख़तरे से बाहर हैं" तेज ने कहा तो रूपाली को लगा के उसके सीने से एक बोझ हट गया. वो भी वहीं सोफे पर बैठ गयी.

"मैं शाम को देख आओंगी. अभी तुम जाकर आराम कर लो" उसने तेज से कहा तो वो उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया

तेज के साथ साथ ही रूपाली भी उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी. तभी उसे सामने हवेली के कॉंपाउंड में चंदर खड़ा हुआ दिखाई दिया. वो बाहर चंदर की तरफ आई

"क्या कर रहे हो?" उसने पुचछा तो चंदर फ़ौरन उसकी तरफ पलटा

"जी कुच्छ नही" उसने सर झुकाते हुए कहा "ऐसे ही खड़ा था"

"एक काम करो" रूपाली ने चंदर से कहा "तुम हवेली की सफाई क्यूँ शुरू नही कर देते. काफ़ी दिन से गाओं से आदमी बुलाकर करवाने की कोशिश कर रही हूँ पर काम कुच्छ हो नही पा रहा है. तुम अब यहाँ हो तो तुम ही करो"

चंदर ने हां में सर हिला दिया

"जो भी समान तुम्हें चाहिए वो सामने स्टोर रूम में है." रूपाली ने सामने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया और वापिस हवेली में आ गयी.

कमरे में आने से पहले उसने बिंदिया को उपेर आने का इशारा कर दिया था. उसके पिछे पिछे बिंदिया भी उसके कमरे में आ गयी

"तुझे जिस काम के लिए यहाँ बुलाया है तू आज से ही शुरू कर दे. तेज को इशारा कर दे के तू भी उसे बिस्तर पर चाहती है" उसने बिंदिया से कहा

"जी ठीक है" बिंदिया ने हाँ में सर हिला दिया

"और ज़रा चंदर से चुदवाना कम कर. तेज ने देख लिए तो ठीक नही रहेगा" रूपाली ने कहा

बिंदिया के जाने के बाद रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठ गयी. उसे कामिनी वाली बात परेशान किए जा रही थी. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के वो कामिनी से बात करेगी और फोन उठाया.

उसने अपनी डाइयरी से कामिनी का नंबर लिया और डाइयल किया. दूसरी तरफ से आवाज़ आई के ये नंबर अब सर्विस में नही है. कामिनी का दिल बैठने लगा. क्या ख़ान की बात सच थी? तभी उसे नीचे बेसमेंट में रखा वो बॉक्स ध्यान आया. जो बात उसके दिमाग़ में आई उससे उसका डर और बढ़ गया. वो उठकर बेसमेंट की और चल दी.

बेसमेंट में पहुँचकर रूपाली सीधे बॉक्स के पास आई.
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