Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:12 PM,
#17
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"ख़ान क्या कह रहा था? उसे किसने खबर की?" रूपाली सामने सोफे पर बैठते हुए बोली

"आपके कहने पर हमने कुच्छ आदमी सुबह बुलवाए थे. हवेली के कॉंपाउंड में सफाई करने के लिए. ये लोग पिछे उगी हुई झाड़ियाँ काट रहे थे तब इनको वो लाश दिखाई दी. इन्हें में से कोई एक पोलीस को खबर कर आया. और वो ख़ान क्या कहेगा? एक मामूली पोलीस वाला है." ठाकुर ने कहा

रूपाली दिल ही दिल में ठाकुर की इस बात से सहमत नही थी. रूपाली को ख़ान उन आदमियों में से लगता था जो बॉल की खाल निकालने में यकीन रखते थे. वो शकल से ही एक खड़ूस पोलीस वाला लगता था जो हर चीज़ को अपने बाप का माल समझके हड़पने की कोशिश करते हैं

"मालकिन आपकी चाय" सुनकर रूपाली पलटी तो पिछे पायल चाय की ट्रे लिए खड़ी थी. रूपाली भूल ही गयी थी के आते हुए उसने पायल को चाय के लिए बोला था. पायल ने उसे बताया था के वो खाना तो नही पर चाय वगेरह बना सकती थी.

रूपाली ने चाय लेकर पायल को जाने का इशारा किया और फिट बात करने के लिए ठाकुर की तरफ पलटी ही थी के हवेली के कॉंपाउंड से कार की आवाज़ आई. कॉंपाउंड बड़ा होने के कारण कार से भी हवेली के बाहर के दरवाज़े से हवेली तक आने में तकरीबन 3 मिनट लगते थे. ठाकुर और रूपाली खामोशी से धीरे धीरे पास आती कार की आवाज़ सुनते रहे. कार हवेली के बाहर आकर रुकी और ठाकुर का वकील देवधर एक बाग उठाए हवेली में दाखिल हुआ. ठाकुर के हाव भाव से रूपाली समझ गयी के उन्होने ही उसे फोन करके बुलाया था. देवधर के आते ही रूपाली उठी और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. वो जानती थी के ठाकुर उसके सामने वकील से बात नही करना चाहेंगे इसलिए खुद ही उठ गयी.

देवधर के बारे में सोचती रूपाली अपने कमरे में पहुँची. देवधर को उसने अपनी शादी में पहली बार देखा था. वो उसके पति पुरुषोत्तम का बहुत करीबी दोस्त था. ठाकुर के सारे बिज़्नेस के क़ानूनी पहलू वो ही संभलता था. सब कहते थे के वो पुरुषोत्तम का दोस्त कम चमचा ज़्यादा था पर रूपाली को वो हमेशा आस्तीन का साँप लगा. ऐसे साँप जो आपके ही घर में पलता है और वक़्त आने पर आपको भी डॅस सकता है. इन 10 सालों में वही एक था जो अब भी ठाकुर से रिश्ता रखे हुए था. बाकी तो अपने भी रिश्ता छ्चोड़ गये थे. ठाकुर उसकी इस हरकत को उसकी हवेली के साथ वफ़ादारी समझते थे पर रूपाली जानती थी के देवधर सिर्फ़ इसलिए आता है क्यूंकी उसे भी ठाकुर से हर महीने के लगे बँधे पैसे मिलते थे. भले ही उसने सालों से ठाकुर के लिए क़ानूनी काम कोई ना किया हो. बल्कि उसके सामने ही ठाकुर का भतीजा ठाकुर की सारी जयदाद उनकी नाक के नीचे से ले गया था और देवधर ने कुच्छ ना किया था. जो बात रूपाली को खटक रही थी वो ये थी के मरने से कुच्छ दिन पहले पुरुषोत्तम ने उसे बताया था के देवधर ने उससे 25 लाख उधर माँगे थे. किसलये वो नही जानती थी. क्या उसके पति ने देवधर को वो पैसे दिए थे ये भी वो नही जानती थी. और अगर दिए थे तो क्या देवधर ने अब तक ठाकुर को वो पैसे वापिस किए? रूपाली ने दिल में सोच लिया के वो आज रात ठाकुर से ये बात पुछेगि.

रूपाली अपनी ही सोच में थी के उसे अचानक पायल का ध्यान आया. उस बेचारी का आज हवेली में दूसरा ही दिन था और आज ही उसने ये सब देख लिया. जाने उसपे क्या गुज़री होगी सोचते हुए रूपाली ने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में दाखिल हुई. पायल वहाँ नही थी. रूपाली दरवाज़ा खोलकर उस कमरे में पहुँची जहाँ उसने पायल को बाथरूम इस्तेमाल करने के लिए कहा था. बाथरूम से शवर की आवाज़ आ रही थी मतलब के पायल यहीं है. रूपाली वहीं कोने में रखी एक कुर्सी पर बैठ गयी और पायल के बाहर निकलने का इंतेज़ार करने लगी.

थोड़ी देर बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और उसके साथ ही रूपाली की आँखें भी खुली रह गयी. पायल नाहकार बाथरूम से बिल्कुल नंगी बाहर निकल आई थी. उसकी नज़र कमरे में बैठी पायल पर नही पड़ी और वो सीधी कमरे में शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने सर पर तोलिया लपेटा हुआ था जिससे वो अपने बॉल सूखा रही थी. रूपाली पिछे से उसके नंगे जिस्म को देखने लगी. हल्का सावला रंग, पति कमर. पायल की उठी हुई गान्ड देखकर रूपाली को उसकी माँ बिंदिया की गान्ड ध्यान में आ गयी. पायल की गान्ड भी उसकी माँ की तरह बड़ी और भरी हुई थी. पायल अब भी उससे बेख़बर अपने सर पर तोलिया रगड़ रही थी.

"यूँ नंगी बाहर ना आया कर. कमरे में कोई भी हो सकता है" रूपाली ने कहा

उसकी आवाज़ सुनते ही पायल फ़ौरन पलटी और कमरे में उसे देखकर उसके मुँह से हल्की चीख निकल पड़ी. उसने फ़ौरन हाथ में पकड़ा हुआ तोलिया अपने आगे करके अपनी छातियाँ और चूत को धक लिया. पायल के मुँह से हल्की हसी छूट पड़ी

"अरे तेरा सब देख लिया मैने. अब क्या छुपा रही है" वो मुस्कुराते हुए बोली

"आप कब आई मालकिन?" पायल ने पुचछा

"अभी जब तू नहा रही थी. यूँ नंगी ना निकल आया कर कमरे से. समझी?" रूपाली ने उससे कहा. पायल ने रज़ामंदी में सर हिलाया. वो अभी भी शरम से सर झुकाए खड़ी थी.

"कपड़े पहेन कर नीचे आ जा. राते के खाने का वक़्त हो रहा है. खाना बनाना सीख ले जल्दी से तू" कहते हुए रूपाली कमरे से बाहर निकल गयी. उसने ये सोच कर राहत की साँस ली के हवेली में लाश मिलने की खबर से पायल परेशान नही दिख रही थी.

रूपाली नीचे आई तो ठाकुर और देवधर अब भी कुच्छ बात कर रहे थे. वो वहीं दीवार की ओट में खड़ी होकर सुनने लगी

"तो अब ख़ान का क्या करना है?" ठाकुर शौर्या सिंग कह रहे थे

"उसकी आप फिकर मत कीजिए. उसे मैं संभाल लूँगा. आपको फिकर करने की कोई ज़रूरत नही." देवधर ने जवाब दिया

"और उसे ये भी समझा देना के हमारे सामने दोबारा ऐसे बात की जैसे आज कर रहा था तो उसकी लाश भी कहीं ऐसे ही गढ़ी हुई मिलेगी" ठाकुर गुस्से में बोले

"आप चिंता ना कीजिए. मुझपे छ्चोड़ दीजिए. आप बस अगले हफ्ते केस के दिन टाइम पे कोर्ट पहुँच जाइएएगा." देवधर कह रहा था

देवधर और ठाकुर उठ कर खड़े हो चुके थे. देवधर अपने सारे काग़ज़ समेट कर अपने बॅग में रख रहा था. तभी रूपाली को उपेर से पायल के सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ आई. वो दीवार की ओट से निकली और सर पर घूँघट डालकर किचन की तरफ बढ़ चली. उसके बड़े कमरे में आते ही ठाकुर और देवधर दोनो चुप हो गये.

रात को पायल के सोने के बाद रूपाली फिर उठकर अपने ससुर के कमरे में पहुँची. ठाकुर अब भी बड़े कमरे में ही बैठे हुए थे, चेहरे पर परेशानी के भाव लिए.

"क्या हुआ पिताजी? अब तक सोए नही आप?" रूपाली ने पुचछा. उसने देख लिया था के भूषण भी अब तक हवेली में ही था.

"नही नींद नही आ रही" ठाकुर ने जवाब दिया

रूपाली ठाकुर को पिछे जा खड़ी हुई और उनके सर पर हाथ फेरने लगी

"चलिए आपको हम सुला देते हैं" उसने प्यार से कहा

ठाकुर ने उसका हाथ पकड़ा और प्यार से घूमाकर अपने सामने बैठाया

"आप जाकर सो जाइए. आज हवेली में जो कुच्छ हुआ उसे लेकर हम थोड़ा परेशन हैं"

रूपाली ठाकुर का इशारा समझ गयी. मतलब आज रात वो चुदाई के मूड में नही थे और उसे अपने कमरे में जाकर सोने के लिए कह रहे थे. उसने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सामने से भूषण चाय की ट्रे लिए आता दिखाई दिया. रूपाली चुप हो गयी और उठकर खड़ी हो गयी.

"आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो हमें आवाज़ दे दीजिएगा" उसने ठाकुर से कहा

"नही आप आराम कीजिए. आप इस हवेली की मालकिन हैं, नौकर नही जो आपको हम यूँ परेशान करें. आप जाकर सो जाइए" ठाकुर ने प्यार से कहा

रूपाली अपने कमरे की तरफ चल दी. भूषण की बगल से निकलते हुए दोनो की आँखें एक पल के लिए मिली और रूपाली सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे में पहुँच गयी.

बिस्तर पर रूपाली को जैसे अपने उपेर हैरत हो रही थी. हवेली में एक लाश मिली थी जिसकी परेशानी ठाकुर के चेहरे पर सॉफ दिखाई दे रही थी. भूषण भी बोखलाया हुआ था. ऐसे महॉल में खुद रूपाली को भी परेशान होना चाहिए था पर हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा था. वो परेशान होने के बजाय जैसे अपने अंदर एक ताक़त सी महसूस कर रही थी. हवेली में लाश मिलने की बात ने इस बात को सॉफ कर दिया था के हवेली में बहुत कुच्छ ऐसा है जो वो नही जानती. जो उसे मालूम करना था. और सबसे ज़्यादा हैरानी उसे अपने जिस्म में उठ रही आग पे था. वो पिच्छले कुच्छ दीनो से हर रात चुद रही थी और आज रात भी उसका जिस्म फिर किसी मर्द के जिस्म की तलब कर रहा था. रूपाली ने अपने दिमाग़ से ये ख्याल झटकने की कोशिश की पर बार बार उसका ध्यान अपनी टाँगो के बीच उठ रही हलचल पर जा रहा था. दिन में बिंदिया के मुँह से चुदाई की दास्तान सुनकर दोपहर से ही उसके दिल में वासना पूरे ज़ोर पर थी.

वो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी के बीच के दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई. पायल अपने कमरे की तरफ से दरवाज़ा खटखटा रही थी. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला

"क्या हुआ?" उसने सामने खड़ी पायल से पुचछा. पायल अब भी आधी नींद में थी. बॉल बिखरे हुए.

"मालकिन मैं आपके कमरे में सो जाऊं? डर लग रहा है" पायल ने छ्होटी बच्ची की तरह पुचछा

"कैसा डर?" रूपाली ने पुचछा

" जी वो जो आज हवेली में लाश मिली थी. बुरे बुरे सपने आ रहे हैं. मैं यहीं नीचे सो जाऊंगी" पायल जैसे रोने को तैय्यार थी.

रूपाली को उसपर तरस आ गया. आख़िर अभी बच्ची ही तो थी. और हमेशा अपनी मा के साथ सोती थी.

"आजा सो जा" रूपाली ने इशारा किया. पायल कमरे में आई तो रूपाली ने दोबारा दरवाज़ा बंद कर दिया.

पायल वहीं रूपाली के बिस्तर के पास नीचे बिछि कालीन पर आकर सो गयी. रूपाली फिर अपने बिस्तर पर जा गिरी.

आधी रात गुज़र गयी पर रूपाली की आँखों में नींद का कोई निशान नही था. उसके जिस्म में लगी आग उसे अब भी पागल किए जा रही थी. नीचे पायल जैसे दुनिया से बेख़बर सोई पड़ी थी. रूपाली ने बिस्तर पर आगे को सरक कर पायल पर नज़र डाली तो देखती रह गयी.

पायल उल्टी सोई हुई थी. उसकी कमर साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. घाघरा चढ़ कर जाँघो तक आ चुका था और उसकी आधी से ज़्यादा टांगे नंगी थी. रूपाली ने उसके जिस्म को देखा तो उसकी साँसें और तेज़ हो गयी. पायल ग़रीब सही पर उसका जिस्म भगवान ने बिल्कुल उसकी माँ जैसा बनाया था. एकदम गाथा हुआ. जिस्म का हर हिस्सा जैसे तराशा हुआ था. जहाँ जितना माँस होना चाहिए उतना ही. ना कम ना ज़्यादा. उसकी गान्ड देखकर रूपाली समझ गयी के पायल ने अंदर पॅंटी नही पहेन रखी थी. शायद ज़िंदगी में कभी नही पहनी इसलिए उतारकर सोती है. कमर पर भी चोली के नीचे ब्रा के स्ट्रॅप्स नही थे. शायद वो भी उतारकर आई थी. रूपाली को वो पल याद आया जब उसने पायल को नाहकार नंगी निकलते देखा था. उसका हाथ जैसे अपने आप आगे पड़ा और बिस्तर के साइड में लेटी पायल के घाघरे को पकड़कर उपेर सरकाने लगा. घाघरा पायल के नीचे दबा हुआ था इसलिए रूपाली को उसे थोड़ा खींचना पड़ा. उसके दिल में ज़रा भी ये डर नही था के पायल जाग गयी तो क्या सोचेगी. थोडा ज़ोर लगाकर खींचा तो घाघरा पायल की गान्ड से उठकर उसकी कमर तक आ गया. पायल नींद में थोड़ा हिली. शायद गान्ड पर एसी की ठंडी हवा महसूस होने से या फिर घाघरा उपेर सरकने की हुलचूल से पर फिर दोबारा नींद में चली गयी. रूपाली एकटक उसकी खुली हुई गान्ड को देखती रही. उसकी गान्ड की गोलाई जैसे कमाल थी. रूपाली ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और धीरे से पायल की गान्ड पर फिराया. ऐसा करते ही उसके मुँह से आ निकल पड़ी. टाँगो के बीचे की आग और तेज़ हो गयी और फिर उसे बर्दाश्त ना हुआ. उसने जल्दी से अपनी नाइटी उपेर खींची और पॅंटी उतारकर एक तरफ फेंक दी. अपनी टांगे फेला दी और एक हाथ से अपनी चूत मसल्ने लगी. दूसरा हाथ उसने फिर पायल की गान्ड पर रखा धीरे धीरे सहलाने लगी. रूपाली को जैसे अपने उपेर यकीन नही हो रहा था. वो एक लड़की की गान्ड देखकर उसे सहलाते हुए गरम हो रही थी और अपनी चूत मसल रही थी. एक दूसरी औरत का जिस्म उसके जिस्म में आग लगा रहा था, उसे मज़ा दे रहा था. रूपाली के दिमाग़ में फिर ख्याल आया के क्या वो ठीक है जो औरत को देखकर भी गरम हो जाती है या ये बरसो से दभी हुई वासना है जो औरत और मर्द दोनो का स्पर्श पाकर बाहर आ जाती है. एक पल के लिए आए इस ख्याल को रूपाली ने अपने दिमाग़ से निकाला और पायल की गान्ड सहलाते हुए अपनी चूत में उंगली करने लगी.

अगले दिन सुबह रूपाली की आँख खुली तो पायल उठकर जा चुकी थी. वो अपने बिस्तर से उठी और नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा रहे थे.

"हम दोपहर तक लौट आएँगे. देवधर का फोन आया था. कह रहा थे के इनस्पेक्टर ख़ान से हमें भी उसके साथ मिल लेना चाहिए" उन्होने रूपाली को देखते हुए कहा

"जी ठीक है." रूपाली ने जवाब दिया

"आपको कहीं जाना तो नही है आज?" ठाकुर ने पुचछा

"नही कहीं नही जाना" रूपाली ने जवाब दिया

"वैसे कल कहाँ थी आप सारा दिन?" ठाकुर कार की चाबियाँ उठाते हुए बोले

"जी ऐसे ही अपनी ज़मीन के चक्कर लगा रही थी. देख रही थी के कहाँ से दोबारा शुरुआत किया जाए." रूपाली बोली

"तो कुच्छ पता चला के कहाँ से दोबारा शुरू करने वाली हैं आप?" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए सवाल किया

रूपाली ने हां में सर हिला दिया. ठाकुर उसकी और देखकर हसे और हवेली से बाहर निकल गये.

ठाकुर के जाने के बाद रूपाली वहीं बड़े कमरे में बैठ गयी. पूरी रात सोने के बावजूद उसका पूरा जिस्म जैसे टूट रहा था. उसे समझ नही आ रहा थे के ऐसा इसलिए है क्यूंकी कल रात वो हवेली में लाश मिलने की बात से परेशान थी या इसलिए के कल रात वो चूड़ी नही थी. जो भी था, रूपाली का दिल कर रहा था के वो फिर बिस्तर पर जा गिरे. उसने घूमकर पायल को आवाज़ दी. उसकी आवाज़ सुनकर पायल और भूषण दोनो किचन से बाहर आए

"एक कप चाय ले आ ज़रा" रूपाली ने कहा और भूषण की तरफ पलटी "इसे खाना बनाते वक़्त अपने साथ रखिए और खाना बनाना सीखा दीजिए ज़रा"

"जी वही कर रहा हूँ" भूषण ने जवाब दिया. वो दोनो पलटकर फिर किचन की तरफ बढ़ गये.

रूपाली का ध्यान फिर हवेली में मिली लाश की तरफ चला गया. किसकी हो सकती थी? कब से वहाँ थी? हवेली में कोई खून हुआ हो ऐसा उसने कही सुना तो नही था फिर अचानक? वो अपने ख्यालों में ही के के तभी फोन की घंटी बज उठी. रूपाली ने आगे बढ़कर फोन उठाया

"कैसी हैं दीदी?" दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज़ आई. ये उसके छ्होटे भाई इंदर की आवाज़ थी.

इंदर रूपाली का लाड़ला छ्होटा भाई था. वो रूपाली से 5 साल छ्होटा था और रूपाले के बचपन का खिलोना था. वो उसे बड़े लाड से रखती थी, उसकी हर बात मानती और हमेशा उसे अपने माँ बाप की डाँट से बचाती. इंदर यूँ तो दिमाग़ से बड़ा तेज़ था पर किताबें शायद उसके लिए नही बनी थी. वो बहुत ही छ्होटी उमर में स्कूल से निकल गया था और अपने बाप का काम काज में हाथ बटाया करता था. रूपाली के पिता का कपड़ों का बहुत बड़ा कारोबार था अब इंदर ही उसकी देख रेख करता था.

"ठीक हूँ. तू कैसा है?" रूपाली ने पुचछा

"मैं भी ठीक हूँ. आप तो अब याद ही नही करती. मैने पहले भी 2-3 बार फोन किया था पर किसी ने उठाया ही नही. मम्मी पापा भी आपके लिए काफ़ी परेशान थे." इंदर बोला

"हां शायद मैं इधर उधर कहीं होगी इसलिए फोन नही उठाया" रूपाली बोली

"कभी खुद फोन कर लेती दीदी. आप तो हमें भूल ही गयी" इंदर शिकायत बोला तो रूपाली को ध्यान आया के उसने महीनो से अपने माँ बाप से बात नही की थी

"वो सब छ्चोड़" रूपाली ने बात टालते हुए कहा "काम कैसा चल रहा है?"

"सब ठीक है दीदी." इंदर ने जवाब दिया "आप कुच्छ दिन के लिए घर क्यूँ नही आ जाती. उस मनहूस हवेली में आख़िर तब तक अकेली रहेंगी आप?"

रूपाली बस हलकसे इतना ही निकाल पाई

"आऊँगी. ज़रूर आऊँगी."

"अच्छा एक काम कीजिए. मैं आपसे मिलने आ जाऊं?" इंदर बोला

"नही तू मत आ मैं ही घर आ जाऊंगी" रूपाली ने फ़ौरन मना किया. उसे डर था के अगर इंदर यहाँ आ गया तो शायद उसके रास्ते में रुकावट बन सकता है

"कब?" इंदर ने पुचछा

"जल्दी ही" रूपाली प्यार से बोली

"अच्छा एक काम कीजिए. घर फोन करके मम्मी से बात कर लीजिए. मैं अभी रखता हूँ. बाद में फोन करूँगा" इंदर ने कहा

"ठीक है" रूपाली ने अपनी भाई को प्यार से अपना ध्यान रखने के लिए कहा और फोन रख दिया. ज़िंदगी में अगर कोई एक इंसान जिसे रूपाली ने सबसे ज़्यादा चाहा था तो शायद वो उसका अपना भाई था. वो अपने भाई के लिए जान तक दे सकती थी, बिना सोचे. पर वक़्त ने कितना कुच्छ बदल दिया था उसके लिए. अब एक वक़्त ये भी आया था के उसी भाई से बात किए उसे महीनो गुज़र गये थे.
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