Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:12 PM,
#14
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
शाम को पायल अपनी माँ का इंतेज़ार करती रही पर वो नही आई. रात को खाने की टेबल पर रूपाली ने पायल को ठाकुर से मिलवाया.

"इसे मैने रख लिया है काम में मेरा हाथ बटाने के लिए. खाना वगेरह बनाना इसे आता नही पर धीरे धीरे सीख जाएगी" रूपाली ने कहा

ठाकुर ने सिर्फ़ सहमति में सर हिलाया, एक नज़र पायल पर डाली और खाना खाने लगे. रूपाली ठाकुर के साइड में ही बैठी खा रही थी. एक मौका ऐसा आया जब पायल ठाकुर के सामने रखे ग्लास में पानी डालने लगी. वो रूपाली के सामने टेबल के दूसरी और खड़ी थी इसलिए पानी डालने के लिए उसे थोड़ा झुकना पड़ा. झुकने से उसके ब्रा में बंद दोनो चूचियाँ सॉफ दिखने लगी. रूपाली और ठाकुर दोनो की नज़र एक साथ पायल के क्लीवेज पर पड़ी. ठाकुर ने एक नज़र डाली और दूसरे ही पल नज़र हटाकर खाना खाने लगे, जैसे कुच्छ देखा ही ना हो. ये बात भले ही छ्होटी सी थी पर रूपाली ने ये देखा तो उसके दिल में खुशी की एक ल़हेर दौड़ गयी. जिसे वो चाहती थी वो सिर्फ़ उसे ही देखता था.

खाना खाने के बाद रूपाली के सामने मुसीबत ये थी के पायल उसके अगले कमरे में ही थी और रूपाली रात तो अपने ससुर के बिस्तर पर चुद रही होती थी. अगर पायल रात को उठकर उसके कमरे पर आई तो हक़ीक़त खुलने का डर था. रूपाली की समझ में कुच्छ ना आया था उसने ठाकुर को धीरे से कह दिया के वो रात को पायल के सोने के बाद उनके कमरे में आ जाएगी.

धीरे धीरे काम ख़तम करने के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में बैठी बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इंतेज़ार कर रही थी ताकि पायल नींद में चली जाए और वो उठकर अपने ससुर के कमरे में जा सके. उसकी टाँगो के बीच आग लगी हुई थी और उसकी नज़र के सामने रह रहकर ठाकुर का लंबा मोटा लंड घूम रहा था. अचानक कमरे के बीच के दरवाज़े पर दस्तक हुई. दस्तक पायल के कमरे की तरफ से थी.

"हां क्या हुआ?" रूपाली ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा

"आज तक मैं कभी अकेली सोई नही मालकिन. डर सा लग रहा है इतने बड़े घर में" पायल ने कहा

"अरे इसमें डरने की क्या बात है. इस कमरे में मैं हूँ ना" रूपाली ने कहा तो पायल सर हिलाती हुई फिर अपने बिस्तर की तरफ बढ़ गयी. रूपाली ने दरवाज़ा बंद किया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गयी.

करीब एक घंटा गुज़र जाने के बाद रूपाली उठी और दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में पहुँची. पायल बेख़बर सोई पड़ी थी. उसके कमरे में एक पंखा चल रहा था पर फिर भी कमरे में गर्मी थी. शायद इसी वजह से पायल ने अपनी कमीज़ उतार दी थी और सिर्फ़ ब्रा पहने सो रही थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्रा में उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एक नज़र उसे देखा तो उसका दिल किया के एक बार पायल की चुचियों पर हाथ लगाके देखे पर इस इरादे को उसने अपने दिल में ही रखा. वो चुपचाप वापिस अपने कमरे में आई, पायल के कमरे से लगे दरवाज़े को अपनी तरफ से बंद किया और अपने कमरे से निकालकर नीचे ठाकुर के कमरे में पहुँची. दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हुई तो कमरे में हल्की रोशनी थी.

"हम आप ही का इंतेज़ार कर रहे थे" उसे देखते हुए ठाकुर ने कहा

रूपाली अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची तो देखा के वो पहले से ही पुर नंगे पड़े अपना लंड हिला रहे थे. लंड टंकार पूरी तरह खड़ा हुआ था. रूपाली मुस्कुराइ और अपने कपड़े उतारने लगी. पूरी तरह से नंगी होकर वो भी बिस्तर पर ठाकुर के पास आकर लेट गयी.

सुबह 4 बजे का अलार्म बजा तो रूपाली की आँख खुली. वो नंगी अपने ससुर की बाहों में पड़ी हुई थी जो बेख़बर सो रहे थे. रात चुद्नने के बात सोने से पहले ही रूपाली ने ठाकुर को बता दिया था के वो सुबह सुबह ही अपने कमरे में लौट जाएगी ताकि पायल को शक ना हो. इसलिए वो सुबह 4 बजे का अलार्म लगाके सोई थी. धीरे से वो बिस्तर से उठी और अपने कपड़े उठाकर पहेन्ने लगी. कपड़े पहेंकर रूपाली ने झुक कर ठाकुर के होंठ एक बार धीरे से चूमे और हल्के कदमों से चलती हुई दरवाज़े की तरफ बढ़ी ताकि ठाकुर की नींद खराब ना हो. दरवाज़ा खोलकर रूपाली पानी पीने के लिए किचन की तरफ बढ़ी. बाहर के कमरे में एक ऐसी खिड़की भी थी जहाँ से हवेली के बड़ा दरवाज़ा सीधा नज़र आता था. हवेली से लेकर बड़े दरवाज़े तक तकरीबन 200 मीटर्स का फासला था जिसमें बीचे में कभी घास बिछि होती थी पर अब सिर्फ़ सूखी ज़मीन थी. हवेली के चारो तरफ तकरीबन 10 फुट की दीवार थी और उतना ही बड़ा लोहे का बड़ा दरवाज़ा भी था. कभी यहाँ 24 घंटे 2 आदमी पहरे पर रहते थे पर अब कोई नही होता था. कभी कभी तो रात को दरवाज़ा बंद तक नही होता था.

रूपाली खिड़की के सामने से निकली तो उसके पावं जैसे वहीं जम गये. नज़र खिड़की से होती हुई बड़े दरवाज़े से चिपक गयी. एक पल के लिए उसे लगा के उसने किसी को दरवाज़े से बाहर जाते देखा है. पर दरवाज़ा काफ़ी दूर होने के कारण वो सॉफ तौर पर कुच्छ देख नही पाई. दरवाज़े के पास एक ट्यूबलाइज्ट जल रही थी और उसकी की रोशनी में एक पल को यूँ लगा जैसे कोई चादर सी लपेटे अभी दरवाज़े से बाहर निकला है. रूपाली वहीं सहम कर खिड़की के साइड में छिप कर खड़ी सी हो गयी और खिड़की के बाहर देखने लगी. सुबह के 4 बज रहे थे. बाहर अब भी घुप अंधेरा था. बड़े दरवाजे के पास जल रही ट्यूबलाइज्ट की रोशनी और खिड़की के बीचे में कुच्छ नज़र नही आ रहा. बस दूर लोहे का वो दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जो अब भी हल्का सा खुला हुआ था. रूपाली चारो तरफ अंधेरे में नज़र घूमती रही. 15 मिनट यूँ ही गुज़र गये. उसे समझ नही आ रहा था के ये उसका ख्याल था या उसने सच में किसी को देखा था. अचानक उसके दिल में एक ख्याल आया और वो भागती हुई से हवेली के दरवाज़े पर पहुँची. दरवाज़ा अंदर से बंद था. यानी के जो कोई भी था, वो बड़े दरवाज़े से अंदर आया पर हवेली के अंदर दाखिल नही हो पाया. बस हवेली के कॉंपाउंड तक ही आ पाया होगा. पर इस वक़्त चोरों की तरह कौन हो सकता है. सोचती हुई रूपाली फिर खिड़की तक पहुँची और थोड़ी देर तक फिर बाहर झाँकति रही. जब और कुच्छ दिखाई नही दिया तो वो किचन में पहुँची और पानी पीकर अपने कमरे में आ गयी.

कमरे में आकर रूपाली कपड़े बिस्तर पर लेटकर फिर उस आदमी के बारे में सोचने लगी. क्या उसे सच में किसी को देखा था या बस अंधेरे में यूँ ही वहाँ हुआ था. उसने खुद को समझने की कोशिश की के ये उसका भ्रम था. हवेली में यूँ रात को कोई क्यूँ आएगा. अब तो हवेली को मनहूस कहते हुए लोग हवेली के पास को भी नही आते अंदर आने की हिम्मत कौन करेगा? पर फिर भी उसका दिल जाने क्यूँ इस बात को समझने को तैय्यार नही था. उसका दिल बार बार यही कह रहा था के उसने किसी को देखा है. खुद रूपाली को भी इस बात पे हैरत थी के वो इस बात को लेके इतना घबरा क्यूँ रही थी? इतना डर क्यूँ गयी थी.

वो यूँ ही अपनी सोच में खोई हुई थी के अचानक उसके दिल में पायल का ख्याल आया. अपनी तसल्ली करने के लिए के पायल अब भी सो रही है वो बीच का दरवाज़ा खोलकर पायल के कमरे में आई.

पायल अब भी वैसे ही बेख़बर घोड़े बेचकर सोई पड़ी थी. फ़र्क सिर्फ़ ये था के अब उसने ब्रा भी एक तरफ उतारकर रख दी थी. वो उल्टी सोई हुई थी और उसकी दोनो चुचियाँ खुली हुई उसके नीचे दबकर साइड से बाहर को निकल रही थी. रूपाली धीमे कदमों से चलती उसके पास पहुँची और पायल की नंगी कमर को देखने लगी. दुबली पतली सावली सी कमर देखकर उसे अपने शादी से पहले के दिन याद आए. कभी वो भी ऐसी ही थी. दुबली पतली, उठी हुई गांद और बड़ी बड़ी चुचियाँ. अब जिस्म थोड़ा भर गया था. जाने किस ख्याल में वो वही पायल के बिस्तर पर बैठ गयी और एक हाथ उसकी कमर पर रखकर सहलाने लगी. पायल की नंगी कमर पर उसने धीरे से हाथ फिराया और साइड से उसकी एक चूची को च्छुआ. छाती पर हाथ लगते ही पायल नींद में थोड़ा हिली और रूपाली फ़ौरन उठकर बिस्तर से खड़ी हो गयी. उसने अपने सर को एक हल्का सा झटका दिया और पायल के कमरे से वापिस अपने कमरे में आ गयी. अब उसके दिमाग़ में दो ख्याल चल रहे थे. एक तो दरवाज़े पे दिखे आदमी का और दूसरा ये के क्या वो खुद ठीक है जो एक औरत के जिस्म को यूँ देखती है?

वापिस अपने कमरे में आकर रूपाली सो गयी. आँख खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे और पायल बाहर दरवाज़े पर चाइ लिए खड़ी थी. फ्रेश होकर रूपाली नीचे आई तो बड़े कमरे में ठाकुर बैठे कुच्छ काग़ज़ देख रहे थे. रूपाली को आता देख वो उसकी तरफ मुस्कुराए.

"आँख खुल गयी आपकी?"

"पता नही क्यूँ आजकल इतनी नींद आने लगी है" रूपाली पास बैठते हुए मुस्कुराइ.

"क्यूंकी हमेशा बचपन से सुबह 5 बजे उठ जाती थी ना इसलिए. अब वो नींद पूरी कर रही हैं आप" कहकर ठाकुर हँसने लगे.

रूपाली ने मुस्कुराते हुए सामने रखे पेपर्स की तरफ देखा

"ये क्या है?" उसने ठाकुर से पुचछा

"कुच्छ नही. बॅंक स्टेट्मेंट्स और कुच्छ जायदाद के पेपर्स." ठाकुर थोड़ा सीरीयस होते हुए बोले "अंदाज़ा लगा रहे हैं के पिच्छले 10 साल में अपने बेटे और अपनी इज़्ज़त के सिवा और हमने कितना कुच्छ खोया है"

कमरे में थोड़ी देर खामोशी सी छा गयी. ना रूपाली कुच्छ बोली और ना ही ठाकुर. खामोशी टूटी पायल की आवाज़ से

"मैं आज क्या करूँ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा

"बताती हूँ. किचन में चल" रूपाली ने पायल को किचन की तरफ जाने का इशारा किया. पायल के जाने के बाद वो ठाकुर की तरफ पलटी

"आप आज कहीं जा रहे हैं?"

"नही क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"नही मैं सोच रही थी के ज़मीन की तरफ आज एक फिर चक्कर लगा आऊँ. और फिर ये भी सोच रही थी के भूषण को बोलकर कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा लूँ और हवेली के आस पास थोड़ी सफाई करा दूं" रूपाली ने कहा

"ज़मीन का चक्कर? क्यूँ?" ठाकुर ने पुचछा

"बंजर पड़ी ज़मीन किस काम की पिताजी?" मैं वहाँ दोबारा खेती शुरू करना चाहती हूँ

"तो वो हम पर छ्चोड़ दीजिए. आपको वैसे भी इस बारे में क्या पता?" ठाकुर ने कहा

"नही पिताजी. इस बार मुझे करने दीजिए. मैं हवेली को दोबारा पहले जैसा देखना चाहती हूँ और ये काम मैं खुद करना चाहती हूँ" रूपाली ने ऐसा कहा जैसे कोई फ़ैसला सुना रही हो

"ठीक है जैसा आप ठीक समझें" ठाकुर ने सामने खड़ी बला की खूबसूरत लग रही रूपाली के सामने हथ्यार से डाल दिए

"मैं भूषण को बोल देती हूँ के कुच्छ आदमी गाओं से बुलवा ले. आप देख लीजिएगा" रूपाली ने ठाकुर से कहा और किचन की तरफ बढ़ी.

पायल को उसने हवेली के कुच्छ हिस्सो में सफाई करने के बारे में बता दिया. पायल किसी समझदार बच्ची की तरह उसके पिछे गर्दन हिलती घूमती रही और समझती रही के उसे आज क्या करना है.

पायल को सब समझाकर रूपाली गाड़ी लेकर हवेली से बाहर निकल गयी. उसने फिर ज़मीन को उस हिस्से की तरफ गाड़ी घुमा दी जहाँ पायल और उसकी माँ बिंदिया का घर था. बिंदिया ने उसे कहा था के वो हमेशा से यहीं काम करती थी और उसका मर्द उससे पहले से. यानी बिंदिया उसे काफ़ी कुच्छ बता सकती है जो रूपाली को पता नही था. रूपाली की शादी से पहले के बारे में. उन दीनो के बारे में जब उसका पति पुरुषोत्तम सब काम देखा करता था. रूपाली का इरादा ये था का कहीं से उसे कुच्छ ऐसा पता चल जाअए जिससे उसे अपने पति की मौत की वजह का कोई सुराग मिले. इसलिए उसने ठाकुर को भी साथ आने से मना कर दिया था. क्यूंकी वो बिंदिया से अकेले में बात करना चाहती थी.

गाड़ी चलती रूपाली उसी जगह पहुँची जहाँ बिंदिया उसे पहले मिली थी. गाड़ी को उसी पेड़ के नीचे छ्चोड़कर रूपाली पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ बढ़ी. झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था. दरवाज़े पर पहुँचकर रूपाली ने बिंदिया के नाम से उसे आवाज़ लगाई पर कोई हलचल नही हुई. दरवाज़े पर खड़ली रूपाली ने अंदर देखा तो कोई नज़र नही आया. रूपाली दरवाज़े से हटकर घूमकर झोपड़ी के पिछे आई ये सोचकर के शायद बिंदिया पिछे हो. सामने का नज़ारा देखकर उसके कदम वही जम गये और वो दो कदम पिछे हटकर फिर झोपड़ी की आड़ में चली गयी. एक पल को झोपड़ी के दीवार के सहारे खड़े रहकर उसने धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दम साधे देखने लगी.

सामने एक नीम का पेड़ था जिसके नीचे एक चादर बिछी थी. चादर पर दो नंगे जिस्म एक दूसरे से उलझे हुए थे, एक मर्दाना और एक ज़नाना. मर्दाना जिस्म जिस किसी का भी था वो नीचे लेटा हुआ था और औरत उपेर बैठी हुई थी. हाथ आगे आदमी के सीने पर रखकर वो औरत आगे को झुकी हुई थी. रूपाली जहाँ खड़ी थी वहाँ से उसे उस औरत की कमर और आदमी की औरत की गांद के नीचे से निकलती हुई टांगे नज़र आ रही थी. औरत का मुँह रूपाली से दूसरी तरफ था और क्यूंकी वो आदमी के उपेर बैठी हुई थी इसलिए रूपाली को आदमी का चेहरा नज़र नही आ रहा था.

औरत आदमी के उपेर घुटने टांगे मोदकर बैठी हुई थी. उसकी दोनो टांगे आदमी के पेट के दोनो तरफ थी और घुटनो ज़मीन पर टीके हुए थे. वो हाथ सामने आदमी के सीने पर रखकर अपनी गांद को उपेर नीचे कर रही थी और पिछे से रूपाली को लंड उस औरत की चूत में अंदर बाहर होता नज़र आ रहा था. देखने से ही अंदाज़ा होता था के आदमी कोई छोटी कद काठी का था और औरत उससे लंबी और चौड़ी थी. रूपाली दम साधे देखती रही. उस औरत की मोटी गांद लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे हो रही थी और रूपाली की नज़र चूत में अंदर बाहर होते लंड पर जम गयी.उस आदमी का लंड भी इतना बड़ा नही था. शायद उसके छ्होटे जिस्म के हिसाब से लंड भी छ्होटा था. कई बार वो औरत उपेर को जाती तो लंड चूत से बाहर फिसल जाता जिसे वो फिर हाथ में पकड़कर लंड के अंदर घुसाती और उपेर नीचे होने लगती.

थोड़ी देर तक यही माजरा चलता रहा. अचानक वो औरत उस आदमी के उपेर से उठकर खड़ी हो गयी और तब रूपाली को उसका चेहरा नज़र आया. वो बिंदिया थी और इस वक़्त पूरी तरह से नंगी खड़ी हुई थी. रूपाली उसके जिस्म को देखकर दिल ही दिल में वा किए बिना ना रह सकी. इस औरत की 18 साल की एक बेटी थी पर जिस्म अब भी खुद किसी 18-19 साल की लड़की से कम नही था. कहीं भी जिस्म के किसी हिस्से में ढीला पन नही था. बड़ी बड़ी तनी हुई चूचियाँ, पतली कमर, सपाट पेट,मोटी उठी हुई गांद, खूबसूरत टाँगें. कहीं कोई फालतू मोटापा नही. गांद भी ना ज़्यादा फेली हुई और ना ही छ्होटी. तभी रूपाली की नज़र उस आदमी पर पड़ी और उसे समझ आया के वो क्यूँ छ्होटी सी कद काठी का लग रहा था. वो मुस्किल से 16-17 साल का एक लड़का था और कद में अपनी उमर के लड़को से कुच्छ छ्होटा ही था. रूपाली चुपचाप खड़ी देखती रही.

बिंदिया ने खड़ी होकर उस लड़के को उठने को कहा. वो चुपचाप उसकी बात मानकर खड़ा हो गया. बिंदिया उसके सामने घुटनो पे बैठ गयी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. लड़के का लंड पूरा खड़ा हुआ था पर फिर भी बिंदिया उसे पूरा मुँह में ले गयी. कभी वो उसके लंड को मुँह में अंदर बाहर करती तो कभी जीभ से उसे चाटने लगती, तो कभी लड़के के अंडे अपने मुँह में लेके चूस्ति. लड़का आँखें बंद किए खड़ा था और अपने दोनो हाथों से बिंदिया का सर पकड़ रखा था. थोड़ी देर लंड चूसने के बाद बिंदिया अपने घुटनो पे किसी कुतिया के तरह झुक गयी. घुटने फैलाकर उसके अपनी गांद उपेर को उठा दी ताकि उसकी चूत खुलकर लड़के के सामने आ जाए. उसकी दोनो चूचियाँ सामने से नीचे चादर पे रगड़ रही थी.

लड़का इशारा समझ गया और बिंदिया के पिछे आ गया. जहाँ रूपाली खड़ी थी वहाँ से उसे दोनो साइड से नज़र आ रहे थे. घुटनो पे झुकी हुई बिंदिया और उसके पिछे उसकी गांद पे हाथ रखे वो लड़का.

"रुक ज़रा वरना तू पिच्छली बार की तरह ग़लती से फिर गांद में डाल देगा" कहते हुए बिंदिया ने एक हाथ पिछे ले जाकर उस लड़के का लंड पकड़ा और उसे अपनी चूत का रास्ता दिखाया. एक बार लंड अंदर हुआ तो लड़के ने चूत पे धक्के मारने शुरू कर दिए. पीछे से उसकी टाँगो की बिंदिया की गांद पे ठप ठप टकराने की आवाज़ और सामने से बिंदिया के मुँह से आ आ की आवाज़ ने अजीब सा महॉल बना दिया था. थोड़ी देर बाद शायद बिंदिया झड़ने के करीब आ गयी थी. वो खुद भी अपनी गांद हिलाने लगी और लड़के को और ज़ोर से चोदने को कहने लगी. लड़का भी पूरा जोश में था. वो अपना लंड उसकी चूत में ऐसे पेल रहा था जैसे आज चूत फाड़ के ही दम लेगा. उसके हर धक्के से बिंदिया का सर नीचे ज़मीन से टकराता और वो उसे और ज़ोर से धक्का मारने को कहती.

अचानक बिंदिया ज़ोर से चीखी और उसने सामने से चादर को अपने दोनो हाथों में कासके पकड़ लिया. उसने अपना सर नीचे ज़मीन पे टीकाया और उसका पूरा जिस्म कापने लगा. उसकी आ आ और तेज़ हो गयी. चादर खींचकर उसने अपने मुँह में भींच ली और ज़ोर ज़ोर से ज़मीन पे हाथ मारते हुए आआआआअहह आआआआआअहह चीखने लगी. पीछे से लड़का भी पूरी जान लगाकर उसकी चूत पे धक्के मारने लगा. थोड़ी देर ऐसे ही चीखने के बाद बिंदिया ठंडी पड़ी तो रूपाली समझ गयी के वो ख़तम हो चुकी है. लड़का भी अब पूरी तेज़ी से उसकी चूत में लंड पेल रहा था.

"चूत में मत निकल देना" बिंदिया ने लड़के से कहा

लड़के ने हां में सर हिलाया और 3-4 और ज़ोर के झटके मारकर लंड बिंदिया की चूत से बाहर खींचा और उसकी गांद पे रख दिया. लंड ने पिचकारी छ्चोड़ी और कुच्छ बिंदिया की गांद पर गिरा, कुच्छ कमर पर और कुच्छ उसके बालों पर.

रूपाली धीरे से पिछे हुई और झोपड़ी के सामने रखी चारपाई पर आकर बैठ गयी.

थोड़ी ही देर बाद माथे से पसीना पोंचछति बिंदिया भी झोपड़ी के पिछे से निकली. उसके पिछे पिछे वो लड़का भी था. दोनो ने अपने अपने कपड़े पहेन लिए थे. रूपाली को बैठा देखकर दोनो ठिठक गये.

"अरे मालकिन आप? आप कब आई?" बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"बस अभी आई एक मिनट पहले" रूपाली ने झूठ बोला " तुम नही दिखी तो सोचा के इंतेज़ार कर लूँ"

"हां वो मैं ज़रा थोड़ा कुच्छ काम से गयी थी. ये चंदर है." बिंदिया ने कहा

लड़के ने हाथ जोड़कर रूपाली के सामने सर हल्का सा झुकाया और चला गया.

"आअप पानी लेंगी?" उसके जाने के बाद बिंदिया ने रूपाली से पुचछा

"हां" रूपाली ने कहा

बिंदिया झोपड़ी में जाकर एक ग्लास में पानी ले आई और रूपाली को दिया

"मालकिन वो मैं ..... " झिझकते हुए बिंदिया बोली

"ठीक है बिंदिया" रूपाली ने ग्लास एक तरफ रखते हुए कहा "तुम जो कर रही थी वो दुनिया की हर औरत करती है. शरमाने की ज़रूरत नही"

रूपाली ने बिंदिया के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के उसने सब देख लिया था. बिंदिया ने फिर भी कुच्छ नही कहा और सर झुकाए ज़मीन की और देखती रही.

"बाकी सब तो ठीक है पर थोड़ा छ्होटा नही था? इतने से काम चल जाता है तुम्हारा?" रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया की भी हसी छूट पड़ी.

"नही मेरा मतलब था के लड़का थोड़ा छ्होटा नही है? तुम्हारी बेटी की उमर का लगता है" रूपाली ने कहा

"नही मेरी बेटी से 2 साल छ्होटा है" बिंदिया वहीं ज़मीन पर बैठते हुए बोली "पर काम चल जाता है. इसके माँ बाप नही हैं. इसलिए मैं ही खाने वगेरह को दे देती हूँ"

"और बदले में थोड़ा काम निकल लेती हो?" रूपाली मुस्कुराते हुए बोली

बिंदिया हँसने लगी

"नही ये तो पता नही कैसे हो गया वरना ये तो बहुत छ्होटा था जब मैं इसके माँ बाप मर गये थे. गाओं से मैं इसे लाई और यूँ समझिए के अपनी बेटी के साथ इसे भी बड़ा किया"बिंदिया ने कहा. रूपाली ने ग्लास से पानी का आखरी घूंठ लिया और ग्लास बिंदिया को दिया.

"तुम कल आई नही पायल के साथ?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा

"नही कल चंदर की तबीयत थोड़ी खराब थी. सुबह से ही हल्का बुखार था इसे तो मैं यहीं रुक गयी और पायल को भेज दिया. वो काम ठीक से कर तो रही है ना मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा

"हां सब ठीक है." रूपाली ने कहा और फिर थोड़ा रुकते हुए बोली " मैं असल मैं तुमसे थोड़ा बात करने आई थी. अकेले में इसलिए किसी को साथ नही लाई"

"हां कहिए" बिंदिया बोली. तभी चंदर आया और हाथ के इशारे से बिंदिया को कुच्छ बताने लगा.

"हां ठीक है जा पर शाम तक आ जाना. आते हुए गाओं से थोड़ा दूध लेता आना. पैसे हैं ना तेरे पास?" बिंदिया चंदर से बोली. चंदर ने हां में सर हिलाया और चला गया

"बोल नही सकता बेचारा. गूंगा है" बिंदिया रूपाली की तरफ देखती हुई बोली

"काब्से?" रूपाली ने पुचछा

"बचपन से ऐसा ही है. इसके माँ बाप के मरने के बाद जब मैं इसे लाई तो बहुत वक़्त लग गया मुझे इसे बातें समझाने में. इसके इशारे समझ ही नही आते थे पहले तो" बिंदिया बोली

"माँ बाप कैसे मारे थे इसके?" रूपाली ने पुचछा तो बिंदिया बगले झाँकने लगी. थोड़ी देर तक वो यूँ ही चुप बैठी रही.

"क्या हुआ. बताओ ना" रूपाली ने दोबारा पुचछा

"छ्चोड़िए मालकिन. आपको अच्छा नही लगेगा" बिंदिया ने कहा

"क्यूँ?" रूपाली हैरत में बोली

"क्यूंकी इसके माँ बाप ठाकुर साहब की गोली के शिकार हुए थे. ठाकुर साहब ने ही एक रात दोनो को मौत की नींद सुलाया था."
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