Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:11 PM,
#9
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
रूपाली का मुँह फिर खुला रह गया . भूषण उसकी मर चुकी सास की बात कर रहा था

"क्या कह रहे हो काका?" उसे भूषण से कहा

"सही कह रहा हूँ बेटी. उस रात उनके कमरे की ही लाइट ऑन हुई थी जिसे देखकर कुत्ता भौंका था. जब वो शख्स भागा तो मैने एक नज़र उपेर कमरे की तरफ उठाई तो देखा के मालकिन खिड़की पर खड़ी थी. पता नही वो क्या देख रही थी पर उनकी नज़र मेरी तरफ नही थी. मैं उस आदमी के पिछे भगा और थोड़ी देर बाद जब नज़र उठाकर देखा तो कमरे की खिड़की बंद हो चुकी थी और लाइट ऑफ कर दी गयी थी"

रूपाली की समझ नही आया के वो क्या करे और क्या कहे. उसके दिमाग़ में काफ़ी सारी बातें एक साथ चल रही थी.

"भागते हुए वो आदमी कुच्छ गिरा गया था जो एक कुत्ता सूंघटा सूंघटा उठा लाया था" भूषण ने कहा

"क्या?" रूपाली ने अपनी खामोशी तोड़ी

"एक चाबी" भूषण ने जवाब दिया

"चाबी?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"हां. वो आज भी मेरे ही पास है"

भूषण के बात सुनकर रूपाली दीवार के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गयी.

"आपको कैसे पता के ये चाबी उसी आदमी ने गिराई थी?" उसने भूषण से पुचछा

"यकीन से तो नही कह सकता पर वो चाबी वही कुत्ता उठाके लाया था जो उस आदमी के पिछे भगा था. कुत्ता ऐसी किसी चीज़ को उठाके क्यूँ लाएगा? सिर्फ़ इसलिए क्यूंकी उस चाबी में उस आदमी की खुश्बू थी जिसके पिछे कुत्ता भाग रहा था"

"वो चाबी कहाँ है काका?" रूपाली ने कहा

"मेरे कमरे में है" बात करते करते भूषण खाना लगाने की पूरी तैय्यारि कर चुका था

"काका आपको ये सब बातें ससुर जी से अगले ही दिन बता देनी चाहिए थी. शायद मेरे पति की जान बच जाती" रूपाली की आवाज़ भारी हो चली थी

"चाहता तो मैं भी यही था बेटी" भूषण उसके करीब आता हुआ बोला"मैं तो अपने दिल में इरादा कर भी चुका था. मैने सोचा के बड़ी मालकिन अगले दिन इस बात का ज़िक्र तो करेंगी ही पर उन्होने किसी से कुच्छ नही कहा. ना तो इस बात का कोई ज़िक्र किया और ना ही कुच्छ ऐसा किया जिससे किसी को लगता के वो कुच्छ च्छूपा रही हैं. मैं उनकी इसी बात से परेशानी में पड़ गया. समझ नही आया के किसी से कहूँ या ना कहूँ और कहूँ तो क्या कहूँ और इससे पहले की मैं कोई फ़ैसला कर पता तब तक बहुत देर हो चुकी थी."

रूपाली की आँख भर आई थी. उसे भूषण पे गुस्सा भी आ रहा था और दिल से एक आवाज़ ये भी आ रही थी के इसमें इस बेचारे बुड्ढे आदमी का क्या कसूर. अचानक उसके ससुर ने उसका नाम पुकारा तो उसने जल्दी से अपने आँसू पोन्छे.

"आई पिताजी" उसने ऊँची आवाज़ में जवाब दिया और भूषण की और पलटके बोली " आअप खाना निकालो."

जाते जाते रूपाली फिर भूषण की और पलटी.

"क्या पिताजी को इस बात की खबर है?" उसने पुचछा

भूषण ने इनकार में सर हिला दिया

"होनी भी नही चाहिए" कहते हुए रूपाली चली गयी.

तेज़ कदमो से चलती वो ठाकुर के कमरे तक पहुँची. ठाकुर उठकर खड़े हुए थे

"अरे पिताजी क्या कर रहे हैं" वो भागती हुई ठाकुर के करीब पहुँची "आप लेट जाइए वरना दर्द बढ़ जाएगा पावं में"

"नही अब काफ़ी ठीक लग रहा है. लगता है मामूली मोच थी" ठाकुर ने एक कदम आगे बढ़ने की कोशिश की तो आगे की और गिरने लगे. रूपाली ने भागकर सहारा दिया

"मामूली नही थी. अब आअप लेट जाइए" रूपाली ने हस्ते हुए कहा

ठाकुर का एक हाथ रूपाली के कंधे पे था और दूसरा हाथ आधा उसकी कमर पर और आधा उसकी गांद पर.

रूपाली ने सहारा देकर ठाकुर को फिर लेटा दिया और अपनी सारी का पल्लू ठीक करते हुए बोली

"आप यहीं लेट जाइए. मैं खाना यहीं लगा देती हूं. आपको उठने की ज़रूरत नही"

कमरे से बाहर आकर वो किचन की तरफ आई. भूषण टेबल पे खाना लगा रहा था

"टेबल पे नही. पिताजी आज अपने कमरे में ही खाएँगे." रूपाली ने उसकी और आते हुए कहा

उसकी बात सुनकर भूषण प्लेट्स फिर उठाने लगा, ठाकुर के कमरे में ले जाने के लिए

"आप रहने दीजिए."रूपाली ने उसे रोकते हुए कहा"मैं कर लूँगी. आप अपने में जाके आराम कीजिए. कल सुबह मिलेंगे"

रूपाली ने उसकी आँखों में देखते हुए प्लेट्स उसके हाथ से ले ली. भूषण हैरत से उसकी तरफ देख रहा था. अब तक रूपाली और उसके बीच उस रात के बारे में कोई ज़िक्र नही हुआ था जब ठाकुर ने रूपाली को चोदा था. वो दोनो जानते थे के दोनो ने उस रात एक दूसरे को देख लिया था और शायद इसी वजह से उस बारे में बात करने से क़तरा रहे थे. भूषण पलटकर जाने लगा तो रूपाली ने उसे पिछे से कहा

"अब रात को हवेली में आपकी ज़रूरत नही होगी काका. आप आराम कर लीजिएगा. पिताजी का ख्याल मैं रख लूँगी, हर रात"

रूपाली की बात सुनकर भूषण फिर पलटकर उसे देखने लगा. रूपाली ने जैसी उसकी आँखें पढ़ ली.

"आप ठीक सोच रहे हैं काका. ठीक उसी रात की तरह जब आपने मुझे पिताजी के बिस्तर पे देखा था. बस ध्यान रहे के उस रात आपने जो किया वो फिर ना करें."

भूषण के जाने के बाद रूपाली ने ठाकुर को खाना खिलाया और खुद ही किचन सॉफ किया. सारे काम जब तक उसने निपटाए तब तक बाहर रात गहरा चुकी थी. गर्मी पुर जोश पे थी. रूपाली को हल्का हल्का सा पसीना भी आ रहा था. किचन बंद कर वो सारी के पल्लू से अपना सर पोन्छ्ते ठाकुर के कमरे में पहुँची.

"तुम क्यूँ काम कर रही हो?" उसे देखकर ठाकुर ने पुचछा

"अपने घर में मैं नही तो और कौन काम करेगा पिताजी?" रूपाली हस्ते हुए बोली और ठाकुर के पास आकर उनके पावं को देखने लगी

"अब बेहतर लग रहा है सुबह से." रूपाली ने अपने ससुर से कहा " आप आराम कीजिए. मैं थोड़ा नहा लूँ"

रूपाली जाने ही लगी थी के ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़ा और खींच कर बिस्तर पे गिरा दिया.

"क्या कर रहे हैं? नहा तो लेने दीजिए. जल्दी क्या है?" रूपाली ने एक ही बात में अपने ससुर के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के आज रात उसे कोई एतराज़ नही.

बदले में ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और सिर्फ़ उसकी आँखों में खामोशी से देखते रहे.उन्होने रूपाली को खींच कर पूरी तरह से बिस्तर पे लिटा लिया था और अपने करीब कर लिया था. कमरे में एसी ऑन था इसलिए रूपाली के बदन से पसीना सूखने लगा था.

"मुझे पसीना आ रहा है. एक बार नाहकार आ जाऊं?" रूपाली ने अपने माथे पे आखरी बची कुच्छ पसीने की बूँदों की तरफ इशारा किया.

हर बार की तरह इस बार भी ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और बस प्यार से उसके सर पे हाथ फिरते रहे. फिर हाथ माथे पे लाए और पसीना सॉफ कर दिया. रूपाली ने महसूस किया था के बिस्तर पर ठाकुर कुच्छ बोलते नही थे. बस चुप चाप सारे काम करते रहते थे.

दोनो करवट लिए एक दूसरे की तरफ चेहरा किए लेटे हुए था. नज़र अब भी एक दूसरे की नज़र से मिली हुई थी. बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे. ठाकुर का एक हाथ धीरे धीरे रूपाली का सर सहला रहा था. नीचे टांगे एक दूसरे से मिल रही थी. रूपाली की सारी थोड़ी सी उठकर उपेर घुटनो तक आ पहुँची थी. धीरे धीरे ठाकुर ने उसके चेहरे को सहलाना शुरू किया और एक उंगली उसके होंठ पर फिराई तो रूपाली की साँस अटकने लगी. अगले ही पल ठाकुर ने आगे बढ़कर अपने होंठ रूपाली के होंठो पर रख दिया

रूपाली के मुँह से आह निकल पड़ी और दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये. ठाकुर ने उसके होंठो का रस चूसना शुरू किया तो रूपाली भी जवाब देने लगी. दोनो एक होंठ जैसे एक दूसरे में घुसे जा रहे थे और ज़ुबान आपस में टकराने लगी थी. रूपाली आगे को खिसक कर अपने ससुर से चिपक गयी थी और चुंबन में उनका पूरा साथ दे रही थी. बड़ी देर तक दोनो एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से ठाकुर का सर पकड़ रखा था और अपने ससुर के अंदर जैसे घुसी जा रही थी. ठाकुर का एक हाथ पिछे से उसकी सारी के अंदर ब्लाउस के नीचे उसकी नंगी कमर को सहला रहा था जिससे रूपाली के जिस्म की गर्मी और बढ़ती जा रही थी.

चुंबन चलता रहा और ठाकुर का हाथ सरक कर पिछे से रूपाली के ब्लाउस के अंदर चला गया. और उसकी नंगी कमर को सहलाने लगा. रूपाली जैसे हवा में उड़ रही थी. उसकी आँखें बंद हो चली थी. वो तो बस अपने ससुर के होंठ और अपने नंगे जिस्म पे उनके हाथ का मज़ा ले रही थी. ठाकुर का हाथ थोड़ी देर बाद सरक कर आगे आया और सारी के उपेर से रूपाली की छातियों के उपेर आ गया. रूपाली से रहा ना गया और जैसे ही ठाकुर ने हाथ का दबाव उसकी छातियों पे डाला वो सूखे पत्ते की तरह काँप उठी. ठाकुर धीरे धीरे सारी और ब्लाउस के उपेर से उसकी दोनो चुचियों को दबाने लगे. दोनो एक दूसरे से बुरी तरह चिपक गये थे और ठाकुर का खड़ा लंड रूपाली को अपने पेट पे महसूस हो रहा था. वो भी धीरे से आगे सारा कर अपने पेट से लंड को घिस रही थी.

ठाकुर ने हाथ रूपाली की छाती से हटाकर एक हाथ से उसका हाथ पकड़ा और अपने लंड की तरफ खींचने लगे. शरम से रूपाली ने अपना हाथ वापिस लेना चाहा पर ठाकुर ने हाथ फिर भी खींचकर अपने लंड पे रख दिया. धोती के उपेर से लंड हाथ में आते ही रूपाली के हाथ वापिस लेना बंद कर दिया और लंड हाथ में पकड़ लिया. ठाकुर ने अब उसके पुर चेहरे को चूमना शुरू कर दिया और उसके गले तक आ पहुँचे थे. रूपाली को अब किसी बात की परवाह नही थी. उसे तो बस अब चुद जाना था. वो भी उतने ही जोश के साथ अपने ससुर का साथ दे रही थी. धीरे से ठाकुर ने उसे अपने नीचे लिया और उसके उपेर चढ़ गये. होंठ फिर रूपाली के होंठो पे आ गये, हाथ से उसकी कमर पकड़ी और लंड का दबाव सारी के उपेर से सीधा उसकी चूत पे डाला. रूपाली ने कुच्छ जोश में और कुच्छ शरम से अपनी टांगे बंद करने की कोशिश की पर ठाकुर ने अपने घुटनो से उसकी दोनो टांगे फेला दी और लंड धीरे धीरे उसकी चूत पे बड़ाने लगे.

रूपाली अब ज़ोर ज़ोर से आहें भर रही थी. एसी में भी पसीना दोबारा उसके माथे पे आ गया था. ठाकुर उसे पागलों की तरह चूम रहे थे और नीचे से सारी के उपेर से ही उसकी चूत पे धक्के मार रहे थे. हाथ उसके नंगे पेट पे घूम रहा था. थोड़ी देर बाद वो उठ कर सीधे हुए, अपना कुर्ता निकाला और फिर रूपाली के उपेर लेट गये. चुंबन फिर शुरू हो गया पर इस बार हाथ सीधा रूपाली की चूचियों पे आ गये थे. थोड़ी देर ऐसे ही चूचियाँ दबाने के बाद उन्होने उसकी सारी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाउस के बटन्स खोलने लगे. रूपाली को फिर शरम महसूस हुई. वो अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर को पहले भी दिखा चुकी थी, दबवा चुकी थी पर फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार कर रही हो. वो कुच्छ समझ पाती उससे पहले ही उसका ब्लाउस खुल चुका था और दोनो चूचियाँ सफेद ब्रा में बंद ठाकुर के सामने थी. ठाकुर ने अपने होंठ उसके क्लीवेज पर रख दिए और नीचे से ब्रा उपेर को उठाने लगे. रूपाली ने रोकने की कोशिश की जो किसी काम ना आई और उसका ब्रा उपेर कर दिया गया. दोनो चूचियाँ छलक कर ठाकुर के सामने थी.

ठाकुर ने उसकी दोनो चूचियों को अपने हाथों में थामा और दबाते हुए नीचे झुक कर चूसने लगे. एक एक करके रूपाली के दोनो निपल ठाकुर के मुँह में जाने लगे. हाथ से दबाने का काम अब भी चल रहा था और नीचे से सारी के उपेर से ही चूत पे धक्के पड़ रहे थे. रूपाली अपने आपे से बिल्कुल बाहर जा चुकी थी. उसे अब कोई परवाह नही थी के उसपर चढ़ा हुआ मर्द उसका अपना ससुर था. उसे तो बस अब एक लंड की ज़रूरत थी.

उसने महसूस किया के ठाकुर उसके उपेर से उतर कर थोड़ा एक तरफ को हो गये. लंड चूत से हट गया तो रूपाली एक ठंडी आह भर कर रह गयी. चूचियाँ अब भी ठाकुर के हाथों में थी. उसने आँखें बंद किए कुच्छ समझने की कोशिश की के क्या हो रहा है और जल्दी ही पता चल गया. ठाकुर का एक हाथ अब उसके पेट से होके सारी के उपेर से उसकी चूत पे आ गया था और धीरे से उसकी टाँगो के बीच घुस गया था. रूपाली तड़प उठी और उसने फ़ौरन अपने टांगे बंद करके ठाकुर के हाथ को हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. हाथ वहीं रहा और उसकी चूत को घिसता रहा. थोड़ी देर बाद उसे ठाकुर का हाथ अपनी चूत से हटकर फिर अपने पेट पे आता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल उसकी सारी सामने की तरफ से बाहर खींच दी गयी.

रूपाली के पुर जिस्म ने एक झटका लिए और उसने दोनो हाथों से अपनी सारी से अपना जिस्म ढकने की कोशिश की. ठाकुर ने उसके दोनो हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसके सर के उपेर ले जाकर पकड़ लिया. रूपाली ने लाख कोशिश की पर अपने हाथ च्छुडा नही पाई. दिल ही दिल में वो ठाकुर की ताक़त की क़ायल हो गयी. इस उमर में भी सिर्फ़ एक हाथ से उन्होने उसे काबू कर लिया. वो सोच ही रही थी के उसे अपने पेटीकोट का नाडा खुलता हुआ महसूस हुआ. उसके मुँह से फिर एक आह निकल पड़ी जो आधी मज़े में डूबी हुई थी और आधी एक इनकार में जो ठाकुर को रोकने के लिए थे. दूसरे ही पल नाडा खुल गया, पेटीकोट ढीला हुआ और ठाकुर का हाथ उसके पेटीकोट में घुसकर पॅंटी से होता सीधा उसकी चूत पे जा पहुँचा.

रूपाली के जिस्म में करेंट दौड़ने लगा. जिस्म झटके मारने लगा और उसने अपनी टांगे ज़ोर से बंद कर ली. ठाकुर ने उसकी चूत को उपेर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी एक टाँग उसके उपेर ले जाकर फिर रूपाली की दोनो टाँगो को फेला दिया. वो अब भी एक हाथ से उसके दोनो हाथों को पकड़े हुए थे. ठाकुर का हाथ एक बार फिर उसकी टाँगो के बीचे गया और धीरे से एक अंगुली रूपाली की चूत में दाखिल हो गयी और अंदर बाहर होने लगी.

अब रूपाली की टांगे खुद ही खुल चुकी थी. उसने अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश भी बंद कर दी थी. ठाकुर एक उंगली से उसकी चूत मारने लगे और बारी बारी दोनो निपल्स चूसने लगे. रूपाली से जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसके अपने एक हाथ साइड किया और ठाकुर का लंड धोती के उपेर से पकड़के दबाने लगी. उसने अब ठाकुर को रोकने की सारी कोशिश बिल्कुल बंद कर दी थी. उसका लंड पकड़ना ठाकुर के लिए जैसे एक इशारा था. वो फ़ौरन उठे और उसका पेटिकोट उतारकर फेंक दिया. रूपाली को एक पल के लिए बिठाया और उसका ब्लाउस और ब्रा भी एक तरफ कमरे में उच्छाल दिया गया. अब रूपाली अपने ससुर के सामने बिल्कुल नंगी पड़ी थी. उसके हाथ खुद बखुद आगे को आकर उसकी चूचियों की ढकने की नाकाम कोशिश करने लगे. ठाकुर ने उसकी दोनो टांगे फेलाइ और घुटनो मॉड्कर चूत बिल्कुल लंड के सामने कर ली. रूपाली की आँखों के सामने फिर वही नज़ारा आ गया जब ये लंड पहली बार उसकी चूत में घुसा था. फिर वही दर्द याद आया तो जोश एक पल में गायब हो गया. जो चूत अब तक गीली और खुली गयी थी फ़ौरन सिकुड गयी. उसने ठाकुर की तरफ देखा जो लंड उसकी चूत पे रख चुके थे और अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे पर एक तो लंड इतना मोटा और उपेर से रूपाली की चूत जो सूख चुकी थी. लंड अंदर जा ही नही रहा था.

ठाकुर ने रूपाली की तरफ देखा जैसे कह रहे हों के "तुम अभी तैय्यार नही हो बहू" और उसके उपेर से हटने लगे. रूपाली ने फ़ौरन हाथ आगे करके लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पे रख दिया और अंदर को दबाने लगी. ठाकुर इशारा समझ गये और उन्होने एक तेज़ धक्का मारा. लंड का अगला हिस्सा रूपाली की चूत के अंदर था.

रूपाली को एक हल्की सी चुभन महसूस हुई और उसके अपने ससुर को अपने उपेर खींच कर उनसे लिपट गयी. ठाकुर ने उसके मुड़े हुए घुटनो को अपने हाथ से पकड़ा और लंड धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगे. हल्के हल्के धक्को के साथ लंड चूत में और अंदर जाता रहा और रूपाली की आँखें फेल्ती चली गयी. उसे दर्द होना शुरू हो गया था पर ये दर्द पिच्छले दर्द के मुक़ाबले कुच्छ नही था. इस दर्द में मज़ा ज़्यादा था.लंड काफ़ी हद तक अंदर जा चुका था. ठाकुर ने एक आखरी बार लंड थोड़ा सा बार खींचकर ज़ोर से धक्का मारा और लंड पूरा रूपाली की चूत में घुसता चला गया. ठाकुर की टटटे आकर रूपाली की गांद से टकरा गये.

रूपाली के मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी. आँखें फेल गयी, मुँह खुल गया और माथे पे सिलवटें पड़ गयी. उसकी कमर ने ज़ोर से झटका मारा और टांगे सीधी होकर ठाकुर की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. रूपाली ने कसकर अपने ससुर को अपने से चिपका लिया और टांगे मोड़ कर उनकी कमर पर कस दी. लंड अब चूत में अंदर बाहर होना शुरू हो गया था और रूपाली की चुदाई शुरू हो गयी थी. ठाकुर उसके उपेर पड़े हुए उसे बराबर चोदे जा रहे थे. धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी और रूपाली की चूत फिर से पूरी फेल गयी. उसकी आँखें फिर से बंद हो गयी और रात में भी जैसे दिमाग़ में सूरज की रोशनी सी फेल गयी. चूत पे पड़ता हर धक्का उसे जन्नत का नज़ारा करा रहा था. जाने कितनी देर वो ऐसे ही पड़ी चुदवाती रही. उसे अपनी टाँगो पे ठाकुर के हाथ महसूस हुए वो उन्हें सीधी कर रहे थे. ठाकुर उठके सीधे बैठे और रूपाली को करवट से लिटा दिया और खुद उसके पिछे की तरफ लेट गये. लंड अब भी चूत में ही था. रूपाली ने करवट लेकर पास रखे तकिये को ज़ोर से पकड़ लिया. अब वो करवट से लेटी हुई थी. ठाकुर उसके पिछे से करवट लेकर उससे चिपक कर लेटे हुए थे. उनका चौड़ा सीना उसकी पीठ पे लग रहा था और एक हाथ रूपाली की चूचियों की बेरहमी से मसल रहा था. लंड पिछे से चूत में अंदर बाहर रहा था और ठाकुर के लंड के पास का अगला हिस्सा रूपाली के गांद से टकरा रहा था. रूपाली की आहें अब तेज़ होकर कमरे में गूंजने लगी थी. एक बार ठाकुर ने ज़ोर से धक्का मारकर लंड बाहर की तरफ खींचा तो लंड पूरा ही बाहर निकल गया. रूपाली को लगा जैसे उसके जिस्म का ही एक हिस्सा बाहर चला गया हो और वो फिर से लंड लेने को तड़प उठी. उसने जल्दी से हाथ पिछे ले जाकर लंड पकड़कर चूत में घुसाने की कोशिश की पर ठाकुर तब तक ऑलरेडी लंड घुसाने की कोशिश कर रहे थे.दोनो करवट से लेटे हुए थे. ठाकुर उसके पिछे थे और रूपाली की भारी भारी उठी हुई गांद होने के कारण लंड को चूत का मुँह नही मिल रहा था. रूपाली ने भी हाथ नीचे करके लंड पकड़ना चाहा ताकि चूत का रास्ता दिखा सके. ऐसे ही एक कोशिश में लंड फिसल कर रूपाली के गांद पे आ गया और ठाकुर ने आगे घुसने की कोशिश को तो रूपाली को लंड अपनी गांद में घुसता महसूस हुआ. वो चिहुनक कर आगे की तरफ हो गयी ताकि लंड गांद में ना घुसे. ठाकुर को उसकी इस हरकत से पता चल गया के वो ग़लती से लंड कहाँ घुसा रहे थे और उनके दिल में रूपाली की गांद मारने की ख्वाहिश उठी. उसने रूपाली का चेहरा अपनी तरफ किया और उससे नज़र मिलाई जैसे रूपाली की पर्मिशन माँग रहे हों उसकी गांद मारने के लिए. रूपाली एक पल को रुकी और वासना के कारण अपने पलक झपका कर अपनी मंज़ूर दे दी. वो फिर अपने करवट पे हो गयी और तकिया ज़ोर से पकड़ लिया ताकि गांद पे होने वाले हमले को झेल सके. ठाकुर ने पिच्छ से लंड फिर उसकी गांद पे रखा और घुसने की कोशिश की पर लंड मोटा होने की वजह से नाकाम रहे. थोड़ी देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद वो उठ बैठे. रूपाली का पेट पकड़ा और उसे उठाकर बिस्तर पे घुटनो के बल झुका दिया. अब रूपाली एक कुतिया की तरह अपने ससुर के सामने झुकी हुई थी. चूचियाँ सामने लटक रही थी. सर उसने सामने तकिये पे रख दिया और टांगे फेला दी. आज वो बिस्तर पे पहली बार किसी मर्द के सामने झुकी थी और वो भी अपने ससुर के सामने. ये तो उसने तब भी नही किया था जब उसके पति ने उसे झुकने को कहा था.

ठाकुर ने पीछे से उसकी गांद पे हाथ रखे और थोडा फेलाया. लंड अब भी रूपाली की चूत के रस से भीगा हुआ था. उन्होने फिर से लंड को रूपाली की गांद पे टीकाया और आगे को दबाने लगे. लंड का दबाव गांद पे पड़ा तो रूपाली को अपनी गांद खुलती हुई महसूस हुई और दर्द की एक तेज़ ल़हेर उसके जिस्म में दौड़ गयी. वो अगले ही पल बिस्तर पे बैठ गयी और ठाकुर की तरफ देखकर सर इनकार में हिलाया जैसे गांद मारने के लिए मना कर रही हो.

ठाकुर ने मुस्कुरा कर उसके इनकार को क़बूल कर लिया और फिर झुकने को कहा. रूपाली समझ गयी के अब ठाकुर उसे झुकाके चूत मारना चाहते हैं. वो फिर झुक गयी. टांगे फेला दी और चूत अपने ससुर के सामने पेश कर दी. अगले ही पल लंड फिर से उसकी चूत में था और धक्के फिर शुरू हो गये. रूपाली के मज़े का ठिकाना ना रहा. आज वो पहली बार इस पोज़िशन में चुद रही थी. ठाकुर का धक्का जैसे ही उसकी चूत पे पड़ता लंड चूत की गहराई तक उतर जाता, उसका सर तकिये में धस जाता और दोनो चूचियाँ हिलने लगती. रूपाली ने अपने एक हाथ से खुद ही अपनी चूचियाँ दबानी शुरू कर दी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी. वो किसी पागल सांड़ की तरह उसकी चूत पे धक्के मार रहे थे. हाथों से उसकी कमर को मज़बूती से पकड़ रखा था और लंड चूत में पेले जा रहे थे.

रूपाली को महसूस हुआ के अब तक उसके ससुर ने एक शब्द भी मुँह से नही कहा है. उसने झुके झुके ही अपनी आहह आहह के बीच ठाकुर से पुचछा

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

जवाब ना आया पर हां चूत पे धक्के और ज़ोर से पड़ने लगे. लंड और बेरहमी से चूत में अंदर बाहर होने लगा. रूपाली का अब गला सूखने लगा था. उसने फिर सवाल दोहराया.

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

इस बार भी कोई जवाब नही आया. चूत पे धक्के बराबर पड़ते रहे. ठाकुर का एक हाथ अब रूपाली एक छाति पे आ चुका था. रूपाली ने फिर पुचछा

"आप क्या कर रहे हैं पिताजी?"

इस बार ठाकुर धीरे से बोले, जैसे शर्मा रहे हों.

"हम आपसे प्यार कर रहे हैं बेटी"

"नही पिताजी" रूपाली की आह आह अब कमरे में गूँज रही थी " बताइए ना आप क्या कर रहे हैं"

"हम आपको अपना बना रहे हैं बेटी" ठाकुर ने कहा तो रूपाली को हल्की सी झल्लाहट हुई

"नही पिताजी. आप चोद रहे हैं हमें. आप अपनी बहू की चूत मार रहे हैं."

और जैसे रूपाली की बात ने कमाल कर दिया. ठाकुर . अंदर एक नयी ताक़त से आ गयी. हाथों से उसकी गांद को ज़ोर से पकड़ा और ऐसे धक्के मारने लगे जैसे रूपाली की चूत फाड़ देना चाहते हों.

"आप अपनी बहू को चोद रहे हैं पिताजी" मज़ा अचानक बढ़ जाने के करें रूपाली इस बार लगभग चिल्लाते हुए बोली " अपनी बहू की चूत में लंड घुसा रखा है आपने"

अपने मुँह से निकलती बातें सुनकर रूपाली को खुद भी हैरत हो रही थी. ये सब उसका पति उससे बुलवाना चाहता था पर वो कभी नही बोलती थी और आज खुद ही बोले जा रही थी. हैरत की बात ये थी के अपने मुँह से इन शब्दों का इस्तेमाल सुनकर वो खुद भी और गरम होती जा रही थी

"हां हम आपको चोद रहे हैं बेटी. आपकी चूत में अपना लंड पेल रहे हैं" कहते हुए ठाकुर जैसे पागल हो उठे

"चोदो पिताजी, और ज़ोर से चोदो" रूपाली भी साथ साथ चिल्ला उठी.

बेड के हिलने की आवाज़ शायद पूरी हवेली में गूँज रही थी. कमरे में वासना का एक तूफान आया हुआ था. रूपाली अपने ही ससुर के सामने कुतिया बनी हुई थी और वो पिछे से उसकी चूत पे पागलों की तरह धक्के मारने लगे. अचानक धक्के इतने ज़ोर से पड़ने लगे की रूपाली का दिल उसके मुँह को आने लगा. उसका सर सामने बेड के किनारे से जाके लगने लगा और फिर एक धक्का इतनी ज़ोर से पड़ा के उसे लगा के वो अब मर जाएगी. लंड पूरा चूत में धस्ता चला गया और एक गरम सा पानी उसकी चूत को भरने लगा. उस गरम सी चीज़ के चूत में भरते ही रूपाली की चूत ने भी पानी छ्चोड़ दिया. उसकी आँखों के आगे तारे नाचने लगी. उसे लगा वो बेहोश होने वाली है. अब झुके रहने की हिम्मत उसमें नही थी. वो बिस्तर पे उल्टी लेट गयी और ठाकुर उसके उपेर लेट गये. लंड अब भी चूत में पिचकारी मार रहा था और रूपाली की चूत किसी नदी में बदल गयी थी जो पानी छ्चोड़े जा रही थी. इतना मज़ा उसे कभी नही आया था. उसके पलके भारी हो चली थी और बंद होने लगी. उसने बंद होती पलकों से सामने शीशे की और देखा तो उसमें फिर से दरवाज़ा हल्का सा खोलकर बाहर से सब नज़ारा देखता भूषण नज़र आया.
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