Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:10 PM,
#7
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
"काफ़ी खूबसूरत लग रही हो बहूरानी" भूषण ने कहा

रूपाली ने मुस्कुरा कर उसका शुक्रिया अदा किया और सफाई में उसका हाथ बटाने लगी.

"आप रहने दीजिए"भूषण ने मना किया भी तो रूपाली हटी नही

"ऐसी अच्छी लगती हैं आप. ऐसी ही रहा करो. भरी जवानी में ही सफेद सारी में लिपटी मत रहा करो" भूषण ने कहा तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा

"पिताजी ने लाकर दी है" रूपाली ने कहा तो भूषण काम छ्चोड़कर कुच्छ सोचने लगा

"मैं जानती हून आप क्या सोच रहे हैं काका. कल रात की बात ना. आपने कल रात जो देखा था वो मेरी मर्ज़ी थी. इस हवेली में फिर से सब कुच्छ पहले जैसा हो उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है के पिताजी होश में आए. आअप जानते हैं ना मैं क्या कह रही हूँ?" रूपाली ने पुचछा

भूषण ने सर इनकार में हिलाया.

"आपकी ग़लती नही है काका. मैं शायद खुद भी नही जानती के मैं क्या कह रही हूँ, क्या सोच रही हूँ और क्या कर रही हूँ. मैं सिर्फ़ इतना जानती हूँ के मेरे नंगे जिस्म की हल्की सी झलक पाकर पिताजी ने परसो पूरा दिन शराब नही पी थी और काफ़ी अरसे बाद अब वो हवेली से बाहर निकले हैं." रूपाली ने कहाँ तो भूषण ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.

"आप ठीक सोच रहे हो काका."रूपाली ने जैसे उसका चेहरा पढ़ते हुए कहा "और इसलिए मैने आपसे कहा था के मुझे आपकी मदद चाहिए. ये बात हवेली से बाहर ना निकले. बदले में आप जो चाहें आपको मिल जाएगा. जो कल रात मैने आपको दिया वो मैं दोबारा देने को तैय्यार हूँ"

रूपाली ने जो बे झिझक कहा था वो बात सुनकर भूषण का सर चकराने लगा था. रूपाली कुच्छ करने वाली है ये बात वो जानता था पर क्या अब समझ आया. वो अपने ही ससुर के साथ सोने की बात कर रही थी.

"पर बहूरानी"भूषण से कुच्छ बोलते नही बन पा रहा था.

"पर क्या काका?" अब दोनो में से कोई कुच्छ काम नही कर रहा था.

रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के भूषण का खामोश रहना कितना ज़रूरी था. ये बात अगर गाओं में फेल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. इस हवेली की तो कोई ख़ास इज़ात नही बची थी पर उसके आपके पिता और भाई की इज़्ज़त पर भी दाग लग जाएगा. क्या सोचेंगे वो ये जानकर के उनकी अपनी बेटी अपने ससुर से चुदवा रही है.

"बहूरानी आपके पिता समान हैं वो. पाप है ये" भूषण ने हिम्मत जोड़कर कहा

"पाप और पुण्या क्या है काका? मैने तो कभी कोई पाप नही किया था आज तक पर मुझे क्या मिला? भारी जवानी में एक सफेद सारी?"कहते हुए रूपाली भूषण के करीब आई

"और आप काका? आप पाप की बात कर रहे हैं? क्या आप मेरे पिता समान नही हैं? कल रात जब मेरी टाँगो के बीच में अपनी उंगलियाँ घुसा रहे थे तब ये ख्याल आया था आपको के मैं आपकी बेटी जैसी हूँ? जब मेरी छाति को दबा रहे थे तब ये ख्याल आया था के ये पाप है"रूपाली का चेहरा अब सख़्त हो चला था. वो सीधा भूषण की आँखो में झाँक रही थी.

"कल जब मैने आपका अपने मुँह में ले रखा था तब ये ख्याल आया था आपको काका? नही. नही आया था क्यूंकी तब आपके साआँने आपकी बेटी जैसी एक लड़की नही सिर्फ़ एक औरत थी. मुझमें आपको सिर्फ़ एक औरत का नंगा जिस्म दिखाई दे रहा था और कुच्छ नही." कहते हुए रूपाली फिर आगे आई और अपनी सारी का पल्लू गिरा दिया.

सारी का पल्लू जैसे ही हटा तो ब्लाउस में बंद रूपाली की दोनो छातियाँ भूषण के सामने आ गयी. ब्लाउस रूपाली की बड़ी बड़ी चुचियों के हिसाब से छ्होटा था इसलिए दोनो छातियाँ जैसे बाहर को निकलकर गिर रही थी.क्लीवेज ही इतना ज़्यादा दिखाई दे रहा था के किसी के भी मुँह में पानी आ जाए.भूषण का सर चकराने लगा. उसने अपने मुँह दूसरी तरफ कर लिया.

"क्या हुआ काका? रात तो बड़ी ज़ोर से दबाया था. अब उधर क्यूँ देख रहे हो?"कहते हुए रूपाली ने भूषण का सर पकड़ा और अपनी चुचियों की तरफ घुमाया

रूपाली की दोनो छातियाँ अब भूषण के चेहरे से ज़रा ही दूर थी. रूपाली उससे लंबी थी. 70 साल का वो बूढ़ा जिस्मानी तौर पे रूपाली से कमज़ोर था. उसका चेहरा सिर्फ़ रूपाली की दोनो चुचियो तक ही आ रहा था इसलिए वो उसकी नज़रों के सामने थी. रूपाली ने फिर वो किया जिससे भूषण की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी. उसने भूषण का सर पकड़कर आगे की तरफ खींचा और अपने क्लीवेज में दबा लिया. इसके साथ ही रूपाली और भूषण दोनो के मुँह से आह निकल गयी.

भूषण का चेहरा आगे से रूपाली के नंगे क्लीवेज पे दब रहा था. उसके नंगे जिस्म का स्पर्श मिलते ही भूषण के जिस्म में फिर हलचल होने लगी. बुद्धा ही सही पर था तो मर्द ही. जब रूपाली ने पकड़ ढीली की तो उसने अपने सर पिछे हटाया और रूपाली की दोनो चुचियों की तरफ देखने लगा. कल रात उसने एक हाथ से एक छाती दबाई ज़रूर थी पर अंधेरे में कुच्छ देख ना सका था और दबाई भी बस पल भर के लिए थी. अगले ही पल रूपाली झाड़ गयी थी और उससे अलग हो गयी थी. उसकी दोनो नज़रें जैसे रूपाली की छातियों से चिपक कर रही गयी.

"क्या हुआ काका? अब ध्यान नही आ रहा बेटी और पाप का?"रूपाली ने कहा पर भूषण अब उसकी कोई बात नही सुन रहा था. वो तो बस एकटक उसकी चुचियों को ब्लाउस के उपेर से निहार रहा था. पर उसकी हिम्मत नही पड़ रही थी के इसके अलावा कुच्छ आगे कर सके.

रूपाली ने जैसे उसके दिल में उठती ख्वाहिश को ताड़ लिया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी.

"लो काका. आप भी क्या याद रखोगे. इस उमर में एक जवान जिस्म का नज़ारा करो" रूपाली को खुद पे हैरत होने लगी थी. पिच्छले दो दिन में वो दिमागी तौर पे तो बदल ही गयी थी पर उसकी ज़ुबान पे एकदम से अलग हो गयी थी. कहाँ दबी दबी सी आवाज़ में बोलने वाली एक मासूम सी लड़की और कहाँ बेबाक उँची आवाज़ में बोलती एक शेरनी के जैसी औरत जिसने शब्द भी रंडियों की तरह बोलने शुरू कर दिए थे.

रूपपली ने बटन तो सारे खोल दिए थे पर ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़ रखा था. भूषण इंतेज़ार कर रहा था के वो ब्लाउस दोनो तरफ से खोले तो उसे अंदर का नज़ारा मिले पर रूपाली वैसे ही खड़ी रही.

"क्या हुआ काका?"रूपाली ने पुचछा तो भूषण ने उसकी तरफ देखा पर कुच्छ बोला नही. मगर उसकी आँखें सॉफ उसके दिल की की बात कह रही थी.

"रूपाली धीरे से मुस्कुराइ और ब्लाउस को दोनो तरफ से छ्चोड़ दिया और ब्रा में बंद उसकी चुचियाँ भूसान के सामने थी. गोरी चाँदी पे काला ब्रा अलग ही खिल रहा था. भूषण की साँस तेज़ होने लगी थी. इस उमर में इतनी उत्तेजना उससे बर्दाश्त नही हो रही थी. लग रहा था जैसे अभी हार्ट अटॅक हो जाएगा.

"ये आपके लिए है काका. देखो जी भर के देखो" कहते हुए रूपाली ने भूषण का हाथ पकड़ा और अपनी एक चुचि पे रख दिया. उसने भूषण के हाथ पे थोड़ा ज़ोर डाला और उसका इशारा पाकर भूषण ने भी अपने हाथ को थोड़ा बंद किया. नतीजा? रूपाली की छाती थोड़ी सी दब गयी.

"ओह काका" रूपाली के मुँह से निकल पड़ा"थोड़ा सा और ज़ोर लगाओ"

उसने कहा तो भूषण ने अपना हाथ और ज़ोर से दबाया और उसकी ब्रा के उपेर से ही छाती को मसल्ने लगा.

"हां काका. ऐसे ही. और ज़ोर से. मज़ा आ रहा है ना आपको भी" कहते हुए रूपाली ने अपनी आँखें बंद कर ली.

भूषण को इतना इशारा काफ़ी थी. उसने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली की छाती पे रख दिया और दोनो छातियों को दबाने लगा. दोनो की साँस भारी हो चली थी. भूषण कभी उसकी चुचियों को सहलाता तो कभी ज़ोर लगाकर दबाता पर अब उसके हाथ में इतनी ताक़त नही बची थी. रूपाली और ज़ोर से दबाओ कह रही थी और भूषण पूरा ज़ोर लगा रहा था. दोनो एकदम चिपके खड़े थे.

रूपाली ने अपनी आँखें बंद किए ही अपना एक हाथ थोड़ा नीचे किया और पाजामे के उपेर से भूषण का लंड टटोलने लगी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. टांगे कमज़ोर हुई जा रही थी. उसने भूषण के छ्होटे से लंड को हाथ से पकड़के दबाया. उसे हैरत थी के भूषण का लंड अब भी बैठा हुआ था पर शायद इस उमर में इससे ज़्यादा वो कर भी नही सकता था. ये सोचकर रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी ब्रा के नीचे रखा और अपनी ब्रा को एक तरफ से खींचकर अपनी छाती को बाहर निकाल दिया.

अब उसकी एक छाती ब्रा के अंदर थी और दूसरी नीचे की तरफ से बाहर. वो भूषण से लगी खड़ी थी और उसका एक हाथ पाजामे के उपेर से लंड हिला रहा था. उसने आँखें खोली तो भूषण आँखें फाडे उसकी बाहर निकली छाती को देख रहा था. धीरे से भूषण का हाथ उपेर आया और उसकी नंगी छाती पे पड़ा. रूपाली जैसा पागल होने लगी. घर के बूढ़े नौकर का ही सही पर हाथ था तो एक मर्द का. उसके निपल्स खड़े हो गये थे. भूषण एक बार फिर उसकी छाती पे लग गया था और पूरी ताक़त लगाकर दबा रहा था जैसे आटा गूँध रहा हो.

"चूसोगे नही काका" रूपाली ने कहा और फिर खुद ही अपनी एक छाती को पकड़कर भूषण के मुँह की तरफ कर दिया. उसका निपल भूषण के मुँह से जा लगा. भूषण ने मुँह खोला और निपल को मुँह में लेने ही लगा था के रूपाली ने कहा

"चूसो काका. अपनी बेटी समान लड़की की छाती चूसो. जो करना है करो. पाप को भूल जाओ पर एक बात याद रखना. ये बात अगर हवेली के बाहर गयी तो गर्दन काटकर हवेली के दरवाज़े पे टाँग दूँगी"

रूपाली की आवाज़ में कुच्छ ऐसा था के भूषण अंदर तक काँप गया. जैसे किसी घायल शेरनी के गुर्र्रने की आवाज़ सुनी हो. उसका खुला मुँह बंद हो गया और वो रूपाली की तरफ देखने लगा. उसकी आँखों में डर रूपाली को सॉफ नज़र आ रहा था और रूपाली की आँखों में जो था वो देखकर तो भूषण को लगा के वो पाजामे में ही पेशाब कर देगा.

"डरो मत काका"रूपाली फिर मुस्कुराइ तो भूषण की जान में जान आई"खेलो मेरे जिस्म से. ये आपका हो सकता है जब भी आप चाहो बस आपकी ज़ुबान बंद रहे और जो मैं कहूँ वो हो जाए. आपको मेरे साथ मेरी हर बात मान लेनी होगी बिना कोई सवाल किए. समझे?" रूपाली ने पुचछा. भूषण ने हां में सर हिला दिया.

तभी बाहर कार की आवाज़ सुनकर दोनो अलग हो गये. ठाकुर शौर्या सिंग वापस आ गये थे. दोनो एक दूसरे से अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे.

इससे पहले के ठाकुर शौर्या सिंग हवेली के अंदर आते, रूपाली अपने कपड़े ठीक करते हुए जल्दी जल्दी उपेर अपने कमरे की तरफ चली गयी. उसका ब्लाउस अभी भी खुला हुआ था और एक छाती अब भी ब्रा से बाहर थी. उसने ऐसे ही आगे से ब्लाउस को दोनो तरफ से थामा और लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुँची. कमरे के अंदर पहुँचते ही उसे एक लंबी साँस छ्चोड़ दी. ब्लाउस छ्चोड़ दिया और उसकी एक छाती फिर बाहर निकल पड़ी. रूपाली अंदर से बहुत गरम हो चुकी थी. 2 दिन से यही हो रहा था. 2 बार अपने ससुर और 2 बार भूषण के करीब जाने से उसके जिस्म में जैसे आग सी लगी हुई थी. उसे खुद अपने उपेर हैरत थी के उसके जिस्म की ये गर्मी इतने सालो से कहाँ थी जो पिच्छले 2 दिन में बाहर आई थी. वजह शायद ये थी के उसने अब अपने आपको मानसिक तौर पे बदला था जिसका नतीजा अब पूरे जिस्म पे नज़र आ रहा था. वो ऐसे ही बिस्तर पे गिर पड़ी और अपनी बाहर निकली छाती को खुद ही दबाते हुए भूषण की कही बात के बारे में सोचने लगी. उसे इस हवेली के अंदर से ही तलाश शुरू करनी थी. अब 2 दिन से चल रहे खेल से आगे बढ़ने का वक़्त आ गया था. उसे चीज़ों को अब अपने हाथ में लेना था. भूषण उसकी मुट्ठी में आ चुका था. और अब बारी थी इस कड़ी के सबसे ख़ास हिस्से की, ठाकुर शौर्या सिंग की.

रूपाली शाम तक अपने ही कमरे में रही. भूषण खाने को पुच्छने आया था उसने अपने कमरे में ही मंगवा लिया. रात का अंधेरा फेल चुका था. भूषण जब खाना देने आया था उसने धीरे से रूपाली के कान में कहा के ठाकुर साहब ने उसे आज मालिश के लिए माना किया है. कहा है के आज ज़रूरत नही है.

रूपाली उसकी बात समझते हुए बोली "आज से उन्हें मालिश की ज़रूरत आपसे नही है काका" भूष्ण समझ गया के वो क्या कहना चाह रही है. वो इस हवेली में बहुत कुच्छ होता देख चुका था.

"अब और ना जाने क्या क्या देखना होगा" सोचते हुए वो वापिस चला गया.

रूपाली खाना खाकर नीचे आई तो भूषण जा चुका था. अब हवेली में सिर्फ़ वो और शौर्या सिंग रह गये थे. उसने अपने ससुर के कमरे की तरफ देखा जो शायद अंदर से बंद था. वो कमरे के आगे से निकली और किचन तक पहुँची. किचन में उसने एक कटोरी में तेल लिया और हल्का सा गरम किया. हाथ में तेल की कटोरी लिए वो शौर्या सिंग के कमरे तक पहुँची और धीरे से नॉक किया.

"अंदर आ जाओ बहू" शौर्या सिंग जैसे उसके आने का ही इंतेज़ार कर रहे थे.

रूपाली कमरे के अंदर पहुँची. वो लाल सारी में थी. हाथ में तेल की कटोरी थी. ब्लाउस के उपर का एक बटन उसने खुद ही खोला छ्चोड़ दिया था. तेल की कटोरी एक तरफ रखकर उसके अपने ससुर की तरफ देखा.

शौर्या सिंग सिर्फ़ धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो पहले ही उतार चुके थे. शौर्या सिंग और रूपाली की नज़रें मिली. दोनो ने कुच्छ नही कहा. एक दूसरे की तरफ पल भर देखने के बाद शौय सिंग बिस्तर पे जाके लेट गये और रूपाली तेल की कटोरी लिए बिस्तर तक पहुँची. साइड में रखी टेबल पे तेल रखकर वो भी बिस्तर पे चढ़ गयी. अपने ससुर के बिस्तर पर. लाल सारी में.

शौर्या सिंग उल्टे पेट के बाल लेटे हुए थे. रूपाली ने पीठ पे थोड़ा तेल गिराया और धीरे धीरे मालिश करने लगी. उसके हाथ ठाकुर की पूरी पीठ पे फिसल रहे थे. कंधो से शुरू होकर ठाकुर की गांद तक.

"थोड़ा सख़्त हाथ से करो बहू" शौर्या सिंग ने कहा तो रूपाली थोड़ा आगे होकर अपने ससुर के उपेर झुक सी गयी जिससे के उसके हाथ का वज़न ठाकुर के पीठ पे पड़े. वो अपने घुटनो के बल खड़ी सी थी. घुटने के नीचे का हिस्सा ठाकुर के फेले हुए हाथ को च्छू रहा था. ठाकुर का हाथ नीचे से उसके पेर पे सटा हुआ था और रूपाली को महसूस हो रहा था के वो उसे सहला रहे हैं. उसके खुद के जिस्म में धीरे धीरे से फिर वही आग उठ रही थी जिसे वो पिच्छले 2 दिन से महसूस कर रही थी.

जब वो पीठ पे हाथ फेरती हुई नीचे ठाकुर की गांद की तरफ जाती और फिर हाथ उपेर लाती तो उसका हाथ ठाकुर की धोती में हलसा सा अटक जाता. ऐसे ही एक बार जब हाथ फिसलकर नीचे आया तो नीचे ही चला गया. रूपाली को महसूस ही ना हुआ के कब ठाकुर ने अपनी धोती ढीली कर दी थी जिसकी वजह से उसका हाथ ठाकुर की धोती के अंदर तक चला गया. शौर्या सिंग ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था इसलिए जब रूपाली का हाथ नीचे गया तो सीधा रेंग कर ठाकुर की गांद पे चला गया. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ वापिस खींचा जैसे 100 वॉट का झटका लगा हो और शौर्या सिंग की तरफ देखा पर वो वैसे ही लेटे रहे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. रूपाली एक पल के लिए रुकी और उठकर ठाकुर के पैरो की तरफ आ गयी.

उसने तेल अपने हाथ में लेकर अपने ससुर की पिंदलियों में पे तेल मलना शुरू किया. घुटनो के नीचे नीचे उसने सख़्त हाथ से ठाकुर की टाँगो की मालिश शुरू कर दी. वो फिर अपने घुटनो के बल बिस्तर पे खड़ी सी थी और ठाकुर के दोनो पावं उसके बिल्कुल सामने. जब वो हाथ घुटनो की तरफ उपेर की और ले जाती तो उसे थोड़ा आगे होकर झुकना पड़ता और हाथ नीचे की और लाते हुए फिर वापिस पिछे आना पड़ता. मालिश करते हुए रूपाली ने महसोस्स किया के वो थोडा सा आगे खिसक गयी थी और जब झुककर वापिस पिछे आती तो ठाकुर का पंजा नीचे से उसकी जाँघ पे अंदर की और टच होता. चूत से सिर्फ़ कुच्छ इंच की दूरी पर. फिर भी रूपाली वैसे ही मालिश करती रही. ठाकुर के पेर का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था. उसने नज़र उठाकर ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो वो दोनो आँखें बंद किए पड़े थे. धोती खुली होने की वजह से थोड़ी नीचे सरक गयी थी और ठाकुर की गांद आधी खुल गयी थी.

"सीधे हो जाइए पिताजी" रूपाली ने बिस्तर के एक तरफ होते हुए कहा.

उसके पुर हाथों में तेल लगा हुआ था जो उसकी सारी पे भी कई जगह लग चुका था. सारी बिस्तर पे इधर उधर होने की वजह से सिकुड़कर घुटनो तक उठ गयी थी और घुटनो के नीचे रूपाली की दोनो टांगे खुल गयी थी.

ठाकुर उठकर सीधे हुए तो रूपाली को एक पल के लिए नज़रें नीचे करनी पड़ गयी. वजह थी ठाकुर का लंड जो पूरी तरफ खड़ा हो चुका था और धोती में टेंट बना रहा था. धोती खुली होने की वजह से ऐसा लग रहा था जैसे लंड के उपेर बस एक कपड़ा सा डाल रखा हो. रूपाली ने ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो उन्होने अब भी अपनी दोनो आँखें बंद कर रखी थी. वो फिर धीरे से आगे बढ़ी और ठाकुर की छाती पे तेल लगाने लगी. तेल लगाकर वो फिर अपने घुटनो के बल खड़ी सी हो गयी और हाथों पे वज़न डालकर तेल छाती से पेट तक रगड़ने लगी. उसकी नज़र अब भी ठाकुर के खड़े लंड पे ही चिपकी हुई थी. धोती थोड़ी से नीचे की और सरक गयी थी जिससे उसे ठाकुर की झाँटें सॉफ नज़र आ रही थी. वो जब तेल रगड़ती नीचे की और जाती तो लंड की जड़ से बस कुच्छ इंच की दूरी पे ही रुकती. दिल तो उसका कर रहा था के आगे बढ़कर लंड पकड़ ले पर अपने दिल पे काबू रखा और तेल लगाती रही. इसी चक्कर में उसकी सारी का पल्लू खिसक कर नीचे गिर पड़ा था जिसे रूपाली ने दोबारा उठाकर ठीक करने की कोशिश नही की. उसकी दोनो छातियाँ ब्लाउस में उपेर नीचे हो रही थी. उपेर का एक बटन खुला होने के कारण क्लीवेज काफ़ी हाढ़ तक गहराई तक नज़र आ रहा था. एक ही पोज़िशन में रहने के कारण रूपाली का घुटना अकड़ने लगा तो उसने अपनी पोज़िशन हल्की सी चेंज के और उसकी टाँग ठाकुर के हाथ से जा लगी. ठाकुर का हाथ सीधा उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग पे आ टिका. पर ना तू रूपाली ने साइड हटने की कोशिश की और ना ही ठाकुर ने अपना हाथ हटाने की कोशिश की. रूपाली वैसे ही ठाकुर की छाती पे तेल रगड़ती रही और नीचे धीरे धीरे ठाकुर ने उसकी टाँग को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली की आँखें भी बंद होने लगी.

अब मालिश मालिश ना रह गयी थी. रूपाली भी वैसे ही बस एक ही जगह आँखें बंद किया हाथ ठाकुर की छाती पे रगड़ रही थी और ठाकुर उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग को सहला रहा था. अचानक रूपाली ने महसूस किया के ठाकुर का हाथ उसकी सारी में उपेर की और जाने की कोशिश कर रहा है. जैसे ही ठाकुर की हाथ अंदर उसकी नंगी जाँघ पे लगा तो रूपाली की दोनो आँखें खुल गयी. उसे झटका सा लगा और वो अंजाने में ही एक तरफ को हो गयी. ठाकुर का हाथ उसकी टाँग से अलग हो गया.

एक पल को रूपाली को भी बुरा सा लगा के वो अलग क्यूँ हुई क्यूंकी ठाकुर के सहलाने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसने फिर थोड़ा सा तेल अपने हाथ में लिया और ठाकुर के पेट पे डाला. तेल को उसके रगड़कर हाथ सख़्त करने के लिए जैसे ही अपना वज़न अपने हाथ पे डाला ठाकुर के मुँह से कराह निकल गयी. शायद वज़न कुच्छ ज़्यादा हो गया था. वो हल्का सा मुड़े और एक हाथ से रूपाली की कमर को पकड़ लिया.

"माफ़ कीजिएगा पिताजी" रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा पर वो कुच्छ नही बोले और आँखें वैसे ही बंद रही.

रूपाली ने फिर मालिश करनी शुरू कर दी पर ठाकुर का हाथ वहीं उसकी कमर पे ही रहा. उन्होने उसकी ब्लाउस और पेटिकोट के बीच के हिस्से से कमर को पकड़ रखा था. नंगी कमर पे उनका हाथ पड़ते ही रूपाली जैसे हवा में उड़ने लगी. ठाकुर का हाथ धीरे धीरे फिर उसकी कमर को सहलाने लगा और रूपाली की आँखें फिर बंद हो गयी. वो ठाकुर को पेट को सहलाती रही और वो उसकी नंगी कमर को. हाथ धीरे से आगे से होकर उसके पेट पे आया और फिर कमर पे चला गया. अब वो उसके नंगे पेट और कमर को सिर्फ़ सहला नही रहे थे, बल्कि मज़बूती से रगड़ रहे थे. एक बार ठाकुर का हाथ रूपाली के पेट पे गया तो सरक कर आगे आने की बजाय नीचे की और उसकी गांद पे गया. उन्होने एक बार हाथ रूपाली की पूरी गांद पे फिराया और फिर उसके एक कूल्हे को अपने मुट्ठी में पकड़ लिया.

रूपाली फिर चिहुन्क कर एक तरफ को हुई. वो शायद इन अचानक हो रहे हमलो से थोड़ा सा घबरा सी जाती पर ठाकुर का हाथ हट जाते ही अगले ही पल खुद अफ़सोस करती क्यूँ ठाकुर के हाथ का मज़ा आना बंद हो जाता.

"लाइए आपके हाथ पे कर देती हूँ" कहते हुए रूपाली ने ठाकुर का अपनी तरफ का हाथ सीधा किया. ठाकुर का पंजा उसके कंधे पे आ गया और वो दोनो हाथ से अपने ससुर की पूरी आर्म पे तेल लगाके मालिश करने लगी. उसकी सारी का पल्लू अब भी नीचे था और छातियाँ सिर्फ़ ब्लाउस में थी. ब्रा रूपाली आने से पहले ही उतारकर आई थी. उसके ससुर की कलाई उसकी एक छाती पे दब रही थी जिसकी वजह से ब्लाउस पे पूरा तेल लग गया था. लाल ब्लाउस होने के बावजूद उसके निपल्स सॉफ नज़र आने लगे थे. जैसे जैसे उसकी मालिश का दबाव ठाकुर के हाथ पे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही उनकी कलाई का दबाव उसकी छाती पे बढ़ रहा था. धीरे धीरे हाथ कंधे से सरक कर उसके गले पे आ गया और ठाकुर की आर्म उसकी दोनो छातियों पे दब गयी. रूपाली की साँस भारी हो चली थी और उसे महसूस हो रहा था के ठाकुर की साँस भी तेज़ हो रही है. रूपाली ने बंद आँखें खोली तो देखा के ठाकुर की छाती तेज़ी से उपेर नीचे हो रही है. लंड अब पूरा अकड़ चुका था और धोती में हिल रहा था. धोती अब भी लंड के उपेर पड़ी थी इसलिए रूपाली सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकती थी के वो कैसा होगा. चाहकर भी वो धोती को लंड से हटाने से अपने आपको रोके हुए थी. ठाकुर ने अब उसकी छातियों पे अपनी आर्म का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया था. उनके हाथ का पंजा रूपाली के क्लीवेज पे हाथ और नीचे वो अपनी कलाई से उसकी दोनो छातियों को रगड़ रही थी.

रूपाली ने ठाकुर के अपनी तरफ के हाथ को छ्चोड़कर दूसरे हाथ को उठाया. वो अब भी उसी साइड बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसे दूसरा हाथ अपनी तरफ लेना पड़ा. पहले हाथ की तरफ ये हाथ उसके कंधे तक नही पहुँचा. ठाकुर ने उसके इशारे से पहले ही खुद डिसाइड कर लिया के हाथ कहाँ रखा जाना चाहिए. उन्होने हाथ उठाकर सीधा रूपाली की दोनों चूचियों पे रख दिया. रूपाली की साँस अटकने लगी. ये ठाकुर का अपने हाथ से उसकी चूची पे पहला स्पर्श था. उसने इस बार ना तो पिछे होने की कोशिश की और ना ही हाथ हटाके कहीं और रखने की कोशिश की. वो चुपचाप आर्म पे मालिश करने लगी और ठाकुर ने अब सीधे सीधे उसकी दोनो चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. दोनो की साँस तेज़ हो चली थी और दोनो की ही आँखें बंद थी. ठाकुर ज़ोर ज़ोर से रूपाली की दोनो चूचियों को मसल रहे थे और वो भी अब मालिश नही, उनके हाथ को सहला रही थी जो उसे इतने मज़े दे रहा था. ठाकुर ने अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसकी गांद पे रखा दिया और सहलाने लगे.वो उसके दोनो कूल्हे अपने हाथ में पकड़ने की कोशिश करते पर रूपाली की मोटी गांद का थोड़ा सा हिस्सा ही पकड़ पाते. अब दोनो के बीच पर्दे जैसे कुच्छ नही रह गया था और जो हो रहा था वो सॉफ तौर पे हो रहा था पर फिर भी दोनो में से बोल कोई कुच्छ नही रहा था. ठाकुर का हाथ अब सारी के उपेर से ही उसकी गांद के बीचो बीच रेंग रहा था और धीरे से पिछे से होता उसकी चूत पे आ गया और इस बार रूपाली और बर्दाश्त नही कर सकी. उसे लगा के अब अगर वो नही हटी तो ठाकुर को लगेगा के वो भी चुदने के लिए बेताब है जो उसके प्लान का हिस्सा नही था.

"मैं चलती हूँ पिताजी. मालिश हो गयी" कहकर रूपाली उठने लगी पर ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़के फिर बिठा लिया.

रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा तो वो आँखें खोल चुके थे. उसे सवालिया नज़रों से ठाकुर की तरफ देखा जैसे पुच्छ रही हो के अब क्या और इससे पहले के कुच्छ समझ पाती, ठाकुर ने एक हाथ से अपनी खुली हुई धोती को एक तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से रूपाली का हाथ अपने लंड पे रख दिया जैसे कह रहे हों के यहाँ की मालिश रह गयी.

रूपाली ने हाथ हटाने की कोशिश की पर ठाकुर ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुच्छ पल दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से रूपाली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की और किया. ठाकुर इशारा समझ गये की रूपाली मान गयी है और उन्होने अपना हाथ हटा लिया. रूपाली ने दूसरे हाथ से लंड पे थोड़ा तेल डाला और अपना हाथ उपेर नीचे करने लगी. ठाकुर के लंड पे जैसे उसकी नज़र चिपक गयी थी. उसने अब तक देखे सिर्फ़ 2 लंड थे. अपने पति का और अब ठाकुर का. यूँ तो उसने भूषण का लंड भी पकड़ा था पर उसे देखा नही थी. और भूषण का छ्होटा सा लंड तो ना होने के बराबर ही था. वो दिल ही दिल में ठाकुर के लंड को अपने पति के लंड से मिलाने लगी. ठाकुर का लंड लंबाई और चौड़ाई दोनो में उसके पति के लंड से दुगना था. रूपाली के मुँह में जैसे पानी सा आने लगा और नीचे चूत भी पूरी तरह गीली हो गयी. अब जैसे उसे खबर ही नही थी के वो क्या कर रही है. बस एकटूक लंड को देखते हुए अपना हाथ ज़ोर ज़ोर से उपेर नीचे कर रही थी. थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ थकने लगा तो उसने अपना दूसरा हाथ भी लंड पे रख दिया और दोनो हाथों से लंड को हिलाने लगी जैसे कोई खंबा घिस रही हो. ठाकुर को एक हाथ वापिस उसकी गांद पे जा चुका था और नीचे सारी के उपेर से उसकी चूत को मसल रहा था. रूपाली दोनो हाथों से लंड पे मेहनत कर रही थी और नीचे ठाकुर की अंगलियों उसकी चूत को जैसे कुरेद रही थी. रूपाली ने इस बार हटने की कोई कोशिश नही की थी. चुपचाप बैठी हुई थी और चूत मसलवा रही थी. उसका ब्लाउस तेल से भीग चुका था और उसके दोनो निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे पर उसे किसी बात की कोई परवाह नही थी. उसे तो बस सामने खड़ा लंड नज़र आ रहा था. ठाकुर ने दूसरा हाथ उठाके उसकी छाती पे रख दिया और उसकी बड़ी बड़ी छातियों को रगड़ने लगे. एक उंगली उसके क्लीवेज से होती दोनो छातियों के बीच अंदर तक चली गयी. फिर उंगली बाहर आई और इस बार ठाकुर ने पूरा हाथ नीचे से उसके ब्लाउस में घुसाकर उसकी नंगी छाती पे रख दिया. ठीक उसी पल उन्होने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों को रूपाली की चूत पे ज़ोरसे दबाया. रूपाली के जिस्म में जैसे 100 वॉट का कुरेंट दौड़ गया. वो ज़ोर से ठाकुर के हाथ पे बैठ गयी जैसे सारी फाड़ कर उंगलियों को अंदर लेने की कोशिश कर रही हो. उसके मुँह से एक लंबी आआआआआअहह छूट पड़ी और उसकी चूत से पानी बह चला.. अगले ही पल ठाकुर उठ बैठे, रूपाली को कमर से पकड़ा और बिस्तर पे पटक दिया.इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती, लंड उसके हाथ से छूट गया और ठाकुर उसके उपेर चढ़ बैठे. उसकी पहले से ही घुटनो के उपेर हो रखी सारी को खींचकर उसकी कमर के उपेर कर दिया. रूपाली आने से पहले ही ब्रा और पॅंटी उतारके आई थी इसलिए सारी उपेर होते ही उसकी चूत उसके ससुर के सामने खुल गयी. रूपाली को कुच्छ समझ में नही आ रहा था इसलिए उसकी तरफ से ठाकुर को कोई प्रतिरोध का सामना ना करना पड़ा. वो अब अब तक ठाकुर के अपनी चूत पे दभी उंगलियों के मज़े से बाहर ही ना आ पाई थी. जब तक रूपाली की कुच्छ समझ आया के क्या होने जा रहा है तब तक ठाकुर उसकी दोनो टांगे खोलके घुटनो से मोड़ चुके थे. उसके दो पावं के पंजे ठाकुर के पेट पे रखे हुए थे जिसकी वजह से उसकी चूत पूरी तरह से खुलके ठाकुर के सामने आ गयी थी. रूपाली रोकने की कोशिश करने ही वाली थी के ठाकुर ने लंड उसकी चूत पे रखा और एक धक्का मारा.

रूपाली के मुँह से चीख निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी ने उसके अंदर एक खूँटा थोक दिया हो. एक तो वो 10 साल से चुदी नही थी और 10 साल बाद जो लंड अंदर गया वो हर तरह से उसके पति के लंड से दोगुना था. उसकी चूत से दर्द की लहर उठकर सीधा उसके सर तक पहुँच गयी. उसका पूरा जिस्म अकड़ गया और उसने अपने दोनो पावं इतनी ज़ोर से झटके के ठाकुर की मज़बूत पकड़ में भी नही आए. उसने बदन मॉड्कर लंड चूत से निकालने की कोशिश की पर तब तक ठाकुर उसके उपेर लेट चुके थे. रूपाली ने अपने दोनो नाख़ून ठाकुर की पीठ में गाड़ दिए. कुच्छ दर्द की वजह से और कुच्छ गुस्से में और कुच्छ ऐसे जैसे बदला ले रही हो. उसके दाँत ठाकुर के कंधे में गाडते चले गये. इसका नतीजा ये हुआ के ठाकुर गुस्से में थोड़ा उपेर को हुए और उसके ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़के खींचा. खाट, खाट, खाट, ब्लाउस के सारे बटन खुलते चलये गये. ब्रा ना होने के कारण रूपाली की दोनो चुचियाँ आज़ाद हो गयी. बड़ी बड़ी दोनो चूचियाँ देखते ही ठाकुर उनपर टूट पड़े. एक चूची को अपने हाथ में पकड़ा और दूसरी का निपल अपने मुँह में ले लिया. रूपाली के जिस्म में अब भी दर्द की लहरें उठ रही थी. तभी उसे महसूस हुआ के ठाकुर अपना लंड बाहर खींच रहे हैं पर अगले ही पल दूसरा धक्का पड़ा और इस बार रूपाली की आँखों के आगे तारे नाच गये. चूत पूरी फेल गयी और उसे लगा जैसे उसके अंदर उसके पेट तक कुच्छ घुस गया हो. ठाकुर के अंडे उसकी गांद से आ लगे और उसे एहसास हुआ के पहले सिर्फ़ आधा लंड गया था इस बार पूरा घुसा है. उसकी मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी

"आआआआहह पिताजी" रूपाली ने कसकर दोनो हाथों से ठाकुर को पकड़ लिया और उनसे लिपट सी गयी जैसे दर्द भगाने की कोशिश कर रही हो.

उसका पूरा बदन अकड़ चुका था. लग रहा था जैसे आज पहली बार चुद रही हो. बल्कि इतना दर्द तो तब भी ना हुआ था जब पुरुषोत्तम ने उसे पहली बार चोदा था. उसके पति ने उसे आराम से धीरे धीरे चोदा था और उसके ससुर ने तो बिना उसकी मर्ज़ी की परवाह के लंड जड़ तक अंदर घुसा दिया था.. ठाकुर कुच्छ देर यूँही रुके रहे. दर्द की एक ल़हेर उसकी छाती से उठी तो रूपाली को एहसास हुआ के दूसरा धक्का मारते हुए उसके ससुर ने उसकी एक चूची पे दाँत गढ़ा दिए थे. ठाकुर ने अब धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए थे. लंड आधा बाहर निकालते और अगले ही पल पूरा अंदर घुसा देते. रूपाली के दर्द का दौर अब भी ख़तम नही हुआ था. लंड बाहर को जाता तो उसे लगता जैसे उसके अंदर से सब कुच्छ लंड के साथ साथ बाहर खींच जाएगा और अगले पल जब लंड अंदर तक घुसता तो जैसे उनकी आँखें बाहर निकलने को हो जाती. उसकी पलकों से पानी की दो बूँदें निकलके उसके गाल पे आ चुकी थी. उसकी घुटि घुटि आवाज़ में अब भी दर्द था जिससे बेख़बर ठाकुर उसे लगातार चोदे जा रहे था. लंड वैसे ही उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था बल्कि अब और तेज़ी के साथ हो रहा था. ठाकुर के हाथ अब रूपाली की मोटी गांद पे था जिसे उन्होने हाथ से थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे अब भी लगे हुए थे और बारी बारी दोनो चूस रहे थे. रूपाली की दोनो टाँगें हवा में थी जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रही थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी पड़ती. कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.रूपाली की गांद पे ठाकुर के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप की आवाज़ उठ रही थी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. अचानक एक ज़ोर का धक्का रूपाली के चूत पे पड़ा, लंड अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुच्छ गरम पानी सा भरने लगा. उसे एहसास हुआ के ठाकुर झाड़ चुके हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना रही थी के काम ख़तम हो गया. ठाकुर अब उसके उपेर गिर गये थे. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी रूपाली के गांद पे था और मुँह में एक निपल लिए धीरे धीरे चूस रहे थे. रूपाली एक लंबी साँस छ्चोड़ी और अपनी गर्दन को टेढ़ा किया. उसकी नज़र दरवाज़े पे पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और जिसके बाहर खड़ा भूषण सब कुच्छ देख रहा था.
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RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच - by sexstories - 06-21-2018, 12:10 PM

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