Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
06-19-2018, 12:44 PM,
#55
RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
जेठ जी के जाने के बाद मैं भी बाथरूम जाकर फ्रेश हुई और बाहर आई तो देखा कि जेठ जी बाहर ही बैठे हैं..
मुझे देखकर बोले- सब ठीक है। 
मैं भी संतोष के कमरे की तरफ गई.. संतोष अपने कमरे में नहीं था, मैं बाथरूम से आती आवाज सुनकर बाथरूम की तरफ चली गई और ध्यान से आवाज सुनने की कोशिश करने लगी शायद अन्दर संतोष कुछ कर रहा था। यह देखने के लिए कि वह कर क्या रहा है.. मैं दरवाजे के बगल में बने रोशनदान से संतोष को देखने के लिए वहाँ रखी चेयर के ऊपर चढ़कर देखने लगी। 
यह क्या..! बाथरूम के अन्दर के हालात को देखकर मैं चौंक गई.. संतोष पूरी तरह नंगा था और अपने हाथ से अपने लण्ड को हिलाते हुए मेरे नाम की मुठ्ठ मारते मेरी चूत और चूचियों का नाम ले कर लण्ड सौंट रहा था। संतोष का लण्ड भी काफी फूला और मोटा लग रहा था।
सुपारा तो देखने में ऐसा लग रहा था जैसे लवड़े के मुहाने पर कुछ मोटा सा टोपा रखा हो। लेकिन ज्यादा चौंकने की वजह यह थी कि एक 19 साल का लड़के का इतना फौलादी लण्ड.. बाप रे बाप..
आइए मैं आपको सुनाती हूँ कि कैसे मेरा नाम लेकर मेरा ही नौकर अपना लण्ड सौंट रहा था।
‘आहह्ह्ह.. डॉली मेम्म्म् साहब.. क्या तेरी चूत है.. क्या तेरे मस्त लचकते चूतड़ हैं.. और हाय तेरी चूचियाँ.. तो मेरी जान ही ले रही हैं.. आहह्ह.. ले खा मेरे लौड़े को अपनी चूत में.. आहह्ह.. डॉली मेम्म्म्म्म साससाब.. गया मेरा लौड़ा.. तेरी चूत में.. आह सीईईई.. मैं गया.. आह.. मेम्म्म्म्म साब.. तेरी चूत में मेरा लौड़ा पानी छोड़ रहा है..’
यह कहते हुए संतोष का लण्ड वीर्य उगलने लगा।
फिर मैं वहाँ से हट कर संतोष के सोने के लिए जो चौकी थी.. उसी पर बैठ कर संतोष की प्रतीक्षा करने लगी।
कुछ देर बाद संतोष ने बाथरूम का जैसे ही दरवाजा खोला.. मेरी और उसके निगाहों का आमना-सामना हो गया, वह मुझे देखकर उछल उठा- आअअअप यय..हाँ मेम साहब जी..!
संतोष बाथरूम से अंडरवियर में ही बाहर आ गया था, वह मुझे सामने पाकर घबराने लगा। 
‘संतोष मैं आई तो तुम यहाँ नहीं थे.. मैं जाने लगी.. तो बाथरूम से मुझे तुम्हारी कुछ आवाजें सुनाई दीं.. तो मैं रूक कर इन्तजार करने लगी। कुछ तबियत वगैरह सही नहीं है क्या संतोष?’
‘ननन…नहीं तो..’
‘तो.. फिर तुम्हारी आवाज कुछ सही नहीं लग रही थी.. क्या बात है?’
‘वो कुछ नहीं मेम्म.. बस ऐसे ही..’
‘लेकिन तुम क्यों अंडरवियर में ही खड़े हो.. कपड़े पहनो..’
‘मेम्म.. मेरे कपड़ों पर आप बैठी हैं..’
मैं भी चौंकते हुए- ओह्ह.. वो मैंने देखा ही नहीं.. मैं चलती हूँ.. तुम तुरन्त आओ काम है..
मैं वहाँ से हॉल में आकर बैठ गई।
जेठ जी रूम में थे.. तभी संतोष आ गया।
‘जी मेम साहब.. क्या काम है?’
‘तुम चाय बना लाओ और भाई साहब के साथ जाकर मार्केट देख भी लो और सब्जी भी ले लेना..’
‘ठीक है मेम साहब..’ 
फिर संतोष ने चाय बना कर दी। मैंने और जेठ ने एक साथ ही चाय पी और फिर संतोष के साथ मार्केट चले गए। मैं अकेली बैठी थी.. कुछ देर बाद मैं भी छत पर घूमने चली गई। 
मैं छत पर टहल ही रही थी कि चाचा की आवाज सुनाई दी ‘हाय मेरी जान.. कैसी हो?’ 
यह कहते हुए चाचा मेरी छत पर आकर मुझसे सटकर खड़े हो कर मेरी छाती पर हाथ रखकर मेरी चूचियों को दबाने लगे।
मैं गनगना उठी- आहह्ह्ह.. थोड़ा धीमे दबाओ ना.. बुढ़ौती में जवानी दिखा रहे हो..
‘हाँ मेरी जान.. जब लौड़ा चूत में गया था.. कैसा लगा था? बुड्ढे का कि जवान मर्द का?’
ये कहते हुए वे मेरी बुर पर हाथ ले जाकर सहलाने लगा।
‘यह क्या कर रहे हो.. कोई आ गया तो..!’
‘इतने अंधेरे में हम तुम सही से दिख नहीं रहे.. कोई आकर ही क्या देख लेगा..’
चाचा ने मुझे बाँहों में भर लिया। अपने लौड़े का दबाव मेरी बुर पर देते हुए मेरे होंठों को किस करने लगे। 
मैं भी चाचा को तड़फाने का सोच कर बोली- वह देखो कोई आ गया है..
और जैसे ही चाचा चौंक कर उधर देखने लगे.. मैं चाचा से छुड़ाकर दूर भागी.. ‘आप क्या उखाड़ोगे मेरी चूत का.. अब यह काम आपके बस का नहीं है.. यह काम किसी जवान मर्द का है।’

मैं यह सब चाचा को चिड़ाने और उकसाने के लिए कर रही थी और हुआ भी यही.. चाचा मेरी तरफ लपके.. पर मैं छत पर भागने लगी। चाचा मेरे पीछे और मैं आगे.. दाएं-बाएं करते हुए चाचा को चिड़ाती रही। 
‘अरे चचा काहे को मेरे पीछे भाग रहे हो.. बुढ़ौती है, थक जाओगे.. अब आप वह सांड नहीं रहे.. जो कभी हम जैसी गरम औरतों की चूत पर चढ़कर गरमी निकाल देते थे.. अब वह जोश कहाँ है आप में..’ 
तभी चाचा ने मुझे दबोच लिया, मुझे दबोचते हुए बोले- अब देख साली.. मैं तेरा और तेरी इस बुर और गांड का क्या हाल करता हूँ। तेरी बुर को तो मैं आज अपने इस लौड़े से चोद कर कचूमर निकाल दूँगा.. और तेरी गदराई गांड को भी आज फाड़ कर तुमको अपने लण्ड का परिचय दूँगा.. अभी तेरी ऐसी चुदाई करता हूँ.. कि हफ्ता भर तू सीधी तरह चल भी ना सकेगी..
और मुझे चाचा वहीं छत पर ही पटक कर नंगी करने लगे।
मैं मन ही मन बड़बड़ाई कि यह तो मेरा ही दांव उलटा पड़ रहा है.. इस टाईम अगर यह मेरी चुदाई चालू कर देगा.. तो ठीक नहीं रहेगा। कोई आ गया तो इसका क्या यह मर्द है.. साला निकल लेगा.. फसूंगी मैं.. किसी तरह चाचा को रोकूँ। 
‘चाच्चचाचा.. छोड़ो.. कोई आ जाएगा..!’
‘बस मेरी रानी.. बस एक मिनट रूको अभी मैं दिखाता हूँ कि बुढ्ढा किसे कहा है..’
‘मममममैं.. मजाक कर रही थी.. आप तो मर्दों के मर्द हो.. बाबा अब तो छोड़ो.. मैं रात को आऊँगी.. तब दिखाना अपनी मर्दानगी.. मैं आपको अपनी वासना दिखाऊँगी..’ 
पर चाचा मेरी चूचियों और चूतड़ों को भींचते हुए मुझे अपनी बाँहों में क़ैद करके मेरे होंठों का रस पान करने लगे। मैं चाचा की बाँहों में बस मचलती हुई चाचा की हरकतों को पाकर गरम होने लगी थी। मेरी बुर चुदने के लिए एक बार फिर फड़कने लगी और मैं चाचा की ताल से ताल बजाने लगी।
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