RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
चाचा मेरे तमतमाते होंठों को चूमने लगे और मैं सेक्स में मान-मर्यादा भूल कर अपने ससुर के समान बुढ्ढे से बेहया बन गई थी ‘हाँ.. कर रहा था.. बहुत कर रहा था.. इसी लिए मैं यहाँ आई थी.. आपका प्यार पाने..’
मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी।
चाचा के होंठ अब मेरे गालों पर थे- और क्या करवाने को कर रहा है?
मेरे गालों को काटते हुए चाचा ने पूछा।
‘वही सब करवाने को.. जो आप करने को आप यहाँ आए हैं..’
‘नहीं.. आज तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा.. नहीं बोलना चाहती हो तो मैं चला जाऊँगा।’
‘नन्..न..नहीं.. रुको मैं बताती हूँ.. मेरा मन कर रहा था चुदवाने का.. तुमसे आज अपनी चूत चुदवाने ही तो आई हूँ!’
और यह कह कर मैंने भी चाचा के गालों पर कस के चुम्मी लेकर उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया- तो अब चोदो ना.. अब तो मेरे मन की बात तो जान ली ना.. अब चोदो ना..
‘ले.. अभी चोदता हूँ.. अपनी रानी को..’
और चाचा वहीं बगल में ले जाकर के मुझे खड़े-खड़े ही मेरे जोबन को कसके रगड़ने.. मसलने और चूमने लगे और मेरी जवानी को चाचा हाथों से कस-कस कर रगड़ते जा रहे थे, मेरे चूचुकों को पकड़े हुए और मेरे उत्तेजित अंगूरों को कस-कस के चूसते लगे।
चाचा मेरी दोनों जांघों के बीच मेरी योनि प्रदेश पर अपना लण्ड नेकर से निकाल कर लगा करके मेरे भगनासे को लण्ड से रगड़ने लगे। चाचा के ऐसा करने से लण्ड मेरी योनि रस से भीग कर मेरी चूत पर फिसलने लगा।
मैं चाचा के लण्ड से चुदने के लिए व्याकुल हो कर सिसकारी लेते हुए बोली- प्लीज.. आहह्ह्ह् सीईईई.. चोदो ना.. मेरी बुर.. आहह्ह्ह् अब इन्तजार नहीं हो रहा.. डाल दो मेरी चूत में अपना लण्ड..
और मैं चूत चुदाने के नशे में अंधी होकर पूरी जांघें खोल कर लण्ड के अन्दर जाने का इन्तजार साँसें रोक कर करने लगी।
मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी ‘बस.. बस करो ना.. अब और कितना.. उह्ह्ह.. उह्ह्ह.. ओह्ह्ह.. बस्स्स्स.. और मत तड़पाओ.. डाल दो ना…’
शायद मेरी फरियाद सुन कर चाचा को मेरे ऊपर दया आ गई। मेरी फड़कती चूत को देखकर चाचा ने मेरी बुर में अपना लण्ड घुसाने के लिए मेरी चूत के मुहाने पे लण्ड लगा कर.. मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर पूरी ताकत से धक्का लगा दिया।
चाचा का सुपाड़ा मेरी चूत के अन्दर घुस गया था।
‘उह.. उफ्फ्फ उह आहह्ह्ह..’ करते हुए चाचा से लिपट कर पूरी चूत चाचा के हवाले करके मैं बुर को चाचा की तरफ करके दूसरे शॉट का इंतजार करने लगी।
चाचा मेरी चूचियों को मुँह में भरकर लण्ड को चूत पर दबाने लगे।
तभी मेरे कानों में पति के बुलाने की आवाज सुनाई पड़ी- डॉली कहाँ हो.. मुझे जाना है.. मैं सो गया और तुमने जगाया भी नहीं.. डॉली कहाँ हो?
मेरी तो वासना काफूर हो गई.. अब क्या करूँ मैं?
मैंने चाचा को जाने को बोला.. पर चाचा छोड़ ही नहीं रहे थे।
‘प्लीज चाचा जाओ.. वोव्व्व्व्वो हह्हस्बेण्ड आ जाएंगे।’
तभी मुझे लगा कि पति सीढ़ी चढ़ रहे हैं ‘वो आ रहे हैं प्लीज छोड़ो.. नहीं तो बवाल हो जाएगा।’
यह कहते हुए पता नहीं कहाँ से मेरे अन्दर इतनी ताकत आ गई कि मैंने चाचा को दूर ढकेल दिया।
जैसे ही चाचा दूर हुए.. ‘फक्क’ की आवाज के साथ सुपारा बाहर निकल गया।
मैं बोली- जाओ आप.. मैं भी प्यासी हूँ व्याकुल हूँ.. आपसे चुदने को.. पर अभी आप भागो यहाँ से..
और चाचा तुरन्त दीवार फांद कर छत पर बने कमरे के पीछे चले गए। पर अब एक और मुसीबत थी.. मैं सेक्स के नशे में इतनी अंधी हो गई थी कि मैं बिना कपड़े पहने ही छत पर आ गई थी और पति एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए ऊपर आ रहे थे.. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मुझे ऐसी हालत में देख कर वे क्या सोचेगें और अब क्या होगा?
तभी शायद एक या दो बची हुई सीढ़ी से ही उन्होंने आवाज दी- डॉली कहाँ हो.. छत पर हो क्या?
तभी मुझे याद आई नाईटी तो मैं सूखने को डाली थी.. वही पहन लेती हूँ।
मैं यहाँ पति का जबाब देना उचित समझ कर बोल पड़ी- हाँ.. मैं यहाँ हूँ.. आई..!
ये कहते हुए मैं नाईटी लेने को लपकी और नाईटी लेकर बगल में होकर पहन कर.. मैं अपने घबड़ाहट पर कंट्रोल कर रही थी कि पति सामने आ गए।
‘तुम यहाँ क्या कर रही हो.. और यह क्या.. तुम्हारे कपड़े तो कमरे में पड़े है.. और तुम यहाँ नाईटी में क्या कर रही हो? कोई तुमको इस हालत में देख लेता तो..?’
‘मैं यहाँ चुदने आई थी.. पर यहाँ तो परिन्दा भी नहीं है, जो मेरी चुदाई कर सके.. शायद मेरी किस्मत में आज चुदाई लिखी ही नहीं है।’
मैं पति से जानबूझ कर थोड़ा गुस्सा होकर बोली।
‘नहीं मेरी जान.. मैं ज्यादा गरम हो गया था.. इसलिए तुम्हारी चूत की गरमी सहन नहीं कर सका और मेरा पानी निकल गया.. पर तुम इस समय यहाँ से नीचे चलो.. कोई तुम्हारी जिस्म को देख लेगा तो मेरे ना रहने पर तुम्हारा बलात्कार कर बैठेगा और फिर मेरी बदनामी होगी सो अलग.. कि मेरी वाईफ नंगी ही छत पर घूमती है.. उसके जिस्म की आग नहीं बुझ रही है।’
अब पति मुझको पकड़ कर मनाते हुए नीचे लेकर चल दिए और मैं भी ज्यादा नखरा ना करते हुए पति के बाँहों में चिपक गई और नीचे आ गई, फिर मैंने रसोई में जाकर चाय बनाई।
चाय पीकर पति तैयार होकर आफिस के लिए निकल गए, जाते हुए मुझे समझाते गए- तुम अपने कपड़े ठीक कर लो और मैं यहाँ से जाते ही संतोष को भेजता हूँ तुम उससे बात करके डिसाईड कर लेना कि क्या करना है और मुझे फोन करके बता देना।
फिर पति मेरी चूचियों को दबाते हुए किस करके बोले- जान आज रात तुम्हारी चूत की सारी गरमी निकाल दूँगा.. वादा है.. अब तो हँस दो।
और मैं भी मुस्कुराते हुए पति के होंठों का किस करने लगी।
पति के जाने के बाद मैं मुख्य दरवाजा बन्द करके बेडरूम में आ गई। मैंने नाईटी को निकाल कर एक दूसरा टू-पीस की नाईटी पहन ली।
नाईटी के अन्दर सिर्फ ब्रा पहनी.. चूत बिना पैन्टी के ही रहने दी। फिर मैं बेड पर बैठ कर कुछ देर पहले बीते हुए पलों को याद करने लगी।
मैं भी क्या बेहया बन गई थी.. अपने पड़ोसी वो भी एक बुड्डे के लण्ड से मैं अपनी चूत लड़ा बैठी.. पर जो भी हो जैसा भी हो.. साले का लण्ड मस्त है.. और मैं तो गई भी नहीं थी.. वही खुद मेरे पास आया है.. इसका मतलब उसे भी एक चूत की आवश्यकता है। आज कुछ देर और पति नहीं जागे होते और ऊपर छत पर नहीं आते तो मैं आज पड़ोसी के लण्ड से चूत चुदवा कर संतुष्ट हो चुकी होती।
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