RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
मैंने रसोई में जाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला.. सामने जेठ जी बैठे दिखाई दिए।
मेरा जेठ जी से सामना होते ही मुझे शरम आ गई और मैं निगाह नीचे किए हुए रसोई में चली गई, मैंने खाना गरम करके खाने की टेबल पर लगा दिया।
मैंने नोटिस किया कि जेठ की निगाहें अब भी मेरे जिस्म का मुयायना कर रही थीं।
तभी ह्ज्बेंड भी बाहर आ गए और एक साथ सब बैठ कर लन्च करने लगे।
मैं और ह्ज्बेंड एक तरफ थे और जेठ जी सामने बैठे थे और जेठ जी इस मौके का भी पूरा फायदा उठा रहे थे। वह टेबल के नीचे मेरे पैर से पैर सटाकर सहलाने लगे और मैं उनकी इस हरकत से डर रही थी कि कहीं ह्ज्बेंड को पता ना चल जाए.. इसलिए मैं बिलकुल शांत दिखना चाह रही थी..
पर जेठ की ढिठाई कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी, इतना सब हो जाने पर भी मैं जेठ जी से चुदना नहीं चाहती थी.. भले मेरी चूत में गैर का लण्ड लेने की इच्छा बढ़ रही थी.. परन्तु मैं अपनी ईज्जत घर में नीलाम नहीं करना चाहती थी.. बाहर अगर कोई चोदता है.. तो उससे कोई लेना-देना नहीं रहता.. बस चूत चुदाओ और वह अपने रास्ते.. मैं अपने.. पर यहाँ तो जेठ की नीयत मेरे पर ठीक नहीं थी।
पता नहीं कब से.. पर उनकी हिम्मत कभी नहीं हुई लेकिन इस सबका कारण मैं थी.. मैंने क्यों उनको अपने जिस्म को देखने दिया.. क्यों मैंने अपना बदन नहीं ढका.. और फिर मैं भी तो वासना के नशे में चूर हो कर उनकी हरकतों का कोई विरोध नहीं कर पाई।
जेठ जी तो वाईफ के न रहने के बाद से अब तक बेचारे चूत के लिए तरस रहे थे, पता नहीं कितनी बार मुझे चुदते देख कर या मेरी कल्पना करके मेरे नाम की मुठ मार चुके होगें.. पर कभी मेरे साथ छेड़खानी नहीं की थी।
इसमें जेठ जी का दोष नहीं है.. उनको भी एक जनाना जिस्म और चूत की जरूरत है.. पर मैं अपनी चूत कैसे दे सकती हूँ। यह काम मैं नहीं कर सकती.. मेरी कल्पना को शायद ह्ज्बेंड ने ताड़ लिया था।
ह्ज्बेंड बोले- क्या हुआ.. किस सोच में डूबी हो.. हम लोग खाना खा चुके हैं.. और तुम अभी वैसे ही बैठी हो।
मैं हकलाते हुए बोली- ककक..कुछ.. नननन..हहीं.. बस ऐसे ही..
और मैं खाना खत्म करके बर्तन लेकर रसोई में चली गई, फिर साफ-सफाई करके मैं बेडरूम में आकर लेट गई, ह्ज्बेंड पहले से ही बिस्तर पर लेटे थे, मैं उनके बगल में लेट गई।
कुछ देर बाद ह्ज्बेंड ने कहा- ज्यादा मन हो रहा है चुदने का?
मैं जानबूझ कर बोली- कुछ खास नहीं..
वह बोले- लेकिन तुम खाने के दौरान गहरी चिंता में थीं.. बताओ क्या बात है?
मैं बोली- कुछ नहीं..
तब ह्ज्बेंड बोले- मुझे पता है..
ह्ज्बेंड के इतना कहते ही मैं कांप गई.. क्या पता है.. कहीं मेरे और जेठ के बीच की बात तो नहीं?
मैं- क्या पता है आपको?
‘यही कि तुम्हारी इतनी चुदाई हो चुकी है कि तुम्हारी चुदने की इच्छा बढ़ गई है।’
मैंने सिर्फ ‘हाँ’ मैं सर हिला दिया और ह्ज्बेंड मुझे सहलाते हुए मेरे लहंगे को ऊपर उठाकर मेरी चूत सहलाते हुए मेरी पैन्टी को नीचे करके मेरी चूत पर मुँह लगा कर मेरी बुर चूसने लगे।
मेरी तपती चूत पर ह्ज्बेंड का मुँह पड़ते मेरी ‘आह.. उफ.. सीसी ईई..’ निकलने लगी।
कुछ देर तक मेरी चूत को पीने के बाद बोले- डॉली.. तुम्हारी चूत तो चुदने के लिए उतावली हो रही है।
ह्ज्बेंड ने मेरी पैन्टी पैर से बाहर निकाल दी और बोले- जान… अभी मैं तुम्हारी चूत में लण्ड घुसाकर कुछ राहत दे देता हूँ.. पर पूरी चुदाई रात में करूँगा।
ह्ज्बेंड ने मेरी बुर पर अपना सुपारा रख कर एक जोर का शॉट मारा और लण्ड पूरा चूत के अन्दर एक ही शॉट में घुसता चला गया।
ह्ज्बेंड अपना पूरा लण्ड मेरी बुर में डाल करके शॉट पर शॉट देने लगाने लगे।
मैं ‘आहहह आहहहह.. सिईईईई.. आहहह..’ करने लगी।
अभी आठ-दस शॉट दिए.. तभी ह्ज्बेंड का फोन बज उठा और ह्ज्बेंड ने लण्ड बुर से बाहर खींचकर फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा और फोन रख कर बोले- डॉली मुझे जाना है.. तुम आराम करो.. कुछ राहत तो मिल ही गई होगी।
मैं बोली- आपका लण्ड जाने के बाद मेरी बेचैनी और चूत की प्यास और बढ़ गई है.. मेरी चुदाई पूरी करो.. ऐसे प्यासी पत्नी को छोड़ कर नहीं जाया जाता। मेरी चूत चुदने के लिए फड़फड़ा रही है। ऐसे में किसी ने मेरी वासना का नाजायज फायदा उठा लिया तो..
मेरी बात को ह्ज्बेंड ने मजाक में ले लिया और बोले- तब तो मेरी प्यासी रानी की चूत की प्यास बुझ जाएगी और रात मुझे तुम्हारी चूत मारने की मेहनत कम करनी पड़ेगी मेरी जान..
ह्ज्बेंड हँसते हुए चले गए और मेरी चूत चुदने के लिए चुलबुलाती रह गई।
ह्ज्बेंड के जाने के बाद मैं वैसे ही बिस्तर पर पड़ी रही, कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई और मैं सो गई।
जब मेरी नींद खुली तो मुझे ध्यान आया कि मैं वैसे ही सो गई हूँ.. जिस हालत में ह्ज्बेंड चूत में लण्ड घुसाकर गए थे.. बिलकुल खुली चूत..
मैं अपनी प्यारी चूत को अपने हाथों से मसकते हुए ‘आहसीईई..’ कह कर उठी और बाथरूम चली गई। मैं फ्रेश होकर आई तो मैं अपनी पैन्टी खोजने लगी.. लेकिन मेरी पैन्टी कहीं दिख ही नहीं रही थी।
आखिर मेरी पैन्टी गई कहाँ.. यहीं तो ह्ज्बेंड ने निकाल कर फेंकी थी।
काफी खोजने पर भी नहीं मिली.. तो मैं फिर यूँ ही चाय बनाने चली गई। यह सोच कर कि शायद ह्ज्बेंड मुझे सताने के लिए साथ ले गए हों..
मैं जेठ जी के और अपने लिए चाय बना कर जेठ जी को देने उनके कमरे में गई। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि जेठ जी कमरे में सोए हुए थे, उनको सोया हुआ देख कर मैंने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाई पर मेरी पेंटी यहाँ भी नहीं दिखी।
मैंने टेबल पर ट्रे रख कर जेठ जी को आवाज दी।
मेरी आवाज सुनकर जेठ जी चौंकते हुए उठ बैठे।
मैंने कहा- आप बहुत सो रहे हैं।
‘नहीं यार, बस थोड़ी नीद आ गई और सो तो तुम भी रही थी!’
‘आप फ्रेश होकर आइए और चाय पी लीजिए, नहीं तो चाय ठंडी हो जाएगी।’
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