RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
मैं जोर-जोर से मादक सिसकारियाँ ले रही थी, मैं बोली- राजा.. अब से यह चूत तुम्हारी है.. इसका जो भी और जैसे भी चोदकर कर मुझे मेरी जवानी को आज तृप्त कर दो.. अपने लण्ड का नशा मेरे रोम-रोम में भर दो.. आज इस दासी को अपने लण्ड का गुलाम बना लो.. आह्ह.. तुम मुझे जी भरकर चोदके.. मेरी मस्ती झाड़ दो। मेरी आज रात की आग को तुम ही बुझा सकते हो।
उसने अब अपनी जीभ को मेरी बुर के और अन्दर तक ढकेल दिया.. और जोर-जोर से चाटने लगे। अपनी जीभ मेरी चूत में और भी जल्दी-जल्दी और अन्दर-बाहर करते हुए मेरा पानी निकालने लगे और अब मैं जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी। मेरे मुँह से निकली सीत्कार पूरे कमरे में गूँज रही थी।
मैं बोली- अब मुझसे नहीं रहा जाता.. अब अपने बाबूराव से मेरी खींच कर चुदाई करो.. मेरी चूत फाड़ दो.. बाबूराव मेरे अन्दर डाल कर मेरी प्यास बुझा दो.. आह.. मुझे शांत कर दो मेरे यार.. मेरी चूत के राजा..! आह्ह.. मुझे चोदो मेरे जिस्म.. मेरे शरीर के मालिक.. आज अपनी और मेरी प्यास बुझा दो.. आह्ह..!
अरुण मेरी चूत को चूमते हुए मेरी नाभि से होकर मेरे वक्षस्थल को मुँह में लेकर मेरे पनियाई हुई चूत के ठीक ऊपर अपने बाबूराव को रख कर मेरी गरम चूत पर सुपारे को आगे-पीछे करने लगे। वो अपने लण्ड का सुपारा कभी चूत में और कभी मेरे रस से भीगी चूत पर रगड़ देते..
ऐसा करने से मेरी वासना और भड़क उठी।
तभी मैंने एकाएक अरुण जी की कमर पकड़ कर अपनी चूत के ऊपर से उठा कर.. उन्हें वापस अपनी तरफ खींचा.. एक ‘फक्क..’ की हल्की सी आवाज के साथ अरुण जी का हैवी लण्ड मेरी चूत में आधा घुस गया। मेरी तो जैसे चीख भरी ‘आह’ मुँह से निकल सी गई। मैं एक कामुक सिसकारी लेकर बोली- आहसीई.. मेरे जानू.. आआहह.. सीईईई सीआहह..
इतने में अरुण जी ने एकाएक पूरा बाबूराव मेरी चूत में पेल दिया और मेरी चूत उनका मस्त लण्ड खाने को उछल पड़ी।
मैं चिल्लाई- आह्ह.. और जोर से पेलो.. मेरी बुर चोदो.. चूत फाड़ दो.. मेरी चूत के आशिक..! ज़ोर-ज़ोर से इसे अन्दर-बाहर करो.. बुझा दो प्यास मेरी.. आह्ह.. मजा आ गया.. ओह्ह..
उन्होंने अपना लण्ड तेज गति के साथ मेरी चूत में अन्दर-बाहर करते हुए एक ज़ोर से धक्का पेल दिया और उसका पूरा मोटा मस्ताना लण्ड.. मेरी चूत में जड़ तक घुसता चला गया।
मैं कराही- आह.. आह.. उउई.. ऊफफफ्फ़.. हमम्म्म.. आआ..! क्या मस्त मूसल लण्ड है आपका.. अब जब भी मैं चुदूँगी.. तब तब आपकी चुदाई याद आएगी.. आज ऐसा चोदो मुझे.. आह आह.. उउई.. ऊफफफ्फ़ सीईसीईई आह..
‘आह्ह.. मुझे भी रानी.. याद आएगी तेरी.. यह मस्त चूत.. आह्ह.. लगता है कि फाड़ डालूँ.. तेरी यह मस्त चूत..’
‘आह्ह.. मेरे राजा.. यह चूत तुम्हारी ही है.. फाड़ दो इसे.. आअहह ऊऊऊऊओ आआहह.. ज़ोर से.. और ज़ोर से.. चोदो..’
उसने अपनी गति बढ़ा दी और ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूत की चुदाई करने लगा।
वो मेरे चुचों को मुँह में लेकर चूसते हुए मेरी चुदाई कर रहे थे। मेरी मस्त चुदाई चालू थी.. वाकयी में अरुण मोदी एक मर्द थे। उनकी चुदाई से मुझे असीम आनन्द आ रहा था। काफी देर तक ताबड़तोड़ चुदाई करते हुए उसने मेरी चूत को अपने गाढ़े वीर्य से भर दिया।
मेरी भी चूत उनका गरम वीर्य पाकर मस्त हो गई और मेरे मुँह से सिसकारी निकल पड़ी.. ‘आह.. आह.. उउई.. ऊफफफ्फ़ सीई आह..’ मैं भी झड़ गई, मैंने झड़ते हुए कस कर अरुण जी को अपनी बाँहों में भींच लिया.. सिसक-सिसक कर हिचकोले लेते हुए जोरों से झड़ती रही.. जैसे नदी में कोई बाढ़ आ गई हो..
कुछ देर बाद मेरा जिस्म ढीला सा पड़ गया.. मेरा रोम-रोम दु:ख रहा था।
किसी तरह मैं उठी और बाथरूम में साफ होने के लिए चली गई। थोड़ी देर में अरूण मोदी जी भी बाथरूम गए और फ्रेश हो कर आकर मुझे वैसे ही बिना कपड़ों के अपनी गोद में लेकर मुझसे बातें करने लगे।
करीब आधे घण्टे बाद दोबारा से अरुण ने फिर से मुझे चूमना शुरू किया। एक बार फिर मस्ती में मेरी चूत फुदकने लगी। मैं अरूण जी के साथ चूत चुदाने का मजा ले चुकी थी। अब मेरा कुछ और ही इरादा था। मुझे ऐसा हो रहा था कि बस अरूण जी चोदें और मैं चुदूँ..। इस बार मैंने सीधे नीचे जाकर पहले उनका लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू किया।
दस मिनट बाद में वो फिर से तैयार हो गए.. मेरी चुदाई करने के लिए।
लेकिन इस बार मैं उल्टी लेट गई और उनके लण्ड पर गाण्ड के छेद को रगड़ने लगी।
मेरी इस क्रिया से अरुण जी को समझते देर नहीं लगी कि मैं क्या चाहती हूँ। शायद वो भी मेरी गाण्ड मारना चाह रहे थे। बस मेरी इजाजत की देर थी। उनका बाबूराव फिर से अपना कमाल दिखाने को आतुर हो उठा।
मेरी गाण्ड ने भी ‘फूल-पचक’ कर इजाजत दे दी। उनके बाबूराव की रगड़ाई से मेरी चूत की आग गाण्ड में भी लग गई और मैं मस्ती के आलम में गाण्ड का दबाव लण्ड पर देने लगी। मेरे मुँह से ‘आह.. आह.. उउई.. ऊफफफ्फ़.. की आवाजें निकल रही थीं।
बस अरुण के लिए इतना इशारा काफी था। उसने अपना थूक निकाल कर गाण्ड पर और बाबूराव पर लगा कर धीरे-धीरे बाबूराव गाण्ड में पेलने लगे। यह पहली बार था जब कोई थूक लगा कर मेरी गाण्ड मार रहा था। दोस्तों थूक लगा कर गाण्ड मरवाने का मजा ही कुछ और था। अरुण जी मेरी गाण्ड मारते जा रहे थे और मैं आँखें बन्द करके.. अपनी गाण्ड मरवाते हुए मजा ले रही थी।
वो मेरी गाण्ड से बाबूराव निकालते.. फिर एक ही झटके से पेल देते। उनकी इस क्रिया से मेरे मुँह से सिसकी निकलने लगी।
‘आआहह.. आहह.. आहहह.. उहस ससी.. ईईआ आहहह..’ की आवाज निकालते हुए मैं उचक-उचक कर अपनी गाण्ड मरवा रही थी। अरुण जी गाण्ड से लण्ड खींच कर बाहर करके दुबारा मेरी गाण्ड में डाल देते।
पूरी मस्ती में गाण्ड को मराते हुए सिसकारी लेकर मैं बोली- आहह राजा.. मारो मेरी गाण्ड.. हरी कर दो.. मार मार के.. मेरी गाण्ड को..
अरूण मेरे मुँह से ऐसे शब्द सुनते ही मेरी गाण्ड की रगड़ाई और अच्छी तरह करने लगे। तूफानी गति मेरी गाण्ड चोदते हुए मुझे गाली देने लगे- ले मादरचोदी चुद.. ले साली.. मेरे बाबूराव की मार.. गाण्ड पर छिनाल.. साली बहनचोदी.. तेरी गाण्ड मार कर आज फाड़ ही दूँगा..।
मैं भी गाली देती बोली- फाड़ दे बहनचोद.. मेरी गाण्ड मार.. मेरी गाण्ड मार भड़वे..
यह कहते हुए मैं कभी अन्त न होने वाली गाण्ड मराई के मजे लेते हुए मादक सिसकारी निकालने लगी ‘आआआह.. आहहह.. आहहह.. सससीईईई.. आआह सी.. मैं गई.. मेरी चूत गई..’
मैं यानि मेरी चूत झड़ने लगी.. झड़ते वक्त गाण्ड के फूलने-पचकने से अरुण भी खुद को रोक नहीं पाए और अपना वीर्य मेरी गाण्ड में छोड़ने लगे- ‘लो रानी.. मैं भी गया.. रानी.. वाह.. सीसीई.. आह्ह.. मजा आ गया.. आहह..सी।’
यह कहते हुए मुझे दबोच कर निढाल पड़ गए, कुछ देर बाद अपना बाबूराव मेरी गाण्ड से खींच कर उठ गए। मेरी गाण्ड से वीर्य की धार बह निकली।
अपनी चूत और गाण्ड मरवा कर मैं निढाल होकर पड़ी ही थी कि कुछ देर बाद मैं बिस्तर से उठकर बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर आई और मोबाइल में टाईम देखा तो 12:30 हो चुका था, मुझे मस्ती और चुदाई के दौरान पता ही नहीं चला कि बाहर लोग यानि मेरा ह्ज्बेंड मुझे खोज रहा होगा, उससे मैं क्या कहूँगी कि मैं कहाँ गायब हो गई थी।
मैंने अपनी इस सोच से अरुण जी को भी अवगत कराया.. तो वो मुस्कुराकर बोले- बोल देना कि सामने वाले कमरे में मेरी चूत चुद रही थी।
मैं शरमा कर रह गई- आप बाहर देखो कोई ना हो.. तो मैं निकल जाऊँ..
अरुण ने दरवाजा खोल कर देखा.. कोई नहीं था।
मैंने एक बार फिर अरुण से गले मिल कर चुम्मी ली और फिर मिलने को बोल कर बाहर निकल गई, गलियारे में कोई नहीं था.. बिल्कुल सन्नाटा था, संगीत का प्रोग्राम भी खत्म हो चुका था, सब लोग खाना वगैरह खा-पीकर अपने कमरे में सोने चले गए थे।
मैंने डरते हुए अपने कमरे के दरवाजे पर धक्का दिया कि हल्की आहट के बाद दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खुलते ही मेरा दिल धड़कने लगा, कमरे में अंधेरा था.. कुछ दिख ही नहीं रहा था कि ह्ज्बेंड जाग रहे हैं कि सोए हुए हैं।
मैंने कमरे के अन्दर हो कर दरवाजा बंद कर लिया और बिस्तर की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी मेरे कानों में ह्ज्बेंड की आवाज सुनाई पड़ी- कहाँ थी.. अभी तक.. और कहाँ चली गई थी.. मैं कितना खोज रहा था.. खाना भी नहीं खाया? मैंने तुमको बहुत खोजा.. मैं कितना घबरा रहा था.. मालूम है तुमको? सब लोग भी पूछ रहे थे।
एक ही सांस में इतने सारे सवाल पूछ लिए कि मेरे मुँह से बोली ही नहीं निकल रही थी कि क्या जबाब दूँ। जहाँ के तहाँ मेरे पैर जम गए थे.. जैसे कि मुझे साँप सूँघ गया हो।
लेकिन मैं सम्भलते हुए बोली- लड़की वालों के तरफ की सभी औरतों से बात करते हुए दुल्हन के कमरे में चली गई थी और खाना भी वहीं खा लिया था.. वो लोग आने ही नहीं दे रहे थे। किसी तरह बहाना करके आई हूँ.. बहुत थक गई हूँ.. मुझे नींद आ रही है। आपने खाना खा लिया था?
मैं कैसे कहती कि मैं चुद रही थी और चुदाई का खाना खाकर आई हूँ। मेरी चूत जम कर चुदी है.. मैं थक गई हूँ अब सोना चाहती हूँ।
ह्ज्बेंड बोले- हाँ मेरा खाना तो हो गया है.. आओ बिस्तर पर.. अब आराम करो..
मैं जैसे ही मैं बिस्तर पर गई ह्ज्बेंड ने मुझे अपने से लिपटा लिया और मुझे सहलाने लगे। मैं डर गई कि अगर मेरी चूत छुएंगे.. तो कहीं जान न जाएं कि मैं क्या करके आई हूँ।
मैं अभी सोच ही रही थी कि ह्ज्बेंड बोले- ऐसे ही सोओगी क्या.. नाईटी पहन लो।
मैं नाईटी पहन कर पास आई ही थी कि ह्ज्बेंड का हाथ मेरी पनियाई हुई चूत पर पड़ा.. और वे मेरी चूत को सहलाते हुए बोले- चुदने का मन है क्या.. चूत तो पानी छोड़ रही है।
मैं बोली- नहीं.. ये तो वैसे ही पानी निकल रहा है.. मैं थकी हुई हूँ.. चलो सो जाओ।
यह कह कर मैं सोने का नाटक करने लगी।
मैं क्या कहती कि यही आपके सामने वाले कमरे से चूत और गाण्ड दोनों मरवा के आई हूँ, अब और चुदने का मन नहीं है।
मैं ह्ज्बेंड से लिपट कर सो गई।
सुबह उठी फ्रेश होकर चाय वगैरह पीकर ह्ज्बेंड बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मैं भी कमरे से बाहर निकली ही थी कि मेरा सामना अरुण जी से हो गया। हम एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए।
‘गुड मॉर्निंग..’
अरुण जी भी बोले, “गुड मॉर्निंग..”
तभी मेरे ह्ज्बेंड आते हुए दिखाई दिए.. मैं भी ह्ज्बेंड के साथ कमरे में आ गई।
ह्ज्बेंड बोले- मुझे प्रतीक के (मेरे ह्ज्बेंड के दोस्त जिसकी शादी में हम लोग आए हुए थे) साथ बाहर जाना है.. कुछ सामान और पार्लर में काम है। मुझे 2-3 घण्टे लगेंगे।
यह कहकर ह्ज्बेंड बाथरूम मे फ्रेश होने चले गए।
पर यह सुनते ही मेरी चूत मचल उठी.. एक बार फिर मेरी चूत चुदेगी।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और ह्ज्बेंड बाहर आए, मैंने उनको कपड़े दिए और ह्ज्बेंड तैयार होकर चले गए।
वे जाते हुए मुझसे बोले- तुम प्रतीक के घर वालों के पास चली जाना.. कोई काम हो तो देख लेना।
मैं बोली- ठीक है..
ह्ज्बेंड चले गए.. मैं झट से बाथरूम में घुस गई और फ्रेश होकर बाहर निकली। मैंने एक गुलाबी रंग का लहंगा और चुनरी पहन कर कमरे के बाहर निकली और अरुण जी को खोजने लगी।
भीड़-भाड़ में अरुण जी कहीं दिख ही नहीं रहे थे।
तभी मेरे पीछे से किसी ने मुझे ‘भाभी जी..’ कहकर पुकारा.. मैं चौंक कर पीछे देखने लगी।
करीब 27-28 साल का एक युवक था.. बड़ा हैन्डसम.. स्मार्ट सा.. वो मेरे करीब आया और बोला- आपको उधर अरुण भाई साहब बुला रहे हैं।
मैं बोली- किधर?
और मैं उसके साथ चल दी।
वो मुझे एक साईड ले जाकर बोला- भाभी जी मैं आप से झूठ बोला हूँ.. मैंने कल आपको अरुण जी के कमरे में जाते और सब कुछ करते हुए देखा था। मैंने ‘की-होल’ से पूरी फिल्म देखी है। कसम से भाभी आप बहुत मस्त माल हो।
इतना सुनते मेरे हाथ-पांव फूल गए और मैं घबराने लगी। मेरी गान्ड फट गई थी.. काटो तो खून नहीं मैं ‘फक्क’ आँखों से उसकी तरफ देखने लगी थी..
मेरे चेहरे का रंग बदलते हुए देख कर वो बोला- भाभी जी आप घबराइए नहीं.. मैं किसी से नहीं कहूँगा.. पर एक बार मैं भी आपको चोदना चाहता हूँ। आज रात मैं 11-12 बजे के आस-पास इसी होटल के गार्डन में आपका वेट करूँगा.. आप आ जाना.. नहीं तो..
वह बात अधूरी छोड़ कर आँख मार कर चला गया और मैं उसे देखती रही।
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