RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
तभी घंटी बजी..मैंने जाकर दरवाजा खोला.. तो सामने एक बांका नौजवान हाथ में नाश्ते का पैकट लिए खड़ा था। वो मेरे को ऊपर से नीचे देखते हुए बोला- मेम साहब.. साहब ने ये नाश्ता भिजवाया है।
मैं एक तरफ को होते हुए बोली- अन्दर मेज पर रख दो।
वह बांका जवान कमरे में अन्दर दाखिल होकर.. नाश्ता मेज पर रखकर खड़ा होकर मुझे देखते हुए बोला- मेम साहब मैं जाऊँ?
मैं बोली- आप का नाम क्या है और जाने की जल्दी है क्या?
वह बोला- मेरा नाम विनय है और मेरी सामने दुकान है..
मेरा इरादा उसे देख कर चुदने का हो उठा था.. इसलिए मैंने उसे कुछ और दिखाने और उसको अपने जाल में फंसाने के लिए एक तरीका सोचा।
और मैं बोली- विनय मेरा एक काम कर दोगे क्या?
वह बोला- जी मेम साहब..
मैं बोली- एक बोतल पानी ला दो।
और पैसा देने के लिए मैं मिरर के पास जाकर और झुककर अपने हैंडपर्स से पैसा निकालने लगी। मेरे झुकते ही विनय को मेरी चूत का दीदार हो उठा। विनय आँखें फाड़ कर देखते हुए अपना लण्ड सहलाने लगा।
यह सब करते हुए मैं मिरर से विनय को देख रही थी और जानबूझ कर पैसा ढूँढ़ने का नाटक कर रही थी ताकि उसको ज्यादा से ज्यादा गरम कर सकूँ।
मेरे दिमाग में घुस चुका था कि आज इस साले को इतना गरम कर दूंगी कि ये आज मेरी चूत चोद ही दे। मैं उसी की हरकतों तो नोटिस करते हुए घूम गई.. बिना विनय को कोई मौका दिए हुए..
मेरे पलटते ही विनय डरकर बगल में देखने का नाटक करने लगा। मैं जब विनय के करीब पहुँची तो विनय की साँसें तेज चल रही थीं। विनय की साँसों में एक वासना की महक आ रही थी।
मैंने एक सौ का नोट देते हुए उसके हाथों को दबा दिया।
अब मैं मादक अदा से अंगड़ाई लेते हुए बोली- थोड़ा जल्दी आना पानी लेकर.. बहुत प्यासी हूँ..।
विनय हकलाते हुए बोला- जी जी जी.. मेमममेम साहहब..
वो झटके से मुझे घूरता हुआ कमरे के बाहर चला गया। मैं जाकर बिस्तर पर चूत खोल कर बैठ गई और एक पत्रिका लेकर पैर को मोड़ लिया ताकि विनय को आते ही मेरी चिकनी बुर का दीदार हो जाए।
और वही हुआ.. जैसे ही विनय पानी की बोतल लेकर आया.. वैसे ही मैंने मुँह के सामने पत्रिका करके पढ़ने का नाटक करते हुए अपने पैरों को थोड़ा और फैला दिया। ताकि विनय मेरी बुर को अच्छे से देख ले।
कमरे के अन्दर आते ही सबसे पहले विनय की कामुक निगाहें मेरी जाँघों के बीच में पहुँच कर मेरी बुर को ताड़ने लगीं।
काफी देर तक बुर का मैं जमकर दीदार कराने के बाद चौंकते हुए बोली- अरे तुम कब आए?
विनय सच्चाई छुपाते हुए बोला- ब्ब्स.. अ..अभी आआआ.. आया म..मेम स..स.. साहब।
‘ओके..’
बोला- नाश्ता नहीं किया मेमसाहब.. ठण्डा हो गया है..
मैं बोली- विनय लेकिन कुछ और है जो गरम है।
‘ऐसा क्या है.. आप नाश्ता तो खा लीजिए।’
मैं बोली- नाश्ते के साथ कुछ और खाने का मन हो गया है।
ये कह कर मैंने आगे की बात अधूरी छोड़ दी।
तभी विनय ने पूछा- और क्या खाना चाहती है- मेमसाब?
मैं बोली- अगर तुम खिलाओ.. तो जरूर खा लूँगी।
विनय बोला- आप बताइए.. मैं अभी ला देता हूँ..
जानबूझ कर विनय भी बात बढ़ा कर बात कर रहा था।
मैं अश्लीलता से खुलते हुए बोली- अपना केला खिला दो।
विनय सकपकाते हुए बोला- मेरी दुकान पर केला नहीं बिकता.. रूकिए कहीं और से ले आता हूँ।
मैं बोली- नहीं.. मैं जब भी खाऊँगी.. तो तुम्हारा ही केला ही खाऊँगी।
विनय बोला- क्यों मजाक करती है-मेमसाब.. मेरे पास कहाँ है केला..?
मैं उसको उंगली से बुलाते हुए बोली- जरा यहाँ को आओ.. दिखाती हूँ..।
विनय के करीब आते ही मैंने अपनी जांघों को पूरा खोल दिया और जैसे ही विनय मेरे करीब आया।
मैं बोली- विनय अगर तुम्हारे पास केला निकला.. तो खिलाओगे ना.. वादा करो।
‘वादा मेमसाब.. जरूर खिलाऊँगा..’ वो लजरते हुए स्वर में बोला।
तभी मैंने एक झटके से विनय के मोटे तगड़े और खड़े लण्ड को पकड़ लिया।
‘यह है केला.. अब जल्दी से निकालो और खिलाओ।’
विनय को भी अब चुदास चढ़ गई थी और वो भी नाटक करते हुए बोला- मेमसाब, यह केला मुँह से खाने के लिए नहीं है।
मैंने तुरंत विनय का हाथ पकड़ कर ले जाकर सीधे अपनी गरम चूत पर रख कर दबाते हुए बोली- इसे खिलाना है। अब तो केला खाने की सही जगह है ना..
विनय ने मेरी बुर को चापते हुए कहा- जी मेमसाब.. लेकिन कोई आ गया तो?
मैं सिसियाते स्वर में कराही- आह्ह्ह.. आआ आह्ह्ह्ह.. नहीं विनय कोईई.. नहींई.. आएगा.. तुम इत्मीनान से खिलाओ अपना केला.. यह मेरी चूत इसको आराम से खा लेगी।
‘मेमसाब.. आपको मैं अपना केला जरूर खिलाऊँगा।’
‘क्या तुम मेमसाब मेमसाब.. किए जा रहे हो.. मेरा नाम डॉली है और प्यार से सब रानी भी कहते हैं। तुमको जो अच्छा लगे तुम बुला सकते हो।’
‘जी रानी जी..’ कहते हुए उसने मेरी बुर में उंगली डाल कर एक हाथ से मेरी चूची को पकड़ कर सहलाते हुए खड़ा रहा।
शायद विनय चाह रहा था कि मैं खुद आगे बढूँ..
फिर मैं विनय के सर को पकड़ कर नीचे कर के अपने होंठों पर रख कर एक जोरदार किस करके विनय को अपने दूधों की तरफ ले गई और अपनी चूची के अंगूरों को चूसने के लिए बोली।
विनय मेरी छाती को भींच कर पीते हुए मेरी चूत को अपनी मुठ्ठी भरकर दबाते हुए मेरी चूचियों को पीने में मस्त था।
तभी मैंने विनय के लण्ड को बाहर निकाल लिया, उसका लण्ड बाहर आते ही हवा में झूल गया.. जैसे कोई गदहा अपना लण्ड झुला रहा हो।
विनय का लण्ड देख कर मेरी मुँह में पानी भर आया और मैंने मुँह खोल के विनय के लण्ड को मुँह में भर लिया पर विनय का सुपारा काफी मोटा था.. जो मेरे मुँह में भर गया और मुझे चूसने में दिक्कत हो रही थी।
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