RE: Sex Kahani ह्ज्बेंड ने रण्डी बना दिया
पूरी रात जयदीप ने मुझे जम कर चोदा और मेरे बदन का पोर-पोर हिला दिया, मेरा अंग-अंग ढीला कर दिया।
फिर मुझे नींद आ गई।
मुझे पता ही न चला कि कब सुबह के 6:30 बज गए।
जय मुझे लेने आया था, तब पता चला। मैं उठी गुसलखाने जाकर फ्रेश हो कर बाहर आई।
जय ने पूछा- रात कैसी थी?
मैं क्या कहती.. बस ‘हँस’ दी।
जय से बातें करते-करते कब कमरे पर पहुँची, मुझे पता ही नहीं चला।
जय ने बाइक रोकी, तब पता चला कि हम लोग कमरे पर पहुँच गए।
मैं बाइक से उतर कर सीधे कमरे के अन्दर गई, वहाँ देखा कि रंगीला बैठा था।
वो मुझे देख कर बोला- जान.. कोई दिक्कत तो नहीं हुई ना?
मैं कुछ बोलती इससे पहले जय पीछे से बोला- मेरे रहते क्या दिक्कत होती।
तब रंगीला बोले- सही बोले.. जय भाई आप हो, तो मुझे कोई परवाह नहीं।
जय थोड़ा मुस्कुराया।
फिर मेरे ह्ज्बेंड बोले- जय भाई, आज कोई मीटिंग मत रखना, आज मैं चाहता हूँ कि डॉली को कहीं घुमा लाऊँ।
तो जय बोले- ठीक है.. वैसे आज मुझे कुछ काम से मथुरा जाना था.. चलो आज आप लोग भी मौज-मस्ती करो, फिर शाम को मुलाकात होगी। मैं जाते वक्त नीचे चाय बोलता जाऊँगा।
जय के जाने के बाद हम लोग फ्रेश हुए तभी चाय वाला आया, हम दोनों ने चाय पी और फिर मेरे ह्ज्बेंड ने मुझसे पूछा- रात कैसी रही?
मैंने अपनी चुदाई की पूरी कहानी अपने ह्ज्बेंड रंगीला को बताई कि रात क्या हुआ और मैं खूब चुदी।
मुझसे इस बातचीत के दौरान मेरे ह्ज्बेंड मेरे मम्मे दबा रहे थे और एक हाथ से चूत सहला रहे थे।
मेरा तो मन तो था ही नहीं…. क्योंकि पूरी रात की चुदाई से बिल्कुल थकी हुई थी, मेरी चूत भी सूखी थी, पर ह्ज्बेंड की इच्छा थी, सो मैं भी साथ दे रही थी।
ह्ज्बेंड रात की बात सुन इतना गर्म हो गए कि उन्होंने मेरी सूखी बुर में लंड पेल दिया और 10-15 धक्के लगा कर ‘पुल्ल-पुल्ल’ की और झड़ गए।
फिर मैं नहाने चली गई।
जब बाहर आई तो रंगीला बोले- लग रहा कि मेरी तबियत ठीक नहीं है.. बुखार सा है।
जब मैंने देखा तो वाकयी बुखार था, मैं बोली- चलो डॉक्टर को दिखा कर दवा ले लो..
डाक्टर के पास जा दवा ली और दवा खा रंगीला को आराम करने को बोली।
कुछ देर बाद जब दवाई ने असर किया तो रंगीला बोले- अब कुछ ठीक है चलो, कहीं घूमने चलते हैं।
पर मैंने मना कर दिया- नहीं.. फिर कभी चलेंगे.. जब तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे। अभी अच्छा भी नहीं लगेगा कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है और मैं इसी वक्त घूमने जाऊँ।
तभी जय का फोन आया- रंगीला जी मैं निकल रहा था.. सोचा कि एक बार पूछ लूँ.. कोई काम तो नहीं?
ह्ज्बेंड बोले- यार मुझे बुखार हो गया है और डॉली ने भी इसी कारण घूमने जाने से मना कर दिया है, एक बात कहूँ.. तुमको यदि ठीक लगे तो डॉली को अपने साथ ले जाते.. बेचारी तुम्हारे साथ ही घूम लेती।
जय बोला- भाई.. इसमें ठीक लगने की क्या बात.. मैं उधर से ही डॉली को लेते हुए निकल लूँगा।
जय के फोन रखने पर ह्ज्बेंड ने बताया- तुम तैयार हो जाओ.. जय आ रहे हैं तुम जाओ घूम आओ।
मैंने मना कर दिया- मैं आपको इस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती।
पर ह्ज्बेंड के जिद के आगे जाना पड़ा।
कुछ देर में जय आए और रंगीला से बोले- मैं बाइक छोड़ देता हूँ, हो सकता है कि तुमको कोई जरुरत पड़े.. हम लोग बस से जाएंगे।
मैं और जय बस में चढ़े, पर बस में बहुत भीड़ थी, बड़ी मुश्किल से खड़े होने के लिए जगह बन पाई।
जय जी बोले- डॉली भीड़ बहुत है, दूसरी बस से चलें।
मैं बोली- अब बस में चढ़ चुके हैं तो इसी से चलो.. क्या पता दूसरी में भी यही हाल हो।
तभी बस चल पड़ी। बस में जय मेरे आगे थे, मैं उनके पीछे कुछ दूर थी।
बस चलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरे चूतड़ पर हाथ सहला रहा है। मैंने भीड़ के कारण ध्यान नहीं दिया, पर जब मुझे लगा कि कोई सख्त चीज़ मेरी गाण्ड की दरार में चुभ रही है, तो मैंने पीछे हाथ कर देखना चाहा।
तो मेरे पीछे खड़े आदमी के पैंट पर हाथ चला गया और तभी मुझे उसके खड़े लण्ड का अहसास हुआ।
उस आदमी का लंड मोटा था और मैंने उसकी तरफ देख कर शरमा कर झट से अपना हाथ खींच लिया और उसके मोटे लंड के बारे में सोच कर मुझे एक शरारत सूझने लगी, मुझ पर वासना हावी होने लगी।
मैं अपने चूतड़ों को उसके लंड पर दबाने लगी। मैं जताना चाहती थी कि मैं बुरा नहीं मानूंगी।
तभी बस का ब्रेक लगा और अच्छा मौका जान कर उस आदमी ने मेरी कुर्ती के ऊपर से मेरी एक छाती को पकड़ लिया और जोर से मसल दिया।
मेरे मुँह से ‘आह’ निकल गई।
जय मेरी आह सुनकर पूछने लगे- क्या हुआ.. कोई दिक्कत तो नहीं?
मैंने ‘ना’ में सर हिला दिया, तब तक बस पुनः चल दी।
वो आदमी ने मेरे चूतड़ों को मसलने लगा, मैंने डर कर बस में इधर-उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा, पर भीड़ की वजह से सभी एक दूसरे से सटे हुए थे।
तभी उस आदमी ने मेरे कान में बोला- कोई दिक्कत न हो, तो थोड़ा इधर को आ जा..
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