RE: Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली
तभी मालती ने रणबीर की तरफ एक आँख दबाई. खेला खाया रणबीर सब समझ गया. गाँव के ऐसी कई औरतों को तो वह रंडी और कुत्ते कह फ़ौरन काबू मे कर लेता था पर इस बार मामला ठकुराइन का था पर अंत तो एक जैसा ही होना था.
"ठकुराइन जी आपके के लिए तो में अपनी जान दे दूँगा, मेरे रहते आप पर कोई आँच ना आएगी, आअप जो भी हुकुम करें बंदा पीछे नही हटेगा." रणबीर ने झुक कर सलाम किया.
"मुझे ऐसे ही लोग पसंद है जो जो भी बात कही जाए उसे तुरंत मान ले. पर पहले मालती के साथ जाओ और यह जैसे कहे वैसे ही करते जाना. हां याद रहे उस दिन जिसा नहीं जब यह तीन दिन तक यहाँ आके रोई थी." ऐसा कह ठकुराइन कमरे से बाहर चली गयी.
तब मालती ने कहा, "पहले इस कमरे मे बने बाथरूम मे जाओ. वहाँ सब कुछ मौजूद है, इतरा, फुलेल, सेंट, क्रीम, साबुन शॅमपू और तुम्हारे लिए चोला. चूड़ीदार और दुपट्टा, सज धज कर बाहर आओ." यह कह कर मालती जिधर ठकुराइन गई थी उधर चल पड़ी.
रणबीर अपने भाग्य पर इठलाता हुआ स्नान घर मे गया और जो मालती ने बताया था वो सब वहाँ सलीके से रखा हुआ था. आज वह जी हर के नहाया. ऐसा साबुन उसने जिंदगी मे पहले कभी नही लगाया था. शरीर का रोम रोम फुलक उठा. फिर जब उसने वस्त्रा पहेने और अपने आप को आईने मे देखा तो देखता ही रह गया. उन वस्त्रों मे वह किसी राजकुमार से कम नही लग रहा था. वह बाहर आया तो उसने मालती को इंतेज़ार करते पाया.
मालती इस बार उसे दूसरे कमरे मे ले गयी, जो पहले कमरे से भी आलीशान था. सुंदरता और सजावट का क्या कहना. एक से एक बेश कीमती सामानों से सज़ा हुआ था वा कमरे. होता भी क्यों नही कमरा मधुलकिया के लिए तय्यार हुआ था जो अगले साप्ताह यहाँ आने वाली थी. कमरे के बीचों बीच रखी एक विशाल पलंग पर रजनी एक नाइटी पहने अढ़लेटी मुद्रा मे थी. वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
रणबीर बहोत देर तक उसकी तरफ नही देख सका और उसकी नज़रें झुकती चली गयी. तभी कोमल आवाज़ उसके कान मे पड़ी, "रणबीर आओ, यहाँ पलंग पर मेरे पास बैठो. रणबीर पलंग के कोने पर बैठ गया और ठकुराइन से परे देखने लगा.
"तो मालती यही है वो जिसने उस दिन तुम्हारी गांद की दुर्गति की थी, और तुम तीन दिन तक ठीक से चल भी नही पे थी. तो इतनी ताक़त है इसमे. मेरा मतलब इसके मे. हम नही मानते जब तक की हम खुद नही देख ले."
"ठकुराइन विश्वास कीजिए, मेरी गांद को तो आपने खुद देखी है, बल्कि खोद खोद के भी देखा है. मेरे मना करते रहने पर भी यह नही मना और मेरी गांद की दुर्गति कर के ही छोड़ी."
रणबीर जो सुन रहा था उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था. ये दोनो औरतें किस तरह खुले शब्दों का इस्तामाल कर बात कर रहे थी और मालती चाची क्या ठकुराइन से इतनी खुली हुई हो सकती है.
उनकी बातें सुन कर रणबीर का भी लंड खड़ा होने लग गया था और सोचा जब ओखली मे सर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना. उसे वही करना है जैसे कहा जाता है. अपनी तरफ से कोई उत्तावलापन नही दीखाना है. बड़े लोगों का मामला है. बड़े बुड्ढे ठीक ही कहते है की बिना सोचे समझे बड़े लोगों की गंद मे नही बढ़ाना चाहिए. उनका क्या कब गंद भींच ले और बाहर निकलना मुश्किल हो जाए.
"ठीक है पहले हम अपनी आँखो से सब देखेंगे फिर फ़ैसला करेंगे. मालती उठो और तुम दोनो वह सब मेरी आँखों के सामने करो. इसे भी ठीक से समझा देना. जैसे उस दिन हुआ था वैसे ही होना चाहिए नही तो भोसड़ी की गंद मे भूस भरवा देंगे. मैं भी ठकुराइन हूँ कोई कोठे पर बैठी रंडी नही की कोई मा का लॉडा आए और चोद्के लंड समेटता हुआ चला जाए.
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