RE: Sex Kahaniya अंजाना रास्ता
अंजाना रास्ता --5
गतान्क से आगे................
"ला इधर ला पानी.." अंकल मेरे हाथ से पानी का ग्लास लेते हुए बोले.
मेरे नज़र अभी भी दीदी पर ही थी जो कि मुझसे नज़र नही मिला पा रही थी.
" ले बिटिया.पानी पी ले.." अंकल पानी का ग्लास दीदी की तरफ़ बढ़ाते हुए बोले.
पर दीदी ने पानी नही पिया. इस पर अंकल ने थोड़ी देर तक कुछ सोचा और
बोला.." चल तेरे लेए ठंडा मँगाता हू"
फिर उसने मुझे पेप्सी की बॉटल लाने के लिए कुछ पैसे दिए और बोला कि
नुक्कड़ पर एक पान की दुकान है वाहा से एक ठंडी पेप्सी ले आओ. वो तो मुझे
एक नोकर के तरह ट्रीट कर रहा था..पर मुझे उसका मकसद समझ आ गया था..सो मैं
तुरंत बाहर जाने की लिए बढ़ा ही था कि ..अचानक दीदी मुझे कुछ बोलने को
हुई..शायद बोलना चाह रही थी कि " अनुज मुझे इस आदमी के साथ अकेला मत छोड़
कर जा " पर अंकल ये भाप गये वो तुरंत बोल पड़ा जल्दी जा बेटा नही तो
दुकान बंद हो जाएगी..फिर मैं बाहर आ गया..पर मेरे दिमाग़ मे भी कुछ चल
रहा था..और इस बार मैं किसी भी हालत मे ऐसा सुनहरा मौका छोड़ना नही चाहता
था.. मैं घूम कर उस झुगी की दोसरि तरफ़ चला गया..और अंदर झाँकने के लिए
कोई जगह ढूँढने लगा…मैं अंदर क्या हो रहा होगा सोच सोच कर बहुत ज़्यादा
एग्ज़ाइटेड होने लगा था..ज़ल्दी ही मुझे एक जगह मिल गयी ..दीवार मे एक
छेद हुआ पड़ा था .वो छेद कोई ज़्यादा बड़ा तो नही था पर फिर भी मुझे अंदर
का नज़ारा सॉफ नज़र आ रहा था…अंकल की खोली (रूम ) बिल्कुल कोने मे थी सो
कोई मुझे वाहा उधर झाँकते हुए देख भी नही सकता था..फिर मैने अंदर देखना
शुरू किया..और जैसा मैने सोचा था वैसा ही हो रहा था..अंकल ने अंजलि दीदी
को अपनी बाहो मे जकड़ा हुआ था..उसका एक हाथ दीदी की कमर को उपर से नीचे
तक सहला रहा था..
"अब तो शाराम छोड़ दे मेरी जान…अब तो तेरे भाई को भी मैने बाहर भेज दिया
है" अंकल दीदी की जांझो(थाइस) को सहलाते हुए बोले.
"अंकल..प्लस्सस्स…आह..प्ल्ज़्ज़ मुझे घर जाने दो" दीदी अंकल का हाथ अपने
जाँघो से हटाने की कोशिस करते हुए बोल रही थी.
" इन सेक्सी बालो को क्यू बाँध रखा है तूने..बह्न्चोद..खोल इन्हे.."वो
दीदी की जुड़ी को खोलते हुई बोला.
शायद उसको भी लड़कियो के लंबे बाल बहुत पसंद थी..और दीदी के बाल लंबे
होने के साथ साथ एकदम सिल्की भी थे. बालो की चमंक ओर शाइन ये बता रही थी
कि दीदी उनकी कितनी देख रेख करती है.अंकल के लिए ये सब मानो सपना सा ही
था जिसका वो पूरा फ़ायदा उठना चाह रहे थे. जोश मे आकर अंकल ने दीदी के अब
तक बिखर चुके बालो को अपने हाथो मे भर कर उनमे अपना मूह डाल दिया और बालो
की खुशुबू सुघने लगे..जैसे जैसे दीदी के बालो से आती खुशुबू उस गंदे आदमी
के दिमाग़ मे जाने लगी वैसे वैसे उसका लंड लूँगी मे खड़ा होने लगा..ये
देख सिर्फ़ अंकल ही नही दीदी भी हैरान थी..अब तो दीदी को भी अपने बालो की
इंपॉर्टेन्स का पता चल गया था..और शायद वो अपने आप पर थोड़ा घमंड भी करने
लगी थी..हालाँकि वो घमंड थोड़ी देर के लिए ही था..क्योंकि अंकल अब दीदी
के बालो को अपने बालो से भरी छाती पर रगड़ने लगा ..और इससे दीदी के बॉल
खिचने लगे तो दीदी कराह उठी."आआऐसशह…धीरे कारू....दर्द होता है.."
अंकल का जोश अब बढ़ता ही जा रहा था..और जिस तरह से वो दीदी के जाँघो को
सहला रहा था दीदी भी थोड़ा थोड़ा बहकने लगी थी ..अब दीदी के हाथो ने अंकल
के हाथो को पकड़ा तो हुआ था पर वो उनको रोक नही रही थी
"तेरी उम्र क्या है.."
"जी..तीइश्ह्ह्ह्ह्ह…23" अंजलि दीदी काँपती आवाज़ मे बोली.
"किसी ने तुझे पहले चोदा है…" अंकल दीदी की गर्दन पर आए पसीने को अपने
खुरदूरी जीब से चाट ते हुए बोला. अंकल की खुरदरी जीब अपनी गर्देन पर लगते
ही दीदी के बदन ने एक झटका खाया..और दीदी की आँखे इस अनोखे मज़े के आनंद
मे बंद होने लगी.
"बोला साली…चुदी है किसी से पहले….वैसे तुझे देख कर लगता नही की तू अभी
ताक चुदाई से बची होगी..."
"आआअहह…नही मैं कवारी हू…"दीदी ने अपनी बंद आखो को और ज़्यादा बंद करते
हुए जवाब दिया.
अंकल को तो मानो कुबेर का ख़ज़ाना मिल गया जब दीदी ने बताया कि वो अभी
कवारी है.वो जल्दी खड़ा हुआ और फटाफट अपनी लूँगी खोल एक तरफ़ फैंक दी वो
अब पूरा नंगा दीदी के सामने खड़ा था दीदी अभी भी चारपाई पर बैठी थी. उसका
लंड रुक रुक कर झटके खा रहा था ..ये देख मेरा हलक सुख गया था तो आप समझ
सकते है कि दीदी की क्या हालत हुई होगी. लंड काफ़ी बड़ा लग रहा था ..
"हाथ मे ले इसे.." अंकल को दोबारा नही बोलना पड़ा और ना चाहते हुए भी
दीदी का हाथ अपने आप उस विशाल लंड पर चला गया. और क्यू ना जाता इसी को तो
वो अपने रूम से चुपके चुपके देख कर अपने बदन को सहलाती थी..
दीदी के ठंडे नरम नरम हाथो को स्पर्श पाकर लंड ने एक ज़ोर का झटका मारा.
और अंकल के मूह से निकला "एयेए.हह…साली…क्या नरम हाथ है तेरे..रंडी…अहह."
अपनी बड़ी बहन को उस अंजान बुढ्ढे आदमी का लंड इस तरह से हिलाते देख
मुझसे कंट्रोल नही हुआ और मैने भी आना लंड पॅंट का जिपपर खोल बाहर निकाल
लिया और मूठ मारने लगा..
तभी मेरी किस्मत ने मुझे फिर से धोका दिया..और अंकल ने दीदी को चारपाई से
उठा कर एक तरफ़ खड़ा किया..वो पता नही क्या करना चाह रहा था.फिर वो झुका
और चारपाई को वाहा से उठाने लगा..मैने देखा की दीदी की आँखो मे मानो नशा
फेला हुआ था..वो लगातार अंकल की टाँगो मे लटकते लंड को बिना पलके बंद किए
देखती ही जा रही थी..शायद दीदी ने पहली बार लंड इतना पास देखा था..कुछ इस
मिनिट बाद अंकल ने खाट झुग्गी ( रूम ) के दूसरी तरफ़ वाले हिस्से मे बिछा
डी और फिर वो दीदी का हाथ पकड़ उन्हे उसे हिस्से मे ले गया…अब मुझे कुछ
भी नज़र नही आ रहा था..मुझे अपनी किस्मत पर गुस्सा आने लगा…इतना अच्छा
मोका मेरे हाथ लगा था..मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे ..चारपाई के
ज़ोर ज़ोर से हिलने के आवाज़ आने लगी…चर…चार..चार" और बीच बीच मे दीदी की
सिसकिया भी आने लगी…"अहह…इस्शह…."
क्या अंकल दीदी की चुदाई करने लगा है..ये सोचते ही बेचैन होने लगा..मैने
फटा फॅट अपना लंड वापस अपने पॅंट मे डाला..और कोई जगह अंदर देखने के लिए
ढूढ़ने लगा…
फिर तभी मेरी किस्मत दोबारा खुली और मैने देखा कि दीदी भागती हुई दोबारा
झुगी के उसी हिस्से मे आ गयी जहा वो पहले थी…उन्होने अपने दोनो हाथो से
अपनी सफेद चूड़ीदार पाजामी पकड़ी हुई थी.नीचे लटकता हुआ नाडा से बता रहा
था कि दीदी की पाज़ामी खुली हुई है….
"नही मैं ये सब नही करवाउंगी..प्लज़्ज़्ज़….छोड़ दो मुझे..अंकल..आपको
पैसे चाहये तो वो ले लो….प्ल्ज़ मेरी जिंदगी मत बर्बाद करो" दीदी की आँखो
मे अब आसू आ चुके थे..तभी दूसरी तरफ़ से अंकल बाहर आया …अंकल की आँखे हवस
के नसे से लाल हो रही थी..
"साली…थोड़ी देर पहले तो बड़े मज़े से करवा रही थी..अब क्या हुआ तुझे
..तुझे लगता है कि मैं तेरे जैसा कोरा और जवान माल बिना चोदे जाने
दूँगा…" अंकल दीदी के तरफ बढ़ते हुए बोला..दीदी धीरे धीरे पीछे होने लगी
और वो शैतान आगे बढ़ने लगा…दीदी की ऐसी हालत देख मैं सोच मे पड़ गया कि
आज की तारीख मे लड़की होना कितना बड़ा गुनाह है और उपर से अगर लड़की दीदी
जैसी खूबसूरत हो तो क्या कहना…..
फिर मैने दोबारा अंदर चलते हवस के नंगे नाच पर अपना ध्यान केन्दरित किया
.और जो मैने देखा उससे मेरा हाथ दोबारा मेरे लंड पर चला गया …दीदी दीवार
से सटी खड़ी थी और अंकल का एक हाथ सूट के उप्परसे उनकी लेफ्ट चूची को दबा
रहा था और दूसरे हाथ से वो दीदी की पाजामी के अंदर हाथ डालने की कोशिश कर
रहा था….
"बह्न्चोद …क्या..मुलायाम चुची है तेरी रानी.आज तक मैने इतनी चूचिया दबाई
पर तेरे जैसी कड़क और मुलायम चुचि किसी की ना थी .आइ…." वो दीदी की
चूचिया दबाता हुआ बोला..
उधर दीदी अपनी पूरी ताक़त के साथ अपनी पाजामी मे घुसने की कोशिस करते
अंकल के हाथो को रोक रही थी..जब उनको लगा के वो अंकल के हाथ को नही रोक
पाएगी तब वो अचानक दीवार की तरफ मूड गयी….अब दीदी की पीठ अंकल और मेरी
तरफ़ थी…
"मुझे छटपटती लड़किया बहुत पसंद है..साली ..कुतिया आज तो मैं तेरी चूत को
चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा…" वो बुढ्ढा अंकल फिर पीछे से ही दीदी से
लिपट गया और अपने दोनो हाथो से दीदी को अपने गिरफ़्त मे ले लिया…दीदी की
अब ऐसी हालत देख मुझे उन पर दया भी आ रही थी…पर मेरे अंदर पैदा हो चुकी
हवस मुझे ये सब देखने के लिए उकसा रही थी..तभी एक ही झटके मे अंकल ने
दीदी की पाजामी को अपने अनुभवी हाथो से सरका कर नीचे कर दिया और फिर नीचे
बैठ कर दीदी के गोरे गोरे चूतड़ पर चढ़ि हरी (ग्रीन ) कछि (पॅंटी ) देख
ने लगा…उसने फिर कछि पर हल्का सा किस किया और अपने दोनो हाथो से कछि के
उप्पर से दीदी के चूतड़ो को मसलने लगा..फिर एक झटके मे दीदी की हरी कछि
को उसने नीचे सरका दिया..अब चूतड़ पूरे नंगे हो चुके थे…दीदी के चूतड़ तो
ब्लू फिल्म वाली लाकियो से भी अच्छे थे एक दम गोल और सुडोल..उभरे हुए
बाहर की तरफ़ निकले हुए दीदी के चूतड़ देख मेरा लंड पागल हो गया था तो आप
सोच भी सकते है कि अंकल का क्या हाल हुआ होगा क्योंकि दीदी तो उनकी पास
ही खड़ी थी.फिर बिना कोई वक्त गवाए अंकल ने अपने गंदा सा मूह दीदी के
गोरे गोरे चुतदो मे घुसा दिया और वो उन्हे चाटने लगा..अंकल की खुरदूरी
जीब, मूह पर आई दाढ़ी (बियर्ड) और उनके मूह से आती गरम गर्म सासो को
महसूस कर दीदी के मूह से ना चाह कर भी एक सिसकारी निकल गई
…"आआ..इसस्स्स्स्स्स्स्सश….मा….इसस्शह…" दीदी के लिए ये एक नया अनुभव था
और उनके चूतड़ अपने अप अंकल के जीभ का सपर्श पाने के लिए..अंकल के मूह मे
घुसने की जदोजहद करने लगे..अंकल की जीभ दीदी के चुतड़ों की दरारो मे
उप्पर से नीचे उनकी चूत तक घूम घूम कर अपना कमाल दिखाने लगी…अब दीदी की
आखे मस्ती मे फिर से बंद होने लगी थी और उन्होने प्रतिरोध बंद कर दिया
था..दीदी की कवारी चूत चाट चाट कर उसका रस पीते ही अंकल जोश से भर गया
…लड़की अब उसके काबू मे दोबारा आ गयी थी…इस बार उसने समय गवाने की कोशिश
ना की और खड़ा होकर उसने अपना तना हुआ लोड्ा अब तक झूक चुकी अंजलि दीदी
की चूत (पुसी) पर रख दिया..ये सोच कर कि अब तो दीदी कोई कोई चुदने से नही
बचा पाएगा…तभी मुझे लगा कोई मेरे अलावा भी शायद कोई और ये सब देख रहा
है..वो जो कोई भी था वो बंद दरवाजे से अंदर झाक रहा था..क्योंकि दरवाजा
थोड़ा थोड़ा हिल रहा था.( मानो की कोई बड़ा उत्सुक था अंदर देखने के लिए
) .पर .मेरे लंड ताव मे आ गया और ..''''फाकच्छ..फ़ाच्छ..मेरे लंड ने पानी
छोड़ दिया..इतना तेज ऑर्गॅज़म मुझे पहले कभी नही हुआ था….मेरी टाँगे काप
रही थी. तभी फॅट की ज़ोर से आवाज़ हुई और मैने देखा कि अंकल ज़मीन पर
बेहोश पड़ा है..उसका सर खून से लत्पथ है…और दीदी के हाथ मे एक टूटी काच
की बॉटल है….
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