RE: Sex Kahaniya अंजाना रास्ता
…और ये हाल सिर्फ़ मेरा ही नही बल्कि अपने चेहरे पर डर से आया पसीना
पोछती हुई अंजलि दीदी का भी था दीदी ने भी उसको पहचान लिया था..वो इंसान
कोई और नही बल्कि वोही अंकल था जिसको दीदी अपने रूम से नीचे झाक कर पेशाब
करते हुए देखती थी..शायद अंकल भी दीदी को पहचान गये थे क्योंकि वो रुक
गया था और दीदी को देख कर उसके गंदे चेहरे पर शैतानी हसी आ गयी थी..
" अरे वाह किसी ने सही कहा है जब भगवान देता है तो झप्पड़ फाड़ कर देता
है..आज जुए मे भी मे 10'000 रुपेये जीता और अब…" अंकल मुस्कुराता हुआ
बोला
"बेटे पहचाना मुझे ..कुछ याद आया .." वो बड़ी बेशर्मी से अपना लंड अपनी
पॅंट के उप्पर से खुजलाता हुआ बोला.
अंजलि दीदी तो मानो सुन्न पड़ गयी थी..उनका खूबसूरत चेहरा शर्म से लाल हो
गया था..वो दोनो कुछ सेकेंड तक लगातार एक दूसरे की आखो मे देखते रहे ..वो
शायद ये भी भूल गये थी कि मैं भी वही साथ मे खड़ा हू. अंकल तो मानो आखो
ही आखो मे दीदी से कुछ कह रहा था…तभी दीदी ने अपनी नज़रे नीची कर ली..
"भाई क्या हुआ..यहा कैसे.." अंकल बोला
दीदी ने कुछ ना बोला ..दीदी को कोई जवाब ना देते देख मे बोल उठा." हम यहा
सर्वे करने आए है…"
"वाह वाह..अच्छा है...किस चीज़ का सर्वे" वो अब मेरी तरफ़ देखता हुआ
बोला. अंकल की आखो मे अब चमक आ चुकी थी..
"हम यहा लोगो को सफाई की इंपॉर्टेन्स बताने आए है" मैने तुरंत जवाब दिया.
"बहुत अछा .कितना नेक काम कर रहे हो आप लोग …मेरी खोली यही पास मे है
मुझे भी कुछ बता दो…"
"नाअ..नही हमे अब घर जाना है.." दीदी काँपती आवाज़ मे बोली.
अंकल एक बड़ा हारामी इंसान था इतना अच्छा मौका भला वो कैसे छोड़ता. उसने
फॉरन अंजलि दीदी का गोरा हाथ अपने गंदे से हाथ ले लिया और बोला " अरे ऐसे
कैसे..आप लोग मेरे मेहमान है मुझे भी मेहमान नवाज़ी का मोका दो.." दीदी
तो मानो उसके हाथ की गुड़िया सी बन गयी थी. अंकल तो मुझे ऐसे इग्नोर कर
रहा था जैसे कि मैं वाहा हू ही नही उसका सारा ध्यान दीदी पर ही केंद्रित
था. मुझे अंकल की ये हरकत बुरी लग रही थी..और मैं चाहत्ता तो उनको रोक भी
सकता था ..पर ना जाने क्यू मेरे अंदर छुपा वो हवस का भूका शैतान मुझे से
सब करने से रोक रहा था..और कुछ ही देर मे हम दोनो अंकल के झोपडे के अंदर
थे. झोपड़ी कुछ ज़्यादा बड़ी ना थी फिर भी उसमे दो हिस्से थे..यहा वाहा
कुछ खाली शराब की बोटले पड़ी थी..समान के नाम पर एक पुरानी चारपाई .एक
लकड़ी की मेज , एक बड़ा सा बक्सा और कुछ छोटा मोटा घरेलू समान था…दीदी और
मैं चारपाई पर बैठे थे…
"देख लो ये है मेरा हवा महल..हा हा हा .." वो अपनी जेब से एक शराब की
बॉटल निकाल कर मैंज पर रखता हुआ बोला.
दीदी अब भी उस आदमी से नज़रे नही मिला पा रही थी..अंकल कुछ देर के लिए
झोपड़ी के दूसरे हिस्से मे गया और थोड़ी देर बाद वापस आया तो उसके बदन पर
सिर्फ़ लूँगी बँधी थी…अंकल बिल्कुल दुब्ब्ला पतला था ..उसके सीने पर उगे
सफेद होते बॉल काफ़ी घने थे .
" अरे भाई मुझे भी तो बताओ..सफाई के फ़ायदे ..देखो मेरा घर कितना गंदा है
..और मेरे यहा सफाई करने वाला भी कोई नही.." वो पास पड़े इस्तूल को दीदी
के बिल्कुल पास रख उसपर बैठता हुआ बोला. अब मेरी नज़र दीदी पर थी दीदी की
साँसे तेज चल रही थी जिसकी गवाही सूट मे क़ैद उनकी छातियाँ ज़ल्दी ज़ल्दी
उप्पर नीचे होकर दे रही थी. दीदी की घबराहट सिर्फ़ मैने ही नही बल्कि
उनके पास बैठे अंकल की पारखी नज़र ने भी देख ले थी." अरे बिटिया क्या हुआ
तुमने तो कोई जवाब ही नही दिया.." और अंकल ने अपना उल्टा हाथ खाट पे बैठी
दीदी की राइट जाँघ पर रख दिया. दीदी को तो मानो 11'000 वॉल्ट का करेंट
लगा गया और उनके बदन ने एक झटका खाया..
" उन्न..अंकल हम लेट हो रहे है..हम आपको किसी और दिन समझा देंगी" दीदी ने
पहली बार अंकल की आँखो मे देखते हुए बोला.
"अरे अभी तो सिर्फ़ दोपहर के 2 बजे है. और बाहर बहुत गर्मी है थोड़ी देर
बाद चले जाना बिटिया.." अंकल अपना हाथ जो कि अभी भी दीदी की जाँघो पर रखा
था उसको धीरे धीरे से सहलाते हुए बोले. दीदी ने अपने हाथो मे पकड़े हुए
रेजिस्टर ( जो कि उन्होने सर्वे की इंपॉर्टेंट जानकारी लेने के लिए लिया
हुआ था ) उसको जोरो से जाकड़ लिया.
"तुम्हारा नाम क्या है." अंकल सीधा दीदी की ऊपर नीचे होती हुई छातियो को
देखते हुए बोला.
"जीई..मेरा..ना..नामाम है …अंजलि "
दीदी को अपने इतना पास देख वो अंकल बहुत ही उतावला लग रहा था.अगर मैं
वाहा मोजूद ना होता तो शायद अब तक वो दीदी के कपड़े फाड़ उनकी जवानी
लूटना शुरू भी कर चुका होता.
"तुम इतना क्यो डर रही हो बिटिया..इसमे डरने वाली क्या बात है…." बोलकर
अब अंकल स्टूल से उठकर चारपाई पर दीदी की लेफ्ट साइड मे खाली पड़ी जगह पर
बैठ गया.वो जब उठ रहा था तो मेरी नज़र यका यक उसकी लूँगी पर बनते हुए
टेंट पर गयी..वो टेंट अभी ज़्यादा बड़ा नही बना था फिर भी अंकल के खड़े
होने पर वो सॉफ नज़र आ रहा था…और ये सिर्फ़ मैने नही दीदी ने भी देखा था.
"पानी पीओगी.." अंकल बोला.
दीदी ने सोचा कि अगर वो हा करती है तो अंकल उठ कर पानी लेने चला गाएगा
जिससे कि उनको थोड़ा सकून मिलेगा.
"हंजी" दीदी धीरे से बोली
पर अंकल तो मंझा हुआ शिकारी था उसने तुरंत मेरी तरफ देखा और बोला " अरे
बेटा छोटू जा अंदर जा एक ग्लास पानी ले आ..ग्लास अलमारी से निकाल लेना और
पानी का मटका वही नीचे रखा है ". मैं भी क्या करता उठ कर झोपड़ी के दूसरे
हिस्से मे चला गया.अब मेरी बड़ी बहन उस अंजान अंकल के साथ अकेली थी मेरा
दिल जोरो से धड़कने लगा..फिर मैने सामने अलमारी मे रखे एक पीतल के ग्लास
को हाथ मे उठाया ही था कि मुझे..अचानक दीदी की हाथो मे पहने कड़ो की खनक
ने की आवाज़ आई..मानो दीदी अपने हाथो को जोरो से हिला रही है…मेरे दिमाग़
मे ख़तरे की घंटी बजने लगी …और फिर '"आआ..इसस्स्शह….." दीदी के मूह से
निकली ये सीत्कार बहुत धीरे होने के बावजूद मेरे अब तक सतर्क हो चुके
कानो मे आई. दूसरी तरफ़ क्या हो रहा होगा..ये सोचते ही मेरे लंड मे करेंट
फैलने लगा. जो दीवार झोपडे को बाटती थी मैं चुप चाप उसके पास जाकर खड़ा
हो गया अब मैं देख तो कुछ नही पा रहा था पर हल्की हल्की आवाज़े मुझे
ज़रूर सुनाई दे रही थी..
और मैने सुना
दीदी : आह..अंकल….प्लीज़ अब घर जाने दो..'
अंकल: " इस.हह..ऐसे कैसे जाने दू मेरी जान…..मुझे तो अपने किस्मत पर यकीन
ही नही हो रहा है..जिस लड़की को सोच सोच कर मैने इतना मूठ मारा ..वो आज
मेरे घर मे..आहह.."
दीदी : "उन..ह…अंदर ..मेरा छोटा भाई है प्लीज़…..अहह..मे बदनाम हो जाउन्गी…"
अंकल : "क्यो क्या हुआ जब तू मुझे पेशाब करते हुए देखती थी…तब तुझे शर्म
नही आती थी..साली तेरे बारे मे सोच सोच कर मैने कितनी रंडिया चोदी है
.क्या तुझे इस बात का ज़रा भी इल्म है"
तभी दीदी के काँपते होटो से फिर एक सिसकारी निकली."आहह.इसस्स्स्स्शह….वो
मेरा भाई उन..अंदर…….आईशह…".
अंकल : "अच्छा..अब समझ आया ..तू अपने भाई के पास होने से डर रही है..तू
रुक मे कुछ करता हू अभी.."
दीदी कुछ ना बोली..
मैं सोच मे पड़ गया क्या वाकई दीदी मेरी वजह से हिचाक रही है..??
मैं तुरंत पानी का ग्लास लेकर उस तरफ़ निकला ही था कि मेरे पैर से एक
शराब की खाली पड़ी बॉटल टकरा गयी..इस आवाज़ से कुछ पल के लिए सब शांत हो
गया और मैं उस तरफ़ जहा वो दोनो थे..चल पड़ा ..उधर आते ही मैने देखा कि
दीदी के बालो का जुड़ा खुला हुआ है.और उनके बाल फेले हुए है और दीदी अपना
दुपट्टा सही कर रही है. अंकल अभी भी दीदी की बगल मे बैठे थे और वो अपने
लूँगी मे खड़े लंड को शायद मुझसे छुपाने की कोशिश कर रहे थे.
क्रमशः.......................
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