RE: Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
उनकी इस मस्त तरीके की चुसाई से मैं अपने जोश पर जैसे-तैसे काबू पा ही पाया था कि उसने भी अनुभवी की तरह अपना पैंतरा बदल दिया।
अब उसने मेरे लौड़े पूरा बाहर निकाला और उस पर ढेर सारा थूक लगा कर अपनी जुबान से कुल्फी की तरह मेरे सुपाड़े पर अपनी क्रीम रूपी थूक से पौलिश करने लगी।
इसके साथ ही वो.. जहाँ से लौड़े का टांका टूटता है.. वहाँ अपनी उँगलियों से धीरे-धीरे कुरेदने लगी।
मैं लगातार ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह.. श्ह्ह्ह्ह्ह्ही.. स्सीईईईई.. आआआअह’ रूपी ‘आहें’ भरे जा रहा था।
माया का अंदाज़ ही निराला था.. उसको देखकर लग रहा था कि यदि मैं अभी नहीं झड़ा तो कहीं ये मेरे बर्फ सामान कठोर लौड़े को चूस-चूस कर खा ही डालेगी.. तो मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा- जान.. क्या बात है.. आज तो बहुत मज़ा दे रही हो.. क्या इरादा है..?
तो वो नशीले और कामुक अन्दाज में लौड़े को मुँह से बाहर निकाल कर बोली- जानी.. इरादे तो नेक हैं.. पर तेरा औजार उससे भी ज्यादा महान है.. मैं इसके बिना आज सुबह से तड़प रही थी.. दो दिनों में ही तूने मुझे इसकी लत सी लगा दी है.. मैं क्या करूँ..
यह कहते ही उसने फिर से मेरे लौड़े को ‘गप्प’ से मुँह में ले लिया।
मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे मेरा लौड़ा सागर में डुबकी लगा रहा हो। यार.. इतना अच्छा आज के पहले मुझे कभी नहीं लगा था। वो अलग बात है रूचि ने अनाड़ीपन के चलते जो किया.. वो भी अच्छा था.. पर इसका कोई जवाब ही नहीं था।
ऐसा मुख-चोदन मैंने सिर्फ ब्लू-फिल्म में ही देखा था।
अब उसका हाथ रफ़्तार पकड़ने लगा था अब वह तेज़ी मुठियाते हुए मेरे लौड़े को गपागप मुँह में लिए जा रही थी। जिससे मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई और उसके इस हमले के प्रतिउत्तर में मैंने भी जोश में आकर उसे जवाब देना चालू किया।
मैंने भी उसके बालों सहित उसके सर को कसते हुए अपने लौड़े को तेज़ी के साथ मुँह में अन्दर-बाहर करते हुए ‘शीईईई आअहह्ह्ह.. शीईईईइं.. अह्हह्ह’ करने लगा।
मेरे तेज़ प्रहारों के कारण माया ने भी एक अनुभवी चुद्दकड़ की तरह मेरे लौड़े को मुँह फैला कर अपने होठों के कसावट की कैद से आज़ाद कर दिया। मानो कि अब मेरी बारी हो और उनके बालों के कसने से और लौड़े के तेज़ प्रहार से अब आवाज़ें बदल गई थीं।
अब ‘गूँगूँ..गूँगूँ..’ की जगह ‘मऊआआआ.. मुआआआअ..’ की आवाजें आने लगी थीं। उनके मुँह से उनका थूक झाग बन कर उनकी चूचियों और जमीन पर गिरने लगा।
अब मानो कमान मेरे हाथों में थी.. तो मैंने भी बिना रुके कस-कस कर धक्के लगाने आरम्भ किए और उन्हें अपना पुरुषत्व दिखाने लगा।
वो भी हार नहीं मान रही थी.. मैं जितनी जोर से अन्दर डालता.. उसके चेहरे पर ख़ुशी के साथ-साथ अजीब सी चमक दिखने लगी थी।
मैं भी अब अपने लौड़े को कभी-कभी पूरा निकालता और पूरा का पूरा उसके मुँह में घुसेड़ देता.. जिससे उसकी आँखें बाहर निकल जातीं और मुझे ऐसा लगता जैसे मेरा लौड़ा उसकी बच्चे-दानी से टकरा गया हो।
उसकी हालत ख़राब देख कर मैंने थोड़ी देर के लिए लौड़े को बाहर निकाला।
अब मैंने लौड़े को उसके होंठों पर घिसने लगा.. और बीच-बीच में मुँह में ऐसे डालकर निकालता.. जैसे कांच वाली बोतल में अंगूठा घुसेड़ कर निकालो.. तो ‘पक्क’ की आवाज़ होती है.. ठीक उसी तरह..
अब मैं भी उसके मुँह से खेलते हुए आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा था और अचानक ही मैंने देखा कि ये क्या मेरे लण्ड में खून की इतनी मात्रा आ चुकी थी कि वो पूरा लाल हो गया था.. तो मैंने सोचा क्यों न आंटी का भी मुँह लाल किया जाए।
तो मैंने भी पूरे जोश के साथ उसके मुँह की एक बार गहराई और नापी.. जिससे उसका मुँह ‘अह्ह्ह्ह’ के साथ खुल गया और उसने मेरी जांघ पर चिकोटी काट ली.. चूंकि दर्द से उसका गला भी भर आया था।
फिर मैंने अपने पूरा लौड़ा बाहर निकाला और उसे पकड़कर उनके गालों पर लण्ड-चपत लगाने लगा। कभी बाएं तो कभी दाएं गाल पर लौड़े की थापें पड़ रही थीं।
इससे आंटी और मेरा दोनों का ही जोश बढ़ रहा था। अब इस तरह चपत लगाने से माया के थूक की चिकनाई जा चुकी थी.. जिससे मेरे लिंग मुंड पर कसावट से दर्द सा होने लगा था..
मैंने उन्हें बोला- अब मुँह खोलो..
तो उसने वैसा ही किया.. मैं बोला- बस ऐसे ही करे रहना.. और हो सके तो थोड़ा थूक भर लो।
तो उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिला दिया और मैंने भी स्ट्रोक लगाना चालू किया.. पर अब मैं ऐसे धक्के दे रहा था.. जो मेरे साथ साथ माया को भी मज़ा दे रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे मैं मुँह नहीं.. बल्कि उसकी चूत चोद रहा होऊँ.. देखते ही देखते मेरे स्खलन का पड़ाव अब नज़दीक आ गया था।
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