RE: Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
जैसे ही मैंने घंटी बजाई, वैसे ही अंदर से विनोद की आवाज आई- कौन?
मैं बोला- दरवाज़ा भी खोलेगा या नहीं?
तो वो बिना बोले ही आया और दरवाज़ा खोला, मैंने अंदर जाते हुए उससे पूछा- आंटी और रूचि कहाँ हैं?
वो बोला- माँ किचन में है और रूचि शायद रूम में है तो मैंने अपना बैग वहीं सोफे पर रखा और विनोद से बोला- यार कोई बढ़िया चैनल लगाओ, तब तक मैं इसे यानि की कोल्ड्ड्रिंक को फ्रीज़ में लगा कर आता हूँ।
कहते हुए किचन की ओर दबे पाँव जाने लगा।
जैसे ही मैं किचन के पास पहुँचा तो मैं माया को देखकर मतवाला हाथी सा झूम उठा, क्या क़यामत ढा रही थी वो… मैं तो बस देखता ही रह गया, एक पल के लिए मेरे दोनों पैर स्थिर हो गए थे जैसे कि मैं धरती से चिपक गया हूँ, उसने उस वक़्त साड़ी पहन रखी थी और बालों को पोनी टेल की तरह संवार रखा था जो उसके ब्लॉउज के अंतिम छोर से थोड़ा सा नीचे लटक रहे थे और उसका ब्लाउज गहरे गले का होने के कारण उसकी पीठ पीछे से स्पष्ट दिख रही थी जिसकी वजह से मैं मंत्र-मुग्ध सा हो गया था।
जैसे तैसे अपने आप को सम्हालते हुए धीरे से मैं उनके पीछे गया और कोल्ड्ड्रिंक की बोतल को उनकी जांघों के बीच में घुसेड़ते हुए उनके पीछे से में चिपक गया जिससे माया तो पहले चौंक ही गई थी और एक हल्की सी चीख निकल गई पर मुझे देखते ही उसने अपना सर झुका कर मेरे गालों पर चुम्बन लिया और गालों की चुटकी लेते हुए बोली- राहुल, बहुत शैतान हो गए हो तुम… ऐसे कहीं करते हैं मैं अगर जल जाती तो?
मैं तपाक से बोला- ऐसे कैसे जलने देता? मैं हूँ ना… वैसे आज तुम मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही हो!
तो वो बोली- हर समय मक्खन मत लगाया करो!
मैं बोला- नहीं यार, मैं मक्खन नहीं लगा रहा हूँ, सच ही बोल रहा हूँ, तभी तो मैं खुद पर कंट्रोल न रख सका… क्या एक चुम्मी मिलेगी अभी?
तो बोली- नहीं, अभी रूचि कभी भी आ सकती खाना लगाने के लिए… बाद में!
मैं बोला- नहीं, मुझे अभी चाहिए!
वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने चुम्मी दूँगी।
मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?
और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले लेता हूँ।
मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।
वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!
तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने मुझे प्यार न दे पाती!
फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ ध्यान भंग हुआ।
फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो, तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!
वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये सब है तो तुम्हारा ही असर!
मैं बोला- वो कैसे?
तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार करने लगी हूँ…
‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे।
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