RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
अच्छा ये हुआ कि दूसरी साइड से कोई गाड़ी नहीं आई, एक ट्रोला आ रहा था जो अभी थोड़ी दूरी पर था। अंकल ने साइड में लेकर गाड़ी को ब्रेक लगाये। गाड़ी एक तरफ से उठ गई। परन्तु अंकल ने तुरंत संभाल लिया और गाड़ी पलटते पलटते बची। ट्रोला नजदीक आ चुका था। पौधे थोड़े बड़े-बड़े थे इसलिए दूसरी साइड का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। हमें पता नहीं चल रहा था कि आर्यन की गाड़ी किधर है। तभी आर्यन की गाड़ी भी डिवाइडर के उपर से ही हमारी तरफ फुल स्पीड में निकल आई। पेड़ होने की वजह से उनको ट्रोला दिखाई नहीं दिया और ट्रोले के साथ भयंकर भिडंत हो गई। कान गूंज उठे। टक्कर इतनी जोर से हुई थी कि जिस साइड से ट्रोले ने स्कोरपियो को टक्कर मारी थी वो साइड आधी पिचक गई थी। ट्रोले वाले ने स्पीड कम नहीं की और स्कोरपियो को आगे घसीटते हुए ले गया। थोड़ी दूरी पर जाकर स्कोरपियो पलट गई और ट्रोला के सामने से हट गई। ट्रोले वाला फुल स्पीड से ट्रोले को भगा ले गया।
ये साले यहीं पर खत्म हो जाने चाहिए, नही तो दिक्कत हो जायेगी, अंकल ने कहा और गाड़ी से नीचे उतरकर स्कोरपियो की तरफ जाने लगे। सड़क पर खून ही खून बिखरा हुआ था। एक कार थोड़ी स्लो होते हुए पास से गुजर गई। स्कोरपियो हमारी गाड़ी से 200 मीटर की दूरी पर ही होगी। लग नहीं रहा था कि उसमें कोई जिंदा बचा होगा, क्योंकि किसी की बॉडी में कोई भी हलचल नहीं थी।
अंकल ने जेब से सिगरेट निकाली और एक बार इधर उधर देखा, काफी दूर से एक कार आ रही थी, दूसरी साइड का कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। अंकल ने जल्दी से सिगरेट जलाई और स्कोरपियो से रिस रहे पैट्रोल की तरफ उछाल दी। आग पूरी गाड़ी में फैल गई और गाड़ी धू-धूकर जलने लगी।
अंकल और पापा निश्चिंत होकर वापिस आ गये और गाड़ी आगे बढ़ा दी। पिछे से जो कार आ रही थी वो एकबार थोड़ी सी धीमी हुई और फिर तेजी से आगे बढ़ गई।
अब आर्यन और उसके आदमियों के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। ढाबे को पिछे छोड़ते हुई हम आगे बढ़ गये। काफी आगे चलकर एक ढाबा आया, उसपर पंक्चर की व्यवस्था भी थी। नवरीत अभी भी बेहोश ही थी।
स्टीपनी से टायर चेंज करवाया और पापा और अंकल ने खाने के लिए ऑर्डर दिया और मेरे लिए गाड़ी में ही ले आए। अब हमें किसी चीज की टेंशन नहीं थी। आर्यन और उसके आदमी अब तक तो जलकर खाक हो चुके होंगे। खाना खाने के बाद हम वापिस जचपुर की तरफ चल पड़े।
एक्सीडेंट वाली जगह पर अब काफी हलचल थी। फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी खड़ी थी। चारों तरफ जले हुए शरीरों की बदबू फैली हुई थी। हमने गाड़ी साइड में लगाई और नाक पर रूमाल रखकर दूसरी तरफ जाकर देखने लगे कि कहीं कोई जिंदा तो नहीं बच गया है। आग तो बुझ चुकी थी, परन्तु स्कोरपियो जलकर खाक हो चुकी थी। पुलिस और एम्बुलेंस भी पहुंच चुकी थी। स्कोरपियो में बैठे सभी आदमी बुरी तरह जल चुके थे, यहां तक कि उनकी हड्डियां भी नजर आ रही थी जो काली हो चुकी थी। कोई भी नहीं बचा था। हम वापिस अपनी गाड़ी में आ गये।
सारी टेंशन खत्म हो चुकी थी। अब किसी बात का डर नहीं था। मैंने पिछे सीट से कमर लगाई और पिछे की तरफ सिर को रखकर आंखें बंद कर ली, आंखें नम हो गई थी। सोनल को पता नहीं होश आया होगा या नहीं, कहीं कुछ ज्यादा प्रॉब्लम न हो जाये, सोचते सोचते सोच अपूर्वा पर पहुंच गई और दिल में एक कसक सी उठी और मैं अपूर्वा के ख्यालों में गुम हो गया।
अचानक मुझे नवरीत के शरीर में कुछ हलचल सी महसूस हुई। मैंने एकदम से आंखे खोल दी और नवरीत की तरफ देखा। नवरीत ने आंखें खोली और एकदम से खड़ी होकर बैठ गई। उसने बदहवाशी में इधर उधर देखा और फिर आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगी।
हम कहां जा रहे हैं, नवरीत ने पूछा। नवरीत की आवाज सुनते ही पापा और अंकल ने पिछे देखा। अंकल ने गाड़ी तुरंत साइड में खड़ी कर दी।
पापा, हम कहां जा रहे हैं, नवरीत ने अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा। तभी वो एकदम से घबरा गई। ‘वो,,,, वो आदमी कहां गये, जिन्होंने मुझे किडनेप किया था’।
वो मर चुके हैं बेटा, अंकल ने कहा और नवरीत के बालों में हाथ फिराने लगे।
और ---- और---- सोनल---- वो कहां है? नवरीत ने घबराते हुए पूछा।
सोनल अभी बेहोश है, वो मेडिकल में है, मैंने कहा। अंकल ने वापिस गाड़ी को जयपुर की तरफ बढ़ा दिया।
मैंने नवरीत को सब कुछ बताया, वो हैरत से सब सुनती रही। नवरीत वापिस मेरी गोद में सर रखकर लेट गई।
हम सीधे मेडिकल ही गये। अंकल (अपूर्वा के पापा), मम्मी, छूटकू, आंटी (नवरीत की मम्मी) और सोनल की मम्मी वहीं पर थे। प्रीत भी आ चुकी थी। सोनल को अभी तक होश नहीं आया था। डॉक्टर्स ने बताया कि अगर होश नहीं आता है तो हो सकता है कि ये कोमा में भी चली जाये। ये सुनते ही सभी बैचेन हो गये। हमने शीशे में से आई-सी-यू- में सोनल को देखा। वो सब कुछ से बेखबर आराम से सो रही थी। चारों तरफ मशीनें और उसके शरीर पर जगह जगह वायर दिखाई दे रही थी। मेरी आंखें नम हो गई। आंसु पौंछते हुए मैंने नवरीत की तरफ देखा, वो भी अपने आंसु पौंछ रही थी। प्रीत हमारे पिछे ही खड़ी थी। उसकी आंखों से आंसु बह रहे थे। मैंने उसे सांत्वना देते हुए उसके आंसु पौंछे। कुछ देर बाद हम वापिस सबके पास आ गये। अंकल रस्ते में घटी घटना के बारे में सभी को बता रहे थे। वो इस बात का पूरा धयान रख रहे थे कि कोई और ये सब ना सुन ले, इसलिए जब कोई आसपास से गुजरता तो सब चुप हो जाते थे।
मैंने यहां पर ये सब बताना ठीक नहीं समझा, इसलिए उन्हें मना करते हुए घर जाने के लिए कहा। नवरीत का चैकअप करवाकर सभी घर चले गये। मैं, प्रीत और आंटी हॉस्पिटल में ही रूक गए। प्रीत ने मेरे कंधे पर सर रख दिया। मैंने उसे खुद से चिपका लिया और सांत्वना देते हुए धीरे धीरे उसके सिर को सहलाने लगा।
शाम को नवरीत और छूटकू भी आ गये। नवरीत ने बताया कि जब वो मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे तो सोनल ने छुड़ाने की कोशिश की थी, एक आदमी ने सोनल को धक्का दे दिया और सोनल का सिर साइड में खड़ी कार से जा टकराया था और सोनल वहीं पर बेहोश हो गई थी। ये सब बहुत जल्दी हुआ था, इसलिए कोई बीच-बचाव नहीं कर सका, और उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठाकर बेहोश की दवा सुंघाकर बेहोश कर दिया। उसके बाद जब आंख खुली तो मैं तुम्हारी गोद में थी।
सोनल के शरीर पर और कोई चोट नहीं थी, सिर में चोट लगने की वजह से वो बेहोश थी और होश में आने का नाम ही नहीं ले रही थी। पिछले कुछ दिनों में वो मेरे लिए रातों को जागी थी, और अब खुलकर बदला ले रही थी, उस नींद को पूरी कर रही थी।
रात को मैंने सभी को घर भेज दिया और खुद हॉस्पिटल में अकेला ही रूक गया। मेरे मोबाइल का कोई अता-पता नहीं था। मैंने छूटकू का मोबाइल अपने पास रख लिया था। पूरी रात लड़कियों के फोन आते रहे, जैसे ही आंख लगती किसी का फोन आ जाता। सुबह आंखों में नींद भरी हुई थी। मैं आराम से सोफे पर सो रहा था जब प्रीत आई। उसके साथ नवरीत और कोमल भी थी। लग रहा था कि प्रीत और नवरीत भी रात भर सोई नहीं थी, क्योंकि उनकी आंखें एकदम लाल थी और बार-बार बंद हो रही थी।
सबसे गले मिलने के बाद सभी सोफे पर बैठ गये। मैं फ्रेश होने के लिए टॉयलेट चला गया। प्राइवेट हॉस्पिटल का यही फायदा था कि वहां हर जगह साफ सफाई मिलती थी। निपटने के बाद मैंने अच्छी तरह से मुंह धोया जिससे नींद भाग जाये। वापिस आकर देखा तो छूटकू भी वहीं पर था और मोबाइल को चैक कर रहा था।
ये मोबाइल ना ही लेता तो अच्छा रहता, पूरी रात लड़कियों के फोन पे फोन आते रहे, फालियों ने सोने भी नहीं दिया। मेरी बात सुनकर सभी हंसने लगे।
जब हम आई तब तो बड़े खर्राटे भरे जा रहे थे, प्रीत ने छेड़ते हुए कहा।
बस सुबह ही आंख लगी थी, रात में सबको पता चल गया था कि आज फोन छूटकू के पास नहीं है, इसलिए सुबह कोई फोन नहीं आया, मैंने मुस्कराते हुए कहा। सभी फिर से हंसने लगे।
खाना खा लो, फिर ठण्डा हो जायेगा, छूटकू ने टेबल पर रखे टिफिन की तरफ ईशारा करते हुए कहा। मैंने टेबल पर अखबार बिछा कर खाना लगाया। बाकी सभी ने खाने के लिए मना कर दिया।
सभी बैठे बैठे बतियाते रहे, 11 बजे के आसपास आंटी और मम्मी भी आ गई। डॉक्टर्स ने बताया कि सोनल कोमा में जा चुकी है, और अब कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब होश में आये। प्रीत और आंटी तो वहीं पर फूटफूट कर रोने लगी। मम्मी ने आंटी को और मैंने प्रीत को संभाला। सोनल को दूसरे रूम में शिफ्रट कर दिया गया। वहां पर एक और आदमी के रहने की जगह थी। रूम काफी बड़ा था और मरीज के बेड के अलावा दो सोफे और टेबल भी थी। सोनल आराम से सो रही थी, जैसे अब उसे उठना ही ना हो। उसके चेहरे की मासूमियत अपने पूरे शबाब पर थी। माथे पर पट्टी बंधी हुई थी। नर्स ने जब पट्टी चेंज की तो मैंने देखा कि हल्का सा घाव था जो अब काफी ठीक हो चुका था।
नर्स के जाने के बाद बाकी सभी सोफों पर जाकर बैठ गये। मैं उसके पास ही घुटनों के बल बैठ गया और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर उसे निहारने लगा। नम होने के कारण आंखें धुंधला गई। मैंने आंखों को साफ किया और सोनल को गाल को चूम कर सभी के पास आकर बैठ गया।
नवरीत ने बताया कि अंकल (अपूर्वा के पापा) वापिस चले गये हैं और एक दो दिन में अपूर्वा और आंटी को लेकर वापिस आ जायेंगे।
दो दिन बाद ही दीपावली थी, इसलिए शाम को मम्मी-पापा और छूटकू वापिस चले गए। छूटकू जाने से मना कर रहा था, परन्तु मैंने समझा कर उसे भेज दिया और दीपावली के बाद वापिस आने के लिए कह दिया।
रात को मेरे बहुत मना करने के बाद भी प्रीत नहीं मानी और हॉस्पिटल में ही रूक गई।
तुम अपूर्वा से शादी कर लेना। मैं अपने नए फोन के फंक्शन्स चैक कर रहा था कि प्रीत की आवाज बम की तरह मेरे कानों में पड़ी। ‘मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, ये भी कोई कहने की बात है, अपूर्वा से ही करोगे, उससे प्यार करते हो तो शादी तो उससे ही करनी चाहिए’। उसकी आंखों में आंसू थे।
मैंने पकड़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके आंसु पौंछने लगा। ‘वो सब बाद की बातें है, अभी पहले सोनल को ठीक होने दो, उसके बारे में बाद में सोचेंगे’। मैं कह तो रहा था, परन्तु खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सारी भागदौड़ और टेंशन में मैं इस बारे में भूल ही गया था, परन्तु प्रीत की ये बात ऐसे दिमाग पर जाकर लगी कि बस मैं सोचता ही रह गया कि अब क्या करूंगा।
अपूर्वा बेवफा नहीं थी, परन्तु उसके इस कुछ दिनों के बेवफाई के ड्रामे ने सोनल को मेरे इतने करीब ला दिया था कि मैं दोनों के बीच उलझ चुका था।
मैं मोबाइल में गेम खेल रहा था कि दरवाजा खुलने की आवाज हुई। मैंने गर्दन उठाकर देखा तो एकदम से जड़ रह गया। सामने अपूर्वा खड़ी थी। उसके पिछे नवरीत थी। अपूर्वा भी वहीं खड़ी रह गई। नवरीत ने उसका हाथ पकड़कर अंदर खींचा और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।
जीजू, नवरीत ने मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए कहा। मैं जैसे नींद से जागा हो, एकदम से हड़बड़ा गया। ऐसा नहीं था कि मैं कहीं खो गया था या अपूर्वा के अलावा मुझे और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। परन्तु अपूर्वा को मैं जिस हाल में देख रहा था, मैं बस अंदाजा ही लगा सकता था कि वो कितनी तड़पी है। उसके आंखों के नीचे काले घेरे पड़ चुके थे। चेहरा एकदम मुरझा गया था। जो कपड़े हमेशा उसके बदन को कसे हुए रहते थे वो आज ढीले-ढाले दिखाई पड़ रहे थे। मेरी आंखों से दो आंसू टपक गये।
मैं उठा, अपूर्वा ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोलने चाहे, परन्तु मैंने उसके होंठों को अपनी उंगली से बंद कर दिया। अगले ही पल हम एक दूसरे की बाहों में थे। मेरे सिने से लगते ही अपूर्वा फूट-फूट कर रोने लगी। मेरी आंखों से भी आंसु बहने लगे थे। अपूर्वा के रोने की आवाज सुनकर नर्स अंदर आई और ज्यादा तेज न रोने के लिए कहकर चली गई।
काफी देर तक हम एक-दूसरे की बाहों में खोये रहे। हमारे आंसु सूख चुके थे, परन्तु एक-दूसरे की बाहों में सिमटे हुए जो सुख मिल रहा था, जी चाह रहा था कि बस हमेशा के लिए ऐसे ही एक-दूसरे की बांहों में कैद होकर रह जाये। काफी देर बाद हम अलग हुये।
मैं डर---- अपूर्वा ने इतना कहा था कि मैंने उसके होंठों पर फिर से उंगली रखकर उसे चुप करवा दिया।
‘कुछ कहने की जरूरत नहीं है, अपूर्वा, मुझे सब पता है’ मैंने कहा और वो फिर से मेरी बांहों में कैद हो गई। आंखों से फिर से आंसु बहने लगे, परन्तु अबकी बार आंसुओं में आवाज नहीं थी, बस प्यार के आंसु बह रहे थे।
जब हम कुछ नोर्मल हुए तो एक दूसरे से अलग हुए। प्रीत दरवाजे पर खड़ी खड़ी हमें देख रही थी। मैं अपूर्वा में इतना खो गया था कि वो कब बाथरूम से लौटी पता ही नहीं चला।
वहां क्यों खड़ी रह गई, मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा। वो खड़ी खड़ी बस मुस्करा रही थी। मुस्कराती हुई वो हमारे पास आई और अपूर्वा को देखते ही उसके चेहरे पर हैरत के भाव आ गये।
ये आंखों के नीचे काले धब्बे क्यों पड़े हुए हैं, उसने आश्चर्य से पूछा और हमारी तरफ देखने लगी।
वो बस ऐसे ही, हमेशा चिंता लगी रहती थी इसलिए, अपूर्वा ने झिझकते हुए कहा।
बहुत प्यार करती हो ना समीर से, प्रीत ने उसके गाल पर एक हाथ रखते हुए पूछा।
हूं,,,,, अपूर्वा ने शरमाते हुए कहा और नीचे देखने लगी।
वो सोनल,,,, अपूर्वा ने सोनल की तरफ देखते हुए कहा और उसकी तरफ बढ़ गई।
कोमा में है, प्रीत ने कहा और अपूर्वा के पिछे पिछे सोनल की तरफ चली गई। मैं और नवरीत भी सोनल के पास आ गये।
अपूर्वा बेड के पास बैठ गई और सोनल का हाथ अपने हाथ में ले लिया। ‘जल्दी से उठ जा, अब कितना सोयेगी यार, कहते हुए अपूर्वा की आंखें से आंसू टपक गये। ‘मेरी तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि तेरा किस तरह से थैंक्स करूंगी, तुने मेरे समीर को मेरे लिए बचा लिया, उसे टूटने नहीं दिया, मैं तेरा ये अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी’। अपूर्वा ने सोनल का हाथ अपने गाल पर रख लिया। प्रीत उसे देखकर मंद-मंद मुस्करा रही थी।
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