RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
बेटा मुझे तो बहुत टैंशन हो रही है, मेरी बच्ची किस हालत में होगी, मेरी फूल सी बच्ची, कहकर आंटी फूटफूट कर रोने लगी, बहुत मुश्किल से उनहें चुप करवाया, परन्तु उने आंखों से आंसु रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मेरे मोबाइल का पता है क्या, मैंने पूछा और छूटकू की तरफ देखने लगा।
किसको फोन करना है, मॉम ने पूछा।
पापा को करके पूछता हूं, सोनल की तबीयत कैसी है, मैंने कहा।
छूटकू ने अपना मोबाइल निकाल कर दे दिया। आंटी की आंखों से लगातार आंसू छलक रहे थे। मैंने पापा को फोन मिलाया।
सोये नहीं के इब ताई, उधर से पापा की आवाज आई।
नमस्ते पिता जी, मैं बोल रहा हूं समीर, मैंने कहा।
उठ गया, अब तबीयत कैसी है, पापा ने पूछा।
मैं ठीक हूं, सोनल को होश आया क्यो, मैंने पूछा।
नहीं बेटा, उसको अभी तक होश नहीं आया है, आईसीयू में है वो, पापा ने कहा।
डॉक्टर क्या कह रहे हैं, मैंने पूछा।
डॉक्टरा नै के कहना था, नूए कवै सै के होश आने पर ही कुछ बतावैंगे, पापा ने कहा।
नवरीत का कुछ पता चला, मैंने पूछा।
अभी तो कुछ पता ना चाल्या है, ले तेरे अंकल बात करै हैं, कहकर पापा ने नवरीत के पापा को फोन दे दिया।
अब तबीयत कैसी है बेटा, अंकल ने पूछा।
ठीक है अंकल, नवरीत का कुछ पता चला क्या, मैंने अंकल से भी यही पूछा।
नहीं बेटा, कुछ पता नहीं चला, अंकल की आवाज में थर्राहट थी। हुआ क्या था बेटा, अंकल ने पूछा।
ज्यादा तो पता नहीं अंकल, एक स्कोरपियो में पांच-छः आदमी आये और आते ही मेरे सिर पर बेसबैट से मारा, लगते ही मैं बेहोश हो गया, उसके बाद का कुछ पता नहीं, मैंने कहा।
तू आराम कर ले, सिर की चोट है, ज्यादा सोचेगा तो कुछ उंच-नीच ना हो ज्या, पापा की आवाज आई। शायद अंकल ने फोन पापा को दे दिया था।
ठीक है, कहकर मैंने फोन कट कर दिया।
ऐसे ही टेंशन में मैं दिवार से कमर लगाकर बेड पर बैठ गया। और उन आदमियों के चेहरे याद करने की कोशिश करने लगा।
आंख खुली तो सुबह के छः बज चुके थे। कमरे में मैं अकेला ही था। मैं उठकर बाहर आया।
चल जल्दी से मेडिकल में चलना है, मैंने बाहर चेयर पर बैठे छूटकू से कहा।
कुछ देर बाद हम मेडिकल में थे। सामने अंकल (अपूर्वा के पापा) को देखकर मैं एकदम से चौंक गया, परन्तु फिर अगले ही पल दिमाग में आया कि शायद अपूर्वा भी आई हो, परन्तु अंकल अकेले ही आये थे। अंकल ने मुझे गले लगा लिया, मुझे बहुत अजीब लगा, पर कुछ कहा नहीं। मैंने पापा के पैर छुए और फिर अंकल (नवरीत के पापा) को नमस्ते किए। आंटी बेंच पर बैठी दीवार के साथ लगकर उंघ रही थी। मैं उनके पास जाकर बैठ गया। मुझे देखते ही आंटी रोने लगी। मैंने उन्हें दिलाशा दी। अंकल भी हमारे साथ ही आकर बैठ गये।
उन्होंने मुझसे हादसे के बारे में पूछा तो मैंने बता दिया। जैसे ही मैंने बताया कि उनमें से एक ने कहा था कि ‘अब बचकर कहां जायेगी’ तो अपूर्वा के पापा एकदम से खड़े हो गये।
कहीं वही तो नहीं हैं, अंकल (अपूर्वा के पापा) के ने कहा और नवरीत के पापा की तरफ देखने लगे।
आप किसकी बात कर रहे हो अंकल, मैंने उनसे पूछा।
अंकल कुछ देर तक तो चुप बैठे रहे फिर गहरी सांस लेते हुए मेरी तरफ देखा।
मैं तुम्हें कुछ बताना तो नहीं चाहता था बेटा, क्योंकि मैं खामखां तुम्हें किसी प्रॉब्लम में नहीं डालना चाहता था, परन्तु अब स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि बताना ही पड़ेगा, अंकल ने एक-एक शब्द ऐसे कहा जैसे उन्हें बोलने में बहुत ही कठिनाई हो रही हो।
दिल्ली के एम-एल-ए- भानुप्रताप का बेटा है, आर्यन, अंकल ने कहा और नीचे की तरफ देखने लगे।
मैंने तुरंत पापा का मोबाइल लिया और उसमें इंटरनेट पर आर्यन के बारे में सर्च किया। ये वहीं आदमी था जिसको कल मैंने स्कोरपियो में बैठे देखा था, वो नीचे उतरकर नहीं आया था।
जब अंकल को मैंने ये बात बताई तो वो सन्न रह गये और उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।
हमें अभी पुलिस को बताना चाहिए, मैंने 100 नम्बर डायल करते हुए कहा।
कोई फायदा नहीं है बेटा, मैं पहले भी उसके खिलाफ एफ-आई-आर- करवा चुका हूं, इसका बाप एम-एल-ए- है, और उपर तक उसकी पहुंच है, पुलिस ने उलटा हमें ही परेशान करना शुरू कर दिया था।
पर आपने इसके खिलाफ एफ-आई-आर- क्यों लिखवाई थी, मेरे मन में तरह तरह की शंकाएं पैदा हो रही थी।
अंकल ने फिर से गहरी सांस ली और कुछ सोच में पड़ गये।
दो साल पहले मैं पूरे परिवार के साथ दिल्ली गया था, वहां हम मेरे एक दोस्त की शादी में गये थे। वहां पर आर्यन भी आया हुआ था। उसने अपूर्वा को देखा और हमसे शादी की बात की। मुझे बहुत खुशी हुई थी, अंकल ने कहा और फिर कुछ सोचने लगे।
पर वापिस आकर जब ये बात मैंने भाई साहब को बताई तो पता चला कि आर्यन और उसका बाप एक नम्बर का गुण्डा है, राजनीति में आने से पहले गुण्डागर्दी करते थे और अब राजनीति में आने के बाद तो उनको कोई डर ही नहीं है।
मैंने शादी के लिए मना कर दिया तो उन्होंने जान से मारने की धमकी दे दी। हमने पुलिस में एफ-आई-आर करवाई, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, और कुछ दिन बाद तो पुलिस वाले हमें ही परेशान करने लगे। कुछ दिन बाद मर्डर के केस में सीबीआई ने उसे गिरफतार कर लिया तो हमनें चैन की सांस ली।
पर कुछ दिन पहले वो बरी हो गया, और जब तुम घर गये हुए थे तो घर पर आया था और एक हफते बाद ही बाराम लेकर आने की कहकर गया था। उधर ही उसने नवरीत को देख लिया होगा। इसीलिए हम विदेश चले गये थे, पर अगले हफते वो नहीं आया, तो हम पंजाब आ गये। भाई साहब लगातार घर पर नजर रखे हुए थे। कल ही वो घर पर आये थे और वहां ताला पाकर खूब तोड़फोड़ भी करके गये हैं। कल जब उन्होंने नवरीत को देखा होगा तो उसे पहचान लिया होगा और उठा ले गये।
हमने तुम्हें इस सबसे दूर रखना ही ठीक समझा, इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा किया, हमें माफ कर देना बेटा।
अंकल की बात सुनकर मेरे आंखों में आंसु आ गये और खूशी भी हुई कि अपूर्वा बेवफा नही है। परन्तु अब नवरीत उनके पास थी, सबसे बड़ी बात तो यही थी कि नवरीत को कैसे बचाया जाये। पुलिस भी उनकी ही थी, इसलिए पुलिस का सहारा भी नहीं लिया जा सकता था। मैंने प्रैस का सहारा लेने की सोची, और अंकल को बताया।
पिताजी ने तुरंत हमें चुप कराया और बाहर ले आये। आंटी अंदर ही थी। हम एक कॉफी पीने के लिए आ गये। कॉफी बस बहाना था, असली काम तो कुछ प्लान बनाना था। और वहां पर जो प्लान बना, वो सबको पसंद आया।
पिताजी ने सुझाया कि किसी प्रॉफेशनल किलर को आर्यन की सुपारी दे देनी चाहिए, और उससे पहले नवरीत को बचाने के लिए किसी डिटेक्टीव से ये पता करवाना चाहिए कि नवरीत को रखा कहां पर है और फिर पहलवान भेज कर नवरीत को छुड़ा ले और उसके तुरंत बाद ही किलर अपना काम कर दे। नवरीत भी बच जायेगी और आर्यन का खातमा भी हो जायेगा। सभी ने इस प्लान को सही बताया। पर अब किलर कहां से लाया जाये। क्योंकि किसी का भी ऐसे लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं था।
फैसला ये लिया गया कि यहां संभालने के लिए अपूर्वा के पिताजी रूकंगे और बाकी मैं, पिताजी और नवरीत के पिताजी दिल्ली जायेंगे। और वहीं से सबकुछ सैट करेंगे। मेरे पिताजी का एक दोस्त दिल्ली में था, जो शायद किलर के मामले में कुछ मददगार साबित होता। मेरे साथ जाने का कारण था दिल्ली में डिटेक्टिव जॉन से मेरी जान-पहचान होना।
हम तुरंत ही दिल्ली के लिए निकल पड़े। भूख लगने पर रस्ते में एक अच्छे से ढाबे पर गाड़ी खड़ी की और हम खाने के लिए बैठ गये। सामने दूसरी टेबल पर बैठे आदमियों को देखते ही मैं चौंक गया। वो वहीं थे जिन्होंने कल हमपर हमला किया था। आर्यन भी इनके साथ ही था। मैंने धीरे से पिताजी और अंकल को उनके बारे में बताया, परन्तु उनकी तरफ देखने को मना किया। हम एक-एक करके आराम से बाहर आ गये। मैंने देखा उनकी स्कोरपियो हमारी गाडी के बगल में ही खड़ी थी। हम अपनी गाड़ी के पास आ गये। अपनी गाड़ी में बैठकर मैंने स्कोरपियो को चैक किया। नवरीत बीच वाली सीट पर बेहोश पडी थी। नवरीत को देखते ही हमारी आंखें चमक उठी। मैं नीचे उतरा और खिड़की खोलने की कोशिश की, परन्तु गाड़ी पूरी तरह लॉक थी। कुछ समझ नहंी आ रहा था क्या किया जाये। स्कोरपियो हमारी सफारी के साइड में छुप गई थी और अंदर से उनको दिखाई नहीं दे रही थी।
समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने अंकल को समझाया कि वो एकदम से हॉर्न बजा दे और मैं उसी समय मैं शीशे को तोड़ दूंगा। अंकल ने अपनी पोजीशन ली। मैंने पास में पड़ी एक ईंट उठाई और मेरे तीन कहते ही अंकल ने हॉर्न पर हाथ रख दिया और मैंने ईंट मारकर शीशे को तोड़ दिया। मैंने तुरंत ही स्कोरपियो का लॉक खोला और खिड़की को खोल कर नवरीत को अपनी गाड़ी में बैठाया।
भाई लड़की को ले गये, हमारे कानों में ये आवाज एक बॉम्ब की तरह पड़ी। आर्यन के साथियों में से एक आदमी हमारे सामने खड़ा था। उसकी आवाज सुनते ही आर्यन अपने सभी साथियों के साथ हमारी तरफ दौड़ा। हम जल्दी से गाड़ी में बैठे और गाड़ी को बैक करके मेन रोड़ पर जयपुर की तरफ दौड़ा दिया। हमारी सांसे बहुत ही तेज चल रही थी। पता नहीं अब क्या होगा। अंकल ने गाड़ी को फुल स्पीड पर दौड़ा दिया था। हमारे पिछे ही आर्यन की गाडी फुल स्पीड से आ रही थी। अचानक पिछे से गोलियां चलनी शुरू हो गई। वो हमारी गाड़ी के टायर को निशाना बना रहे थे। और वही हुआ जिसका डर था। एक गोली हमारे अगले टायर में आकर लगी। गाड़ी फुल स्पीड में थी तो अनबैलेंस हो गई और डिवाइडर के उपर से पेड-पौधों को तोड़ती हुई दूसरी साइड वाली लेन पर आ गई।
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