Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
06-09-2018, 02:33 PM,
#67
RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
कुछ देर तक सोनल और अनन्या बातें करती रही। कुछ गम और कुछ बुखार, मुझे बोलने का मन ही नहीं हो रहा था, इसलिए चुपचाप बैठा रहा। सोनल और अनन्या अपनी बातों में मग्न थी। अचानक मेरी छींक से उनकी बातों का सिलसिला खत्म हुआ। सोनल मुझे अंदर ले आई। अंदर आकर मैं बेड पर लेट गया और सोनल और अनन्या मेरे पास ही बेड पर बैठ गई। सोनल ने मेरे माथे पर हाथ रखकर देखा और फिर चद्दर ओढा दी। उसने मोबाइल उठाया और डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने उधर ही आने के लिए बोला। हम सभी नीचे आ गये और सोनल ने अपनी स्कूटी निकाली। अनन्या अपने घर चली गई। कुछ ही देर में हम डॉक्टर के क्लिनिक पर थे। ज्यादा दूर नहीं था, पास में ही था।
डॉक्टर ने चैकअप किया और आराम करने की सलाह दी। डॉक्टर से चैक करवाकर हम वापिस आ गये। अनन्या नीचे गली में ही खड़ी थी। उसने मेरी तबीयत के बारे में पूछा, डॉक्टर ने क्या कहा। तो सोनल ने उसे बता दिया कि अब ठीक ही है, बस आराम की जरूरत है। हमारे साथ अनन्या भी उपर आ गई।
मैं सब्जी ले आती हूं, फिर खाना भी बनाना है, कहते हुए सोनल अनन्या को वहीं रूकने का बोलकर वापिस चली गई।
सोनल के जाते ही अनन्या मेरे पास होकर बैठ गई और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर अपनी जांघों पर रखकर धीरे धीरे सहलाने लगी।
अब कैसा महसूस हो रहा है, अनन्या ने मेरे हाथ को सहलाते हुए कहा।
हम्मम, आराम है, मैंने कहा। परन्तु वास्तव में मुझे कुछ थकावट महसूस हो रही थी और तबीयत भी कुछ सही नहीं लग रही थी।
अनन्या एकदम से उठकर बाहर गई और कुछ देर बाद वापिस आई।

क्या हुआ, मैंने पूछा।
सोनल को देखने गई थी, वो चली गई है या नहीं, कहते हुए अनन्या मेरे पास बैठी और बैठते ही अपना हाथ मेरी शॉर्ट के उपर से ही लिंग पर रख दिया और हल्के हल्के सहलाने लगी।
शैतान एकदम तैयार है, अनन्या ने मुस्कराते हुए मेरी जांघों की तरफ देखते हुए कहा।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे खींच कर अपने उपर गिरा दिया। गिरते ही उसके उभार मेरी छाती में दब गये। वो थोड़ा एडजस्ट होते हुए मेरे बगल में मुझसे चिपक कर लेट गई और मेरे गालों पर किस करने लगी।
मैंने अपना चेहरा उसकी तरफ किया और उसके होंठ मेरे होंठों से टकरा गये। उसने मेरे होंठों पर एक किस्सी दी और फिर चेहरा पिछे करके मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी। अनन्या ने एक पैर मेरी जांघों पर रख दिया और हाथ को मेरी छाती में फिराने लगी। वो मेरे होंठों पर छोटी छोटी किस्सी कर रही थी। मुझे भी इन छोटी छोटी किस्सी में बहुत मजा आ रहा था।
मैंने उसके पैर को हटाया और उसे चद्दर के अंदर कर लिया और फिर उसकी तरफ करवट लेकर लेट गया और उसे खिंचकर खुद से सटा लिया। उसके उभार मेरी छाती में थोड़े से दब गये। उसके एकदम कड़े निप्पल छाती में चुभ रहे थे। मेरे अपना पैर उसके पैरों पर डाल दिया और हाथ से उसके कुल्हों को मसलने लगा। हमारे होंठ एक दूसरे में समा चुके थे और छोटी छोटी किस्सी, एक लम्बे चुम्बन में बदल चुकी थी। वो धीरे धीरे अपनी योनि को मेरे लिंग पर रगड रही थी।
अचानक वो उठकर बैठ गई। सोनल आने वाली होगी, उसने हांफते हुए कहा और मेरी चद्दर को थोडा साइड में कर दिया। ‘जब तक वो आये तब तक देख तो सकती ही हूं’, कहते हुए उसने मेरी शॉर्ट को अपनी उंगलियों से नीचे सरकाना शुरू कर दिया। अचानक वो उठ कर मेरे पैरों के बीच में आई और पिछे सरक कर इस तरह लेट गई कि उसका मुंह मेरी जांघों के पास था। उसने शॉर्ट को थोड़ा सा नीचे किया और नंगे हो चुके पेट पर अपने होंठ टिका दिये और चाटने लगी। वो शॉर्ट को थोड़ा सा नीचे करती और फिर नई नंगी हुई जगह पर जीभ फिराने लगती। मजे के मारे मेरी आंखें बंद हो रही थ।
उसके उभार मेरी जांघों पर दबे हुए थे। धीरे धीरे उसने शॉर्ट को जांघों से नीचे कर दिया और लिंग झटका खाकर बाहर आ गया। उसने चेहरा थोड़ा उपर किया और शॉर्ट को छोउ़कर लिंग को पकड़ लिया और गौर से देखने लगी। उसका हाथ लगते ही पूरे शरीर में एक झुरझुरी सी छौड़ गई और लिंग ने एक झटका खाकर उसे सलामी दी।
हेहेहे,,,, कैसे झूम रहा है मेरे हाथों में आकर, कहते हुए अनन्या ने लिंग पर एक हल्की सी किस्स की।
मेरे तो पूरे शरीर में करण्ट दौड़ गया और कंपकंपी सी उठी। तभी नीचे का दरवाजा खुलने की आवाज आई। उसने जल्दी से मेरी शॉर्ट उपर की और चद्दर ओढ़ा दी और खुद थोड़ा साइड में होकर बैठ गई और अपने बालों को ठीक करने लगी। कुछ देर में सोनल उपर आई और सब्जी रसोई में रख दी।
ओके मैं चलती हूं, मैं भी कुछ बना लेती हूं, कहते हुए अनन्या उठ गई।
इधर ही बना लेते हैं ना, अब अकेली के लिए ही तो बनाओगी, खामखां परेशान होगी, इधर ही बना लेते हैं, सोनल ने रसोई से आते हुए कहा।
अब रोज ही बनाना है, तो परेशान तो होना ही पड़ेगा, एकदिन इधर बना लिया, बाकी दिन तो उधर बनाना ही है, अनन्या ने सोनल की तरफ देखते हुए कहा।
तो मैं कौनसा रोज रोज इधर ही खाने के लिए कह रही हूं, वैसे आईडिया बुरा भी नहीं है, मैं तो दिवाली के बाद चली जाउंगी, तो फिर समीर को भी फायदा हो जायेगा, तुम्हारे रोज ही इधर बनाने से, सोनल ने बैठते हुए कहा।
अनन्या कुछ सोचती रही और फिर बोली, ‘ओके, चलो बनाते हैं’।
तभी सोनल का मोबाइल बजने लगा। उसने कॉल रिसीव की और बात करके फोन काट दिया। मॉम थी, कह रही थी कि आज नहीं आ पाई, कल सुबह आयेगी, कहते हुए सोनल उठी और वो दोनों रसोई में चली गई।
रसोई में उनके बातें करने और हंसने की आवाजें आ रही थी। मैं चद्दर से मुंह ढककर लेट गया और आंखें बंद कर ली। आंखें बंद करते ही अपूर्वा और नवरीत की कहीं बातें कानों में गुंजने लगी और नवरीत का वो मायूस सा चेहरा, जब वो जाते वक्त कह रही थी कि ‘दीदी की शादी कहीं और होने वाली है’ आंखों के सामने घूमने लगा। सोचते सोचते कब अपूर्वा के संग बिताये लम्हों में पहुंच गया पता ही नहीं चला।
विचारों की ये श्रृंखला तब टूटी जब मुझे अपने उपर कोई हलचल महसूस हुई। फिर भी विचारों से बाहर आते आते कुछ समय लग ही गया। और जब मैं पूरी तरह वर्तमान में आ गया तो गालों पर गीलापन महसूस हुआ। मैंने आंसु पौंछे और चद्दर हटाकर देखना चाहा तो सोनल मेरे पास ही मेरी तरफ करवट करके लेटी थी और उसका हाथ मेरी छाती पर था। मैंने धयान दिया तो पाया कि अब चद्दर के अलावा मेरे उपर बलेंकेट भी था। मैंने सोनल की तरफ देखा, उसकी आंखें बंद थी, परन्तु उसका हाथ मेरी छाती पर सहला रहा था। मैं जैसे ही थोड़ा सा हिला सोनल ने अपनी आंखें खोल दी।
उठ गये, सोनल ने कहा और अगले ही पल वो एकदम से बैठ गई। उसके चेहरे के भावों से वो एकदम बैचेन दिख रही थी।

क्या हुआ, मैंने बैठते हुए कहा।
उसने एक बार मेरे गालों पर हाथ लगाकर देखा, जैसे कि कुछ चैक कर रही हो और फिर तकिये की तरफ देखा। मैंने भी उसकी नजरों को पिछा करते हुए देखा तो तकिया काफी भीगा हुआ था।
ओह तेरे की, इतने सारे आंसु निकल गये, पता ही नहीं चला, मैंने मन ही मन सोचा और मेरे माथे पर कुछ बैचेनी की सिलवटें आ गई। मैं नहीं चाहता था कि सोनल को मेरे आंसुओं का पता चले, पर अब क्या किया जा सकता था। वो सब समझ चुकी थी। उसने मुझे बाहों में भर लिया और सीने से लगाकर सिर को सहलाने लगी। उसकी बाहों में जाते ही मैं खुद को संभाल नहीं पाया और खूब रोकने की कोशिश के बावजूद आंखों से आंसु और गले से सुबकियां निकलने लगी। सोनल को मेरी सुबकियां और आंसुओं को महसूस करते देर नहीं लगी और उसने मुझे और जोर से बाहों में जकड़ लिया। मैं उसकी बाहों में पिघलता गया और वो मुझे अपने में समेटती गई। उसका इतना प्यार मुझे संभाल भी रहा था, हिम्मत भी दे रहा था, और साथ ही साथ में बिखेर भी रहा था।
सोनल को दोस्त के रूप में पाकर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली भी समझ रहा था, परन्तु मेरे कारण उसे कितनी तकलीफ हो रही थी, मैं उसे भी नहीं सह पा रहा था, मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि खुद को इस गम से निकाल लूं, परन्तु जितना मैं इससे निकलने की कोशिश करता उतना ही उसमें डूबता जा रहा था।
कितनी ही देर तक मैं ऐसे ही उसकी बाहों में पिघलता रहा, और जब सोनल की बाहों ने, उसके अथाह प्यार ने मुझे वापिस से खुद को समेटने की ताकत दी तो मैं अपने आंसु पौंछता हुआ उससे अलग होने लगा। सोनल ने अपनी बांहों का कसाव कम किया और मुझे उससे आजाद करते हुए मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी। जब मेरी नजर सोनल के कपड़ो पर गई तो वो मेरे आंसुओं में भीग कर पारदर्शी हो चुके थे।
सॉरी, मैंने आराम से बैठते हुए कहा। परन्तु जैसे ही मैं सीधा होकर बैठने लगा मुझे अपनी कमर में बेहद असहनीय दर्द महसूस हुआ और मेरे मुंह से दर्दभरी आह निकल गई। ये मेरे साथ अक्सर होता था, जब भी मैं अपनी मॉम की बाहों में टूटता था, तो उसके बाद एक-दो दिन तक असहनीय दर्द रहता था, नॉर्मल पेनकिलर भी कुछ खास असर नहीं कर पाती थी।
मेरी आह सुनते ही सोनल एकदम से बैचेन हो गई। ‘क्या हुआ’, उसने मुझे पकड़ते हुए कहा।
कमर में दर्द, मैंने कहा और धीरे से दीवार के साथ सटकर बैठ गया।
सोनल तुरंत उठी और पेन किलर लाकर दी। मैंने पेन किलर ली और कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने के बाद भी जब दर्द में आराम नहीं हुआ तो मैं लेटने की कोशिश करने लगा। सोनल ने सहारा देकर मुझे लिटाया। लेटते के कुछ देर बार राहत महसूस हुई। सोनल मेरे पास ही बैठी रही और मेरा हाथ अपनी गोद में लेकर सहलाती रही।
कल मम्मी आ जायेगी, और दीदी भी आ जायेगी, सोनल ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
मुझे लगता है कि मुझे घर जाना चाहिए, अपनों से मिलूंगा तो शायद कुछ राहत मिले, मैंने आंखें बंद करते हुए कहा।

मैं क्या तुम्हें अपनी नहीं लगती----
उसकी बात सुनते ही मैंने वापिस आंखें खोल दी, उसकी आंखें नम हो गई थी। मैं एक झटके से उठा। दर्द के बारे में मैं भूल गया था, जैसे ही मैं उठा तो एकदम से भयानक दर्द हुआ और मैं आधा ही उठ पाया। सोनल ने मुझे पकड़कर वापिस लेटा दिया।
अगर तुम नहीं होती तो पता नहीं अब तक क्या हो चुका होता, और तुम कहती हो कि अपनी नहीं लगती, मैंने उसके गालों पर लुढक आये एक आंसु को अपने हाथों से पौंछते हुए कहा।
सोनल, तुम मेरे लिए अपनों से भी ज्यादा हो। तुम मुझे अपनी नहीं लगती, इस बात को अपने मन से ही निकाल दो, तुम तो मेरी जान बन चुकी हो। मैंने उसके होंठों पर उंगली फिराते हुए कहा। उसने मेरी उंगली को अपने होंठों के बीच दबा लिया।
मैं तो बस इसलिए कह रहा था कि कल आंटी और रीत आ जायेगी, फिर तुम मेरे पास इतना नहीं रह पाओगी, और अकेले होते ही मुझे ये गम खाने को दौड़ता है, इस इसीलिए कह रहा था, कहते हुए मैंने अपने अंगूठे से उसके होंठों को रब करने लगा।
तो क्या हुआ, मम्मी और दीदी को मैं आप संभाल लूंगी, मैं बिल्कुल भी अकेला नहीं होने दूंगी तुमको, सोनल ने कहा और मेरा हाथ अपने गाल पर रखकर हाथ को अपने गाल और कंधे के बीच दबा लिया।
तुम औंधे होकर लेट जाओ, मैं तेल की मालिश कर देती हूं, दर्द जल्दी ठीक हो जायेगा, सोनल ने कहा और मुझे उलटा लिटाने के लिए अपना हाथ मेरी कमर में डाल दिया।
मैं धीरे धीरे करके उलटा लेट गया। सोनल उठकर बाहर चली गई और कुछ देर बाद एक कटोरी हाथ में लिए वापिस आई। बेड पर बैठकर उसने मेरी टी-शर्ट को उपर कर दिया और मालिश करने लगी। गर्म तेल कमर पर पड़ते ही शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। कुछ देर की मालिश से ही काफी राहत महसूस हुई। मालिश के बाद काफी देर तक मैं ऐसे ही लेटा रहा।
फिर सोनल ने खाना लगाया और मैं दीवार के साथ बैठ गया। सोनल ने अपने हाथ से ही मुझे खाना खिलाया। खाना खाकर कुछ देर हम बाहर टहले और फिर वापिस अंदर आकर बेड पर बैठ गये। सोनल ने लैप्पी में मूवी लगा दी और हम दीवार के साथ बैठ गये। सोनल ने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया और मैंने उसके सिर पर। उसने मेरी बाजू को पकड़कर अपने सीने से चिपका लिया और हम मूवी देखने लगे।
हॉलीवुड की थ्रीलर मूवी थी, शुरूआत के ही हॉट सीन्स ने हमें गर्म कर दिया और सोनल का हाथ मेरी जांघों पर पहुंच गया। उसने हाथ अंदर डाल दिया और मेरे लिंग को पकड़कर धीरे धीरे सहलाने लगी। मैं भी अपनी कोहनी से उसके उभारों को दबाने लगा। तभी एक ऐसा सीन आया कि एक आदमी ने एक औरत को बीच में से काट दिया। ये मूवी वैसे तो मेरे लैप्पी में काफी समय से पड़ी थी पर मैंने भी कभी देखी नहीं थी। सोनल एकदम से डर गई और मुझसे चिपक गई। उसका हाथ भी बाहर आ गया था। पूरी मूवी ही बेहद डरावनी थी और सोनल मुझसे चिपकी रही। मूवी खत्म होने पर मैंने महसूस किया कि सोनल की सांसे काफी तेज चल रही थी। थोड़ी देर हम ऐसे ही बैठे रहे। नींद ने हमें घेरना शुरू कर दिया था। ग्यारह बजने को हो गये थे। सोनल ने उठकर लैप्पी को टेबल पर रख दिया। मेरी कमर का दर्द भी काफी हद तक कम हो गया था। परन्तु अभी एक-दो दिन तो इसे और झेलना था।
सोनल ने बेड पर आने से पहले अपने सारे कपड़े उतार दिये, ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, पेंटी को भी उसने उतार दिया और फिर मेरे पास आकर उसने मेरे भी सारे कपड़े उतार दिये। उसे नग्न देखकर मेरा लिंग अपनी औकात में आ चुका था। उसने मेरे लिंग पर एक किस्सी दी और हम एक दूसरे की बाहों में समा कर लेट गये। कंबल में जल्दी ही गर्मी महसूस होने लगी। हम दोनों एक दूसरे की तरफ करवट लेटकर लेटे हुए थे। मेरा लिंग उसकी योनि पर सटा हुआ था और हमारे बाहें एक दूसरे को जकड़े हुई थी। अचानक सोनल ने अपना हाथ नीचे किया और मेरे लिंग को योनि के द्वार पर सैट करके हल्का सा आगे की तरफ सरक गई। मैंने भी अपने कुल्हों को हल्का सा आगे किया, परन्तु दर्द के कारण ज्यादा हिलडुल नहीं पा रहा था। सोनल मेरी स्थिति को समझ रही थी, उसने मेरे कुल्हों पर अपना एक हाथ रखा और अपने कुल्हों को हरकत देते हुए लिंग को अपनी योनि में समाने लगी। उसके सख्त मखमली उभारों की मेरी छाती में रगड़ मुझे पल-बा-पल और ज्यादा उतेजित करती जा रही थी और कब मैं भी अपनी कमर को हरकत देने लगा पता ही नहीं चला। जब चरम पर पहुंच कर हम शांत हुए तो कमर के दर्द के कारण में एक पल भी करवट लेकर नहीं लेट सका और सीधा होकर लेट गया। सीधे होते हुए लिंग सोनल की योनि से बाहर आ गया और उसकी योनि से हमारा मिला-जुला रस निकल कर उसकी जांघों से होता हुआ मेरी जांघों पर आने लगा। सोनल ने अपना एक हाथ मेरी छाती पर रखा और अपना एक पैर मेरे पैरों पर रखते हुए मुझसे चिपक गई। मैंने अपना हाथ उसके सिर के पिछे से दूसरी साइड करके उसकी कमर में रख दिया। उसके उभार साइड से मेरी छाती में दब गये थे। ऐसे ही लेटे लेटे हम सपनों की दुनिया में गुम हो गये। जब आंख खुली तो अलार्म की कर्कश आवाज कानों को फोड़ने लगी। मैंने हाथ बढ़ाकर अलार्म को बंद किया और सोनल की तरफ देखा। वो सोती हुई इतनी मासूम लग रही थी कि उसे उठाने का मन ही नहीं कर रहा था। मैं ऐसे ही लेटे लेटे उसके उठने का इंतजार करने लगा। इंतजार करते करते कब मेरी भी आंख लग गई पता ही नहीं चला।
वो तो नीचे से आ रही आंटी की आवाजों से उसकी आंख खुली। जैसे ही वो उठने लगी तो मेरी भी आंख खुल गई।
मम्मी आ गई, सोनल ने हड़बड़ी में उठते हुए कहा और भागकर बाथरूम में घुस गई। बाथरूम से फ्रेश होकर वो बाहर आई और अपने कपड़े पहने और मेरे होंठों पर एक लम्बी किस्स करते हुए जल्दी ही आने के लिए कहकर नीचे चली गई। मैंने टाइम देखा तो 6 बज चुके थे।
आज सोनल ज्यादा उपर तो नहीं आ पायेगी, इसलिए मैंने भी ऑफिस चलने की सोची। कुछ देर मैं लेटा रहा। कुछ देर और कुछ देर और करते करते 7 बज गये। 7 बजे में हिम्मत करके में उठा और उठकर ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। कमर का दर्द हल्का हल्का महसूस हो रहा था। 8 बजे तक तैयार होकर मैं बाहर आ गया और चेयर पर बैठ गया। अकेला पड़ते ही अपूर्वा की याद में आंखों में नमी आ जाती थी। मैं बैठा हुआ था कि तभी सोनल उपर आई।
कहां जाने की तैयारी है, इतनी जल्दी सज-धज कर बैठे हो, सोनल ने कहा और साथ लाई थाली लेकर अंदर चली गई। उसके पिछे पिछे मैं भी अंदर आ गया।
सोनल नाश्ता लेकर आई थी। हमने साथ में नाश्ता किया। नाश्ता करते हुए मैंने सोनल को ऑफिस जाने के बारे में बताया। एक बार तो वो नाराज हुई पर मेरे मनाने पर उसने हाफ डे करने के लिए कह दिया। उसकी प्रीत (सोनल की बड़ी बहन जिसको सोनल और आंटी प्यार से रीत ही कहते हैं) शाम को आने वाली थी। वो दिल्ली से जयपुर ट्रेन से आयेगी। नाश्ता करके हम नीचे आ गये और मैं ऑफिस के लिए निकल गया।
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