RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई--55
गतांक से आगे ...........
वाकई में आज पूरे दिन में मेरे साथ काफी कुछ हो चुका था। कोमल की याद आते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। कोमल शायद वो आखिरी लडकी थी जिसके साथ मैंने आज ही शाश्वत सत्य को भोगा था। अब तो सिर्फ अपूर्वा ही थी, उसके अलावा किसी और के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था।
अपूर्वा के घर का धयान आते ही नवरीत की वो छेड़खानी और उसकी खिलखिलाती हंसी की सोचते ही मेरे चेहरे पर भी हंसी छा गई।
बस कब चल पडी मुझे पता ही नहीं चला। कंडेक्टर की आवाज सुनकर मेरा धयान टूटा, वो टिकट दिखाने के लिए कह रहा था। मैंने उसे टिकट दिखाई। जब इन सुनहरी यादों का सिलसिला टूटा तो बस जयपुर से बाहर पहुंच चुकी थी। ठण्डी ठण्डी हवा सर्दी का एहसास दिला रही थी।
तभी मुझे धयान आया कि मैं तो चदद्र या कम्बल कुछ भी नहीं लेकर आया। पर अब क्या हो सकता था। अब तो इस बस में ठण्डी ठण्डी हवा के साथ ही रात गुजारनी थी।
मैंने जूते उतारकर बॉक्स में रख दिये और फिर प्यास महसूस हुई तो मैंने पानी पीया और फिर आराम से लेट कर आंखे बंद कर ली। आंखें बंद करते ही अपूर्वा का वो मासूम चेहरा सामने आ गया। और उसे देखते हुए कब मैं नींद के आगोश में समा गया, पता ही नहीं चला।
सुबह आंख खुली तो, बस रूक चुकी थी। मैंने आंख मसलते हुए बाहर की तरफ देखा, तो बस की छत पर से सामान उतारा जा रहा था, मतलब जहां मुझे उतरना से उससे आगे आ चुका था। परन्तु मैटरो होने से कोई चिंता की बात नहीं थी। मैंने पानी पीया और जूते पहन कर बस से उतर गया। पास में ही मैटरो स्टेशन था, मैंने वहां से घेवरा के लिए मैटरो का टिकट लिया और प्लेटफॉर्म पर आकर टरेन का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में टरेन आ गई। सुबह का टाइम था, तो ज्यादा भीड़ भाड नहीं थी, बस दो-चार पैंसेजर ही प्लेटफॉर्म पर थे। मैंने टाइम देखा तो 6 बज चुके थे।
इंद्रलोक पहुंचकर मुझे टरेन चेंज करनी थी, तो वहां पहुंचने पर मैं उतर गया और घेवरा की तरफ जाने वाली लाइन पर आकर प्लेटफॉर्म पर खड़ा हो गया। कुछ ही देर में टरेन आई और आधे घंटे बाद मैं घेवरा में जीप में बैठा हुआ था। जीप यहां से बहादुरगढ़ तक ले जाती थी। उसके आगे मैक्स में सांपला और वहां से गांव के लिए ऑटो में।
आज मैं छः महीने के बाद गांव आया था। ऑफिस में काम की वजह से छुटटी ही नहीं ले पा रहा था, इसलिए इतने दिनों बाद गांव आना हुआ, और ये भी अगर मम्मी डांट ना लगाती तो शायद अब भी मुश्किल ही था आना।
गांव में आकर ही एक अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी। शहर की भागदौड भरी लाइफ में इतना बिजी हो जाते हैं कि कुछ भी याद नहीं रहता।
गांव में आते ही दोस्तों की याद सताने लगी।
ओये समीर, तू कब आया, अभी मैं ऑटो से उतर कर उसे पैसे देकर आगे चला ही था कि मेरे कानों में मेरे बचपन के दोस्त सोनू की आवाज पड़ी।
मैंने आवाज की तरफ देखा तो वो शहर की तरफ से ही आया था। उसके पिछे बाइक पर उसकी भाभी बैठी थी।
उसने मेरे पास आकर बाइक रोक दी।
बस अभी आ ही रहा हूं यार, मैंने उसे गले लगते हुए कहा। फिर मैंने भाभी को नमस्ते की।
चल जल्दी से बैठ जा, सोनू ने कहा। भाभी नीचे उतर चुकी थी।
अरे यार क्यों भाभी को परेशान करते हो, मैं पैदल ही पहुंच जाउंगा, दो मिनट तो लगनी नहीं, मैंने कहा।
चुपचाप बैठता है या नहीं, भाभी ने थप्पड़ दिखाते हुए कहा।
थप्पड़ ना, मैं तै बैठ ए ज्यांगा,, (थप्पड़ नहीं, मैं तो बैठ ही जाउंगा), मैंने बैठते हुए कहा।
मेरे बैठने के बाद भाभी मेरे पिछे बैठ गई।
बैठ गये ना सब, कदै कोई रह ज्यां, मेरी कोई जिम्मेदारी नी होवैगी,,, (बैठ गये ना सब, कहीं कोई रह ना जा, मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी), सोनू ने हंसते हुए कहा।
चाल, बैठगे, (चल, बैठ गये),, मैंने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा।
दो मिनट में ही हम अपने घर के सामने थे।
पकड़ लाई सूं, थारे लाड़ले नै,,,, (पकड़ लाई हूं, तुम्हारे लाड़ले को),, भाभी ने गली में सामने खडी मेरी मम्मी से कहा।
मुझे देखते ही मम्मी के चेहरे पर आई खुशी देखने लायक थी। मैंने मम्मी के पांव छूए, मम्मी ने मुझे सीने से लगा लिया और जैसे ही सीने से हटाया गाल पर एक करारा जड़ दिया।
आरी काकी, यो के करा तने, इतने दिना में तै छोरा आया सै, अर आत्या के साथ धर दिया, (आरी काकी, ये क्या किया आपने, इतने दिनों में तो छोरा आया है, और आते ही के साथ धर दिया), भाभी ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा।
आया सै, कितनी मुसीकिला तै बुलाया सै, यो तै उडे काए हो के रहग्या, फोन भी 10-10 दिन में करै सै (आया है, कितनी मुश्किल से बुलाया है, वहीं का हो के रह गया, फोन भी दस-दस दिन में करे है), मम्मी ने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा।
अंदर आकर मैं बेड पर (जो कि बाहर बरामदे में था) पसर (लेट) गया। नींद भी ठीक से पूरी नहीं हुई थी तो मैं सोने की कोशिश करने लगा।
ओए, याड़ै मेरा मोबाइल धरा था, (ओए यहां पर मेरा मोबाइल रखा था) छूटकू (मेरा छोटा भाई) ने अंदर आते हुए कहा।
कित सै, याडै कोन्या, (कहां है, यहां पर नहीं है) मैंने कमर के नीचे हाथ फेरकर देखते हुए कहा।
यौ रया अर, (ये रहा अर) छूटकू ने मेरी कमर के नीचे से मोबाइल निकालते हुए कहा।
थोड़ी देर में ही मम्मी चाय बनाकर ले आई।
पाग्या भाई तनै घर का रस्ता, (मिल गया तुझे घर का रास्ता) पापा ने बाहर से आते हुए कहा।
मैं चाय को साइड में रखकर खड़ा हुआ और पापा के पैर छुए।
घर का रस्ता भी कोए भूलन की चीज सै, (घर का रास्ता भी कोई भूलने की चीज होती है) मैंने कहा।
चाल पानी घाल दे, नहावें फेर, जब देखों ई मोबाइल में बड़ा रवै सै, (चल पानी डाल दे, फिर नहाते हैं, जब देखों मोबाइल में घुसा रहता है) पापा ने छूटकू की कमर में धोल जमाते हुए कहा।
हम्मममम, कहते हुए छूटकू उठकर बाथरूम में गर्म पानी रखने चला गया।
मम्मी पापा के लिए भी चाय ले आई। नींद सही तरह से पूरी नहीं हुई थी तो बार बार आंख बंद हो रही थी।
किमै खाया-पिया भी करै सै अक ना, (कुछ खाता-पीता भी है या नहीं) पापा ने मेरी बाजु को पकडकर नापते हुए कहा।
खा-खा कै इतना मोटा हो ग्या, अर आप कवो सो अक किमै खाया करै सै अक ना, (खा-खा कर इतना मोटा हो गया हूं और आप कह रहे हो कि कुछ खाता-पीता भी है या नहीं) मैंने उंघते हुए कहा।
हमनै तै कितै तै मोटा कौन्या लागता, कतई सूख कै आया सै, (मैंने तो कहीं से मोटा नहीं लगता, एकदम सूख के आया है) मम्मी ने मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए कहा।
घाल दिया, नहालो अब, ना तै फिर ठंडा हो ज्यागा तै कवोगे अक ठण्डा घाल दिया (डाल दिया, नहालो अब, नहीं तो फिर ठंडा हो जायेगा तो कहोगे कि ठण्डा पानी डाल दिया),,, छूटकू ने आते हुए कहा और आकर बेड पर बैठ गया।
अरे भाई, उडै किमै घर-घार बसा लिया कै तनै, जो घर की याद कौन्या आती (अरे भाई, जयपुर में घर-बार तो ना बसा लिया तुने, जो घर की याद ही नहीं आती) ,,,, सोनू ने अंदर आते हुए कहा।
रोज तै फोन कर लूं सू, याद क्यूकर ना आती, मैंने कहा।
म्हार धौरे तै तैरा कदे फोन ना आता, सोनू ने कहा।
इसका इब ब्याह-ब्यूह कर दो काकी, नू कौन्या रवै यो थारे धौरे (इसका ब्याह कर दो काकी, ऐसे कोन्या रह यो आपके पास) सोनू ने मेरी मम्मी से कहा।
ब्याह करन ताइ ए बुलाया सै, आन लागरै सैं आज इसके ससुराडियें (ब्याह करने के लिए ही बुलाया है, आ रहे हैं इसके ससुराल वाले आज),,, मम्मी ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए कहा।
पापा जी नहाने चले गए।
ऐसे ही काफी देर तक बातें होती रहीं। तब तक पापा भी नहाकर आ गये।
इब तू भी नहाले, नहाके बढिया नींद आयेगी (अब तू भी नहाले, नहाकर बढ़िया नींद आयेगी), मम्मी ने कहा।
मैं नहाने जाने के लिए उठा ही था कि मेरा मोबाइल बजने लगा। देखा तो अननॉन नम्बर पर से था।
हाय, मेरे फोन उठाते ही दूसरी तरफ से आवाज आई।
हाय, कौन,, आवाज पहचान में न आने पर मैंने कहा।
बहुत जल्दी भूल गये, दूसरी तरफ से आवाज आई। अबकी बार में आवाज पहचान गया था, परन्तु स्योर नही था।
कोमल, मैंने पहले स्योर करने के लिए इतना ही कहा।
हम्मम,,, लगता है भूलने की आदत है जवाब को, कोमल ने कहा।
अरे नहीं, अननॉन नम्बर था ना, इसलिए, मैंने कहा।
हम्मम, उठ गये, नींद कैसी आई रात को, कोमल ने कहा।
हां बस नींद तो ऐसी ही आई, मैंने कहा।
कल कोमल के साथ गुजारे वो हसीन पलों के बारे में याद आते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
क्यों, कोमल ने कहा।
क्यों क्या, बार बार तुम आकर परेशान करती रही, सोने ही नहीं दिया, मैंने कहा।
मैं--------, मैं कब आई थी, झूठे, कौन थी रात को बिस्तर में, बताओ, कोमल ने कहा।
मैं बात करते करते बाथरूम तक आ गया था।
सच्ची कह रहा हूं यार, मैंने कहा।
हम्मम, यार तुम्हारी बहुत याद आ रही है, कोमल ने कहा।
याद तो मुझे भी आ रही है, मैंने कहा।
तो आ जाओ ना, जीजू और दीदी भी किसी के यहां गये हुए हैं, कोमल ने कहा। उसकी आवाज से ही पता चल रहा था कि वो काफी एक्साइटेड हो चुकी है।
आठ घण्टे तो वहां पहुंचते-पहुंचते लग जायेंगे, तब तक तुम्हारे जीजू और दीदी आ जायेंगे, मैंने हंसते हुए कहा।
क्यों, आठ घण्टे क्यों, कहां पर हो, कोमल ने कहा।
गांव, मैंने कहा।
गांव कब गये, कल तो यहीं पर थे, झूठे, कोमल ने कहा।
रात को ही आया हूं, तुम्हें बताया तो होगा, मैंने कहा।
मुझे तो नहीं बताया, अच्छा आओगे कब।
शायद 2-3 दिन में आउंगा, मैंने कहा।
तब तक तो मैं चली जाउंगी, कोमल की आवाज में थोड़ी उदासी सी थी।
हम्मम, तो क्या हुआ, फिर कभी मिलेंगे ना, मैंने कहा।
अच्छा ओके, मैं नहा लेता हूं, बाद में बात करते हैं, मैंने कहा।
क्या है, ओके बाये, नहा लो, थोड़ी देर बाद फोन करती हूं, कहकर कोमल ने फोन काट दिया।
मैं नहाने लगा।
नहाकर आया, तब तक मम्मी ने नाश्ता तैयार कर दिया था।
सभी ने नाश्ता किया। नाश्ता करते हुए मम्मी और पापा जयपुर के बारे में पूछते रहे।
नाश्ता करके मैं सोने की सोच रहा था, परन्तु तभी सोनू आ गया और कुछ देर तक हम बातें करते रहे। अब नींद गायब सी हो चुकी थी, तो हम सोनू के घर आ गये।
बड़े दिनों में दर्शन दिये, म्हारी याद कौन्या आती दिखै (हमारी याद नहीं आती लगता है),,, सामने बैठी चूल्हे पर रोटियां बना रही भाभी ने मुझे देखकर कहा।
थामनै कौन याद करे, बुढ़ियां नै, जवान छोरियां की कमी सै, (बुढ़ियों को कौन याद करेगा, जवान छोरियां की के कमी है) भाई ने बाथरूम में से निकलते हुए कहा।
बूढ़ी होगी तेरी मां, मैं क्यूं बूढ़ी, भाभी ने रोटियां सेकते हुए कहा।
अभी तो मैं जवान हूं, सोनू ने चटकारा लेते हुए कहा।
और नही तो कै, देख, इबै तो मैं जवान हूं, (और नहीं तो क्या, देख अभी तो मैं जवान हूं) भाभी ने अपनी छाती को उभारकर दिखाते हुए कहा।
मैं और सोनू बाहर बिछी हुई चारपाई पर बैठ गये।
मनै तो कितै तै जवान कौन्या दिखती (मुझे तो कहीं से जवान नहीं लग रही), मैंने भाभी को छेड़ते हुए कहा।
या, वा देख, परसोंए तोड़ी सै इसने कूद-कूद कै, (या, वो देख, परसों ही तोड़ी है इसने कूद-कूद कर) भाई ने दीवार के पास रखी टूटी हुई चारपाई की तरफ इशारा करते हुए कहा।
कूद-कूद कै (कूद-कूद कर), मैंने आश्चर्य से पूछा।
रात नै, (रात में) भाई ने कहा।
मैंने भाभी की तरफ देखा तो उनका चेहरा एकदम लाल हो गया था शरम से। उन्होंने एकबार हमारी तरफ देखा और फिर अपनी नजरें झुका ली।
आप भी ना कुछ भी बोलते रहते हो, भाभी ने शरमाते हुए कहा।
कुछ भी कै बोलता रहूं सू, बता दे ना तोड़ी हो तै तनै, (कुछ भी क्या बोलता रहता हूं, बता दो नहीं तोड़ी हो तो तुमने) भाई ने कपड़े पहनते हुए कहा।
वाह भाभी, फिर तो वाकई में अभी जवान हो, मैंने भाभी की तरफ आंख मारते हुए कहा।
डट जा बेशर्म, तनै तो मैं बताउं,, (रूक जा बेशर्म, तुझे तो मैं बताती हूं,) भाभी ने बेलन दिखाते हुए कहा।
कुछ देर और ऐसे ही बातें चलती रही। भाई खाना खाकर फैक्ट्री में चले गये। उनकी कभी कभी सण्डे की छूट्टी नही होती थी। भाभी भी रोटियां बनाकर हमारे पास आ कर बैठ गई।
कितनी छोरी पटा रखी हैं जयपुर में, भाभी ने मेेर कंधे के पिछे से हाथ मेरे दूसरे कंधे पर रख लिया।
एक भी नहीं, मैंने कहा।
झूठे, सच्ची सच्ची बता, भाभी ने कहा और मेरे गाल को पकड़कर खिंच लिया।
मैंने अपने हाथ का थोड़ा सा दबाव उनके बूब्स पर बढ़ा दिया और फिर हाथ को वापिस खींच लिया।
मेरे हाथ वापिस खींचते ही भाभी मुझे और सट कर बैठ गई। उनके बूब्स मेरी हाथ पर दब गये। बहुत ही नरम नरम थे। भाभी की उम्र 26 के आस-पास थी। 2 साल पहले ही भाई की शादी हुई थी। अभी कोई बच्चा नहीं हुआ था। चूंकि भाई हमारे पड़ोस में रहते थे तो भाभी से जल्दी ही मेरी अच्छी पटने लगी थी, और थोड़ा बहुत हंसी-मजाक और छेडछाड होती रहती थी। भाई भी थोड़े खुले विचारों के हैं तो कभी कभी उनके सामने ही मैं भाभी के कुल्हों को पकड़कर भींच देता था। उनके कुल्हें एकदम गोल और नरम नरम थे, अगर दोनों हाथों में दोनों कुल्हों को पकड़ो तो शायद हाथों में समा जायें।
क्रमशः.....................
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