Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
06-09-2018, 02:10 PM,
#5
RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई--5
गतांक से आगे ...........
सोनल की आंखें एकदम लाल हो गई थी, वो पूरी तरह से हवस में डूब चुकी थी। उसके हाथ अब भी मेरी गर्दन पर हल्के हल्के सहला रहे थे। उसने अपने एक हाथ को मेरे बालों में लाते हुए मेरे बालों को सहलाने लगी और ऐसे ही मेरी आंखों में आंखें डालकर देखती रही। मैंने धीरे से अपना चेहरा उसके चेहरे के करीब किया और थोड़ा रूककर उसका एक्सप्रेशन देखने लगा। उसने अपनी आंखें नीचे कर ली और उसके गुलाबी होंठ फडकने लगे। उसकी सांसे बहुत ही तेज चल रही थी। मैंने अपनी नजरों को थोड़ा झुकाया, उसके बूब्त तेजी से उपर नीचे हो रहे थे और उसके पैर थोड़े थोड़े कांप रहे थे। मैंने वापिस उसके चेहरे की तरफ देखा तो वो अभी भी नीचे ही देख रही थी। सोनल का चेहरा एकदम गुलाबी हो गया था। मैंने अपने चेहरे को थोड़ा और आगे करके उसके गालों पर अपने होंठ रख दिए। सोनल के मुंह से एक सिसकारी निकली और वो वापिस मुझसे चिपक गई। उसके चिपकने से मेरा लंड फिर से उसकी जांघों पर टक्कर मारने लगा।
तभी सीढ़ियों में से किसी के आने की आवाज सुनाई दी। मैंने उसे जल्दी से खुद से अलग किया और बैड पर बैठा दिया। उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि क्या हुआ और वो हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगी। मैंने एक गिलास में पानी लेकर उसे पीने को दिया और खुद किचन में आकर पानी पीने लगा। तभी बाहर से आंटी की आवाज आई। तब उसकी समझ में आया कि मैंने उससे अलग क्यों किया।
आंटी (अंदर आते हुए): सोनल बेटा! रीत का फोन आया हुआ है, तेरे से बात करने की कह रही है।
सोनल (पानी पीते हुए): ओके मोम, अभी आ रही हूं, आप चलो।
आंटी वापिस नीचे जाने लगी। सोनल जल्दी से मेरे पास आई और पहले मेरे गाल पर किस की और फिर मेरे माथे को चूमकर जल्दी से बाहर निकल गई।
मैं आकर बैड पर बैठ गया और हमारे बीच अभी अभी जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचने लगा। आज से पहले हमारी कोई ज्यादा बातचीत भी नहीं होती थी, और कोई ज्यादा मिलना भी नहीं होता था, पर आज जो कुछ हुआ वो मुझे बहुत हैरान कर रहा था। यही सब सोचते सोचते मैं बैड पर लेट गया और मुझे कब नींद आई पता ही नहीं चला।
सुबह 5 बजे का अलार्म बजा तो मेरी आंख खुली। उठते ही मुझे बहुत जोरो की भूख लगी हुई थी। मैं रसोई में गया और चाय बनाई, और उसके साथ कुछ बिस्किट और नमकीन लेकर वापिस बैड पर आकर बैठ गया। मुझे सिर में हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा था। जब मुझे शाम की बातें फिर से याद आई तो मेरे होठों पर प्यारी सी मुस्कान आ गई। चाय पीकर मैं कमरे से बाहर आ गया। अभी एक दो बंदा ही बाहर गली में दिख रहा था। आज मैं जल्दी उठा गया था। बाकि के दिनों तो तैं अलार्म को सनूज ही करता रहता था और कोई 7 बजे जाकर उठता था। आज जल्दी उठने के कारण टाइम पास नहीं हो रहा था तो मैं पार्क में टहलने के लिए चल पडा।

पार्क में ज्यादा लोग नहीं थे, बस कुछेक अंकल और आंटी जॉगिंग कर रहे थे। मैं जाकर एक बेंच पर बैठ गया। एक अंकल काफी तेजी से दौड़ रहे थे। मैं बैठा-बैठा उन्हें दौड़ते हुए देखने लगा। शायद अंकल ने मुझे उन्हें देखते हुए देख लिया था, जब वो तीसरी बार मेरे पास से गुजरे तो हाथ से मेरी तरफ हाथ से साथ में दौड़ने का इशारा किया, तो मैं भी उनके साथ दौड़ने लग गया।
अंकल: क्या बेटा! पार्क में आकर बैठ गये ऐसे ही। अभी तो जवानी आई ही है, सुबह सुबह थोड़े जॉगिंग वगैरह करनी चाहिए, शरीर भी फिट रहेगा।
तभी पिछे से किसी औरत की आवाज आयी: हां, तुमने तो बड़ी जॉगिंग की है ना अपनी जवानी में।
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक आंटी पीछे जॉगिंग करते हुए आ रही थी, वो थोड़ा धीरे दौड़ रही थी, इसलिए थोउ़ी पीछे ही थी, पर ज्यादा पीछे भी नहीं थी।
अंकल: मेरी वाइफ है!
मैंने दोबारा पीछे देखते हुए आंटी को हाय कहा तो आंटी ने भी हाय बेटा कहा।
अंकल: कहा रहते हो बेटा!
मैंने अंकल को अपने घर का पता समझाया।
अंकल: क्या करते हो।
मैं: जॉब करता हूं अंकल।
अंकल: कौनसी कम्पनी में बेटा।
मैंने अंकल को कम्पनी का नाम बताया।
अंकल: हम्मम! कम्पनी तो अच्छी है।
अंकल: शादी हो गई बेटा तुम्हारी।
मैं: नहीं अंकल, अभी कुंवारा ही हूं।
अंकल: हम, इधर उस सामने वाले मकान में ही रहते हैं।
अंकल: रोज आते हो बेटा पार्क में टहलने।
अंकल ने इशारे से बताते हुए कहा, और मैंने उनके बताये हुए मकान की तरफ देखा तो बहुत ही शानदार मकान था।
मैं: नहीं अंकल, वो सुबह जल्दी उठा नहीं जाता तो, इसलिए रोज तो नहीं आ पाता। आज जल्दी आंख खुल गई थी तो आ गया था।
हम दौड़ते हुए पार्क के दूसरी साइड में पहुंच गये थे तभी पार्क के बाहर से आवाज से किसी लड़की की गधुर आवाज थोड़ी तेजी से आती हुई सुनाई पड़ी।
लड़की: पापा! शर्मा अंकल आये हुए हैं, आपको बुला रहे हैं।
मैंने जब आवाज की तरफ देखा तो वोही लड़की थी जो अक्सर शाम के वक्त अपने कॉर्टून टाइप डॉगी के साथ घूमने आती है, वो पार्क की दीवार के साथ बाहर की तरफ खड़ी थी और हमारी ही तरफ देख रही थी। उसकी आवाज सुनकर मैंने थोड़ा इधर उधर देखा कि किसे बुला रही है, तभी अंकल बोले।
अंकल: आ रहा हूं बेटा।
ये जानकर कि तो ये इनकी लड़की है, मुझे थोड़ी खुशी हुई, क्योंकि अब तो अंकल के साथ थोड़ी जान-पहचान हो गई है।
अंकल ने मुझसे कहा, ओके बेटा, चलता हूं, आया करो पार्क में डेली, शरीर स्वस्थ रहेगा। और अंकल बाहर की तरफ चल दिये।
अपने पापा को मुझसे बातें करते हुए देखकर वो लड़की मुझे देखने लगी, मैंने उसकी तरफ देखा तो वो मुझे ही देख रही थी।
तभी पीछे से आंटी की आवाज आई, ओके बेटा बाये,
मैंने आंटी की तरफ देखते हुए, बाये आंटी। और मैं फिर से उसी लड़की की तरफ देखने लगा, वो अब अपने पापा के पीछे पीछे जा रही थी, और पिछे मुड मुडकर मेरी तरफ देख रही थी।
उसने व्हाइट पजामी और ब्लू टी-शर्ट पहन रखी थी।
उस पजामी में उसके कुल्हे एकदम जबरदस्त लग रहे थे। ज्यादा मोटे भी नहीं थे और छोटे भी नहीं थे, एकदम परफेक्ट साइज के थे। पजामी में से उसके दोनों कुल्हों की शेप एकदम शानदार तरीके से दिखाई दे रही थी। मेरे पप्पू ने धीरे से अंगडाई ली तो मैंने उसे समझाया कि सो जा बेटा, अभी टाइम नहीं आया है।
मेरे देखते देखते अंकल और वो लड़की अपने घर में घुस गये और उनके पीछे पीछे आंटी भी घर के अंदर चली गई।
मैं एक राउंड और लगाता हुआ अपने घर की तरफ आ गया।
उपर आकर मैंने टाइम देखा तो साढे छह होने वाले थे। मैं आकर अपने बैड पर बैठ गया और अपने लैपटॉप को ऑन करके गाने लगा दिये और खुद बाहर छत पर आकर मुंडेर के पास खड़ा हो गया।
तभी किसी लड़की की आवाज मेरे कानों में पड़ी - हाय! मैंने पीछे देखा, तो कोई नहीं था, तभी फिर से आवाज आई इधर साथ वाली छत पे।
मैंने घुमकर देखा तो शाम को जो लड़की सोनल से बात कर रही थी साथ वाली छत पर वो खड़ी थी और मेरी तरफ देखकर मुस्करा रही थी। मैंने भी उसे हाय कहा।
उसने कहा मेरा नाम पूनम है।
मैं: नाइस नेम। मेरा नाम समीर है।
पूनम: समीर, ठंडी हवा का झोंका।
और हम दोनों हंस दिये। वो अपनी छत की मुंडेर के पास आकर खड़ी हो गई और मैं उसकी तरफ मुंह करके वहीं पर खड़ा खडा हुआ मुंडेर के साथ लग गया।
पूनम: मैं रोज सुबह छत पर टहलती हूं, पहले तो कभी आप बाहर नहीं दिखे।
मैं: हंसते हुए! मैं दिनचर हूं, रात को बाहर नहीं घूमता।
पूनम: अरे तो अब कोई रात थोड़े ही है।
मैं: हां, पर मुझे उठते उठते 7 तो बज ही जाते हे।
पूनम: ओह माई गोड! 7 बजे उठते हो। कितने लेजी हो।
मैं: अब कुछ भी कहो। जल्दी उठकर करना क्या है?
पूनम: हम जैसो से बातचीत कर लिया करो। मैं 6 बजे ही उपर आ जाती हूं टहलने के लिए।
मैं: ओके जी अब आपने कहा है, आगे से आपको इधर ही मिलेंगे।
पूनम: अपना दायां हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए, फ्रेंड्स!
पूनम के ऐसा कहते ही मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। और मैं अपनी जगह से चलते हुए उसके पास गया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसके हाथ को थाम लिया कहा ‘फ्रेंड्स’।
पूनम: हाव स्वीट!
पूनम: अकेले ही रहते हो।
मैं: हां जी, अब किस्मत ही ऐसी है कि अकेले ही रहना पड़ता है।
पूनम: बड़ी अच्छी किस्मत है। मैं कितना अकेला रहना चाहती हूं, पर घरवाले रहने ही नहीं देते।
मैं: अरे कुछ नहीं है अकेले रहने में। बोर होते रहो हमेशा।
पूनम: क्यों, बोर क्यों होना है, फ्रेंड्स है ना, बोरियत दूर करने के लिए।
मैं: मेरे पास तो कोई नहीं आता मेरी बोरियत भगाने के लिए।
पूनम: अब तक मैं आपकी फ्रेंड नहीं थी ना, अब देखना कैसे आपकी बोरियत दूर हो जायेगी।
मैं: अच्छा जी, देखते हैं।
तभी सोनल उपर आते हुए, गुड मॉर्निग समीर जी।
मैं: गुड मॉर्निग सोनल जी, क्या बात है, आज सुबह सुबह हमारे दर पे।
पूनम को वहां खडे देखकर सोनल ने उसे भी गुड मॉर्निग कहा और हमारे पास आ गई। सोनल बिल्कुल मुझसे सटकर खडी हो गई और पूनम से हैंड सेक किया।

सोनल: क्या बातें चल रही थी सुबह सुबह पड़ोसियों में।
पूनम: बस यार ऐसे ही नॉर्मल।
सोनल: ओके यार नहीं बतानी तो कोई बात नहीं।
तभी नीचे से आंटी की आवाज आई, सोनल बेटा!
सोनल: आई मम्मी जी। और बायें कहते हुए नीचे चली गई।
मेरे मोबाईल में 7 बजे का अलार्म बज गया।
मैं: आके बाये पूनम जी! ऑफिस के लिए तैयार हो जाता हूं,
पूनम: ओके बाये समीर जी। फिर मिलते हैं।
मैं: स्योर।
मैं अंदर आकर खाने की तैयारी करने लगा और खाने बनाने के बाद नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया। नहा धोकर टाइम देखा तो सवा आठ हो गये थे। ज्यादा भूख तो नहीं थी, फिर भी खाना तो खाना ही था, तो थोड़ा बहुत खाना खाया और बाकी के खाने को फ्रिज में रख दिया।
बाइक की चाबी उठाकर मैं रूम को लॉक लगाकर नीचे आ गया। नीचे सोनल अपनी स्कूटी निकाल रही थी। अपनी बाईक को वहां खड़ी ना पाकर एकबार तो मुझे आश्चर्य हुआ और मेरे मुंह से निकला मेरी बाइक कहां गई।
सोनल: मैंने तो शाम को भी नहीं देखी इधर।
तभी मुझे याद आया कि अरे हां, बाइक तो बॉस के घर पर ही क्षड़ी है।
मैं: अरे, यार! बइक तो बॉस के घर पर है। बस में ही जाना पड़ेगा।
सोनल: क्यों, उधर क्यों हैं।
मैं: वो कल आते वक्त पंक्चर हो गई थी, तो मैं वहीं खड़ी करके आ गया था।
सोनल: तो कल भी बस में आये थे।
मैं: नहीं, वो अपूर्वा छोड़कर गई थी।
सोनल: वाह जी, बहुत अच्छी दोस्त है आपकी।
मैं: अब वो तो है ही जी।
सोनल: सिर्फ दोस्त ही है या उसके आगे कुछ।
मैं (मजे लेते हुए): अब दोस्त से तो ज्यादा ही है।
सोनल: तो गर्ल फ्रेंड है। कल तो बडे कह रहे थे कि बस दोस्त ही है।
मैं: मैंने कब कहा कि गर्लगफ़्रेंड है। दोस्त से ज्यादा बेस्ड फ्रेंड होता है न कि गर्ल फ्रेंड।
सोनल: ओह! आई सी, तो बेस्ट फ्रेंड है।
सोनल: चलो मैं आपको छोउ़ देती हूं, आपके ऑफिस। सी-स्कीम में ही है ना।
मैं: अरे नहीं वो बॉस के घर जाना है।
सोनल: कहां पर है बॉस का घर, और घर पे क्या करोगे।
मैं (मैंने सारी बात बतानी सही नहीं समझी): वो ऑफिस में थोड़ा काम चल रहा है तो इसलिए कुछ दिन के लिए घर पे शिफ्रट कर लिया है ऑफिस।
सोनल: तो ये बात है।
मैं: बापू नगर में है घर।
सोनल: वॉव! मैं यूनिवर्सिटी ही जा रही हूं।
मैं: यूनिवर्सिटी क्या करोगी, तुम तो महारानी कॉलेज में पढती हो ना।
सोनल: वो बुक वर्ल्ड से कुछ किताबे लेनी हैं, तो इसलिए पहले यूनिवर्सिटी से किताबें लूंगी। फिर वहां से कॉलेज जाउंगी।
(राजस्थान यूनिवर्सिटी बापू नगर के सामने ही है और यूनिवर्सिटी वाला रोड सीधा महारानी कॉलेज ही जाता है)
मैं: ओके! चलो।
सोनल ने अपनी स्कूटी को बाहर निकाला और स्टार्ट करके कहा आ जाओ।
मैं जाकर स्कूटी पर पीछे बैठ गया। सोनल ने स्कूटी दौड़ा दी। मैं थोड़ा पीछे होकर बैठा था, तभी सोनल ने जोर से ब्रेक लगा दिये। उसके ब्रेक लगाने से मैं एकदम से सोनल की पीठ से जा टकराया।
मैं: क्या हुआ?
सोनल: आप चलाओ ना, मैं पीछे बैठती हूं।
सोनल के ऐसा कहने पर मुझे अपूर्वा के साथ की गई कल की ड्राइव याद आ गई।
मैं: ओके! उतरो।
सोनल स्कूटी से उतर गई और मैं आगे होकर बैठ गया और सोनल स्कूटी पर पीछे बैठ गई।
क्रमशः.....................
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