RE: Hindi Porn Kahani रज़िया और ताँगे वाला
मैं उस लम्हे के बारे में सोचने लगी जब दो बड़े-बड़े लंड एक ही वक्त में मेरे दोनों छेदों में एक साथ चोदेंगे। ये ख्याल आते ही मेरे जिस्म में सनसनाहट भरी लहरें दौड़ने लगी। ढाबेवाले ने दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुसेड़ दीं और मेरी चूत को उंगलियों से चोदने लगा। हर गुज़रते लम्हे के साथ वो बेकाबू सा होता जा रहा था। मैंने उससे कहा, “हाय मादरचोद… थोड़ा धीरे-धीरे उंगली घुसा… इतनी जल्दी क्या है… आज की पूरी रात मैं तुम दोनों की ही हूँ… चाहे जैसे मुझे चोदना… मैं एतराज़ नहीं करुँगी… थोड़ा प्यार से सब करेगा तो तुझे भी मज़ा आयेगा और मुझे भी!” लेकिन उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं और पहले जैसे ही मेरी चूत बेरहमी से अपनी उंगलियों से चोदना ज़ारी रखा।
दरवाज़े पर अचानक ज़ोर से दस्तक हुई और किसी ने ढाबेवाले को आवाज़ दी। इस तरह अचानक किसी के आने से मैं हैरान हो गयी और ढाबेवाले से पूछा रात को इस वक्त उसे कौन बुला रहा है। वो बोला कि शायद चाय पीने के लिये कोई गाहक आया होगा। उसने अपनी धोती ठीक की और मुझे ज़रा इंतज़ार करने को बोला। फिर जाकर उसने थोड़ा सा दरवाजा खोला और अपने गाहक से पूछा कि उसे क्या चाहिये। ढाबेवाला का अंदाज़ा सही था। बाहर दो लोग खड़े थे और उन्हें चाय ही चाहिये थी। ढाबेवाले ने साफ मना कर दिया कि ढाबा बंद हो चुका है और इस वक्त उन्हें चाय नहीं मिल सकती। लेकिन वो उससे बार-बार इल्तज़ा करने लगे कि बाहर ठंड-सी हो रही है और चाय के लिये आसपस और कोई दुकान भी नहीं है।
अचानक टाँगेवाला जो ये सब सुन रहा था, उसने अपने दोस्त को अंदर बुलाया और उसे धीरे से कुछ कहा जो मैं सुन नहीं सकी। मैं तो वैसे भी अपने मज़े में इस बे-वक्त खलल पड़ने से बेहद झल्ला गयी थी और पव्वे में बचे हुए ठर्रे की चुस्कियाँ ले रही थी। टाँगेवाले की बात सुनकर वो ढाबेवाला फिर बाहर गया और अपने गाहकों से बोला कि जब तक उसकी बीवी (?) चाय बनाती है वो लोग कुछ देर इंतज़ार करें। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।
मैं हैरान थी कि ये उसकी बीवी कहाँ से आ गयी लेकिन तभी जब टाँगेवाले ने मुझे उन बेचारे गाहकों के लिये चाय बनाने को कहा तो मैं समझी। मैं ये करने के लिये तैयार तो नहीं थी और मुझे देसी शराब की खुमारी भी अब पहले जयादा हो गयी थी लेकिन मुझे मालूम था कि उसकी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था। मैंने शराब के पव्वे को खाली करते हुए आखिरी घूँट पीया और पहनने के लिये अपनी चोली उठायी लेकिन टाँगेवाले ने इशारे से मुझे वो चोली पहनने को रोकते हुए सिर्फ लहंगा और चुनरी पहन कर बाहर जाके चाय बनाने को कहा। पहले मैंने ज़रा सी हिचकिचाहट ज़ाहिर की लेकिन दो-दो लौड़ों से मस्ती भरी चुदाई का मंज़र दिखा कर टाँगेवाले ने मुझे राज़ी कर लिया। वैसे भी मेरे लिये तो अपने जिस्म की नुमाईश का ये बेहतरीन मौका था। मैं तो बस इसलिये नराज़ थी कि वो दो कमीने इस वक्त कहाँ से अचानक टपक पड़े थे और मेरा सारा मज़ा किरकिरा हो गया था। खैर मुस्कुराते हुए मैंने बगैर स्लिप (पेटीकोट) के ही अपना झलकदार लहंगा पहना और उससे भी ज्यादा झलकदार चुनरी से अपने मम्मे ढके। इतने में ढाबेवाला कमरे में वापस आ गया और मैं वैसे ही बाहर बैठे उन दो कमीनों के लिये चाय बनाने बाहर निकली। वैसे मैं नशे में बहुत ज्यादा धुत्त तो नहीं थी लेकिन फिर भी इतनी मदहोश तो थी ही कि हाई हील के सैंडलों में मुझे अपने कदम थोड़े डगमगाते से महसूस हो रहे थे।
जैसे ही मैंने कदम बाहर रखे, उन दोनों की हैरान नज़रें मेरे मम्मों पर जम गयी। उन दोनों ने भी शायद इस दूर-दराज़ गाँव के सुनसान इलाके में दिलकश औरत के इतने शादाब और सैक्सी नंगे जिस्म के नज़ारे की उम्मीद नहीं की होगी। मैं करीब-करीब नंगी ही तो थी। मैंने देखा कि उनमें से एक तो सत्रह-अठारह साल का बच्चा ही था और दूसरा लड़का भी इक्कीस बाइस साल से ज्यादा उम्र का नहीं था। दोनों शायद या तो भाई या फिर दोस्त होंगे। उनकी मोटर-बाइक भी हमारे टाँगे के करीब ही खड़ी थी।
मुझे देखते ही मेरी और मेरे मम्मों की तरफ इशारा करते हुए वो दोनों कुछ खुसर-फुसर करने लगे। जब मैंने अपने मम्मों की तरफ देखा तो मेरी बारीक सी चुनरी में से मेरे मम्मे और निप्पल साफ नज़र आ रहे थे जिन्हे देख कर उनकी पैंटों में तंबू खड़े हो गये। अपनी मस्ती-भरी हालत उनसे छिपायी नहीं जा रही थी और उनकी पैंटों में जवान लौड़े शान से खड़े हुए नज़र आ रहे थे। जब बड़े वाले लड़के ने मुझे उसके लंड के तंबू को घूरते हुए देखा तो पैंट के ऊपर से अपना लंड मसलने लगा और अपने दोस्त के कान में कुछ बोला। शायद यही कह रहा होगा कि “देख इस राँड को… कैसे बेहयाई से अपने मम्मे दिखा रही है और फिर हमारे खड़े हो रहे लौड़ों को देख कर खुश हो रही है…!” मैं वहाँ उनके सामने खड़ी इस तरह चाय बनाने लगी जैसे कुछ हुआ ही ना हो। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।
“वैसे साली इस इलाके की गाँव की नहीं लगती… मेक-अप और पहनावे से तो शहरी मेम लग रही है और ऐसे लहंगे और ऊँची ऐड़ी वाली सैंडल तो शहरी औरतें ही पहनती हैं!” उनमें से छोटा वाला लड़का मेरे पैरों की तरफ इशारा करते हुए बोला।
जिस तरह से मैंने उनके लौड़ों के तम्बुओं को घूरते हुए देखा था उससे शायद उनकी हिम्मत बढ़ गयी थी और वो खुल कर बातें करने लगे थे। मेरे जिस्म का खुला जलवा देख कर बड़ा वाला कुछ ज्यादा ही गरम होता नज़र आ रहा था और अपने दोस्त से इस बार ज़रा ऊँची आवाज़ में बोला, “शहर की हो या गाँव की… पर देख तो इस औरत के मम्मे… आहहहह साले कितने मोटे-मोटे हैं… इस ढाबेवाले की तो ऐश होगी… रात भर इन्हें ही दबाता रहता होगा… हाय काश ये एक बार मुझे भी दबाने को मिल जायें तो मज़ा आ जायेगा यार!”
टाँगेवाले के कहने पर इस हद तक अपने जिस्म की नुमाईश करने में पहले मैं जो हिचकिचा रही थी अब इसमें बेहद मज़ा आ रहा था। उस लड़के की बात का जवाब देते हुए मैं फर्ज़ी गुस्से से बोली, “तुम लोग अपने-अपने घर जाकर अपनी माँ-बहनों के मम्मे क्यों नहीं देखते… उनके तो हो सकता है कि मेरे से भी बड़े हों!” मेरा जवाब सुनकर वो दोनों चुप हो गये और उसके आगे कुछ नहीं बोले।
जब चाय तैयार हो गयी तो मैंने दो गिलासों में चाय भरी और उन्हें देने के लिये उनके करीब गयी।छोटा वाला लड़का मेरे मम्मों की तरफ देखते हुए मुझसे बोला, “क्यों भाभीजी! चाय में दूध तो पूरा डाला है ना?” और अपने दोस्त की तरफ देख कर आँख मार दी। उसका दोस्त भी कमीनेपन से मुस्कुरा दिया।
मैंने अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सब कुछ पूरा डाला दिया है मैंने… लेकिन अगर चाय में फिर भी कुछ बाकी हो तो बोल देना, वो और भी डल दूँगी!”
फिर मैं वहाँ से हट कर वापस स्टोव के पास जाकर खड़ी हो गयी। मैंने नोटिस किया कि उन लड़कों की नज़रें मेरा ही पीछा कर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि ऊपर वाले ने उनकी खुशकिस्मती से अचानक जो ये हसीन मौका उन्हें बख्शा था उसका ये दोनों लड़के पूरी हद तक फायदा उठाना चाहते थे। अपनी हवस भरी नज़रों से दोनों मेरे खुबसूरत और हसीन जिस्म का मज़ा ले रहे थे। उनकी नज़रें खासतौर पे मेरे मम्मों और मेरी गाँड पे चिपकी हुई थीं। बगैर पेटिकोट के उस जालीदार लहंगे में से यकीनन मेरी टाँगें और मोटी गाँड उन्हें साफ नज़र आ रही थी। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।
उनमें से छोटा वाला फिर से बोला, “अरे भाभी जी… आपने चाय में चीनी तो बहुत थोड़ी डाली है… क्या चीनी और मिलेगी?”
मेरे खयाल से चाय में चीनी तो सही थी लेकिन किसी भी बहाने से वो दोनों मुझे अपने करीब बुलाना चाहते थे जिससे उन्हें मेरे मम्मों का बेहतर नज़ारा मिल सके। बहरहाल मैं फिर भी चीनी लेकर उनके करीब गयी उनकी चाय के गिलासों में चीनी डालने के लिये झुकी। जैसे ही मैं झुकी वैसे ही चुनरी मेरे कंधे से फिसल गयी और मेरा एक मम्मा उनकी हवस भरी नज़रों के सामने पूरा नंगा हो गया। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था और अचानक इस वाक़ये से मैं हैरान रह गयी लेकिन लड़कों के लिये तो अब बर्दाश्त से कुछ ज्यादा ही बाहर हो गया था। उन दोनों ने खड़े हो कर अचानक मुझे दोनों तरफ से दबोच लिया। बड़ा लड़का जो पहले मेरे मम्मों की तारीफ कर रहा था, वो इस मौके का फायदा उठाते हुए मेरे मम्मों को मसलते हुए मेरे निप्पल मरोड़ने लगा। मैंने बचाव के लिये दिखावा करते हुए चिल्लाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरा मुँह बंद कर दिया था और अपने अरमान पूरे करने लगे। मैं भी सिर्फ दिखावा ही कर रही थी क्योंकि हकीकत में तो मैं भी कहाँ उनकी गिरफ्त से छूटना चाहती थी।
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