RE: Muslim Chudai Kahani सबाना और ताजीन की चुदाई
कुच्छ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद शबाना ने अपने कंधे उचकाय. जगबीर ने अपना लंड उसकी गंद से निकाला और बाथरूम में घुस गया. शबाना ने प्रताप का लंड चाट कर साफ किया और उसके पास ही लेट गई.
रात के दो बज रहे थे. "कैसा लगा शाब्बो" "एक पर एक तुम्हें नहीं, मुझे मिला है", फिर दोनों हँसने लगे. "लेकिन, जगबीर भरोसे का आदमी तो है ना ?" "जानू, एकदम पक्का भरोसे का है, और वो सरदार है. तुम बिल्कुल बेफ़िक्र रहो, वो उनमें से नहीं है जो तुम्हें परेशान या बदनाम करेगा." "बस में यही चाहती हूँ."
तभी जगबीर बाहर आ गया. शबाना उठी और बाथरूम में घुस गई.
"यार यह तो उम्मीद से दुगना हो गया !!" "हां लेकिन ध्यान रहे किसी को पता ना चले, अच्छे घर की हैं यह." "जानता हूँ यार, किसी को बताकर क्या मुझे अपना ही खाना बिगाड़ना है ? और मेरी बीवी को पता चलेगा तो मेरी खुद शामत आ जाएगी. वाहे गुरु की दया है हम क्यों किसी को तकलीफ़ में डालेगे यार ! सबकुच्छ तो है अपने पास". बाथरूम में नहाती हुई शबाना यह सुनकर आश्वस्त भी हुई और खुश भी.
"क्या कर रहे हो दोनों ? शबाना कहाँ है ? और जगबीर तुमने कपड़े नहीं पहने ? क्या यहाँ भी मज़े किए हैं ?" ताज़ीन की आवाज़ थी यह.
"दो दो जगह मज़े करें ऐसी किस्मत प्रताप की ही है, हमारी नहीं. जल्दी क्या है डार्लिंग पहन लेंगे, वहाँ तुम बाथरूम में हो, और यहाँ पर शबानाजी - जाएँ तो जाएँ कहाँ ?"
"अब तो बाथरूम खाली है, जाओ." जगबीर निकल गया.
शबाना समझ गई, सरदार बात का पक्का है, उसने ताज़ीन को भनक भी नहीं लगने दी कि शबाना ने प्रताप का लंड अपनी चूत में तो जगबीर का लंड अपनी गंद में घुस्वाया था.
शबाना की गंद और चूत दोनों की खुजली एक साथ शांत हो गयी थी. वो अब भी मस्तिया रही थी और उसे लग रहा था जैसे अब भी उसकी चूत में प्रताप का और गंद में जगबीर का लंड घुसा हुआ है और वो चुदाई करवा रही है.
उसने झटपट अपनी चूत और गंद की खबर ली, गाउन पहना और बाहर आ गई. ब्रा पॅंटी पहन कर उसे अपना मूड नहीं खराब करना था. और चूत और गंद को भी तो खुला रखना था, आख़िर इतनी मेहनत हो की थी दोनों ने.
चारों फ्रेश होकर कॉफी पीने बैठे.
तभी एक तस्वीर देख कर जगबीर ने कहा "तो इन महाशय की बीवी हैं आप" "जी हां. यही परवेज़ हैं. क्या आप जानते हैं इनहें ?". "नहीं बस ऐसे ही पूच्छ लिया, क्या वो शहर से बाहर गये हैं ?" "हां, कल शाम को आ जाएँगे"
कॉफी का कप रखते हुए जगबीर ने कहा "ठीक है तो हम चलते हैं, फिर मिलेंगे. अगर आपने याद किया तो."
"अरे इतनी जल्दी क्या है, सुबह के चार बज रहे हैं." ताज़ीन ने कहा "भाईजान तो शाम को आएँगे. सुबह यहीं से नहा धोकर चले जाना"
"अर्रे भाई जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा" कहकर हंस दिया जगबीर.
"अच्च्छा तो वो क्या काम छ्चोड़ कर आ जाएगा, शहर से बाहर ही नहीं जाएगा ?" शबाना ने बीच में चुटकी ली
"अर्रे भाई, वो शहर से बाहर जाएगा तो भी यही कहेगा शहर में ही है, हो सकता है परवेज़ सुबह 6 बजे आ जाए, रिस्क क्यों लेना ? "
"चलो ठीक है, वैसे भी सुबह जल्दी ऑफीस जाना है." प्रताप ने सोफे पर से उठते हुए कहा.
शबाना और ताज़ीन ने भी ज़्यादा विरोध नहीं किया.
प्रताप और जगबीर दोनों निकल गये. भाई लोगो कैसी लगी ये मस्ती आपको मुझे ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः................
सबाना और ताजीन की चुदाई -5
गतान्क से आगे............
शबाना और ताज़ीन ने अपने बिस्तर ठीक किए और दोनों एकदम संतुष्ट और खुश होकर सो गयी.
सुबह 6 बजे घंटी बजने पर शबाना ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिए.
"परवेज़ तुम !! ? इतनी जल्दी ? तुम तो शाम को आनेवाले थे ना ?" एकदम चौंक गई थी शबाना. "क्यों मेरा जल्दी आना अच्च्छा नहीं लगा तुम्हें ?" "नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँही पूच्छ लिया."
शबाना ने चैन की साँस ली. वो आज मारते मारते बची थी, अगर जगबीर ने फोर्स नहीं किया होता तो प्रताप भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी. यह सोचकर उसका दिमाग़ एकदम घूम गया, उसके कानों में जगबीर के शब्द गूंजने लगे "हो सकता है सुबह 6 बजे ही आ जाएँ" ... उसका दिमाग़ चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया. उसे शक होने लगा की जगबीर को पहले ही पता था की परवेज़ सुबह आने वाला है.
सुबह 6 बजे आने के बावजूद परवेज़ 9 बजे घर से निकल गया.
"ताज़ीन, तुम्हें जगबीर की बात याद है ?"
"कौनसी ?" बेफ़िक्र ताज़ीन ने जवाब दिया.
"वोही जो उसने जाने से पहले कही थी" शबाना ने ताज़ीन की आँखों में झाँकते हुए पूचछा.
"जिसकी बीवी इतनी सुंदर हो वो वाली ? वो तो उसने सच ही कहा था"
"वो नहीं. सुबह 6 बजे वाली. तुम्हारे भैया सुबह 6 बजे ही आए थे. ठीक उसी समय जो जगबीर ने बताया था." शबान की आवाज़ में डर और चिंता दोनों सॉफ झलक रही थी.
"ऐसे ही तुक्का लगा दिया होगा" ताज़ीन अब भी बेफ़िक्र थी.
"तो इन महाशय की बीवी हैं आप" "जी हां. यही परवेज़ हैं. क्या आप जानते हैं इन्हे ?". "नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया, क्या वो शहर से बाहर गये हैं ?" "हां, कल शाम को आ जाएँगे"
फिर उसने यह क्यों कहा "वो शहर से बाहर जाएगा तो भी यही कहेगा शहर में ही है " तो क्या जगबीर सच्चाई से उल्टा बोल रहा था ? याने की परवेज़ शहर में ही था लेकिन उसे कहकर गया कि वो बाहर जा रहा है ? लेकिन परवेज़ झूठ क्यों बोलेगा ? और जगबीर ने उल्टा क्यों कहा अगर वो जानता था कि परवेज़ शहर में ही है.
जहाँ तक जगबीर का सवाल है सरदार ना सिर्फ़ चालाक और होशियार था बल्कि काफ़ी सुलझा हुआ और इंटेलिजेंट भी था. जो भी थोड़ा बहोत वो उसे समझी थी, उससे यही ज़ाहिर होता था. वो बिना मतलब के इतनी बातें करने वालों में से नहीं था. कई सवाल शबाना के ज़हन में गूँज रहे थे लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं था.
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