RE: Porn Hindi Kahani मेरा चुदाई का सफ़र
नदी में दुल्हन को नंगी नहाते देखा
निर्मला गैर मर्दों से अपनी चूत चुदाई के किस्से सुनाती रही, मैं चुप बैठा रहा।
निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए?
‘नहीं नहीं… बुरा कैसा! अच्छा किया अपनी तसल्ली कर ली तुमने! सच बताना उस लड़के के इलावा किसी और से तो नहीं करवाया तुमने?’
‘नहीं नहीं छोटे मालिक, बिल्कुल नहीं!’
‘और किसी औरत या लड़की के साथ तो नहीं किया कभी?’
‘यह आप क्या पूछ रहे हैं छोटे मालिक?’
‘नहीं मैंने सुना है तुम औरतें आपस में भी खूब लग जाती हो एक दूसरी के साथ!’
वो चुप रही और उसकी यह चुप्पी से मुझको लगा कि आपसी सम्बन्ध भी थे इसके दूसरी औरतों के साथ।
‘नदी में कहाँ नहाती हो तुम सब?’
‘वही जो घाट है न उस पर ही नहाती हैं सब, लेकिन आदमियों और लड़कों का उस तरफ आना मना है।’
‘अच्छा? कोई जगह तो होगी जहाँ से कुछ देखा जा सके?’
वो हिचकते हुए बोली- है तो सही, आप देखना चाहते हैं क्या?
‘अगर तुम दिखाओ तो इनाम मिलेगा।’
वो बोली- कल देखने आ सकते हो?
‘हाँ, क्यों नहीं।’
‘अच्छा तो मैं आपको ले जाऊँगी।’
फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गये।
सुबह होने से पहले मैंने निर्मला को फिर चोदा और उसके गोल और मोटे चूतड़ जो एक मोटे गद्दे के समान थे, मुझको बहुत ही सेक्सी लगते थे और मैं उनको बार बार छूना चाहता था।
नाश्ता करने के बाद मैं और निर्मला दोनों नदी की ओर चल पड़े। नदी के निकट आते ही निर्मला मुझसे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे थोड़ी दूर पर चलने लगा।
फिर उसने मुझको इशारा किया और हम एक घनी झड़ी की ओर मुड़ गए।
काँटों से बचते हुए हम एक जगह पहुँचे जहाँ हम बिल्कुल छिप गए थे लेकिन नदी की तरफ़ हम साफ़ देख सकते थे।
निर्मला अपने साथ एक चादर लाई थी और हमने वो बिछा ली और हम दोनों आराम से बैठ गए। फिर मैंने जगह का जायज़ा लिया और देखा कि वो तो पूरी तरह से ढकी छुपी थी और हमको कोई देख भी नहीं सकता था।
नदी पर अभी इक्का दुक्का औरतें ही नहा रहीं थीं लेकिन उनमें कोई देखने लायक नहीं थी। तो थोड़ी फुर्सत थी तो मैंने निर्मला को चूमना शुरू कर दिया, उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसके गोल उरोजों के साथ खेलना शुरू कर दिया।
फिर एक हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी बालों भरी चूत को मसलने लगा, वो धीरे धीरे गरम होने लगी, उसने मेरी पैंट से मेरे लंड को निकाल लिया, वो उसका हाथ लगते ही एकदम अकड़ गया।
वो उसको हाथ से हिलाने लगी, तब तक उसकी चूत भी गर्म हो कर पनिया गई थी।
निर्मला बोली- बैठ कर ही कर लेते हैं।
वो कैसे?
उसने अपनी टांगें पसार दी और धोती को ऊपर कर दिया और मुझको टाँगों के बीच मैं बैठने के लिए कहने लगी। मैं लंड को निकाल कर टांगों के बीच बैठ गया और तब वो अपने हाथ से मेरा लौड़ा अपनी चूत के मुंह पर रख कर मुझको धक्का मारने के लिए बोलने लगी।
एक ही धक्के में लौड़ा पूरा अंदर चला गया और मैंने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और ज़ोर से धक्के मारने लगा। वो भी जवाबी धक्के मारती रही।
उधर हमने नदी की तरफ देखा तो एक जवान नई दुल्हन नहाने के लिए कपड़े बदल रही थी।
गाँव के हिसाब से वो काफी जवान और सुन्दर लग रही थी।
उसने ब्लाउज उतार दिया बिना किसी शर्म झिझक के उसके छोटे लेकिन कठोर उरोज बाहर आ गए थे।
इधर मैं और निर्मला एक दूसरे से अपने अंगों से जुड़े थे, लेकिन हमारी नज़रें तो नदी किनारे उस नई दुल्हनिया पर अटकी थीं।
उसने सिर्फ ब्लाउज ही उतारा और पेटीकोट के साथ ही नहाने लगी। वो सारे शरीर पर साबुन लगा रही थी और खास तौर पर अपनी चूत पर तो वो 5 मिन्ट साबुन रगड़ती रही। और फिर वो नदी के अंदर चली गई और तैरती हुई थोड़ी दूर चली गई।
पानी से गीला उसका बदन चमक रहा था, जब वो नदी की सतह से ऊपर आती थी तो उसके गोल उरोज धूप में चमकते थे। ऐसा लगता था कि सोने की परी नदी में तैर रही हो।
यह सब देख कर मेरे लंड पूरे जोश में आ गया और मैंने अपने हाथ निर्मला की गांड के नीचे रखे और फ़ुल स्पीड से धक्के मारने लगा।
‘ओह्ह्ह ओह्ह…’ करती हुई निर्मला तो झड़ गई लेकिन मैं अभी भी जोश में था, आँखें उस अर्धनग्न स्त्री पर थी जो मुक्त पंछी की तरह नदी में तैर रही थी और जिसका पेटिकोट भी उसके शरीर के साथ चिपक गया था और उस गीले कपड़े में से उसकी गोल जांघें और चूतड़ साफ़ दिख रहे थे, हल्की झलक उसकी काली झांटों की भी मिल रही थी।
मैं बेतहाशा निर्मला को चूमने लगा और उसके चूतड़ जो मेरे हाथों में थे तेज़ी से आगे पीछे करने लगा।
और फिर मैंने निर्मला को घोड़ी बना दिया और उसको पीछे से तेज़ तेज़ चोदने लगा।
लेकिन मेरी नज़र उस नहाती हुई औरत पर ही थी।
जब निर्मला एक बार और छूटी तो मैं भी उसको छोड़ कर वहाँ बैठ गया, तभी वो औरत जिधर हम बैठे थे उधर आने लगी। उसके हाथ में पेटीकोट और ब्लाउज था।
मैंने घबरा के निर्मला को देखा, वो मस्त बैठी थी। मेरा डर समझते हुए उसने अपने होंटों पर ऊँगली रख कर कहा कि चुप रहूँ।
मैं हैरानी से उस आती हुई औरत को देखने लगा जो हमारी झाड़ी के निकट आ गई लेकिन 10 फ़ीट पहले रुक गई और इधर उधर देखने के बाद उसने अपना गीला पेटीकोट उतार दिया और धुला हुआ पहनने लगी।
उसी समय उसकी चूत के पूरे दर्शन हो गए। काले चमकीले बालों से घिरी चूत को उसने गीले पेटीकोट से पौंछा।
ऐसा करते समय उसकी चूत के अंदर की लाली भी दिख गई, मैं निहाल हो गया।
वो जल्दी से पेटीकोट बदल कर वापस नदी किनारे चली गई लेकिन मेरे लंड का बुरा हाल कर गई।
मेरी हालत देख कर निर्मला को तरस आया और उसने अपने मुंह से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया। उसके ऐसा करते ही मेरा फव्वारा छूटा और निर्मला ने सारा रस अपने मुंह में ले लिया।
हम थक कर वहीं पसर गए।
मुझको याद आया कि यह नज़ारा मैंने पहले भी देखा था, कम्मो के साथ जब हमने चम्पा को नहाते हुए देखा था।बिलकुल वही दृश्य था लेकिन चम्पा तब बहुत ही सेक्सी लग रही थी क्यूंकि वो चुदाई का आनन्द काफी समय ले चुकी थी और यह लड़की तो नई नई शादी का आनन्द ले रही थी।
अब नदी किनारे कोई सुन्दर औरत नहीं थी जिसको देखने के लिए हम रुकते तो जल्दी ही वहाँ से चल दिए और कॉटेज में आ गए। जहाँ हमने लेमन पी फिर वहीं लेट गए।
मैंने निर्मल को कहा कि वो घर जाये, मैं बाद में आता हूँ।
वहीं यह सोचने लगा कि लखनऊ में मुझको चूत कहाँ से मिलेगी। उसका इंतज़ाम तो करना पड़ेगा। मैं चाहता था कि अभी तक मेरे पास गाँव की लड़की की तरह ही होनी चाहिए वरना वहाँ चुदाई का प्रबंध नहीं हो पायेगा।
मैंने सोचा कि यह काम तो चम्पा ही कर सकती है तो मैंने निर्मला को चम्पा को बुलाने का काम सौंपा और वो शाम को मुझको कॉटेज में मिली।
तब मैंने उसको सारी बात बताई और कहा कि मेरे मतलब की कोई गाँव वाली लड़की लखनऊ के लिए ढूंढ दे।
उसने वायदा किया कि वो जल्दी ही मेरी मर्ज़ी की लड़की ढूंढ देगी।
यह कह कर वो चली गई।
चम्पा एक नई लड़की को लाई
जैसे जैसे मेरे लखनऊ जाने के दिन निकट आ रहे थे मेरे हाथ पैर फूलने लगे और इसका मुख्य कारण था कि मेरा वहाँ की चुदाई का प्रबंध नहीं हो पा रहा था।
एक दिन शाम को घर लौटा तो देखा कि हवेली में बड़ी चहल पहल हो रही थी।
निर्मला को बुला कर पूछा- यह क्या हो रहा है हवेली में?
वो बोली- छोटे मालिक, वो लखनऊ से आपके रिश्तेदार आये हैं और मालकिन ने हुक्म दिया है कि आप जैसे बाहर से लौटें, आपको बैठक में भेज दिया जाए।
मैं सोचने लगा कि ऐसा कौन आया होगा लखनऊ से?
फिर हाथ मुंह धोकर मैं बैठक में गया तो वहाँ एक बुज़र्ग आदमी और उसके साथ उसकी जवान पत्नी और दो जवान लड़कियाँ बैठी थी।
मुझे देखते ही मम्मी ने आगे बड़ कर मेरे को उन सबसे मिलवाया।
मम्मी ने बताया कि वो बुजुर्ग मेरे दूर के ताऊ थे और उनके साथ उनकी पत्नी और उनकी दो बेटियाँ थी जो लखनऊ में ही पढ़ रहीं थी। ताऊजी भी लखनऊ में रहते थे।
मम्मी के इशारे पर मैंने ताऊजी और ताई जी के चरण स्पर्श किये और वहीं खाली कुर्सी पर बैठ गया।
तब मैंने ध्यान से उन सबको देखा, ताऊजी हट्टे कट्टे लग रहे थे और ताई भी उनसे उम्र में काफी छोटी लग रही थी। ऐसा नहीं लग रहा था कि वो दोनों बेटियों की माँ हो, दोनों ही अच्छी दिख रहीं थी।
मैं चुपचाप बैठा रहा।
तभी ताऊ जी ने पूछा- कौन से कॉलेज में दाखिला लिया है बेटा तुमने?
मेरे बोलने से पहले ही मम्मी ने बता दिया।
दोनों लड़कियाँ एकदम चहक उठीं- अरे हम भी उसी कॉलेज में पढ़ती हैं। चलो अच्छा हुआ कि सोमू का साथ हो जाया करेगा वहाँ।
मैं भी थोड़ा मुस्करा दिया।
थोड़ी देर बाद वह परिवार वापस लखनऊ चला गया और लड़कियाँ ज़ोर देकर कह गई कि लखनऊ में आऊँ तो उन मैं उनसे ज़रूर मिलूँ। दोनों के साथ सम्बन्ध बनाने का विचार नहीं आया हालाँकि लड़कियाँ अच्छी लगी।
शाम हो गई और मैं घूमने निकल गया। घूमते हुए मैं अपनी कॉटेज की तरफ निकल गया, चौकीदार ने दरवाज़ा खोल दिया और वहाँ मैं एक लेमन की बोतल, जो आइस बॉक्स में ठंडी हो रही थी, निकाल कर पीने लगा।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, खोला तो देखा कि वहाँ चन्दा खड़ी थी।
मैं घबरा गया कि यह क्या कर रही है यहाँ।
वो अंदर आ गई और बोली- छोटे मालिक मेरा तो काम नहीं बना।
मैं बोला- तुम्हारा कौन सा काम?
‘वही गर्भवती होने का!’
‘ओह्ह, तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ?’
‘एक बार और चोदो न?’ वो गिड़गड़ाते हुए बोली।
‘नहीं नहीं चंदा, ऐसे थोड़े होता है। मैं कल आऊँगा निर्मला के साथ, तब तुम आ जाना।’
‘किस वक़त छोटे मालिक?’
‘नाश्ता करके आ जायेंगे दोनों… ठीक है? तुम्हारी माहवारी कब हुई थी इस महीने?’
‘वो तो हो चुके हैं 10 दिन!’
‘तो फिर ठीक है। कोशिश कर देखो शायद काम बन जाए?’
मैं दरवाज़े पर उसको ले गया और बाहर कर दिया। मेरा मन बहुत घबरा रहा था कि यह क्या हो रहा है? इस तरह गाँव की सारी औरतें आने लगी तो मैं बदनाम हो जाऊँगा।
कॉटेज को ताला लगा कर मैं वापस चल दिया।
रास्ते में मुझको चम्पा अपनी सहेली के साथ दिख गई। मैंने उसको आवाज़ दी और वो आ गई, उसकी सहेली दूर खड़ी रही और हम बातें करने लगे।
मैंने उसको चंदा की बात बताई, वो भी बहुत नाराज़ हुई, कहने लगी- कल मैं उसको खुद ले कर आऊँगी। आप उसको एक बार और चोद दो छोटे मालिक, शायद उसका भाग्य भी चमक जाए।
‘चलो, कल देखेंगे।’
‘छोटे मालिक इस लड़की को ध्यान से देखो, कैसी है?’
‘यह कौन है?’
‘इसका नाम गंगा है और इस का पति इसको छोड़ गया, बम्बई में उसने दूसरी शादी कर ली है। बेचारी बड़ी मजबूर है। मैंने इससे बात कर ली है और यह तुम्हारे लिए लखनऊ काम करने के लिए तयार है।’
‘अच्छा कल सुबह तुम इसको और उस साली चंदा को ले आना, कॉटेज में बात कर लेंगे। अच्छा मैं चलता हूँ।’
यह कह कर मैं घर वापस आ गया।
रात को निर्मला से चुदाई हो नहीं सकी क्यूंकि उसकी माहवारी शुरू हो चुकी थी।
अगले दिन मैं नाश्ता करके कॉटेज में पहुँच गया। वहाँ सिवाए चौकीदार के और कोई नहीं था। तो उसको मैंने छुट्टी दे दी।
थोड़ी देर बाद चंदा और गंगा के साथ चम्पा आ गई।
चम्पा मुझ को दूसरे कमरे में ले गई और बोली- छोटे मालिक आप पहले चंदा से निबट लो, फिर मैं आपकी गंगा से बात करवा देती हूँ।
वो बाहर गई और चंदा को लेकर आ गई, चंदा बोली- यह गंगा यहाँ क्या कर रही है? कहीं यह हमारा भांडा न फोड़ दे?
‘नहीं चंदा बहन, वो हमारे साथ है। तुम अपना काम करवाओ।’
‘नहीं। तुम ऐसा करो कि गंगा को भी यहीं बुला लो और हम दोनों के साथ छोटे मालिक कर देंगे।’
मैं बोला- ऐसा नहीं हो सकता है, मैं गंगा को बिल्कुल नहीं जानता तो उसको कैसे चोद सकता हूँ।
चम्पा बोली- गंगा की जिम्मेवारी मैं लेती हूँ, आप दोनों चुदाई शुरू करो, गंगा और मैं बाद में बात कर लेंगे छोटे मालिक से।
यह कह कर चम्पा तो बाहर चली गई और जब मैंने मुड़ कर देखा तो चंदा धोती उतार चुकी थी और ब्लाउज उतार रही थी।
इस बार मुझको चंदा को देख कर कोई ख़ुशी नहीं हो रही थी।
वो जल्दी से आई, उसने मेरे लंड को मुंह में ले लिया और वो कुछ ही देर में पूरा खड़ा हो गया।
मैं बिस्तर पर लेट गया और उसको इशारे से अपने ऊपर आने को कहा।
वह जल्दी से आई और मेरे लौड़े के ऊपर बैठ गई, लंड को चूत में डाल दिया।
उसकी चूत एकदम गीली और भट्टी के समान तप रही थी, वो मुझ को चूम भी रही थी और एक ऊँगली से अपनी चूत भी रगड़ रही थी। पांच मिनट की चुदाई के बाद वो छूट गई और नीचे लेट गई।
लेकिन मैंने उसको घोड़ी बना कर चोदना शुरू किया।
एक हाथ से उसके गोल गोल उरोजों को मसल रहा था और दूसरी और उसके मोटे चूतड़ों को हल्के हल्के हाथ से मार रहा था। शायद हाथ की मार से उसको बहुत आनन्द आ रहा होगा क्यूंकि वो फिर झड़ गई।
अब मैंने अपनी धक्कों की स्पीड बहुत तेज़ कर दी और उसकी कमर को पकड़ कर मैं उसको फुल स्पीड से धक्के मार रहा था।तभी मैंने महसूस किया कि मेरा फव्वारा भी छूटने वाला है, मैंने लौड़ा पूरा निकाल कर फिर ज़ोर से धक्का मारा और उसको चंदा की बच्चेदानी के अंदर डाल कर मैंने अपना फव्वारा छोड़ दिया।
जब गर्म पानी चंदा की बच्चेदानी में गया तो उसने गांड एकदम ऊपर कर दी और वैसे ही गांड ऊपर करके लेट गई। उसकी कोशिश थी कि वीर्य की एक बूँद भी नीचे न गिरे।
मैं उसको वैसे ही छोड़ कर बाहर आ गया जहाँ चम्पा और गंगा बैठी थी।
चम्पा को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन गंगा की आँखें फटी की फटी रह गई। मेरे 7 इंच के लंड को देख कर शायद वो एकदम हैरान रह गई। मेरा लंड अभी भी हवा में लहरा रहा था।
मैं चम्पा से बोला- एक लेमन मेरे लिए खोल दो और तुम सब को भी पिला दो।
और सोफे पर लुढ़क गया।
चम्पा और गंगा लेमन पीती हुई मेरे पास आ गई। चम्पा मेरे लंड को तौलिये से साफ़ करने लगी और गंगा को मेरे पसीने को सुखाने के लिए इशारा किया।
तभी चंदा कपड़े पहन कर वहाँ आई और चम्पा ने उसको समझाया- देख चंदा, छोटे मालिक कुछ दिनों में शहर चले जाएंगे। यह तेरी आखरी चुदाई है। इसके बाद तू अपने आप कुछ कर, वो तेरी मर्ज़ी है। अब तू जा, मैं और गंगा बाद में आती हैं।
उसके जाने के बाद चम्पा मेरे लंड के साथ खेलने लगी और उसके इशारे पर गंगा भी मेरे अंडकोष को हाथों में लेकर मसलने लगी।गंगा को ध्यान से देखा तो वो एक बहुत सीधी साधी लड़की लगी, दिखने में वो काफी साधारण लग रही थी।
गौर से देखा तो उसका चेहरा काफी दर्द लिए हुए था। जिसका पति उसको छोड़ गया हो, उसके मन और तन की क्या झलक दिख सकती है सिवाए कि वो दोनों ही उदासी से भरे होंगे।
उसको देखकर मेरे मन में यह इच्छा जागृत हुई कि इस बेसहारा लड़की की मदद ज़रूर करनी चाहये। मैंने उससे पूछा- कब तेरी शादी हुई थी?
वो बोली- 4 साल हो गए और सिर्फ एक साल मेरे साथ रह कर मेरा पति मुंबई चला गया और फिर लौट कर ही नहीं आया। 6 महीने पहले उसका एक साथी वापस आया और उसने बताया कि उसने वहाँ दूसरी शादी कर ली है और उसके 2 बच्चे भी हैं।
यह कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया।
चम्पा ने उसको चुप कराया और फिर वो उसके कपड़े उतारने लगी।
उस का ब्लाउज उतारते ही मेरा लंड एकदम खड़ा हो गया। जब उसकी धोती और पेटीकोट उतरा तो वो एक कुंवारी लड़की की तरह लग रही थी, ऐसा मुझ को लगा।
उसकी चूत पर बहुत ही घने बालों का छाता बना हुआ था और उसके चूतड़ भी छोटे लेकिन गोल थे। उस मम्मे भी किसी कुंवारी लड़की की तरह ही थे, छोटे और गोल और सॉलिड थे।
जीवन में पहली बार एक कुंवारी लड़की की तरह दिखने वाली लड़की को देखा था। इससे पहले मेरे निकट आई सारी औरतें भरे जिस्म वाली थीं जिन के उरोज और नितम्ब काफी बड़े और गोल होते थे, वो काफी चुदी और मौज मस्ती कर चुकी औरतें थीं।
चम्पा बोली- छोटे मालिक कैसी है यह गंगा?
मैं बोला- यह तुम सबसे अलग लगती है, यह ऐसे लगती है जैसे कुंवारी हो अभी!
चम्पा बोली- सही कहा आपने, बेचारी बहुत ही कम चुदी है यह!
‘फिर तो चुदाई का अलग ही मज़ा आएगा। क्यों गंगा, तुम तैयार हो क्या?’
वो शर्मा गई और हाँ में सर हिला दिया।
‘चम्पा कुछ नई तरह चुदाई करते हैं आज। तुम बताओ कैसे करें नए तरह से?’
चम्पा कुछ सोचते हुए बोली- ऐसा करते है कि गंगा को दुल्हन की तरह से सजाते हैं और फिर आप इसका घूँघट उठा कर सुहागरात वाला सारा कार्यक्रम करना।
‘वाह चम्पा, क्या आईडिया है लेकिन आज तो संभव नहीं हो सकता। उसके लिए तैयारी करनी पड़ेगी। आज क्या करें यह बताओ?’
वो चुप रही तब मैं बोला- चम्पा, आज हम तीनों चुदाई करते हैं, पहले गंगा को चोदते हैं हम दोनों फिर तुझको चोदते हैं हम दोनों।
क्यों कैसी रही यह?
‘मैं कैसे कर सकती हूँ छोटे मालिक? मेरा 5वाँ महीना चल रहा है। मुझको खतरा है, आप गंगा के साथ करो न, बेचारी दो साल से नहीं चुदी है इस की चूत।’
गंगा बोली- खतरा तो है, अगर छोटे मालिक तुम को पूरे जोश से चोदेंगे तो! वो तुझको बहुत धीरे और प्यार से चोदेंगे। क्यों छोटे मालिक?
‘हाँ बिल्कुल!’ मैं बोला।
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