RE: Porn Hindi Kahani मेरा चुदाई का सफ़र
पहले चम्पा ने मुझ को मुंह से लेकर लंड तक चूमा और फुलवा मेरे खड़े लंड से खेलती रही।
थोड़ी देर बाद फुलवा ने मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। मैं एकदम से बिफर गया क्यूंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था, मुझ को लगा कि मेरा लंड फट जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और तब चम्पा मेरे लंड के ऊपर आ गई और मेरे खड़े लंड को हाथ से चूत में डाल दिया और फिर आहिस्ता आहिस्ता ऊपर से नीचे धक्के मारने लगी।
उसकी चूत से टपक रहा रस मेरे लंड और अंडकोष पर गिर रहा था, मैं भी नीचे से धक्के का जवाब धक्के से दे रहा था। फुलवा मेरी छाती के निप्पलों को चूस रही थी और हम तीनों ही चुदाई में मस्त थे।
तभी चम्पा ने धक्के मारना तेज़ कर दिया और फिर उसने आखरी एक धक्का ज़ोर से मारा और वो मेरे ऊपर पसर गई, उसका रस पूरी तरह से मेरे ऊपर फैल गया और उसके उरोज मेरी छाती में दब गए।
फुलवा ने प्यार से चम्पा को मेरे ऊपर से हटाया और बिस्तर पर लिटा दिया। और फिर वो अपनी मोटी गांड को लेकर मेरे लंड के ऊपर बैठ गई और जब लंड उसकी चूत में पूरा चला गया तो वह भूखी शेरनी की तरह से धक्के मारने लगी और जल्दी जल्दी ऊपर नीचे होने लगी।
मैं उसकी धक्के की लय को समझ पाता तब तक वो भी झड़ गई और हांपते हुए मेरे ऊपर पसर गई।
दो दो चूतों से निकला रस मेरे ऊपर फैल गया और उस रस से बहुत मादक सुगंध आ रही थी।
सारी रात यही क्रम चलता रहा, कभी चम्पा ऊपर और कभी फुलवा ऊपर! दोनों कई बार छूटी और मैं भी 2 बार छूट गया, दोनों में एक एक बार!
सुबह हुई तो हम तीनों मस्त नींद में थे लेकिन चम्पा सजग थी और टाइम पर उठ कर फुलवा को लेकर चली गई और जब मेरी चाय ले कर आई तो पलंग की चादर की हालत देख कर उसने झट चादर बदल दी और बोली कि इसको वो खुद धोएगी क्यूंकि चादर पर ढेरों चूत का रस और वीर्य फैला था।
चम्पा की होशियारी के कारण हमारा यह खेल निर्विघ्न चलता रहा।
फुलवा को गर्भ ठहर गया
अब ढलती उम्र में कभी कभी सोचता हूँ कि यह कैसे संभव हुआ कि मेरी हरकतों को बारे में मेरे माँ और पिता को कभी कोई खबर नहीं लगी.
यह सब शायद पहले कम्मो और बाद में चम्पा की होशियारी के कारण संभव हुआ। दोनों बहुत ही सतर्क रहती थी कि कभी भी हवेली में काम करने वाला नौकर या नौकरानी के मन में उठ रहे संशय को फ़ौरन दबा दिया जाये।
चम्पा का कहना था कि वो समय समय पर सब को यही कहती थी कि छोटे मालिक रात को बहुत डर जाते हैं तो किसी का उनके साथ सोना बहुत ज़रूरी था। यह कहानी इतनी प्रचलित कर दी गई कि कम्मो और फिर चम्पा का मेरे कमरे में सोना एक साधारण बात बन गई और छोटे मालिक की भलाई के लिए ही मालकिन ने यह उचित समझा है।
और फिर छोटे मालिक एक सीधे साधे लड़के हैं और उनको दुनिया दारी का कुछ भी ज्ञान नहीं।
इस बात को मेरे कमरे में रहने वाली सारी नौकरानियों के दिल में बिठा दी जाती थी और अपने शारीरिक सुख को जारी रखने के लिए ये बातें वो बार बार दोहराती थीं।
उधर मैं भी कम्मो चम्पा और अब फुलवा को बिना मांगे थोड़ा बहुत धन दे दिया करता था। जैसे कम्मो को हर महीने 100 रुपया देता था जो उसकी पगार के अलावा होता था। इसी तरह चम्पा और अब फुलवा को भी इतने ही पैसे हर महीने दे दिया करता था।
मेरी मम्मी हर महीने मुझको हज़ार रुपया जेब खर्चे के लिए देती थी और मैं जहाँ तक हो सके इन लोगों की मदद कर दिया करता था। यही हाल स्कूल में भी था, मैं हर एक दोस्त की मदद कर दिया करता था, वो सब मेरे अहसानों तले दबे रहते थे और मेरा बड़ा आदर करते थे।
शायद यही आदत मुझ को कष्टों से बचा लेती थी।
अब हर रात को हम तीनों चुदाई का यह खेल खेलते थे। कभी चम्पा नीचे होती थी और मैं उसके ऊपर और फुलवा मेरे ऊपर।
चम्पा ने नीचे से मारा गया हर धक्का मेरे ऊपर लेटी फुलवा मुको धक्का मार कर जवाब देती थी। नीचे से चम्पा और ऊपर से फुलवा के धक्कों के कारण चम्पा जल्दी ही झड़ जाती और तब फ़ोरन चम्पा अपनी जगह फुलवा को दे देती और मैं फिर उन दोनों के बीच में ही रहता।
जब दो दो बार दोनों झड़ गई तब मेरा एक बार फ़व्वारा छूटा लेकिन मैं अपना लंड फुलवा की चूत में ही डाले लेटा रहा।
मेरा लंड उसकी चूत में पूरा खड़ा था और वो धीरे धीरे नीचे से धक्के मारती रही। चम्पा एक हाथ से मेरे अंडकोष पकड़ रही थी और दूसरे की ऊँगली मेरी गांड में डाल रखी थी। उन दोनों के ऐसा करने से मुझ को बड़ा आनन्द आ रहा था।
और फिर एक दिन हम तीनों आसमान में उड़ते हुए ज़मीन पर आ गिरे।
उस रात मैं उन दोनों को चुदाई का नया तरीका सोच रहा था की वो दोनों मुंह लटकाये कमरे के अंदर आई।
मैंने पूछा- क्या बात है?
दोनों चुप रहीं और फिर मेरे दोबारा पूछने पर चम्पा बोली- फुलवा को गर्भ ठहर गया है।
‘गर्भ? यह कैसे हुआ?’
‘हम जो हर रात को अंदर जो छुटाती थी उसी कारण हुआ है शायद?’
‘तुमको कैसे पता है कि यह गर्भ ही है?’
‘दो महीने से फुलवा को माहवारी नहीं हुई, इससे पक्का है कि वो गर्भवती है।’
मैं घबरा गया और घबराहट में कुछ कह नहीं पाया।
चम्पा मेरी हालत समझ रही थी और प्यार से बोली- सोमू, तुम घबराओ नहीं, हम इसका कोई उपाय ढूंढ निकालेंगी।
उस रात इस बुरी खबर के बाद किसी का भी चुदाई का मन नहीं किया।
अगले दिन चम्पा ने मुझको दिलासा दिलाई और कहा- मैं इस मुसीबत से छुटकारे के बारे में गाँव की पुरानी दाई से बात करूंगी।
अगले दिन स्कूल से वापस आने पर चम्पा ने बताया- दाई कहती है कि वो गर्भ गिरवा देगी, बस कुछ रुपये देने होंगे उसको!
मैंने पूछा- कितने मांग रही है?
‘100 रूपए में काम हो जाएगा।’
मैंने झट अलमारी से 100 रुपये निकाल कर चम्पा को दे दिए। चम्पा मम्मी से एक दिन की छुट्टी ले गई और साथ में फुलवा को भी ले गई।
मेरा सारा दिन बेचैनी से गुज़रा।
अगले दिन चम्पा आई और आते ही बोली- काम हो गया छोटे मालिक, आप घबराएँ नहीं।
!
मैंने चैन की सांस ली और उस रात मैंने और चम्पा ने जम कर चुदाई की, 4-5 बार चम्पा का छुटाने के बाद हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गए।
कुछ दिनों बाद फुलवा फिर वापस आ गई।
तब मैंने और चम्पा ने यह फैसला लिया कि अब से मैं फुलवा की चूत में नहीं छुटाऊँगा लेकिन चम्पा की चूत में मैं अंदर ही छुटाऊंगा क्यूंकि उसमें शायद गर्भ नहीं ठहरता।
हम ऐसा ही करते रहे और दोनों को मैं पूरा यौन आनन्द देता रहा और दोनों के चेहरे काम तृप्ति के कारण खूब चमक रहे थे।
करीब 6 महीने शान्ति से और मौज मस्ती में गुज़रे लेकिन फिर एक और मुसीबत आ गई।
एक दिन चम्पा ने बताया कि उसका पति लौट कर आ रहा है एक हफ्ते में!
‘अब कैसे होगा?’ यही प्रश्न हम तीनों के दिमाग में बार बार उठने लगा।
चम्पा के जाने के बारे में सोचने से मैं काफी उदास हो गया था।
वो 7 दिन हमने धुआंधार चुदाई में गुज़ारे। जैसा कि तय किया गया, सारी चुदाई का केंद्र चम्पा को ही बनाया गया। फुलवा और मैंने चम्पा को पूरा प्रेम दिया।
उसकी चुदाई की हर इच्छा को पूरा किया, कभी ऊपर से कभी घोड़ी बना कर और कभी साइड से और कभी उसकी टांगों के बीच बैठ कर चम्पा की चुदाई की, मैंने और फुलवा ने उस काम में मेरा पूरा साथ दिया।
और फिर चम्पा एक दिन नहीं आई और फुलवा ने बताया कि उसका पति आ गया है और वो अब शायद नहीं आ पायेगी।
मैं चम्पा को बहुत मिस कर रहा था, चाहे फुलवा बाकायदा रोज़ आती थी, मेरी सेवा भी बहुत करती थी लेकिन चम्पा का साथ कुछ और ही रंग का था।
फुलवा मुझको रोज़ चम्पा के ख़बरें देती थी।
चम्पा के गर्भवती होने की समस्या
और फिर चम्पा एक दिन नहीं आई और फुलवा ने बताया कि उसका पति आ गया है और वो अब शायद नहीं आ पायेगी।
मैं चम्पा को बहुत मिस कर रहा था, चाहे फुलवा बाकायदा रोज़ आती थी, मेरी सेवा भी बहुत करती थी लेकिन चम्पा का साथ कुछ और ही रंग का था।
फुलवा मुझको रोज़ चम्पा के ख़बरें देती थी।
एक दिन उसने बताया कि चम्पा को उसके पति ने शराब पी कर बहुत मारा और उसके शरीर में बहुत चोटें आई हैं।
मैं बहुत व्याकुल हो गया यह सुन कर… लेकिन अपने को कुछ करने में बिल्कुल असमर्थ पाता था।
मैंने फुलवा से पूछा- क्यों मारता है वो उसको?
वो बोली- सुना है कि वो उस को बाँझ बुलाता है। कह रहा था एक दो महीने में अगर उसके बच्चा होने के आसार नहीं हुए तो वो दूसरी शादी कर लेगा। अब बताओ चम्पा क्या करे?
मैंने कुछ सोचते हुए कहा- अगर चम्पा को मैं चोदू हर रोज़ तो हो सकता है कि चम्पा को गर्भ ठहर जाए जैसे कि तुमको हो गया था।
‘लेकिन आप तो चम्पा को रोज़ ही चोदते थे न? फिर उसके तो बच्चा नहीं ठहरा?’
‘फुलवा, मैं चम्पा को चोदते टाइम अक्सर बाहर छूटा लेता था, बहुत कम ही अंदर छुटाया था। तुम एक काम करो, चम्पा से पूछो कि उसका पति कब शहर जाता है?’
उसने कहा- आज ही पूछती हूँ! वैसे भी मेरी माहवारी शुरू हो गई है सो तुम्हारे साथ चुदाई तो हो नहीं सकती। कल दोपहर को मिलते हैं।
अगले दिन जब स्कूल से वापस आया तो वो बोली- चम्पा कह रही थी की कल शायद 2-3 दिनों के लिए शहर जा रहा है, चम्पा का पति। अब बोलो, क्या करना है आगे?
मैंने कहा- हमारी एक बड़ी अच्छी छोटी सी कुटिया है जंगल में… जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कल तुम दोपहर को चम्पा को लेकर आ जाना वहाँ, बाकी बात वहीं करेंगे। और देखो वो जगह यहाँ से सिर्फ 2 मील है और तुमको वहाँ का रास्ता हवेली का दरबान बता देगा। ठीक है?
स्कूल से आकर खाना खाने के बाद मैं अपनी साइकिल पर बैठ कर 10 मिनट में वहाँ पहुँच गया और चाबी से दरवाज़ा खोल कर अंदर आ गया।
कॉटेज बोलते थे हम सब इस सुन्दर सी कुटिया या कॉटेज को, और जिसमें कभी कभी पापा जब अपने मित्रों के साथ ऐश मौज करने की इच्छा होती तो वो इस कॉटेज में आ जाते थे जहाँ सारे इंतेज़ाम पहले से किये रहते थे।
यह बड़ी एकांत जगह थी और पूरे साज़ो सामान से सजी थी। एक ड्राइंग रूम और दो बैडरूम थे जिनमें सुन्दर सोफे और पलंग बिछे थे। पीने के लिए हर किस्म की शराब वहां रखी थी लेमन सोडा और भी कई पीने के शरबत रखे थे।
यहाँ दिन रात चौकीदार रहता था जिसको मैंने पटाया हुआ था, उसको 10 रुपये दे देता था यदा कदा और वो उसी में खुश रहता था और मेरे लिए छोटे मोटे काम कर दिया करता था।
उससे मैंने पहले ही थोड़ी सी बर्फ मंगवा के रखी थी आर 3-4 लेमन सोडा की बोतलें ठंडी करने के लिए रख दी थी।
आधे घंटे बाद चम्पा और फुलवा दोनों आई।
जैसे ही चम्पा अंदर घुसी और दरवाज़ा बंद हुआ मैंने झपट कर चम्पा को बाहों में बाँध लिया और लगातार उसको चूमता रहा और जल्दी से उसकी धोती उठा दी और अपना लौड़ा जो पूरी तरह से खड़ा था उसकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा।
चम्पा मेरे उतावलेपन को समझती थी, वो स्वयं ही पलंग पर लेट गई और अपनी धोती ऊपर उठा दी और अपने मम्मे ब्लाउज से निकाल दिए और मैंने बिना देरी के लंड उसमें डाल दिया और तेज़ तेज़ धक्के मारने लगा।
उस वक्त मैं कम्मो के सिखाये हुए सारे सबक भूल गया और चम्पा को चोदने में एकदम लीन हो गया और जब चम्पा का पहली बार छूटा तब मुझ को होश आया और मैंने अपनी स्पीड नार्मल कर दी और जब चम्पा दूसरी बार छूटी तो मैं उसके ऊपर से उतर कर उस के पलंग पर लेट गया।
तब चम्पा मुझको बेहद प्यार से चूमने लगी।
जब हम दोनों थोड़ा संभले तो मैंने बात छेड़ी- चम्पा, अब क्या करें तुम्हारे पति का?
वो रोने लगी और अपने पति को बहुत बुरा भला कहने लगी।
तब मैंने उसको रोका और कहा- देखो चम्पा, रोने से काम नहीं चलेगा, हमको यह सोचना है कि इस मुश्किल का हल क्या है। सच बताओ क्या तुम अपने पति को छोड़ना चाहती हो?
वो बोली- छोड़ कर जाऊँगी कहाँ और कैसे जिऊँगी? यह नहीं हो सकता।
‘अगर तुम्हारे बच्चा पैदा हो जाता है तो?’
‘तो शायद मेरा पति बदल जाए और मेरी इज़्ज़त करने लगे?’
‘तो प्रश्न है तुम्हारा बच्चा कैसे पैदा हो? क्या कभी तुमने डॉक्टर को दिखाया है?’
चम्पा बोली- डॉक्टर? वो क्यों?
‘अरे यह देखने के लिए कि क्या तुम्हारे अंदर कोई खराबी तो नहीं? जिसके कारण तुमको बच्चा नहीं हो रहा।’
‘नहीं कभी नहीं दिखाया डॉक्टर को।’
‘अच्छा कल चलो मेरे साथ, 4 बजे के बाद मैं तुम्हें एक अच्छी सी लेडी डॉक्टर को दिखाता हूँ, वो बता देगी कि तुमको क्या कमी है, बोलो मंज़ूर है?’
‘अच्छा जैसा तुम कहते हो सोमू… फुलवा भी जायेगी मेरे साथ!’
‘ठीक है, कल 4 बजे मुझको बस स्टैंड पर मिलना, ठीक है?’
दोनों ने सर हिला दिया और ठंडी लेमन का मज़ा लेने लगी।
अगले दिन मैंने एक टैक्सी का अरेंजमेंट कर दिया और हम तीनों पास के कसबे में गए जहाँ डॉक्टर का नाम मेरे स्कूल के दोस्त ने पहले ही बता दिया था।
डॉक्टर की फीस देने के बाद वो दोनों तो डॉक्टर के पास चली गई और मैं बाहर बैठा रहा।
एक घंटे बाद वो दोनों बाहर आई और चम्पा और फुलवा दोनों मुस्कराते हुई आई और दोनों एक साथ बोली- डॉक्टर साहिब कहती हैं कि सब ठीक है, चम्पा में कोई खराबी नहीं। और बच्चा कैसे हो इसका भी तरीका बता दिया है। यह भी कहा है कि इसका पति भी अपनी जांच करवाये, हो सकता है उसमें कुछ खराबी हो?
चम्पा बोली- मुझको पक्का यकीन है कि उसमें ही खराबी है। साला घाट घाट का पानी पीने की आदत है उसको तो वो ही ठीक नहीं है।
हम तीनों ख़ुशी ख़ुशी वापस घर आ गए। चम्पा अपने घर चली गई और फुलवा मेरे साथ हवेली में आ गई।
रात को जब फुलवा मेरे कमरे में आई तो उसने खुल कर सारी बात बताई।
फुलवा ने बताया- डॉक्टर साहिबा ने यह भी बताया है की माहवारी के शुरू होने के बाद 10-18 दिन में अगर चुदाई की जाए तो बच्चा अक्सर ठहर जाता है। उन दिनों के पहले और बाद में बच्चा नहीं होता। छोटे मालिक यह बात तो बहुत अच्छी बताई उसने, आगे से हम चुदाई करते हुए इन दिनों में अंदर नहीं छुटाएँगे और बाकी दिनों में अंदर छुटा सकते हैं।
वो बड़ी खुश लग रही थी तो उस रात हमने सारी चुदाई के दौरान अंदर ही छुटाया।
फिर मैं बड़ी बेसब्री से चम्पा की चुदाई का उसके पति द्वारा करने का इंतज़ार करने लगा और फिर फुलवा ने बताया- चम्पा अब ख़ुशी ख़ुशी उसको चूत देती है जिससे वो बड़ा प्रसन हो गया है।
दो महीने गुज़र जाने के बाद भी जब चम्पा गर्भवती नहीं हुई तो हमको यकीन हो गया कि उसके पति में ही खराबी है। लेकिन चम्पा को कैसे गर्भवती बनाएं ताकि उसका पति उसको छोड़ने का विचार छोड़ दे?
उस रात मैंने फुलवा को तरह तरह से चोदा। हर बार से वो पूरी तरह से सखलित हो जाती थी। उसका छूटना अब काफी आम बात हो गया था।
वो लंड को डालते ही छूटना शुरू हो जाती थी और थोड़ी देर धक्के मारने के बाद ही वो ढेर सारा पानी छोड़ते हुए ढीली पड़ जाती थी। लेकिन जब मेरा लंड उसके अंदर ही पड़ा रहता था तो वो शीघ्र ही दुबारा तैयार हो जाती थी।
यह बात ख़ास तौर से उन दिनों में ज्यादा दिखाई देती थी जब उसके गर्भवती होने के दिन होते थे, वो उन दिनों कुछ ज्यादा ही बेशरम हो जाती थी और बार बार लंड अपने अंदर डालने की कोशिश करती थी।
यह देख कर मेरे मन में एक सवाल उठा- क्या चम्पा के साथ भी ऐसा ही होता होगा।
अगली बार जब चम्पा का पति शहर गया तो मैंने चम्पा को कॉटेज में बुला लिया और उसके आते ही उससे पूछा कि माहवारी के बाद कौन सा दिन है उसका?
वो बोली- शायद 10वाँ या 11वा दिन है।
मैंने कुछ कहा नहीं और फ़ौरन उसके कपड़े उतारने लगा और अपना भी पायजामा उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया और उसको भी नंगी कर दिया और फिर मैंने उसको बड़े कायदे से पूरी तरह गरम कर दिया और जब तक उसने हाथ नहीं जोड़े कि अब अंदर डालो लंड को… और नहीं सहा जाता, तब तक मैंने चूत में लंड नहीं डाला।
और जब वो पूरी तरह से गीली हुई चूत को उठा उठा कर मुझ को लंड डालने के लिए कहने लगी, तभी मैंने लंड को चूत के मुँह पर रख कर उसके दाने पर रगड़ा और थोड़ा सा अंदर डाला और चम्पा ने अपने चूतड़ उठा कर पूरा का पूरा अपने अंदर ले लिया और लगी ज़ोर से नीचे से धक्के मारने।
तभी मेरे लंड को महसूस हुआ कि उसके गर्भाशय का मुँह खुलने और बंद होने लगा तो मैंने भी अपनी पिचकारी उसके गर्भ के मुख पर रख पूरी तरह से छोड़ दी और ऐसा लगा कि मेरा लंड उसके गर्भ के मुख में अंदर तक फव्वारा छोड़ रहा है।
चम्पा की आँखें पूरी बंद थी और उसका शरीर ज़ोर ज़ोर से कांप रहा था और उसके चेहरे पर एक मंद मंद मुस्कान छाई हुई थी।
मैंने मन ही मन सोचा कि आज चम्पा ज़रूर पर ज़रूर गर्भवती हो जायेगी।
थोड़ी देर वो ऐसे ही लेटी रही और फिर उसकी टांगें अपने आप ऊपर उठने लगी और एक हाथ चूत के ऊपर रख दिया ताकि वीर्य सारा का सारा अंदर ही रहे और बाहर न निकले।
आधे घंटा तक वो ऐसे ही पड़ी रही।
मैंने पूछा- पति कब वापस आ रहा है?
वो बोली- शायद 2 दिन बाद आयेगा? क्यों पूछ रहे हो?
‘कल भी आ जाना क्यूंकि मुझको लगता है कि तुम आजकल में ज़रूर गर्भवती हो जाओगी और जब पति आ जाए तो रात उससे भी चुदवाना ताकि उस को शक न हो! ठीक है?’
उसने खुश होते हुए सर हिला दिया और लेमन पीकर अपने घर चली गई।
उसके अगले दिन भी चम्पा आ गई और इस तरह चोद कर उसको निहाल कर दिया।
मुझको यकीन था कि चम्पा ज़रूर गर्भवती हो जायेगी।
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