RE: Porn Hindi Kahani मेरा चुदाई का सफ़र
मैंने चूत में उंगली करनी शुरू की वो मस्त हो गई। मैंने पीछे से ही अपने लण्ड का दबाव उसकी चूत पर देना चाहा।
भाभी- राज.. यहाँ नहीं.. तुम्हारे कमरे में चलते हैं.. यहाँ मेरा बेटा जाग जाएगा।
उसे क्या पता था कि उसके बेटे के ना उठने और उसे चोदने का पूरा इन्तजाम मैंने पहले से ही कर रखा है। मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गया और उसे पूरी मस्ती से खुल कर चूमने-चाटने लगा।
भाभी बोली- ओह्ह.. राज तुमने तो मुझे पागल कर दिया है। जब से तुम्हें देखा तुम्हारे जवान लण्ड से चुदना चाह रही थी।
मैंने कहा- भाभी मैं भी आपको चोदना चाहता था.. इसीलिए बार-बार तुम्हारी ब्रा पैन्टी से मुठ्ठ मार रहा था।
भाभी- वो तो मैं पहले दिन से ही समझ गई थी.. इसीलिए अगले बार से बाथरूम में ही छोड़कर जाती थी। पर तुमने हिम्मत बहुत देर में दिखाई।
मैंने कहा- अब तो दिखा दी ना। आज मैं तुम्हें अपने लण्ड पर झूला झुलाऊँगा।
उसने लपक कर मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया। वह खेली-खाई औरत थी इसलिए उसके लण्ड चूसने का अलग ही तरीका था। मुझे लण्ड चुसाने में बड़ा मजा आ रहा था।
भाभी- राज आज बहुत दिनों बाद किसी जवान मर्द का लण्ड मिला है। मैं इसका पूरा रस पीऊँगी।
मैंने उसके सर को पकड़ा और अपने लण्ड को उसके मुँह में आगे-पीछे करने लगा। वो पूरा अन्दर तक लण्ड को ले रही थी। मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाया और वीर्य की धार उसके मुँह में छोड़ दी जिसे वह गटक गई।
फिर उसने मेरे लण्ड को अच्छे से चाट कर साफ भी कर दिया। भाभी माल के चटखारे लेते हुए बोली- राज इतना ज्यादा गरम ताजा अमृत तो बहुत सालों बाद चखने को मिला.. सही में मजा आ गया।
मैंने कहा- भाभी आप चाहो तो ये आपको हमेशा मिल सकता है, बस मेरा खयाल रखते रहना।
भाभी- जब तक मैं यहाँ हूँ.. इस पर मेरा ही अधिकार है.. बर्बाद मत कर देना। चल अब मेरी चूत चाट दे.. बड़ी मचल रही है।
मैंने उसे लिटा कर उसकी चूत पर जीभ चलानी शुरू की.. जो जल्दी ही पानी छोड़ने लगी।
भाभी- राज बस अब और मत तड़फा.. चोद डालो मुझे.. पेल दो मेरी चूत में अपना लण्ड.. इसकी सारी अकड़ निकाल दो आज.. कल से मेरी ये चूत बस तुम्हारे लण्ड की ही फरियाद करे ऐसी चुदाई करो मेरी.. फाड़ डालो मेरी चूत.. आह..
मैंने उसकी दोनों टाँगें अपने कंधे पर रखी.. लण्ड को चूत के दरवाजे पर रखकर एक जोरदार धक्का मारा। वो कराह उठी। उसने कस कर मुझे भींच लिया।
वो बोली- आह्ह.. राज जरा भी रहम मत करना.. बस मुझे चोदते जाना.. आह्ह..
मैं धक्के लगाने लगा।
उसके बेटे की उठने की उम्मीद नहीं थी.. इसलिए हम पूरे जोर और शोर के साथ चुदाई करने लगे। पूरा कमरा उसकी सिसकारियों की आवाज से गूंजने लगा- राज.. आहहह.. आहह.. उफ्फ.. जोर से और जोर से.. फाड़ डालो.. राज आह.. आह.. ओहह आहहहह.. और चोदो औररर.. औरर.. तेज और तेज.. आह्ह.. राज..
वो भी लगातार चूत उछाल-उछाल कर मजे लेने लगी। दोनों को कामोत्तेजक गोली का असर था.. कोई भी थकने का नाम नहीं ले रहा था।
आधे घंटे की कमर-तोड़ चुदाई के बाद वो ढीली पड़ने लगी, उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। थोड़ी देर धीरे-धीरे चूत रगड़ने के बाद वो फिर गरम हो गई और मेरा साथ देने लगी।
इस बार हम दोनों का एक साथ काम हुआ और मैंने जल्दी से लण्ड को चूत में से निकाल कर उसके मुँह में पेल दिया और वहीं सारा वीर्य उढ़ेल दिया जिसे वह चटकारे लेकर पी गई।
मैंने कहा- कैसा लगा भाभी.. आपको अपना किरायेदार पसंद आया कि नहीं.. चूत की खुजली मिटी.. मजा आया या नहीं..
भाभी- बहुत मजा आया.. मुझे किराएदार भी और किराएदार का हथियार भी.. दोनों बहुत पसंद आए।
उस रात मैंने उसे अलग-अलग तरीके से 4 बार चोदा।
उसके बाद तो 15 दिन तक चुदाई का सिलसिला ही चल निकला। वो तो मेरे लण्ड की दीवानी हो गई थी। अब जो वह जब भी दिल्ली आती.. मुझसे चुदवाए बिना नहीं रहती थी। उन्होंने मेरा किराया भी माफ कर दिया था। वो एक बार मेरे से बोली कि उसकी एक सहेली का पति उससे अलग रहता है। वो भी लण्ड की बहुत प्यासी है.. उसको भी मुझसे चुदवाएगी।
दोस्तो यहाँ से ये कहानी मेरे बचपन की तरफ चलेगी
शुरू के दिन
यह कहानी नहीं अपनी आपबीती है।
मेरी उम्र इस वक्त काफी हो गई है लेकिन फिर भी वे पुरानी यादें अभी भी वैसे ही ताज़ा हैं और मेरे ज़हन में वैसे ही हैं जैसे कि कल की बात हो।
यह ऑटोबायोग्राफी लिखने से पहले मैं आपको अपना थोड़ा सा परिचय दे दूँ।
मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में एक बड़े जमींदार के घर में पैदा हुआ था, मैं अपने माता-पिता की एकलौती औलाद हूँ और बड़े ही नाज़ों से पाला गया हूँ।
ढेर सारे मिले लाड़ प्यार के कारण मैं एक बहुत ही ज़िद्दी और झगड़ालू किस्म के लड़के के रूप में जाना जाता था।
एक बहुत बड़ी हवेली में हमारा घर होता था। मुझ आज भी याद है कि हमारे घर में दर्जनों नौकर नौकरानियाँ हुआ करते थे जिनमें से 3-4 जवान नौकरानियाँ सिर्फ मेरे काम के लिए हुआ करती थी। यह सब हमारे खेतों पर काम करने वालों मज़दूरों की बेटियाँ होती थी। इनको भर पेट भोजन और अच्छे कपड़े मिल जाते थे तो वे उसी में खुश रहती थीं।
यहाँ यह बता देना ज़रूरी है कि मैं जीवन की शुरुआत से ही औरतों की प्रति बहुत आकर्षित था। मेरी आया बताया करती थी कि मैं हमेशा ही औरतों के स्तनों के साथ खेलने का शौक़ीन था। जो भी औरत मुझको गोद में उठाती थी उसका यही कहना होता था कि मैं उनके स्तनों के साथ बहुत खेलता था।
और यही कारण रहा होगा जो आगे चल कर मैं सिर्फ औरतों का दास बन गया, मेरा सारा जीवन केवल औरतों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने में बीत गया।
मेरा जीवन का मुख्य ध्येय शायद स्त्रियों के साथ काम-क्रीड़ा करना ही था, यह मुझको अब बिल्कुल साफ़ दिख रहा है क्योंकि मैंने जीवन में और कुछ किया ही नहीं… सिर्फ स्त्रियों के साथ काम क्रीड़ा के सिवाये!
जैसा कि आप आगे मेरी जीवन कथा में देखेंगे कि मैं अल्पायु में ही काम वासना में लीन हो गया था और उसका प्रमुख कारण मेरे पास धन की कोई कमी न होना था और मेरे माँ बाप अतुल धन और सम्पत्ति छोड़ गए थे कि मुझ को जीवन-यापन के लिए कुछ भी करने की कोई ज़रुरत नहीं थी।
ऐसा लगता है कि विधि के विधान के अनुसार मेरा जीवन लक्ष्य केवल स्त्रियाँ ही थी और इस दिशा में मेरी समय समय पर देखभाल करने वाली नौकरानियों को बहुत बड़ा हाथ रहा था। जवान होने तक मेरे सारे काम मेरी नौकरानियाँ ही किया करती थी, यहाँ तक कि मुझे नहलाना आदि भी…
मुझे आज भी याद है कि जब मुझको मेरी आया नहलाती थी तो मेरे लंड के साथ ज़रूर खेलती थी। वह कभी उसको हाथों में लेकर खड़ा करने की कोशिश करती थीं।
उस खेल में मुझ को बड़ा ही मज़ा आता था। वह सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर ही मुझको नहलाती थीं और नहाते हुई छेड़छाड़ में कई बार मेरे हाथ उनके पेटीकोट के अंदर भी चले जाते थे और उनकी चूत पर उगे हुए घने बाल मेरे हाथों में आ जाते थे।
एकभी कभार मेरा हाथ उनकी चूत के होटों को भी छू लेता था जो कई बार पानी से भरी हुई होती थी, एक अजीब चिपचापा रस मेरी उँगलियों पर लग जाता था जो कई बार मैंने सूंघा था। बड़ी ही अजीब मादक गंध मुझ को अपने उन हाथों से आती थी जो उन लड़कियों की चूत को छू कर आते थे। उनकी गीली चूतों का रहस्य मुझे आज समझ आता है।
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उन्हीं दिनों एक बहुत ही शौख और तेज़ तरार लड़की मेरे काम के लिए रखी गई थी, वह होगी 18-19 साल की और उसका जिस्म भरा हुआ था, रंग भी काफी साफ़ और खिलता हुआ था।
वैसे रात को मेरी मम्मी मेरे साथ नहीं सोती थी और कोई भी बड़ी उम्र की काम वाली को मेरे साथ सोना होता था। वह मेरे कमरे में नीचे ज़मीन पर चटाई बिछा कर सोती थीं।
जब से वह नई लड़की मेरा काम देखने लगी तो मेरा मन उस के साथ सोने को करता था। उस लड़की का नाम सुंदरी था और वह अपने नाम के अनूरूप ही थी।
इस लिए मैं नहाते हुए उससे काफी छेड़ छाड़ करने लगा। अब मैं उसकी चूत को कभी कभी चोरी से छू लेता था और उसकी चूत के बालों में उँगलियाँ फेर देता लेकिन वह भी काफी चतुर थी। वह अब अपना पेटीकोट कस कर चूत के ऊपर रख लेती थी ताकि मेरी उंगली या हाथ उसके पेटीकोट के अंदर न जा सके लेकिन मैं भी छीना झपटी में उसके उरोजों के साथ खेल लिया करता था।
अक्सर उस के निप्पल उसके पतले से ब्लाउज में खड़े हो जाते थे और मैं उनको उंगली से छूने की भरसक कोशिश करता था।
यह सब कैसे हो रहा था, यह आज तक मैं समझ नहीं पाया। जबकि मेरे दोस्त खूब खेल कूद में मस्त रहते थे, मैं चुपके से नौकरानियों की बातें सुनता रहता या फिर उनसे छेड़ छाड़ में लगा रहता।
यह बात मेरी माँ और पिता से छुपी न रह सकी और वे मुझको हॉस्टल में डालने के चक्कर में पड़ गये क्योंकि उनको लगा कि मैं नौकरानियों के बीच रह कर उनकी तरह की बुद्धि वाला बन जाऊँगा।
लेकिन मैं भी झूठ मूठ की बेहोशी आने का बहाना करने लगा। मैं अक्सर रात को डर कर चिल्लाने लगता और यह देख कर मेरे माँ बाप ने मुझको हॉस्टल में डालने का विचार रद्द कर दिया।
जो सुन्दर लड़की मेरे काम के लिए रखी गयी थी वह काफी होशियार थी और वह मेरी उच्छशृंख्ल प्रकृति को समझ गई थी।
एक दिन वो कहने लगी- कितना अच्छा होता अगर मैं आपके कमरे में ही सो पाती।
मैंने उससे पूछा कि यह कैसे हो सकता है तो वह बोली- तुमको रात में बड़ा डर लगता है ना?
मैंने कहा- हाँ!
तो वह बोली- मम्मी से कहो कि सुंदरी ही तुम्हारे कमरे में सोयेगी।
बस उस रात मैंने काफी डर कर शोर मचाया और मम्मी को मेरे साथ सोना पड़ा लेकिन अगले दिन ही उन्होंने एक बहुत बुड्ढी सी नौकरानी को मेरे कमरे में सुला दिया।
हमारी योजना फ़ेल हो गई लेकिन सुंदरी काफी चतुर थी, उसने बुड्ढी को तंग करने का उपाय मुझ को सुझाया और उसी ही रात बुड्ढी काम छोड़ कर चली गई।
हुआ यूं कि रात को एक मेंढक को लेकर मैंने बुड्ढी के घागरे में डाल दिया जब वह गहरी नींद में सोयी थी। जब मेंढक उसके घगरे में हलचल मचाने लगा तो वह चीखती चिल्लाती बाहर भाग गई और उस दिन के बाद वापस नहीं आई।
तब मैंने मम्मी को कहा कि सुंदरी को मेरे कमरे में सुला दिया करो और मम्मी थोड़ी न नकुर के बाद मान गई।
दिन भर मैं स्कूल में रहता था और दोपहर को लौटता था। मेरे साथ के लड़के बड़े भद्दे मज़ाक करते थे जिनमें चूत और लंड का नाम बार बार आता था लेकिन मैं उन सबसे अलग रहता था।
मेरे मन में औरतों को देखने की पूरी जिज्ञासा थी लेकिन कभी मौका ही नहीं मिलता था।
जब से सुंदरी आई थी, मेरी औरतों के बारे में जानकारी लेने की इच्छा बड़ी प्रबल हो उठी थी। यहाँ तक कि मैं मौके ढूंढता रहता था ताकि में औरतों को नग्न देख सकूँ।
इसीलिए साइकिल लिए मैं कई बार गाँव के तालाब और पोखरे जाता रहता था लेकिन कभी कुछ दिखाई नहीं दिया।
एक दिन मैं साइकिल पर यों ही घूम रहा था कि मुझको कुछ आवाज़ें सुनाई दी जो एक झाड़ी के पीछे से आ रही थी।
मैंने सोचा कि देखना चाहिये कि क्या हो रहा है।
थोड़ी दूर जाकर मैंने साइकिल को एक किनारे छुपा दिया और खुद धीरे से उसी झड़ी की तरफ बढ़ गया।
झाड़ी के एक किनारे से कुछ दिख रहा था। ऐसा लगा कि कोई आदमी और औरत है उसके पीछे, झाड़ी को ज़रा हटा कर देखा तो ऐसा लगा एक आदमी एक औरत के ऊपर लेटा हुआ है और ऊपर से वो धक्के मार रहा है और औरत की नंगी टांगें हवा में ऊपर लहरा रही थीं।
मुझको कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। फिर भी लगा कि कोई काम छिपा कर करने वाला हो रहा है यहाँ।
मैं अपनी जगह पर चुपचाप खड़ा रहा और देखता रहा।
थोड़ी देर बाद वो आदमी अपनी धोती को ठीक करते हुए उठा और औरत की नंगी टांगों और जांघों पर हाथ फेरता रहा था।
तभी वो औरत भी उठी और अपनी धोती ठीक करती हुई खड़ी हो गई। मैं भी वहाँ से खिसक गया, साइकिल उठा कर घर आ गया।
और यहाँ से शुरू होती है मेरी और सुंदरी की कहानी।
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