RE: Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार
हम दोनों कुछ शयन कक्ष से लगे स्नानगृह में। गुसलखाने में बुआ ने फुसफुसा कर कहा , "नेहा बिटिया अपने बुआ को
अपना मीठा प्रसाद नहीं दोगी जिसके स्वाद के तुम्हारे बड़े मामा पुजारी बन गए हैं। "
मैं बुआ का तात्पर्य शर्मा गयी , "जरूर बुआ पर मुझे बिना रोके-टोके पूरा प्रसाद देंगीं। " मैं हल्की से मुस्कान शर्त रख
दी।
बुआ ने भी मुस्करा कर हामी भर दी। पहले मेरी बारी थी। बुआ ने बिना एक बूँद खोये मेरी पूरी सारा सुनहरी गर्म भेंट
सटक ली। उनके चेहरे पर एक अनोखी संतुष्टी थी। मैंने भी नदीदेपन से बुआ की गीली खुली चूत पर मुंह लगा कर
उनका मोहक सुनहरा प्रदार्थ बिना हिचके घूंट घूंट लिया।
फिर हम दोनों ने एक दुसरे को नहलाया। बुआ ने एक बार फिर से अपनी उँगलियों से मुझे झाड़ दिया।
नाश्ते की मेज पर हमेशा की तरह चुहल बाजी एक शुरू हुई तो धीमे होने का नाम ही नहीं लिया। सबकी बारी लगी।
नेहा नंबर आया तो बुआ ने मोर्चा संभाला, "भाई नेहा ने नानाजी का भरपूर ख्याल रखने का वायदा किया है। "
दादाजी ने हँसते हुए कहा ,"इसका मतलब है नेहा बेटी अपने दादा जी को बिलकुल भूल जाएगी ?"
बुआ जी ने हंस कर कहा , "पापाजी नेहा बहुत समझदार है। मुझे विश्वास है वो आपका ख्याल जितना रखेगी। नहीं
नेहा बेटी? "
मेरे शर्म से लाल मुंह को देख कर सब हंस दिए।
उसके बाद सबने टीम्स बना कर टेनिस का टूर्नामेंट खेलने का निर्णय बनाया। अंतिम चरण [फाइनल] में मैं और छोटे
मामा की टीम का मम्मी और नानाजी की टीम से मुकाबला था। मैं और छोटे मामा बड़ी मुश्किल से मम्मी और नानाजी
पाये।
हम सब पसीने से भीग गए थे। नानाजी ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया। जब मैं खिलखिला कर हंस दी और बोली
,"नानू अब मैं छोटी बच्ची तो नहीं हूँ। "
नानाजी ने मेरे पसीने से भीगे शरीर को अपने उतने ही गीले शरीर से कस कर बोले ," नेहा बेटी नानू और दादू के
लिए तो तुम हमेशा बच्ची हे रहोगी। पर हमें कब दिखाओगी की तुम कितनी बड़ी हो गयी हो ?"
नानाजी के मीठे छुपे तात्पर्य से न चाहते हुए भी शर्मा गयी। मैंने अपना मुंह नानू की गर्दन में से कहा , "जब आप चाहें
नानू। "
नानू ने मेरी पीठ सहलाते हुए कहा , "आज रात्रि के भजन के बाद हम दोनों तुम्हारा पूराना खेल क्यों नहीं खेलते ?"
मैं और शर्म से लाल हो गयी। नानाजी मेरे बचपन के जिस खेल का ज़िक्र कर रहे थे उसका नाम 'डंडी कहाँ छिपायी '
था। यह खेल गोल छोटी डंडी को बोर्ड के छेद में छिपा कर दुसरे खिलाड़ी के अनुमान के ऊपर आधारित था। जब सही
अनुमान होता तो उस छेद पर लिखे अंकों को उस खिलाड़ी खाते में जोड़ दिया जाता था। यह खेल बहुत छोटे बच्चों
के लिए बना था जिस से उन्हें गड़ना आ जाए। नानू और दादू जब मैं तीन चार साल थी तो हम वो खेल बहुत खेलते थे।
"जैसा आप चाहें नानाजी, " सांसें तेज हों गयीं। मैंने नानू को कस कर पकड़ लिया।
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दोपहर के भोजन के ठीक उपरांत डैडी और दोनों मामा के गहरे दोस्त का फोन आया। कुछ मेरी सहेली शानू फोन पर
उलाहने दे रही थी। शानू, यानि शहनाज़, मुझसे एक साल छोटी थी। जो परिवर्तन मुझमे किशोरावस्था के सालों ने
किया था वो शानू में सिर्फ दो सालो में आ गया था।
"नेहा साली आप की शादी में नहीं आयी इम्तेहान के वजह से पर अब तो आ जा। आपा और भैया मधुमास [हनीमून] से
वापस आ गए हैं। नसीम दीदी तुझे कितना हैं। " शानू मेरी गिनी चुनी दोस्तों में से है जो खुल कर मुझे गालियां दे
सकती है।
"शानू, यार मेरा मन भी बहुत कर रहा है पर आज शाम को मुझे ज़रूरी काम है। मैं कल सुबह आ जाऊंगीं। " मैंने
बिना सोचे नानू के साथ हुए वायदे को अत्यंत महत्व दे दिया।
"अबे साली तू अब मेरे दिल और दीदी के दिल को तोड़ रही है। ज़रूरी काम है यह। मैं कुछ नहीं सुनने वाली,
तैयार हो जा और अंकल को बोल ड्राइवर को तैयार कर दें, " शानू अब पूरे प्रभाव में थी।
बुआ जो पास हीं थीं बोलीं ," नेहा शानू का दिल नहीं तोड़ो। तैयारी कर देंगें। "
मैंने फोन के ऊपर हाथ रख कर धीरे से कहा ," बुआ आज मुझे नानू का ख़याल रखना था। "
बुआ ज़ोर से हंस दी ," डैडी यदि मैं आपका ख्याल रखूँ तो आप नेहा को जाने देंगें न ?"
नानू भी हंस दिए , "नेहा बिटिया दोस्ती बहुत मत्वपूर्ण होती है। सुशी को मेरा ख्याल रखना अच्छे से आता है। "
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